दि राजपूत परस्पर साख सहकारिता संस्था मर्या. उज्जैन की 62 वीं वार्षिक साधारण सभा सम्पन्न attacknews.in

उज्जैन 28 सितम्बर । दि राजपूत परस्पर साख सहकारिता संस्था मर्या. उज्जैन की 62 वीं वार्षिक साधारण सभा संस्थाध्यक्ष राजेश सिंह कुशवाह की अध्यक्षता में सम्पन्न हुई।

साधारण सभा में वरिष्ठ समाज सेवी श्री वीरेन्द्र सिंह परिहार एडवोकेट, श्री संजय सिंह ठाकूर जिला उपाध्यक्ष भाजपा, भी संग्राम सिंह भाटी पार्षद एवं झोन अध्यक्ष व श्रीमती आशिमा गौरव सिंह सेंगर पार्षद अतिथि के रूप में सम्मिलित हूए।

साधारण सभा में सर्वप्रथम अतिथियों द्धारा प्रभू श्री राम जी व संस्थापंक स्व. श्री चन्द्रभान सिंह जी भदौरिया के चित्रों के सम्मुख दीप प्रज्जवलित किया गया।

अतिथियों का स्वागत संचालक मण्ड़ल के सदस्यगण मीना सिंह चैहान उपाध्यक्ष, राजकुमारी राठौर, जयवीर सिंह सेंगर, बलवीर सिंह पंवार, अरविंद सिंह चैहान, राजेश सिंह भदौरिया, चन्द्रभान सिंह, उदयपाल सिंह सेंगर आदि ने किया।

इस अवसर पर अतिथियों द्धारा अपने उद्बोधन में कहा की वर्ष 1961 से निरंतर 62 वर्षो से संस्था चलायमान रहना भी एक उपलब्धि है। समाज के पिछडे, निर्धन, जरूरतमंद को कम ब्याज पर वित्तीय ऋण उपलब्ध कराना भी एक पुनीत कार्य है। संस्था सहकारिता के माध्यम से अपने उद्देश्यों की पूर्ति कर रही है। क्षत्रिय राजपूत समाज के समस्त प्रभावशाली व आर्थिक रूप से सपन्न व्यक्तियों को संस्था को सहयोग प्रदान करना चाहिए।

प्रतिवर्षानुसार संस्था के वरिष्ठ सदस्यों एवं ऋण वसुली में सहयोग करने वाले सदस्यों सर्व श्री सुंदर सिंह चैहान, चन्द्रपाल सिंह भदौरिया, लल्लू सिंह पंवार, सुधा चैहान, सीमा भदौरिया, शक्ति सिंह बैस, नाथूसिंह पंवार व सहकारिता विभाग के अधिकारी श्री अशोक सिंह चैहान को शाॅल श्रीफल से सम्मनित किया गया।

अध्यक्षीय उद्बोधन देते हूए संस्थाध्यक्ष श्री राजेश सिंह कुशवाह ने कहा कि, दि राजपूत परस्पर साख सहकारी सं. मर्या. उज्जैन शहर की सबसे प्राचीन साख संस्था के रूप में संचालित है यह गौरव की बात है सभी सदस्यगण आपनी जमा राशियाॅ नियमित रूप से प्राथमिकता मानकर जमा करना प्रारंभ कर दें तो संस्था को एक नई उर्जा प्राप्त हो सकेगी। हमारे पूर्वजों ने समाज की सबसे पिछली पंक्ति के व्यक्ति/परिवार की वित्तीय सहायता हेतू इस संस्था को प्रारम्भ किया था उनके इसी पवित्र भाव को आगे बढ़ाने हेतू हम कृत संकल्पित होकर कार्य कर रहें है। जो सदस्य ऋण लेकर नियमित किश्त जमा नहीं कर रहे है उनके विरूद्ध कड़े निर्णय भी लिए जावेगें जिससे होने वाली आसुविधा व अपमान से बचने हेतू कृपया अपना बकाया जमा करना प्रारंभ करे।

साधारण सभा में गत वर्ष की प्रोसिंडींग की पुष्टि की गई। वित्तिय वर्ष 2022-23 के वित्तीय (आय-व्यय) पत्रक का अनुमोदन किया गया वर्ष- 2023-2024 के प्रस्तावित बजट की स्वीकृति प्रदान की गई।

संस्था के वरिष्ठ सदस्यगण सर्वश्री ब्रजबिहारी सिंह चैहान, वीरबहादूर सिंह कुशवाह, विशम्बर सिंह भदौरिया, जीतेन्द्र सिंह भदौरिया आदि ने भी अपने सुझाव रखे। कार्यक्रम का संचालन ऋषिवंत सिंह तोमर ने किया तथा आभार अंगद सिंह भदौरिया उपाध्यक्ष ने व्यक्त किया।

उज्जैन में हैं पितरों को मोक्ष देने वाला गया तीर्थ,भगवान श्री कृष्ण के प्रकट से कहलाया”गयाकोठा तीर्थ “,वर्ष 2023 की श्राद्ध पक्ष की तिथियाँ और श्राद्ध नियमों की पूरी जानकारी विस्तार से जानिए attacknews.in

उज्जैन में हैं पितरों को मोक्ष देने वाला गया तीर्थ,भगवान श्री कृष्ण के प्रकट से कहलाया “गयाकोठा तीर्थ “, वर्ष 2023 की श्राद्ध पक्ष की तिथियाँ और श्राद्ध नियमों की पूरी जानकारी व

Gaya Tirtha, which gives salvation to the ancestors, is in Ujjain, called “Gayakotha Tirtha” after the appearance of Lord Shri Krishna, know the complete information about Shraddha Paksha dates and Shraddha rules of the year 2023 in detail.

लेखक: पंडित आशीष जोशी, उज्जैन

श्राद्ध पक्ष में उज्जैन स्थित गया कोठा का विशेष महत्व है।

इसके पीछे एक कथा है कि भगवान श्रीकृष्ण और बलराम ने उज्जैन में गुरु सांदीपनि से शिक्षा ग्रहण की थी। स्कंद पुराण के अवंतिका खंड के अनुसार शिक्षा प्राप्त करने के बाद जब श्रीकृष्ण ने गुरु सांदीपनि से कहा कि आपको गुरु दक्षिणा में क्या दे सकता हूं तब उन्होंने कहा था कि मुझे कुछ नहीं चाहिए। मैं आपको शिक्षा देकर ही धन्य हो गया। तब गुरु माता अरुंधति ने श्रीकृष्ण से कहा था कि उनके सात गुरु भाइयों को गजाधर नामक राक्षस अपने साथ ले गया है। वे उन सभी को लेकर आए। तब श्रीकृष्ण ने कहा कि छह भाइयों का गजाधर वध कर चुका है। उन्हें लेकर आऊंगा तो यह प्रकृति के विरुद्ध होगा। एक अन्य गुरु भाई को उसने पाताल लोक में छुपाकर रखा है। वे उसे ला सकते हैं।

इसके बाद भगवान श्रीकृष्ण ने गयाधर का रूप धारण कर गजाधर का वध किया था और उक्त गुरु भाई को उनके पास लाकर सुपुर्द किया था। तब गुरु माता ने छह गुरु भाइयों के मोक्ष का सरल उपाय बताने को कहा था।

उनका कहना था कि गुरु सांदीपनि नदी पार नहीं कर सकते। तब श्रीकृष्ण ने बिहार के गया में स्थित फल्गु नदी को गुप्त रूप से उज्जैन में प्रकट किया था। यह अंकपात मार्ग स्थित सांदीपनि आश्रम के पास स्थित है। यह स्थान ‘गयाकोठा’ कहलाता है।

गयाकोठा तीर्थ पर भगवान श्री विष्णु के सहस्त्र चरण विद्यमान हैं। जिन पर दुग्धाभिषेक कर यहां आने वाले अपने पितरों की मुक्ति और मनोवांछित फल प्राप्त करते हैं। हालांकि श्राद्धपक्ष के प्रारंभ में और सर्वपितृ अमावस्या पर यहां पूजन करने वालों की अधिक तादाद होती है मगर अन्य दिनों में भी यहां लोग बडी संख्या में आकर दर्शन लाभ लेते हैं। 

माना जाता है कि भगवान श्री विष्णु के ये चरण आदि काल से हैं। इनका पूजन कर भक्त अपने को धन्य मानते हैं। दूसरी ओर मंदिर के बाहर एक तालाब है। जिसमें पर्व विशेष पर महिलाओं द्वारा स्नान किया जाता है। मंदिर परिसर में ही महादेव का मंदिर भी है। इस मंदिर के दर्शन करने और यहां अभिषेक करवाने से व्यक्ति समस्त प्रकार के ऋणों और बंधनों से मुक्त हो जाता है।

यूं तो गयाकोठा मंदिर में श्रद्धालु अपनी इच्छा से जो चढा देते हैं स्वीकार हो जाता है मगर पितरों की शांति के निमित्त भगवान श्री विष्णु के सहस्त्र चरण कमलों में दूध और जल चढ़ाने से अधिक पुण्यलाभ मिलता है और इसका श्राद्ध पक्ष में और भी महत्व बढ़ जाता है ।

हिंदू मान्यता में श्राद्ध का बहुत महत्व है। शाब्दिक अर्थ में श्राद्ध अर्थात् श्रद्धा से किया गया कोई कर्म जो हम अपने पूर्वजों की इच्छा पूर्ति और सद्गति के निमित्त करते हैं। अर्थात् जिस तरह से आजीवन हम अपने माता पिता की सेवा करते हैं। उसी प्रकार उनकी मृत्यु हो जाने के बाद आत्मा की परमगति और उनके प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने के लिए उन्हें श्राद्ध के माध्यम से पूजा जाता है।

माना जाता है कि श्राद्ध न करने पर पितरों की अतृप्त इच्छाओं के कारण वासनायुक्त पितर अनिष्ट शक्तियों के दास बन जाते हैं।

हालांकि आपको जानकर आश्चर्य होगा कि जो हिंदू धर्म आत्मा को अजन्मा, नित्य, अलौकिक जानता है वही इसे अतृप्त वासनाओं में फंसा हुआ मानता है। ऐसा क्यों। ऐसा इसलिए क्योंकि मरने के बाद जीवात्मा की जो गति होती है। वह उस जन्म में किए उसके कर्मों के फलस्वरूप होती है। जीवात्मा मरने के कुछ दिन तक उस शरीर और उस शरीर से जुड़े सगे संबंधियों से जुड़ा रहता है। अंतिम क्रिया कर्म की विधी पूरी होने के बाद वह जीवात्मा उस बंधन से मुक्त हो जाता है। मुक्त होने के कुछ समय बाद भी वह जीवात्मा अलग अलग सूक्ष्म योनियों में भटकता रहता है,जिसमें वह अपने उस जन्म के संबंधियों और विषयवासनाओं से यदि मुक्त नहीं हो पाता तो वह अपनी इच्छाओं की पूर्ति होने तक या फिर विधिविधान से उसकी मुक्ति के लिए किए जाने वाले कर्मों तक सूक्ष्म योनि में भटकता ही रहता है। 

गरूड़ पुराण और अन्य पुराणों में उपरोक्त ऐसी मान्यताएं वर्णित है। ऐसे जीवात्मा की मुक्ति हेतु श्राद्ध सर्वाधिक उपयुक्त कहे गए हैं। ये श्राद्धकर्म विभिन्न प्रकार के होते हैं। जो कि श्राद्ध पक्ष के अलावा भी किए जाते हैं। मगर प्रमुखरूप से प्रतिवर्ष पितरों की शांति के निमित्त किए जाने वाले श्राद्ध नियमितरूप से श्राद्ध पक्ष में किए जाते हैं। जो कि भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से प्रारंभ माना जाता है। यह श्राद्ध पक्ष अमावस्या जिसे सर्वपितृ अमावस्या के नाम से जाना जाता है, तक चलता रहता है। जिसमें व्यक्ति की मृत्यु की तिथी पर श्राद्ध किया जाता है।

गया जी (बिहार) में व्यक्ति माता-पिता के ऋण से मुक्त होता है। लेकिन उज्जैन के गया कोठा में स्वयं के ऋण से भी उसे मुक्ति मिलती है। यहां प्रत्येक तिथि के चरण विराजमान हैं। यहां इन चरणों और सप्तऋषि की साक्षी में कर्म किया जाता है। यहां पितृ शांति और महालय श्राद्ध भी किया जाता है। इसीलिए गयाकोठा का पुराणों में भी विशेष महत्व है ।

भारतीय शास्त्रों में ऐसी मान्यता है कि पितृगण पितृपक्ष में पृथ्वी पर आते हैं और 15 दिनों तक पृथ्वी पर रहने के बाद अपने लोक लौट जाते हैं। शास्त्रों में बताया गया है कि पितृपक्ष के दौरान पितृ अपने परिजनों के आस-पास रहते हैं इसलिए इन दिनों कोई भी ऐसा काम नहीं करें जिससे पितृगण नाराज हों।

पितरों को खुश रखने के लिए पितृ पक्ष में कुछ बातों पर विशेष ध्यान देना चाहिए। पितृ पक्ष के दौरान , जामाता, भांजा, मामा, गुरु, नाती को भोजन कराना चाहिए। इससे पितृगण अत्यंत प्रसन्न होते हैं, भोजन करवाते समय भोजन का पात्र दोनों हाथों से पकड़कर लाना चाहिए अन्यथा भोजन का अंश राक्षस ग्रहण कर लेते हैं जिससे ब्राह्मणों द्वारा अन्न ग्रहण करने के बावजूद पितृगण भोजन का अंश ग्रहण नहीं करते हैं।

पितृ पक्ष में द्वार पर आने वाले किसी भी जीव-जंतु को मारना नहीं चाहिए बल्कि उनके योग्य भोजन का प्रबंध करना चाहिए। हर दिन भोजन बनने के बाद एक हिस्सा निकालकर गाय, कुत्ता, कौआ अथवा बिल्ली को देना चाहिए।

मान्यता है कि इन्हें दिया गया भोजन सीधे पितरों को प्राप्त हो जाता है। शाम के समय घर के द्वार पर एक दीपक जलाकर पितृगणों का ध्यान करना चाहिए।

हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार जिस तिथि को जिसके पूर्वज गमन करते हैं, उसी तिथि को उनका श्राद्ध करना चाहिए। इस पक्ष में जो लोग अपने पितरों को जल देते हैं तथा उनकी मृत्युतिथि पर श्राद्ध करते हैं, उनके समस्त मनोरथ पूर्ण होते हैं। जिन लोगों को अपने परिजनों की मृत्यु की तिथि ज्ञात नहीं होती, उनके लिए पितृ पक्ष में कुछ विशेष तिथियां भी निर्धारित की गई हैं, जिस दिन वे पितरों के निमित्त श्राद्ध कर सकते हैं।

आश्विन कृष्ण प्रतिपदा: इस तिथि को नाना-नानी के श्राद्ध के लिए सही बताया गया है। इस तिथि को श्राद्ध करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है। यदि नाना-नानी के परिवार में कोई श्राद्ध करने वाला न हो और उनकी मृत्युतिथि याद न हो, तो आप इस दिन उनका श्राद्ध कर सकते हैं।

पंचमी: जिनकी मृत्यु अविवाहित स्थिति में हुई हो, उनका श्राद्ध इस तिथि को किया जाना चाहिए।

नवमी: सौभाग्यवती यानि पति के रहते ही जिनकी मृत्यु हो गई हो, उन स्त्रियों का श्राद्ध नवमी को किया जाता है। यह तिथि माता के श्राद्ध के लिए भी उत्तम मानी गई है। इसलिए इसे मातृनवमी भी कहते हैं। मान्यता है कि इस तिथि पर श्राद्ध कर्म करने से कुल की सभी दिवंगत महिलाओं का श्राद्ध हो जाता है।

एकादशी और द्वादशी: एकादशी में वैष्णव संन्यासी का श्राद्ध करते हैं। अर्थात् इस तिथि को उन लोगों का श्राद्ध किए जाने का विधान है, जिन्होंने संन्यास लिया हो।

चतुर्दशी: इस तिथि में शस्त्र, आत्म-हत्या, विष और दुर्घटना यानि जिनकी अकाल मृत्यु हुई हो उनका श्राद्ध किया जाता है जबकि बच्चों का श्राद्ध कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को करने के लिए कहा गया है।

सर्वपितृमोक्ष अमावस्या: किसी कारण से पितृपक्ष की अन्य तिथियों पर पितरों का श्राद्ध करने से चूक गए हैं या पितरों की तिथि याद नहीं है, तो इस तिथि पर सभी पितरों का श्राद्ध किया जा सकता है। शास्त्र अनुसार, इस दिन श्राद्ध करने से कुल के सभी पितरों का श्राद्ध हो जाता है। यही नहीं जिनका मरने पर संस्कार नहीं हुआ हो, उनका भी अमावस्या तिथि को ही श्राद्ध करना चाहिए। बाकी तो जिनकी जो तिथि हो, श्राद्धपक्ष में उसी तिथि पर श्राद्ध करना चाहिए। यही उचित भी है।

तो आइए  जानते हैं पितृ पक्ष की प्रमुख तिथियों और महत्व के बारे में-

पितृ पक्ष 2023 कब से शुरू हो रहे हैं?

इस वर्ष पितृ पक्ष 29 सितंबर 2023, शुक्रवार से प्रारंभ हो रहा है इस दिन पूर्णिमा श्राद्ध और प्रतिपदा श्राद्ध है। पितृ पक्ष का समापन 14 अक्टूबर, शनिवार को होगा।

पंचांग के अनुसार, भाद्रपद पूर्णिमा 29 सितंबर को दोपहर 03:26 बजे तक है और उसके बाद आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि शुरू हो जाएगी, जो 30 सितंबर को दोपहर 12:21 बजे तक है।

पितृ पक्ष में तिथि का महत्व

जब पितृ पक्ष प्रारंभ होता है तो प्रत्येक दिन की एक तिथि होती है तिथि के अनुसार ही श्राद्ध करने का नियम है ।उदाहरण के लिए, इस वर्ष द्वितीया श्राद्ध 30 सितंबर को है यानि पितृ पक्ष में श्राद्ध की द्वितीया तिथि है, जिन लोगों के पूर्वजों की मृत्यु किसी भी महीने की द्वितीया तिथि को होती है, वे पितृ पक्ष के दूसरे दिन अपने पूर्वजों का श्राद्ध करते हैं ।इसी प्रकार पूर्वज की मृत्यु भी माह और पक्ष की नवमी तिथि को होगी वे पितृ पक्ष की नवमी श्राद्ध के लिए तर्पण, पिंडदान आदि की कामना करते हैं।

पितृ पक्ष 2023 श्राद्ध की मुख्य तिथियां

पूर्णिमा श्राद्ध- 29 सितंबर 2023
प्रतिपदा का श्राद्ध – 29 सितंबर 2023
द्वितीया श्राद्ध तिथि- 30 सितंबर 2023
तृतीया तिथि का श्राद्ध- 1 अक्टूबर 2023
चतुर्थी तिथि श्राद्ध- 2 अक्टूबर 2023
पंचमी तिथि श्राद्ध- 3 अक्टूबर 2023
षष्ठी तिथि का श्राद्ध- 4 अक्टूबर 2023
सप्तमी तिथि का श्राद्ध- 5 अक्टूबर 2023
अष्टमी तिथि का श्राद्ध- 6 अक्टूबर 2023
नवमी तिथि का श्राद्ध- 7 अक्टूबर 2023
दशमी तिथि का श्राद्ध- 8 अक्टूबर 2023
एकादशी तिथि का श्राद्ध- 9 अक्टूबर 2023
माघ तिथि का श्राद्ध- 10 अक्टूबर 2023
द्वादशी तिथि का श्राद्ध- 11 अक्टूबर 2023
त्रयोदशी तिथि का श्राद्ध- 12 अक्टूबर 2023
चतुर्दशी तिथि का श्राद्ध- 13 अक्टूबर 2023
सर्वपितृ मोक्ष श्राद्ध तिथि- 14 अक्टूबर 2023
          पितृ पक्ष के दौरान करें ये उपाय

शास्त्रों में ज्ञात है कि पितृ पक्ष में स्नान, दान और तर्पण आदि का विशेष महत्व होता है इस दौरान श्राद्ध कर्म या पिंडदान आदि किसी जानकार व्यक्ति से ही कराना चाहिए साथ ही किसी ब्राह्मण या जरूरतमंद को भोजन, धन या वस्त्र का दान करें ऐसा करने से पितरों का आशीर्वाद मिलता है ।

पितृ पक्ष में पूर्वजों की मृत्यु की तिथि के अनुसार श्राद्ध कर्म या पिंडदान किया जाता है यदि किसी व्यक्ति को अपने पूर्वजों की मृत्यु की तिथि याद नहीं है तो वह आश्विन कृष्ण पक्ष की अमावस्या के दिन यह अनुष्ठान कर सकता है ऐसा करने से भी पूर्ण फल प्राप्त होता है।

श्राद्ध पक्ष 29 सितंबर 2023 पितृ पक्ष शुरू हो रहे हैं, जो 16 दिन चलकर 14 अक्टूबर को समाप्त होंगे !

जानें पितृ पक्ष की 16 तिथियों में किस दिन करें !

किनका श्राद्ध.पितृ पक्ष में श्राद्ध की 16 तिथियों का क्या है महत्व, किस तिथि में किनका करें श्राद्ध !

हिंदू धर्म में श्राद्ध पक्ष का बहुत महत्व है !

हिंदू धर्म में पितृ पक्ष या श्राद्ध पक्ष को बहुत ही महत्वपूर्ण माना गया है, जोकि पूरे 16 दिनों तक चलता है. इस दौरान पितरों का श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान करने का विधान है. मान्यता है कि, पितृ पक्ष में किए श्राद्ध कर्म से पितर तृप्त होते हैं और पितरो का ऋण उतरता है. 

पंचांग के अनुसार, हर साल भाद्रपद माह की पूर्णिमा तिथि से लेकर आश्विन अमावस्या तक पितृ पक्ष होता है !

इन 16 दिनों में पूर्वजों के निमित्त श्राद्ध किए जाते हैं. इस साल पितृ पक्ष 29 सितंबर 2023 से शुरू हो जाएगा और 14 अक्टूबर को इसकी समाप्ति होगी.

पितृ पक्ष को लेकर हिंदू धर्म में ऐसी मान्यता है कि, इस समय पितृ धरती लोक पर आते हैं और किसी न किसी रूप में अपने परिजनों के आसपास रहते हैं. इसलिए इस समय श्राद्ध करने का विधान है. श्राद्ध के लिए 16 तिथियां बताई गई हैं. लेकिन किन तिथियों में किस पितर पर श्राद्ध करना चाहिए !

पितृ पक्ष की तिथियां :—

29 सितंबर 2023, पूर्णिमा और प्रतिपदा का श्राद्ध.!

शनिवार 30 सितंबर 2023, द्वितीया तिथि का श्राद्ध.!

रविवार 01 अक्टूबर 2023, तृतीया तिथि का श्राद्ध.!

सोमवार 02 अक्टूबर 2023, चतुर्थी तिथि का श्राद्ध.!

मंगलवार 03 अक्टूबर 2023, पंचमी तिथि का श्राद्ध.!

बुधवार 04 अक्टूबर 2023, षष्ठी तिथि का श्राद्ध.!

गुरुवार 05 अक्टूबर 2023, सप्तमी तिथि का श्राद्ध.!

शुक्रवार 06 अक्टूबर 2023, अष्टमी तिथि का श्राद्ध.!

शनिवार 07 अक्टूबर 2023, नवमी तिथि का श्राद्ध.!

रविवार 08 अक्टूबर 2023, दशमी तिथि का श्राद्ध.!

सोमवार 09 अक्टूबर 2023, एकादशी तिथि का श्राद्ध.!

मंगलवार 10 अक्टूबर 2023, मघा श्राद्ध.!

बुधवार 11 अक्टूबर 2023, द्वादशी तिथि का श्राद्ध.!

गुरुवार 12 अक्टूबर 2023, त्रयोदशी तिथि का श्राद्ध.!

शुक्रवार 13 अक्टूबर 2023, चतुर्दशी तिथि का श्राद्ध.!

शनिवार 14 अक्टूबर 2023, सर्व पितृ अमावस्या का श्राद्ध.!

किस तिथि में किन पितरों का करें श्राद्ध !

पूर्णिमा तिथि (29 सितंबर 2023)

ऐसे पूर्वज जो पूर्णिमा तिथि को मृत्यु को प्राप्त हुए, उनका श्राद्ध पितृ पक्ष के भाद्रपद शुक्ल की पूर्णिमा तिथि को करना चाहिए. इसे प्रोष्ठपदी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है.

पहला श्राद्ध (30 सितंबर 2023)

जिनकी मृत्यु किसी भी माह के शुक्ल पक्ष या कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि के दिन हुई हो उनका श्राद्ध पितृ पक्ष की इसी तिथि को किया जाता है. इसके साथ ही प्रतिपदा श्राद्ध पर ननिहाल के परिवार में कोई श्राद्ध करने वाला नहीं हो या उनके मृत्यु की तिथि ज्ञात न हो तो भी आप श्राद्ध प्रतिपदा तिथि में उनका श्राद्ध कर सकते हैं.

द्वितीय श्राद्ध (01 अक्टूबर 2023)

जिन पूर्वज की मृत्यु किसी भी महीने के शुक्ल पक्ष या कृष्ण पक्ष की द्वितीया तिथि को हुई हो, उनका श्राद्ध इस दिन किया जाता है.

तीसरा श्राद्ध (02 अक्टूबर 2023)

जिनकी मृत्यु कृष्ण पक्ष या शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि के दिन होती है, उनका श्राद्ध तृतीया तिथि को करने का विधान है. इसे महाभरणी भी कहा जाता है.

चौथा श्राद्ध (03 अक्टूबर 2023)

शुक्ल पक्ष या कृष्ण पक्ष में से चतुर्थी तिथि में जिनकी मृत्यु होती है, उनका श्राद्ध पितृ पक्ष की चतुर्थ तिथि को किया जाता है.

पांचवा श्राद्ध (04 अक्टूबर 2023)

ऐसे पूर्वज जिनकी मृत्यु अविवाहिता के रूप में होती है उनका श्राद्ध पंचमी तिथि में किया जाता है. यह दिन कुंवारे पितरों के श्राद्ध के लिए समर्पित होता है.

छठा श्राद्ध (05 अक्टूबर 2023)

किसी भी माह के षष्ठी तिथि को जिनकी मृत्यु हुई हो, उनका श्राद्ध इस दिन किया जाता है. इसे छठ श्राद्ध भी कहा जाता है.

सातवां श्राद्ध (06 अक्टूबर 2023)

किसी भी माह के शुक्ल पक्ष या कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि को जिन व्यक्ति की मृत्यु होती है, उनका श्राद्ध पितृ पक्ष की इस तिथि को करना चाहिए.

आठवां श्राद्ध (07 अक्टूबर 2023)

ऐसे पितर जिनकी मृत्यु पूर्णिमा तिथि पर हुई हो तो उनका श्राद्ध अष्टमी, द्वादशी या पितृमोक्ष अमावस्या पर किया जाता है.

नवमी श्राद्ध (08 अक्टूबर 2023)

माता की मृत्यु तिथि के अनुसार श्राद्ध न करके नवमी तिथि पर उनका श्राद्ध करना चाहिए. ऐसा माना जाता है कि, नवमी तिथि को माता का श्राद्ध करने से सभी कष्टों से मुक्ति मिलती हैं. वहीं जिन महिलाओं की मृत्यु तिथि याद न हो उनका श्राद्ध भी नवमी तिथि को किया जा सकता है.

दशमी श्राद्ध (09 अक्टूबर 2023)

दशमी तिथि को जिस व्यक्ति की मृत्यु हुई हो, उनका श्राद्ध महालय की दसवीं तिथि के दिन किया जाता है.

एकादशी श्राद्ध (10 अक्टूबर 2023)

ऐसे लोग जो संन्यास लिए हुए होते हैं, उन पितरों का श्राद्ध एकादशी तिथि को करने की परंपरा है.

द्वादशी श्राद्ध (11 अक्टूबर 2023)

जिनके पिता संन्यास लिए हुए होते हैं उनका श्राद्ध पितृ पक्ष की द्वादशी तिथि को करना चाहिए. चाहे उनकी मृत्यु किसी भी तिथि को हुई हो. इसलिए तिथि को संन्यासी श्राद्ध भी कहा जाता है.

त्रयोदशी श्राद्ध (12 अक्टूबर 2023)

श्राद्ध महालय के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को बच्चों का श्राद्ध किया जाता है.

चतुर्दशी तिथि (13 अक्टूबर 2023)

ऐसे लोग जिनकी अकाल मृत्यु हुई हो जैसे आग से जलने, शस्त्रों के आघात से, विषपान से, दुर्घना से या जल में डूबने से हुई हो, उनका श्राद्ध चतुर्दशी तिथि को करना चाहिए.

अमावस्या तिथि (14 अक्टूबर 2023)

पितृ पक्ष के अंतिम दिन सर्वपितृ अमावस्या पर ज्ञात-अज्ञात पूर्वजों के श्राद्ध किए जाते हैं. इसे पितृविसर्जनी अमावस्या, महालय समापन भी कहा जाता है।


पिंडदान करने के लिए सफेद या पीले वस्त्र ही धारण करें। जो इस प्रकार श्राद्धादि कर्म संपन्न करते हैं, वे समस्त मनोरथों को प्राप्त करते हैं और अनंत काल तक स्वर्ग का उपभोग करते हैं।

विशेष: श्राद्ध कर्म करने वालों को निम्न मंत्र तीन बार अवश्य पढ़ना चाहिए। यह मंत्र ब्रह्मा जी द्वारा रचित आयु, आरोग्य, धन, लक्ष्मी प्रदान करने वाला अमृतमंत्र है-

देवताभ्यः पितृभ्यश्च महायोगिश्च एव च। नमः स्वधायै स्वाहायै नित्यमेव भवन्त्युत !!
(वायु पुराण) ।।

श्राद्ध सदैव दोपहर के समय ही करें। प्रातः एवं सायंकाल के समय श्राद्ध निषेध कहा गया है। हमारे धर्म-ग्रंथों में पितरों को देवताओं के समान संज्ञा दी गई है।

‘सिद्धांत शिरोमणि’ ग्रंथ के अनुसार चंद्रमा की ऊध्र्व कक्षा में पितृलोक है जहां पितृ रहते हैं। पितृ लोक को मनुष्य लोक से आंखों द्वारा नहीं देखा जा सकता। जीवात्मा जब इस स्थूल देह से पृथक होती है उस स्थिति को मृत्यु कहते हैं। यह भौतिक शरीर 27 तत्वों के संघात से बना है। स्थूल पंच महाभूतों एवं स्थूल कर्मेन्द्रियों को छोड़ने पर अर्थात मृत्यु को प्राप्त हो जाने पर भी 17 तत्वों से बना हुआ सूक्ष्म शरीर विद्यमान रहता है।

हिंन्दु मान्यताओं के अनुसार एक वर्ष तक प्रायः सूक्ष्म जीव को नया शरीर नहीं मिलता। मोहवश वह सूक्ष्म जीव स्वजनों व घर के आसपास घूमता रहता है। श्राद्ध कार्य के अनुष्ठान से सूक्ष्म जीव को तृप्ति मिलती है इसीलिए श्राद्ध कर्म किया जाता है।

ऐसा कुछ भी नहीं है कि इस अनुष्ठान में जो भोजन खिलाया जाता है वही पदार्थ ज्यों का त्यों उसी आकार, वजन और परिमाण में मृतक पितरों को मिलता है। वास्तव में श्रद्धापूर्वक श्राद्ध में दिए गए भोजन का सूक्ष्म अंश परिणत होकर उसी अनुपात व मात्रा में प्राणी को मिलता है जिस योनि में वह प्राणी है।


पितृ-पक्ष – श्राद्ध-कर्म- क्यों,कैसे और किसलिए  :-

•• इस सृष्टि में हर चीज का अथवा प्राणी का जोड़ा है । जैसे – रात और दिन, अँधेरा और उजाला, सफ़ेद और काला, अमीर और गरीब अथवा नर और नारी इत्यादि बहुत गिनवाये जा सकते हैं । सभी चीजें अपने जोड़े से सार्थक है अथवा एक-दूसरे के पूरक है । दोनों एक-दूसरे पर निर्भर होते हैं । इसी तरह दृश्य और अदृश्य जगत का भी जोड़ा है । दृश्य जगत वो है जो हमें दिखता है और अदृश्य जगत वो है जो हमें नहीं दिखता । ये भी एक-दूसरे पर निर्भर है और एक-दूसरे के पूरक हैं । पितृ-लोक भी अदृश्य-जगत का हिस्सा है और अपनी सक्रियता के लिये दृश्य जगत के श्राद्ध पर निर्भर है । 


•• धर्म ग्रंथों के अनुसार श्राद्ध के सोलह दिनों में लोग अपने पितरों को जल देते हैं तथा उनकी मृत्युतिथि पर श्राद्ध करते हैं। ऐसी मान्यता है कि पितरों का ऋण श्राद्ध द्वारा चुकाया जाता है। वर्ष के किसी भी मास तथा तिथि में स्वर्गवासी हुए पितरों के लिए पितृपक्ष की उसी तिथि को श्राद्ध किया जाता है ।

•• पूर्णिमा पर देहांत होने से भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा को श्राद्ध करने का विधान है। इसी दिन से महालय (श्राद्ध) का प्रारंभ भी माना जाता है। श्राद्ध का अर्थ है श्रद्धा से जो कुछ दिया जाए। पितृपक्ष में श्राद्ध करने से पितृगण वर्षभर तक प्रसन्न रहते हैं। धर्म शास्त्रों में कहा गया है कि पितरों का पिण्ड दान करने वाला गृहस्थ दीर्घायु, पुत्र-पौत्रादि, यश, स्वर्ग, पुष्टि, बल, लक्ष्मी, पशु, सुख-साधन तथा धन-धान्य आदि की प्राप्ति करता है।

•• श्राद्ध में पितरों को आशा रहती है कि हमारे पुत्र-पौत्रादि हमें पिण्ड दान तथा तिलांजलि प्रदान कर संतुष्ट करेंगे। इसी आशा के साथ वे पितृलोक से पृथ्वीलोक पर आते हैं। यही कारण है कि हिंदू धर्म शास्त्रों में प्रत्येक हिंदू गृहस्थ को पितृपक्ष में श्राद्ध अवश्य रूप से करने के लिए कहा गया है।

•• श्राद्ध से जुड़ी कई ऐसी बातें हैं जो बहुत कम लोग जानते हैं। मगर ये बातें श्राद्ध करने से पूर्व जान लेना बहुत जरूरी है क्योंकि कई बार विधिपूर्वक श्राद्ध न करने से पितृ श्राप भी दे देते हैं। आज हम आपको श्राद्ध से जुड़ी कुछ विशेष बातें बता रहे हैं, जो इस प्रकार हैं–

1- श्राद्धकर्म में गाय का घी, दूध या दही काम में लेना चाहिए। यह ध्यान रखें कि गाय को बच्चा हुए दस दिन से अधिक हो चुके हैं। दस दिन के अंदर बछड़े को जन्म देने वाली गाय के दूध का उपयोग श्राद्ध कर्म में नहीं करना चाहिए।

2- श्राद्ध में चांदी के बर्तनों का उपयोग व दान पुण्यदायक तो है ही राक्षसों का नाश करने वाला भी माना गया है। पितरों के लिए चांदी के बर्तन में सिर्फ पानी ही दिए जाए तो वह अक्षय तृप्तिकारक होता है। पितरों के लिए अर्घ्य, पिण्ड और भोजन के बर्तन भी चांदी के हों तो और भी श्रेष्ठ माना जाता है।

3- श्राद्ध में ब्राह्मण को भोजन करवाते समय परोसने के बर्तन दोनों हाथों से पकड़ कर लाने चाहिए, एक हाथ से लाए अन्न पात्र से परोसा हुआ भोजन राक्षस छीन लेते हैं।

4- ब्राह्मण को भोजन मौन रहकर एवं व्यंजनों की प्रशंसा किए बगैर करना चाहिए क्योंकि पितर तब तक ही भोजन ग्रहण करते हैं जब तक ब्राह्मण मौन रह कर भोजन करें।

5- जो पितृ शस्त्र आदि से मारे गए हों उनका श्राद्ध मुख्य तिथि के अतिरिक्त चतुर्दशी को भी करना चाहिए। इससे वे प्रसन्न होते हैं। श्राद्ध गुप्त रूप से करना चाहिए। पिंडदान पर साधारण या नीच मनुष्यों की दृष्टि पडने से वह पितरों को नहीं पहुंचता।

6- श्राद्ध में ब्राह्मण को भोजन करवाना आवश्यक है, जो व्यक्ति बिना ब्राह्मण के श्राद्ध कर्म करता है, उसके घर में पितर भोजन नहीं करते, श्राप देकर लौट जाते हैं। ब्राह्मण हीन श्राद्ध से मनुष्य महापापी होता है।

7- श्राद्ध में जौ, कांगनी, मटरसरसों का उपयोग श्रेष्ठ रहता है। तिल की मात्रा अधिक होने पर श्राद्ध अक्षय हो जाता है। वास्तव में तिल पिशाचों से श्राद्ध की रक्षा करते हैं। कुशा (एक प्रकार की घास) राक्षसों से बचाते हैं।

8- दूसरे की भूमि पर श्राद्ध नहीं करना चाहिए। वन, पर्वत, पुण्यतीर्थ एवं मंदिर दूसरे की भूमि नहीं माने जाते क्योंकि इन पर किसी का स्वामित्व नहीं माना गया है। अत: इन स्थानों पर श्राद्ध किया जा सकता है।

9- चाहे मनुष्य देवकार्य में ब्राह्मण का चयन करते समय न सोचे, लेकिन पितृ कार्य में योग्य ब्राह्मण का ही चयन करना चाहिए क्योंकि श्राद्ध में पितरों की तृप्ति ब्राह्मणों द्वारा ही होती है।

10- जो व्यक्ति किसी कारणवश एक ही नगर में रहनी वाली अपनी बहिन, जमाई और भानजे को श्राद्ध में भोजन नहीं कराता, उसके यहां पितर के साथ ही देवता भी अन्न ग्रहण नहीं करते।

11- श्राद्ध करते समय यदि कोई भिखारी आ जाए तो उसे आदरपूर्वक भोजन करवाना चाहिए। जो व्यक्ति ऐसे समय में घर आए याचक को भगा देता है उसका श्राद्ध कर्म पूर्ण नहीं माना जाता और उसका फल भी नष्ट हो जाता है।

12- शुक्लपक्ष में, रात्रि में, युग्म दिनों (एक ही दिन दो तिथियों का योग) में तथा अपने जन्मदिन पर कभी श्राद्ध नहीं करना चाहिए। धर्म ग्रंथों के अनुसार सायंकाल का समय राक्षसों के लिए होता है, यह समय सभी कार्यों के लिए निंदित है। अत: शाम के समय भी श्राद्धकर्म नहीं करना चाहिए।

13- श्राद्ध में प्रसन्न पितृगण मनुष्यों को पुत्र, धन, विद्या, आयु, आरोग्य, लौकिक सुख, मोक्ष और स्वर्ग प्रदान करते हैं। श्राद्ध के लिए शुक्लपक्ष की अपेक्षा कृष्णपक्ष श्रेष्ठ माना गया है।

14- रात्रि को राक्षसी समय माना गया है। अत: रात में श्राद्ध कर्म नहीं करना चाहिए। दोनों संध्याओं के समय भी श्राद्धकर्म नहीं करना चाहिए। दिन के आठवें मुहूर्त (कुतपकाल) में पितरों के लिए दिया गया दान अक्षय होता है।

15- श्राद्ध में ये चीजें होना महत्वपूर्ण हैं- गंगाजल, दूध, शहद, दौहित्र, कुश और तिल। केले के पत्ते पर श्राद्ध भोजन निषेध है। सोने, चांदी, कांसे, तांबे के पात्र उत्तम हैं। इनके अभाव में पत्तल उपयोग की जा सकती है।

16- तुलसी से पितृगण प्रसन्न होते हैं। ऐसी धार्मिक मान्यता है कि पितृगण गरुड़ पर सवार होकर विष्णु लोक को चले जाते हैं। तुलसी से पिंड की पूजा करने से पितर लोग प्रलयकाल तक संतुष्ट रहते हैं।

17- रेशमी, कंबल, ऊन, लकड़ी, तृण, पर्ण, कुश आदि के आसन श्रेष्ठ हैं। आसन में लोहा किसी भी रूप में प्रयुक्त नहीं होना चाहिए।

18- चना, मसूर, उड़द, कुलथी, सत्तू, मूली, काला जीरा, कचनार, खीरा, काला उड़द, काला नमक, लौकी, बड़ी सरसों, काले सरसों की पत्ती और बासी, अपवित्र फल या अन्न श्राद्ध में निषेध हैं।

19- भविष्य पुराण के अनुसार श्राद्ध 12 प्रकार के होते हैं, जो इस प्रकार हैं-

1- नित्य, 2- नैमित्तिक, 3- काम्य, 4- वृद्धि, 5- सपिण्डन, 6- पार्वण, 7- गोष्ठी, 8- शुद्धर्थ, 9- कर्मांग, 10- दैविक, 11- यात्रार्थ, 12- पुष्टयर्थ

20- श्राद्ध के प्रमुख अंग इस प्रकार :
तर्पण- इसमें दूध, तिल, कुशा, पुष्प, गंध मिश्रित जल पितरों को तृप्त करने हेतु दिया जाता है। श्राद्ध पक्ष में इसे नित्य करने का विधान है।

भोजन व पिण्ड दान– पितरों के निमित्त ब्राह्मणों को भोजन दिया जाता है। श्राद्ध करते समय चावल या जौ के पिण्ड दान भी किए जाते हैं।

वस्त्रदान– वस्त्र दान देना श्राद्ध का मुख्य लक्ष्य भी है।
दक्षिणा दान– यज्ञ की पत्नी दक्षिणा है जब तक भोजन कराकर वस्त्र और दक्षिणा नहीं दी जाती उसका फल नहीं मिलता।

21 – श्राद्ध तिथि के पूर्व ही यथाशक्ति विद्वान ब्राह्मणों को भोजन के लिए बुलावा दें। श्राद्ध के दिन भोजन के लिए आए ब्राह्मणों को दक्षिण दिशा में बैठाएं।

22- पितरों की पसंद का भोजन दूध, दही, घी और शहद के साथ अन्न से बनाए गए पकवान जैसे खीर आदि है। इसलिए ब्राह्मणों को ऐसे भोजन कराने का विशेष ध्यान रखें।

23- तैयार भोजन में से गाय, कुत्ते, कौए, देवता और चींटी के लिए थोड़ा सा भाग निकालें। इसके बाद हाथ जल, अक्षत यानी चावल, चन्दन, फूल और तिल लेकर ब्राह्मणों से संकल्प लें।

24- कुत्ते और कौए के निमित्त निकाला भोजन कुत्ते और कौए को ही कराएं किंतु देवता और चींटी का भोजन गाय को खिला सकते हैं। इसके बाद ही ब्राह्मणों को भोजन कराएं । पूरी तृप्ति से भोजन कराने के बाद ब्राह्मणों के मस्तक पर तिलक लगाकर यथाशक्ति कपड़े, अन्न और दक्षिणा दान कर आशीर्वाद पाएं।

25– ब्राह्मणों को भोजन के बाद घर के द्वार तक पूरे सम्मान के साथ विदा करके आएं। क्योंकि ऐसा माना जाता है कि ब्राह्मणों के साथ-साथ पितर लोग भी चलते हैं। ब्राह्मणों के भोजन के बाद ही अपने परिजनों, दोस्तों और रिश्तेदारों को भोजन कराएं।

26– पिता का श्राद्ध पुत्र को ही करना चाहिए। पुत्र के न होने पर पत्नी श्राद्ध कर सकती है। पत्नी न होने पर सगा भाई और उसके भी अभाव में सपिंडो (परिवार के) को श्राद्ध करना चाहिए । एक से अधिक पुत्र होने पर सबसे बड़ा पुत्र श्राध्दकर्म करें या सबसे छोटा ।


श्राद्ध पक्ष में अपनाए जाने वाले सभी मुख्य नियम:

1) श्राद्ध के दिन भगवदगीता के सातवें अध्याय का माहात्म पढ़कर फिर पूरे अध्याय का पाठ करना चाहिए एवं उसका फल मृतक आत्मा को अर्पण करना चाहिए।

2) श्राद्ध के आरम्भ और अंत में तीन बार निम्न मंत्र का जप करें –

मंत्र ध्यान से पढ़े :

ll देवताभ्यः पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च l
नमः स्वाहायै स्वधायै नित्यमेव भवन्त्युत ll

(समस्त देवताओं, पितरों, महायोगियों, स्वधा एवं स्वाहा सबको हम नमस्कार करते हैं l ये सब शाश्वत फल प्रदान करने वाले हैं l)

3) श्राद्ध में एक विशेष मंत्र उच्चारण करने से, पितरों को संतुष्टि होती है और संतुष्ट पितर आपके कुल खानदान को आशीर्वाद देते हैं:

मंत्र ध्यान से पढ़े :

ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं स्वधादेव्यै स्वाहा|

4) जिसका कोई पुत्र न हो, उसका श्राद्ध उसके दौहिक (पुत्री के पुत्र) कर सकते हैं l कोई भी न हो तो पत्नी ही अपने पति का बिना मंत्रोच्चारण के श्राद्ध कर सकती है l

5) पूजा के समय गंध रहित धूप प्रयोग करें  और बिल्व फल प्रयोग न करें और केवल घी का धुआं भी न करें|
        
            पितृ पक्ष, 2023 विशेष

कब शुरू हो रहे हैं पितृ पक्ष, श्राद्ध की प्रमुख तिथियां, जानें इस दौरान क्या उपाय-

पितृ पक्ष के 15 दिन पितरों को समर्पित होते हैं इस दौरान श्राद्ध कर्म, दान, गरीबों को खाना खिलाने से पितरों की आत्माएं प्रसन्न होती हैं पितृ पक्ष के दौरान पितरों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध किया जाता है।

हिंदू पंचांग के अनुसार पितृ पक्ष भाद्रपद मास की पूर्णिमा तिथि से प्रारंभ होकर आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की स्थापना तिथि को समाप्त होता है ।

हिंदू धर्म में पितृपक्ष यानी श्राद्ध का विशेष महत्व है पितृ पक्ष के दौरान पूर्वजों को श्रद्धापूर्वक याद करके उसका श्राद्ध कर्म हो किया जाता है।

पितृ पक्ष में पितरों के लिए तर्पण और श्राद्ध कर्म करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है ।इस दौरान न केवल पितरों की मुक्ति के लिए उनका श्राद्ध किया जाता है, बल्कि उनके प्रति सम्मान भी व्यक्त किया जाता है ।.

श्राद्ध से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें

हर व्यक्ति को अपने पूर्व की तीन पीढ़ियों (पिता, दादा, परदादा) और नाना-नानी का श्राद्ध करना चाहिए।

जो लोग पूर्वजों की संपत्ति का उपभोग करते हैं और उनका श्राद्ध नहीं करते, ऐसे लोगों को पितरों द्वारा शप्त होकर कई दुखों का सामना करना पड़ता है।

यदि किसी माता-पिता के अनेक पुत्र हों और संयुक्त रूप से रहते हों तो, सबसे बड़े पुत्र को  पितृकर्म करना चाहिए।

पितृ पक्ष में दोपहर (12:30 से 01:00) तक श्राद्ध कर लेना चाहिए।

नोट :– यदि आपकी जन्मकुंडली में ज्योतिष से संबंधित कोई समस्या है तो आप अपनी जन्म कुंडली किसी विद्वान ज्योतिषी को अवश्य दिखाएं और उनकी सलाह के अनुभव उपाय करें, उससे आपको बहुत लाभ होगा और जीवन में चल रही समस्याओं का समाधान होगा !

श्राद्ध क्यों करना चाहिए ?

श्राद्ध करने से 6 बड़े फायदे होते हैं !

तुलसी से पिण्डार्चन किए जाने पर पितरगण प्रलयपर्यन्त तृप्त रहते हैं। तुलसी की गंध से प्रसन्न होकर गरुड़ पर आरुढ़ होकर विष्णुलोक चले जाते हैं।

पितर प्रसन्न तो सभी देवता प्रसन्न !

श्राद्ध से बढ़कर और कोई कल्याणकारी कार्य नहीं है और वंशवृद्धि के लिए पितरों की आराधना ही एकमात्र उपाय है…

आयु: पुत्रान् यश: स्वर्ग कीर्तिं पुष्टिं बलं श्रियम्।
पशुन् सौख्यं धनं धान्यं प्राप्नुयात् पितृपूजनात्।। (यमस्मृति, श्राद्धप्रकाश)

यमराजजी का कहना है कि–

श्राद्ध-कर्म से मनुष्य की आयु बढ़ती है।

पितरगण मनुष्य को पुत्र प्रदान कर वंश का विस्तार करते हैं।

परिवार में धन-धान्य का अंबार लगा देते हैं।

श्राद्ध-कर्म मनुष्य के शरीर में बल-पौरुष की वृद्धि करता है और यश व पुष्टि प्रदान करता है।

पितरगण स्वास्थ्य, बल, श्रेय, धन-धान्य आदि सभी सुख, स्वर्ग व मोक्ष प्रदान करते हैं।

श्रद्धापूर्वक श्राद्ध करने वाले के परिवार में कोई क्लेश नहीं रहता वरन् वह समस्त जगत को तृप्त कर देता है।

श्राद्ध करने से क्या फल मिलता है ?

‘ ऐसा करने से व्यक्ति को पितृ ऋण से मुक्ति मिलती है।

जो पूर्णमासी के दिन श्राद्धादि करता है उसकी बुद्धि, पुष्टि, स्मरणशक्ति, धारणाशक्ति, पुत्र-पौत्रादि एवं ऐश्वर्य की वृद्धि होती। वह पर्व का पूर्ण फल भोगता है।

प्रतिपदा धन-सम्पत्ति के लिए होती है एवं श्राद्ध करनेवाले की प्राप्त वस्तु नष्ट नहीं होती।

श्राद्ध करने से क्या लाभ होता है ?

पितरों की संतुष्टि के उद्देश्य से श्रद्धापूर्वक किये जाने वाले तर्पण, ब्राह्मण भोजन, दान आदि कर्मों को श्राद्ध कहा जाता है। इसे पितृयज्ञ भी कहते हैं। श्राद्ध के द्वारा व्यक्ति पितृऋण से मुक्त होता है और पितरों को संतुष्ट करके स्वयं की मुक्ति के मार्ग पर बढ़ता है।

श्राद्ध नहीं करने से क्या होता है ?

माना जाता है कि पितृपक्ष में श्राद्ध न करने से पितृदोष लगता है, पितृ दोष के कारण जीवन में परेशानी ही परेशानियां उठानी पड़ती हैं, कभी जीवन में परेशानियों का अंत नहीं होता, ग्रस्त जीवन व्यापार और संतान की ओर से हमेशा कोई ना कोई संकट बना रहता है, जीवन में उन्नति तरक्की नहीं होती, व्यक्ति को मान सम्मान नहीं मिलता, धन की समस्या बनी रहती है आदि !

श्राद्ध के दिनों में क्या नहीं करना चाहिए ?

पितृपक्ष के दौरान बाल, दाढ़ी, मूंछ या नाखून काटने के अलावा कई और भी चीज हैं, जो वर्जित बताई गई हैं। इन दिनों ब्रह्मचार का व्रत करना चाहिए। साथ ही लहसुन, प्याज, मांस, मदिरा जैसे आदि तामसिक चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए। साथ ही इस दौरान बासी खाना भी नहीं खाना चाहिए और मांगलिक कार्य इस पक्ष में निषेध बताए गए हैं !

श्राद्ध में कौन सी सब्जी नहीं बनानी चाहिए ?

हिंदू धर्म शास्त्र के मुताबिक, पितृ पक्ष  के दौरान जमीन के अंदर होने वाली सब्जियों जैसे मूली, अरबी, आलू आदि का सेवन नहीं करना चाहिए और नहीं इनका पितरों का भोग लगाना चाहिए. श्राद्ध के दौरान ब्राह्मणों को भी इसे ना खिलायें. सनातन धर्म में लहसुन और प्याज को तामसिक भोजन माना जाता है !

पितरों के लिए कौन सा दीपक लगाना चाहिए ?

ईशान कोण में जलाएं घी का दीपक: रोजाना घर के ईशान कोण (उत्तर और पूर्व के बीच की दिशा) में गाय के घी का दीपक जलाने से मां लक्ष्‍मी आप पर कृपा बरसाएंगी. इससे घर में कभी आर्थिक समस्‍याएं नहीं होती हैं. रोज ऐसा करने से पितृ बेहद प्रसन्‍न होते हैं और पितरों के आशीर्वाद से सारी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं !

श्राद्ध कब नहीं करना चाहिए ?

जिन व्यक्तियों की अपमृत्यु हुई हो, अर्थात किसी प्रकार की दुर्घटना, सर्पदंश, विष, शस्‍त्रप्रहार, हत्या, आत्महत्या या अन्य किसी प्रकार से अस्वा‍भाविक मृत्यु हुई हो, तो उनका श्राद्ध मृत्यु तिथि वाले दिन कदापि नहीं करना चाहिए।

क्या श्राद्ध में पूजा कर सकते हैं ?

आप अन्य दिनों की तरह ही श्राद्ध में भी नियमित रूप से सुबह-शाम देवी-देवताओं की पूजा कर सकते हैं. मान्यता है कि, इस दौरान पूजा-पाठ बंद करने से पितरों के निमित्त किए गए श्राद्ध का पूर्ण फल नहीं मिलता, इसलिए पितृ पक्ष में पूजा-पाठ करते रहें !

क्या श्राद्ध में नए कपड़े खरीद सकते हैं ?

इसके अतिरिक्त यह वंशजों को सकारात्मक भाग्य प्रदान करता है। पितरों का आशीर्वाद व्यक्ति को जीवन में प्रगति करने में काफी मदद कर सकता है और उसकी समस्याएं काफी हद तक कम हो जाती हैं। श्राद्ध के दौरान आमतौर पर लोग नए कपड़े खरीदने या पहनने से बचते हैं , बाल कटवाने से भी बचना चाहिए।

श्राद्ध कितनी पीढ़ी तक किया जाता है ?

श्राद्ध कर्म तीन पीढ़ियों का ही होता है। इसमें मातृकुल और पितृकुल (नाना और दादा) दोनों शामिल होते हैं। तीन पीढ़ियों से अधिक का श्राद्ध कर्म नहीं होता है।

पितरों को पानी कौन दे सकता है ?

अगर मुखिया नहीं है, तो घर का कोई अन्य पुरुष अपने पितरों को जल चढ़ा सकता है। इसके अलावा पुत्र और नाती भी तर्पण कर सकता है। शास्त्रों के अनुसार, पिता का श्राद्ध पुत्र को ही करना चाहिए। अगर पुत्र के न हो, तो पत्नी श्राद्ध कर सकती है।

पितृ के देवता कौन है ?

एक प्रकार के देवता जो सब जिवों के आदिपूर्वज माने गए है । विशेष—मनुस्मृति में लिखा है कि, ऋषियों से पितर, पितरों से देवता और देवताओं से संपूर्ण स्थावर जंगम जगत की उत्पत्ति हुई है। ब्रह्मा के पूत्र मनु हुए । मनु के मरोचि, अग्नि आदि पुत्रों को पुत्रपरंपरा ही देवता, दानव, दैत्य, मनुष्य आदि के मूल पूरूष या पितर है ।

क्षत्रिय महासभा के राष्ट्रीय महामंत्री राजेश सिंह कुशवाह का बयान:समस्त राजनैतिक दलो द्वारा क्षत्रिय राजपूत समाज को योजनाबद्ध रूप से सुनियोजित तरीके से दबाने का षड़यंत्र किया जा रहा है attacknews.in

उज्जैन 23 अगस्त ।अ.भा. क्षत्रिय महासभा के राष्ट्रीय प्रमुख महामंत्री श्री राजेश सिंह कुशवाह ने कहा हैं कि, अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा समाज हित में कार्य करने वाला सबसे पुराना सामाजिक संगठन है। क्षत्रिय समाज नेतृत्वकर्ता था है और सदैव रहेगा। समस्त राजनैतिक दलो द्वारा क्षत्रिय राजपूत समाज को योजनाबद्ध रूप से सुनियोजित तरीके से दबाने का षड़यंत्र किया जा रहा है जिसे हमें एकता के साथ संघर्ष कर सफल नहीं होने देना है। क्षत्रियों की जागरूकता ही हर समस्या का निदान हमारे सामने अपने वर्तमान के साथ-साथ अपने गौरव शाली महापुरूषो को भी अब अन्य लोगो द्वारा अपना बताकर इतिहास को भी बदलने का कुचक्र प्रारम्भ कर दिया है।

उक्त विचार श्री कुशवाह के अलावा उपस्थित अन्य अतिथियों द्वारा व्यक्त किए गए। अ.भा. क्षत्रिय महासभा द्वारा आयोजित नव नियुक्त पदाधिकारियों के सम्मान समारोह में श्री कुशवाह के साथ श्री जगदीश सिंह तोमर पूर्व क्षैत्रिय अधिकारी बीज निगम श्री उपेन्द्र सिंह सेंगर पूर्व निरिक्षक म.प्र. पुलिस, श्री प्रकाश सिंह कुशवाह, पूर्व निरीक्षक म.प्र. पुलिस, श्रीमति उषा पंवार राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष अ.भा. क्षत्रिय महिला महासभा, श्रीमति शकुन्तला कुशवाह प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष अ.भा. क्षत्रिय महिला महासभा अतिथि के रूप में उपस्थित थे।

सम्मान समारोह में राष्ट्रीय कार्यकारिणी के निर्वाचन में श्री अंगदसिंह भदौरिया राष्ट्रीय उपाध्यक्ष श्री राजेश सिंह कुशवाह, राष्ट्रीय प्रमुख महामंत्री तथा प्रदेशाध्यक्ष श्री राजकुमार सिंह सिकरवार द्वारा मनोनित उज्जैन के श्री अर्जुन सिंह राठौर, प्रदेश उपाध्यक्ष, श्री विजय सिंह भदौरिया प्रदेश सचिव, महेन्द्र सिंह बैस प्रदेश उपाध्यक्ष एवं युवा विंग में शिवसिंह परिहार राष्ट्रीय महामंत्री, राजेशसिंह भदौरिया प्रदेश सचिव, अशोक सिंह गेहलोत उज्जैन संभाग अध्यक्ष आकाश सिंह ठाकुर संभाग उपाध्यक्ष, पुष्पेन्द्र सिंह सिकरवार संभागीय महामंत्री तथा श्री प्रदीप सिंह जादौन व श्री करण सिंह चौहान को संरक्षक मनोनित किए जाने पर सभी पदाधिकारियों का अतिथियों द्वारा सम्मान कर नियुक्त पत्र प्रदान किए गए। समारोह को बांसवाडा राजस्थान से पधारे श्री रमेश सिंह चौहान ने भी संबोधित किया।

अतिथियों का स्वागत श्रीमती उपमा चौहान, मीरा सिकरवार, विवेक सिंह हाडा, उदय पाल सिंह सेंगर आदि ने किया।

दि राजपुत साख सह. संस्था के सभागार में आयोजित इस समारोह का संचालन श्री अंगदसिंह भदौरिया ने किया तथा आभार श्री अरविंद सिंह चौहान ने व्यक्त किया।

श्रीमती कलावती यादव और राजेश सिंह कुशवाह भारत स्काउट एवं गाइड जिला संघ उज्जैन के आजीवन सदस्य निर्वाचित attacknews.in

उज्जैन 23 अगस्त ।भारत स्काउट एवं गाइड जिला संघ उज्जैन के आजीवन सदस्य प्रतिनिधियों के निर्वाचन ,निर्वाचन अधिकारी रामसिंह बनिहार के निर्देशन में सम्पन्न हुए।

यह जानकारी देते हुए हेडक्वार्टर कमिश्नर श्री नरेश शर्मा ने बताया की प्रति पांच वर्ष में होने वाले निर्वाचन के प्रथम चरण में आजीवन सदस्य प्रतिनिधियों के निर्वाचन भारत स्काउट एवं गाइड म.प्र. राज्य मुख्यालय भोपाल के निर्देशानुसार सम्पन्न हुए। जिसमें उज्जैन जिला संघ के आजीवन सदस्य प्रतिनिधियों की निर्वाचन प्रक्रिया में संघ के 111 आजीवन सदस्यों में से दस प्रतिनिधियों के निर्वाचन हेतू निर्वाचन कार्यक्रम नियमानुसार घोषित किया गया था।

111 सदस्यों में दस नामांकन प्राप्त होने पर उन्हें (1) श्रीमती पुष्पा शर्मा (2) श्रीमती कलावती यादव (3) श्री तरूण उपाध्याय (4) श्री हेमन्त लुल्ला (5) श्री राजेश सिंह कुशवाह (6) श्री अभय कुमार (7) श्री रमेश श्रीवैय्या (8) श्री राजेश शर्मा (9) श्री हेमचन्द शर्मा व (10) श्री राजेंद्र शर्मा को निविर्रोध निर्वाचित घोषित किया गया।

ये सभी आजीवन सदस्य प्रतिनिधि अपने मे से एक सदस्य को भारत स्काउट एवं गाइड जिला संघ, उज्जैन की जिला कार्यकारिणी में प्रतिनिधित्व हेतू प्रतिनिधि निर्वाचित करेंगे एवं जिला कार्यकारिणी के अध्यक्ष व उपाध्यक्ष के निर्वाचन में मतदान कर सकेंगे।

नरेश शर्मा
हेडक्वार्टर कमिश्नर
भारत स्काउट एवं गाइड जिला संघ, उज्जैन
9425195600

उज्जैन में राजपूत परस्पर साख सहकारी संस्था मर्या. कार्यालय पर 77 वां स्वतंत्रता दिवस हर्षोल्लास से मनाया गया attacknews.in


उज्जैन 16 अगस्त ।उज्जैन दी राजपूत परस्पर साख सहकारी संस्था मार्या. उज्जैन के कार्यालय 90 MIG साँदीपनी नगर पर 77 वां स्वतंत्रता दिवस हर्षोल्लास से मनाया गया ।

सर्वप्रथम संस्थाध्यक्ष श्री राजेश सिंह कुशवाह द्वारा झंडावंदन किया गया, इस अवसर पर वरिष्ठ समाजसेवीगण सर्वश्री जगदीश सिंह तोमर, उपेन्द्र सिंह सेंगर, प्रकाश सिंह कुशवाह, ऊषा पंवार अतिथि के रुप में उपस्थित थे ।

झंडावंदन पश्चात उपस्थित सभी सदस्यो व अतिथियोँ द्वारा सामूहिक राष्ट्र गान गाया गया ।

ङअतिथियोँ का स्वागत संस्था के संचालकगण सर्वश्री जयवीर सिंह सेंगर, बलवीर सिंह पंवार, रामसिंह भदोरिया,राजेश सिंह भदोरिया , विवेक सिंह हाडा,चंद्रभान सिंह राजपूत, उदयपाल सिंह सेंगर आदि ने किया।

अतिथियों ने संबोधित करते हुए स्वतंत्रता दिवस की बधाई दी और कहा कि सहकारिता से छोटी छोटी बचत व ऋण मध्यमवर्ग और निम्न आय वर्ग के लोगों की बड़ी सहायता की जा सकती हैं। संस्था इस कार्य को सफलता के साथ कर रही हैं ।

समारोह का संचालन उपाध्यक्ष अंगद सिंह भदौरिया ने किया,आभार संचालक अरविंद सिंह चौहान ने व्यक्त किया।

कई बार विवादित बयानों के लिए चर्चा में रहे दिग्विजय सिंह के खिलाफ RSS के द्वितीय सरसंघचालक ‘गुरुजी’ को लेकर की गई टिप्पणी पर FIR दर्ज attacknews.in


( विशाल शर्मा)

नयी दिल्ली, 09 जुलाई । मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय के अधिवक्ता राजेश जोशी ने कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह द्वारा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सरसंघचालक माधव सदाशिव गोळवलकर ‘गुरुजी’ को लेकर सोशल मीडिया पर एक फर्जी बयान साझा किये जाने को लेकर पुलिस रिपोर्ट दर्ज करायी है।

इंदौर के सुदामा नगर निवासी श्री जोशी ने शनिवार रात करीब साढ़े 11 बजे तुकोगंज थाने में भारतीय दंड संहिता की धारा 153 ए, 469, 500 और 505 के तहत प्राथमिकी दर्ज करायी।

श्री जोशी ने पुलिस रिपोर्ट में कहा है कि विश्व के सबसे बड़े निस्वार्थ समाजसेवी संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विरुद्ध विद्वेषपूर्ण तरीके से दलितों, पिछड़ों, मुसलमानों और हिन्दुओं में शत्रुता, घृणा एवं वैमनस्यता पैदा कर आपस में उकसाने एवं वर्ग संघर्ष के उद्देश्य से जानबूझकर किए गए पोस्ट से उनकी, आरएसएस के स्वयंसेवकों और हिन्दू समाज की धार्मिक आस्था आहत हुई है।

कल अपराह्न करीब चार बजे मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री श्री सिंह ने ट्विटर पर एक कथित अखबारी कतरन को साझा करते हुए लिखा,” गुरु गोलवलकर जी के दलितों पिछड़ों और मुसलमानों के लिए व राष्ट्रीय जल जंगल व ज़मीन पर अधिकार पर क्या विचार थे अवश्य जानिए।”

कथित अखबारी कतरन में गुरु गोलवलकर को उद्धृत करते हुए छापा गया है – “मैं सारी जिन्दगी अंग्रेज़ों की गुलामी करने के लिए तैयार हूँ लेकिन जो दलितों, पिछड़ों और मुसलमानों को बराबरी का अधिकार देती हो, ऐसी आजादी मुझे नहीं चाहिए।”

इस पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने गहरी आपत्ति व्यक्त करते हुए कहा कि कांग्रेस नेता झूठ के सहारे सामाजिक विद्वेष फैलाने की कोशिश कर रहे हैं।

संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने श्री सिंह के ट्वीट का जवाब देते हुए ट्विटर पर उन्हें संबोधित करते हुए लिखा, “श्री गोलवलकर गुरुजी के संदर्भ में यह ट्वीट तथ्यहीन है तथा सामाजिक विद्वेष उत्पन्न करने वाला है। संघ की छवि धूमिल करने के उद्देश्य से यह झूठा फोटोशॉप करके चित्र लगाया हैं। श्री गुरुजी ने कभी भी ऐसे नहीं कहा। उनका पूरा जीवन सामाजिक भेदभाव को समाप्त करने में लगा रहा।”

श्री सिंह के इस ट्वीट पर आम लोगों ने भी कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की और उनके ट्वीट को उनकी गरिमा और राजनीतिक हैसियत के प्रतिकूल करार दिया है।

वकील राजेश जोशी द्वारा इंदौर के तुकोगंज पुलिस स्टेशन में दर्ज की गई FIR में उन्होंने कहा कि, दिग्विजय सिंह के द्वारा गोलवलकर गुरूजी की एक तस्वीर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्विटर पर साझा करते हुए, उन्हें मुस्लिम विरोधी और दलित विरोधी बताया था।

इसके परिणामस्वरूप, सिंह के ऊपर भारतीय दण्ड संहिता की धाराओं 153A, 469, 500 और 505 के तहत एफआईआर दर्ज की गई।

दिग्विजय सिंह इस से पहले भी कई बार अपने विवादित बयानों के लिए चर्चा में रहे हैं।

दिग्विजय सिंह ने एक पुस्तक विमोचन कार्यक्रम के अवसर पर मुंबई में हुए 26/11 आतंकवादी हमले में शहीद ATS चीफ हेमंत करकरे की मृत्यु को लेकर भी विवादित बयान दिया था, जिसमें उन्होंने उनकी मृत्यु को हिंदूवादी संगठनों से जोड़ने की कोशिश की थी।

हालांकि, कांग्रेस भी उनके इस बयान से पलड़ा झाड़ते हुए नज़र आई थी, कुछ समय बाद दिग्विजय सिंह भी अपने दिए बयान से पलट गए थे।

दिग्विजय सिंह के विवादित बयानों का सिलसिला यहीं नहीं थमा, इसके बाद 2017 में सिंह ने भारत में बैन इस्लामिक रिसर्च फाउंडेशन (IRF) संगठन के एक कार्यक्रम में ज़ाकिर नाइक के साथ मंच साझा किया और ज़ाकिर नाइक द्वारा किए गए कार्यों की सराहना भी की, यह तक कि उन्हें “मैसेंजर ऑफ पीस” भी बताया |

ज्ञात हो, 2008 में हुए बाटला हाउस एनकाउंटर को भी दिग्विजय सिंह नकली बता चुके हैं, जिसमें स्वर्गीय मोहन चंद शर्मा शहीद हो गए थे, साथ ही एनकाउंटर में मारे गए आतंकवादियों को दिग्विजय सिंह ने मासूम बताया था।
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पार्टी के नाम और सिंबल को लेकर काका भतीजे में छिड़ी  जंग


मुंबई 05 जुलाई ।शरद पवार और अजित पवार के बीच पार्टी के नाम और सिंबल को लेकर घमासान जारी है।

दोनों ही गुट पार्टी के नाम और सिंबल को लेकर आमने-सामने हैं और निरंतर बैठकों का दौर जारी है।

अजित पवार की बुलाई बैठक में विधायकों और समर्थकों का पहुंचना शुरू हो गया था। वहीं, शरद पवार ने 1 बजे नरीमन पॉइंट पर वाई.बी. चव्हाण सेंटर में सभी विधायकों, सांसदों और जिले से लेकर तालुका स्तर तक सभी अधिकारियों और इकाइयों के पार्टी कार्यकर्ताओं को एकत्रित होने का कहा था।

इस महत्वपूर्ण बैठक से पहले सुप्रिया सुले और अनिल देशमुख ये.बी. चोहान सेंटर पहुंचे। दूसरी और, अजित पवार भी मजबूत दिखाई दे रहे हैं और उनकी बुलाई बैठक में 30 विधायक एकत्रित हुए।”

अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा का राष्ट्रीय अधिवेशन में सुरेन्द्र सिंह तोमर अध्यक्ष और राजेश सिंह कुशवाह राष्ट्रीय प्रमुख महामंत्री निर्वाचित;अब राजपूत क्षत्रिय चुनावों मे निर्दलीय प्रत्याशियों को देगा समर्थन attacknews.in

ज्जैन 26 जून ।स्थानीय विक्रम कीर्ति मंदिर उज्जैन में अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. शिवराम सिंह गौर दिल्ली ने महासभा का केसरिया ध्वजारोहण कर अधिवेशन का शुभारम्भ किया।

राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. गौर,राष्ट्रीय प्रमुख महामंत्री श्री सुरेन्द्र सिंह तोमर, राष्ट्रीय निर्वाचन अधिकारी श्री राजीव सिंह भदौरिया द्वारा क्षत्रिय आराध्य प्रभु श्री राम व महाराणा प्रताप के चित्रों के सम्मुख दीप प्रज्जवलित किया।

महासभा की उज्जैन इकाई की और से  राष्ट्रीय संगठन मंत्री श्री अंगद सिंह भदौरिया, विजय सिंह भदोरिया द्वारा अतिथियो को साफा बांधकर स्वागत किया गया।

शुभारम्भ सत्र का संचालन राष्ट्रीय महामंत्री राजेश सिंह कुशवाह ने किया।

अधिवेशन में तीन प्रस्ताव पारित किए गए। पारित राजनीतिक प्रस्ताव में निर्णय लिया गया कि, अब  राजपूत क्षत्रिय समाज अपने दम पर लोकसभा और विधानसभाओं के निर्वाचन मे निर्दलीय प्रत्याशियों को समर्थन कर उन्हें जीताकर सदन में भेजकर अपनी शक्ति दिखाएगा।

क्षत्रीय एकजुट होकर सदन में निर्दलियों की संख्या बदाएंगे क्योंकि देश के सभी राजनीतिक दल वोटो के लिए तुष्टिकरण में लगे होने से सभी सामान्य अनारक्षित वर्ग की अनदेखी व उपेक्षा कर रहे हैं अब यह सहन नहीं किया जाएगा।

दूसरे प्रस्ताव में राजपूतों को भी सिखों की तरह बिना लाइसेंस  कृपाण रखने की अनुमति प्रदान करने व आग्नेय शस्त्रों की अनुज्ञा मे वरीयता प्रदान करने , सेना, पुलिस, अर्द्ध सैनिक बलों की भर्ती में वरीयता प्रदान करने का पारित किया गया।

साथ ही पारित किया गया कि,निर्वाचन व शासकीय संस्थानों में अनारक्षित सीटो पर आरक्षित वर्ग का प्रवेश वर्जित किया जाए। आरक्षण का लाभ किसी भी नागरिक को जीवनकाल में एक बार ही दिया जावे।

वहीँ संगठनात्मक प्रस्ताव में संगठन को मजबूत करने वाले को आगे बढ़ाने के साथ साथ यूवाओ और क्षत्राणियों को भी आगे करने का निर्णय लिए गए।

अधिवेशन में पारित प्रस्तावों को देश के महामहिम राष्ट्रपति जी को भेज कर क्रियान्वयन हेतु भेजा जाएगा।

अधिवेशन में भारत के विभिन्न प्रदेशों से 450 प्रतिनिधि सम्मलित हुए। जिन्होंने लोकतांत्रिक व्यवस्था से राष्ट्रिय अध्यक्ष का निर्वाचन किया।

राष्ट्रीय निर्वाचन अधिकारी श्री राजीव सिंह भदौरिया द्वारा कार्यकारिणी के सभी पदों पर नामांकन पत्र दाखिल करने का कार्यक्रम घोषित किया गया

तय समय पर एक भी नामांकन प्राप्त नही होने पर राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. शिवराम सिंह गौर ने अध्यक्ष हेतु श्री सुरेन्द्र सिंह तोमर के नाम का प्रस्ताव रखा जिसे सभी ने सर्वानुमति से स्वीकार करने पर निर्वाचन अधिकारी द्वारा श्री सुरेन्द्र सिंह तोमर को निर्विरोध अध्यक्ष निर्वाचित घोषित किया गया। पूर्व अध्यक्ष डॉ शिवराम सिंह व नवनिर्वाचित अध्यक्ष सुरेन्द्र सिंह का भव्य स्वागत किया गया, शॉल श्रीफल व तलवार भेंट की गई। महासभा में 6 दशक पूर्ण करने पर डॉ. शिवराम सिंह जी को अभिनंदन पत्र भेट किया गया।

नवनिर्वाचित अध्यक्ष की अध्यक्षता में राष्ट्रीय कार्यकारिणी की प्रथम बैठक सम्पन्न हुई जिसमे उपस्थित सभी सदस्यों द्वारा नवीन पदाधिकारियों की नियुक्ति का अधिकार अध्य्क्ष को प्रदान करने के उपरांत नवनिर्वाचित अध्यक्ष द्वारा नवीन राष्ट्रीय कार्यकारिणी घोषित की गई जिसमें-

प्रमुख महामंत्री
राजेश सिंह कुशवाह,

उपाध्यक्ष
राजीव सिंह भदोरिया, भेरू सिंह चौहान, अंगद सिंह भदौरिया, निहाल सिंह चौहान,

महामंत्री
प्रहलाद सिंह तंवर

मंत्री
विजय सिंह सावनेर, हेमलता तोमर

कोषाध्यक्ष
श्याम सिंह तोमर

संगठन मंत्री
यशपाल सिंह सिसौदिया

प्रचार मंत्री
हितवेंद्र सिंह राघव

प्रवक्ता
राजबहादुर राणा प्रमुख रूप से राष्ट्रीय पदाधिकारी रंहेगे बाकी पदाधिकारियों की घोषणा बाद में की जवेगी।

राष्ट्र-चिंतन

मोदी के सामने बाइडेन के झुकने का अर्थ

      □ आचार्य विष्णु हरि सरस्वती

घोर आश्चर्य और अचंभित करने करने वाला उदाहरण और कूटनीतिक घटना। किंतु पूरी तरह से सत्य। एक ऐसा सत्य जिसे पूरी दुनिया ने देखी और पूरी दुनिया के बड़े-बडे देशों के शासको ने देखा। भारत के आत्मघाती और परअस्मिता की मानसिकता से ग्रसित लोगों को इस कूटनीतिक घटना पर गर्व होगा नहीं पर दुनिया भर में रहने वाले भारतीयों और देश की देशभक्ति पर गर्व करने वाली जनता इस पर सम्मान का अनुभव जरूर कर रही है।

दुनिया के सबसे बड़े शासक और दुनिया को अपनी उंगलियांें पर नचाने वाले अमेरिका के राष्टपति जो बाईडेन द्वारा नरेन्द्र मोदी के सामने खुद आकर हाथ मिलाना और झुकना क्यों नहीं बडे गर्व की बात और घटना है? यह घटना जापान की हिरोशिमा में घटी है। अमेरिका ने कभी हिरोशिमा को राख बना दिया था, परमाणु हमला कर लगभग एक लाख लोगों को मार दिया था। हिरोशिमा में जी 7 देशो का शिखर सम्मेलन आयोजित था। जी 7 देशों के शिखर सम्मेलन में बाइडेन ही क्यों बल्कि दुनिया के अन्य देशों के नामीरिरामी शासकों ने भी नरेन्द्र मोदी का स्वागत करने और मिलने में जो गर्मजोशी दिखायी, वह न केवल भारत के लिए सम्मान की बात है बल्कि भारत की बढ़ती हुई वैश्विक और कूटनीतिक शक्ति का अहसास भी कराता है।
         
निश्चित तौर पर नरेन्द्र मोदी को इसका श्रेय जाता है कि उन्होंने अपनी कामयाबी और दूरदर्शिता की ऐसी छाप छोडी है कि दुनिया भी चकित है और नतमस्तक भी है। कभी भारत की साप-सपेरों की पहचान थी और इस पहचान को लेकर दुनिया हमारी खिल्ली उड़ाती थी लेकिन आज हमारी पहचान हर क्षेत्र में सर्वश्रेष्ठ आंकी जा रही है। नरेन्द्र मोदी  की सहमति और उपस्थिति के बिना दुनिया के नियामक अपनी चमक बनाये रखने में असमर्थ हैं, दुनिया के नियामकों की हर क्रिया और प्रतिक्रिया पर नरेन्द्र मोदी का समर्थन अनिवार्य जैसा ही माना जा रहा है। जो बाइडेन कहते हैं कि मोदी जी आप अमेरिका आने वाले हैं, सभा के सभी टिकट बिक गये, यहां तक कि मेरे रिश्तेदार, एक्टर और उद्योगपति तक आपकी सभा में शामिल होने और आपसे मिलने के लिए टिकट मांग रहे हैं।
                 
कभी भारत के शासक अमेरिका के शासकों से मिलने और भीख मांगने के लिए तरसते थे, घंटों इंतजार कराते थे, फिर भी मिलने के लिए समय नहीं देते थे, अंतराष्टीय मंचों पर भारत को अपमानित करते थे और भारत को डराते-धमकाते भी थे। भारत दीनहीन की तरह यह सब बर्दाशत करता था। विश्वास नहीं है तो महाराजा कृष्ण रस्गोत्रा की पुस्तक पढ़ लीजिये। महराजा कृष्ण रस्गोत्रा इंदिरा गांधी पर एक पुस्तक लिखी है जिसका नाम है ए लाइफ इन डिप्लोमसी। रस्गोत्रा भारत के पूर्व विदेश सचिव थे और उन्होंने जवाहरलाल नेहरू से लेकर इंदिरा गांधी के साथ काम किया था, विदेशी कूटनीति के क्षेत्र में रस्गोत्रा की तूती बोलती थी। जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी के विदेश दौरे के प्रबंधन की जिम्मेदारी भी रस्गोत्रा निभाते थे। रस्गोत्रा ने अपनी पुस्तक में लिखा है कि अमेरिका के राष्टपति निक्सन ने इंदिरा गांधी को लॉन बैठा कर 45 मिनट इंतजार कराया था, इसके बाद भी मिलने के समय निक्सन ने गर्मजोशी नहीं दिखायी थी और न ही उसने भारत की चिंताओं पर कोई नोटिस लिया था। प्रमुख अंतर्राष्टीय मंचों पर भारतीय शासकों को पीछे या फिर अंतिम पक्ति में खड़ा होना पड़ता था।  जब भारत के शासक पाकिस्तान के आतंकवाद के खिलाफ विदेशों में बोलते थे और पाकिस्तान के आतंकवाद पर नियंत्रण करने की गुहार लगाते थेे तब विदेशी शासक भारत की खिल्ली उड़ाते थे। जब कोई बड़ा शासक भारत आता था तब वह पाकिस्तान जाना भी नहीं भूलता था। यानी की विदेशी शासक पाकिस्तान को नाराज नहीं करना चाहते थे।
               
लेकिन आज की स्थिति क्या है? आज की स्थिति यह है कि बिना भारत की सहमति और विश्वास के बिना कोई भी वैश्विक नीति का सफल होना असंभव है। दुनिया के शासको को यह अहसास हो गया है कि वैश्विक नीतियां तभी सफल होंगी जब उसमें भारत की सक्रियता अग्रणी होगी। ऐसी स्थिति रातोरात नहीं बनी हुई है। ऐसी स्थिति को बनाने में नरेन्द्र मोदी की दृढ और निडर इच्छाएं शामिल रही हैं। प्रधानमंत्री बनने से पूर्व ही मोदी ने अमेरिका को उसी की भाषा में जवाब दिया था, आंख में आंख मिला कर जवाब दिया था और कह दिया था कि वह अमेरिकी कूटनीतिज्ञ से मिलने की कतई इच्छुक नहीं हैं। अमेरिकी राजदूत को मिलना है तो उसे गांधीनगर आना होगा। अमेरिका ने कभी मोदी को अपने यहां आने से प्रतिबंधित कर दिया था। गुजरात दंगों को लेकर अमेरिका नरेन्द्र मोदी को हिंसक मानता था। तत्कालीन अमेरिकी राजदूत नरेन्द्र मोदी विरोधी मानी जाती थी। लेकिन उस अमेरिकी राजदूत को अपमान झेलना पड़ा था, उसका अहंकार जमींदोज हो गया था। मोदी की इच्छानुसार तत्कालीन अमेरिकी राजदूत गांधीनगर गयी थी और नरेन्द्र मोदी से मुलाकात की थी और गुजरात दंगों पर आधारित प्रतिबंधों को लेकर मोदी से माफी भी मंाग ली थी। उस राजदूत को अमेरिका ने पद से हटा दिया था। अमेरिका जान गया था कि भारत पर नरेन्द्र मोदी युग की शुरूआत हो चुकी है।
           
मोदी ने अमेरिका और यूरोप ही नहीं बल्कि मुस्लिम देशों को सीधे तौर पर नाराज कर कश्मीर से धारा 370 हटा दिया। आतंकवादी पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए एयर स्टाइक किया। अमेरिका और यूरोप तथा मुस्लिम देश नाराज होकर भारत विरोधी हरकतें करते रहे, भारत को संयम बरतने की अपील करते रहे लेकिन नरेन्द्र मोदी ने इनकी एक नहीं चलने दी। यूक्रेन युद्ध को लेकर अमेरिका और यूरोप की एक नहीं सुनी। अमेरिकी धमकियों से भारत डरा नहीं। नरेन्द्र मोदी की सरकार ने कह दिया कि हम युद्ध विरोधी हैं पर यूक्रेन युद्ध में किसी का समर्थन और विरोध नहीं करेंगे। युद्ध रोकने के लिए संवाद की जरूरत है। अमेरिका ने यूक्रेन युद्ध को लेकर रूस पर कोई एक नहीं बल्कि कई प्रतिबंध लगाये हैं। रूस से तेल खरीदने पर भी प्रतिबंध लगाया। लेकिन रूस से भारत ने बराबर तेल खरीदा। भारत ने कह दिया कि हम अमेरिकी प्रतिबंध मानने के लिए कतई तैयार नहीं है। भारत ने रूस से सस्ता तेल खरीदकर अपनी अर्थव्यवस्था को गति दिया और अपनी जनता को महंगाई से राहत दिया। रूस से तेल नहीं खरीदने के लिए अमेरिका ने कई हथकंडे अपनाये थे लेकिन भारत अपनी इच्छा से डिगा नहीं।
       
तथाकथित धार्मिक आजादी को लेकर अमेरिका और यूरोप के शासक और संस्थाएं रिपोर्ट जारी कर भारत पर दबाव बनाने का काम करते हैं लेकिन भारत अपनी स्वतंत्रता की जिम्मेदारी से भागता नहीं है। भारतीय विदेशी मंत्री ऐसी झूठी रिपोर्टो को लेकर इनकी आलोचना से पीछे नहीं हटते हैं और नसीहत देते हैं कि आप अपने घर की स्थिति संभालिये और देखिये, भारत में मानवाधिकार पूरी तरह से सुरक्षित है। इसके पहले ऐसी भाषा भारतीय कूटनीतिज्ञों के मुंह से किसी ने सुनी थी? भारतीय कूटनीति आज पूरी स्वतंत्रता और जिम्मेदारी के साथ भारत के हितों की रक्षा कर रहे हैं। ऐसा इसलिए संभव हो पा रहा है कि नरेन्द्र मोदी ने भारतीय कूटनीतिज्ञों को खुलकर खेलने और जैसे को तैसे में जवाब देने की पूरी छूट दे रखी है।
           
ब्रिटेन, अमेरिका और नाटो देशों को चीन और रूस से निपटना मुश्किल हो रहा है। चीन अमेरिकी कूटनीतिज्ञ को बार-बार पराजित कर रहा है। रूस ने यूक्रेन पर हमला कर नाटों को सबक सिखा दिया। अमेरिका और अन्य नाटों देशो की चौधराहट आज खतरे में है। अमेरिका और नाटो यह चाहते हैं कि भारत भी चीन और रूस के खिलाफ हमारे साथ खडे रहे। चीन के साथ हमारा मतभेद है, चीन के साथ आज हम युद्धरत है, चीन हमेशा अपने पड़ोसियों पर हिंसक नजर रखता है, गरीब और विकासशील देशों को चीन सस्ते कर्ज देकर गुलाम बना रहा है। रूस भी अब विश्वसनीय नहीं है।
       
फिर भी हमें अमेरिका नाटो के हित नहीं बल्कि अपने हित की रक्षा करनी है। नरेन्द्र मोदी निष्पक्षता और स्वतंत्रता के साथ दुनिया का नेतृत्व करें। नरेन्द्र मोदी की निष्पक्षता और स्वतंत्रता में ही भारत सर्वश्रेष्ठ बनेगा और दुनिया भारत की शक्ति की पहचान करेगी।

संपर्क:
आचार्य विष्णु हरि सरस्वती
नई दिल्ली

उच्च शिक्षा मंत्री डा मोहन यादव ने गंगा दशहरा पर्व और शिप्रा तीर्थ परिक्रमा आयोजन के पूर्व शुरू किया क्षिप्रा नदी के घाटों की सफाई के लिए श्रमदान attacknews.in


उज्जैन 21 मई ।उज्जैन के लिए शिप्रा का विशेष महत्व व स्थान है पर्व व त्यौहारों पर स्नान भी हमारी प्राचीन व पौराणिक परम्परा है। गंगा दशहरे पर्व पर शिप्रा तीर्थ परिक्रमा का आयोजन शिप्रा के प्रति जन चेतना व जन जागृति हेतू प्रारंभ किया गया है।



इसी तारतम्य में भारत स्काउट एवं गाइड के स्वंयसेवको तथा शिप्रा लोक संस्कृति समिति उज्जैन के साथ हमने गउघाट पर स्वच्छता अभियान के तहत घाट की सफाई हेतू श्रमदान किया है ताकी शिप्रा स्नान हेतू आने वालो को अच्छा अनुभव हो इसका संदेश देने का प्रयास किया गया है।

उक्त विचार म.प्र. शासन के उच्च शिक्षा मंत्री डॉ. मोहन यादव ने गउघाट पर श्रमदान कर घाट स्वच्छता अभियान के अन्तर्गत व्यक्त किए।

उल्लेखनीय है कि प्रतिवर्षानुसार इस वर्ष भी डॉ. मोहन यादव के संयोजन में शिप्रा तीर्थ परिक्रमा का आयोजन 29-30 मई को किया जाना है ।उसके पूर्व विभिन्न घाटो पर स्वच्छता अभियान हेतू श्रमदान किए जाने की कडी में 21 मई 2023 रविवार को प्रातः भारत स्काउड एवं गाइड के स्वंय सेवको द्वारा गउघाट पर श्रमदान का आयोजन किया गया जिसमें स्वंय सेवको द्वारा शिप्रालोक संस्कृति समिति के सदस्यों के साथ घाट की सफाई की गई घाट पर झाडू लगाई, खरपतवार व अन्य उगआई झाडियों को हटाया गया, कचरा साफ किया गया।

इस अवसर पर डॉ. मोहन यादव के साथ विक्रम विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो अखिलेश कुमार पाण्डे भी अतिथि के रूप में उपस्थित थे।

श्रमदान में स्काउट दल का नेतृत्व सुरेश पाठक ने व शिप्रा लोक संस्कृति समिति के दल का नेतृत्व सचिव श्री नरेश शर्मा ने किया।

उपस्थित सभी ने अपार उत्साह के साथ श्रमदान किया। श्रमदान हेतू श्री हेमचंद शर्मा, राजेश सिंह कुशवाह, रमण सोलंकी, विजय चौधरी, गोपाल अग्रवाल, पूजा गोयल अनिल सक्सैना आदि उपस्थित रहे।

इसी क्रम में राष्ट्रीय सेवा योजना विक्रम विश्वविद्यालय ईकाई द्वारा 22 मई 2023 सोमवार को प्रातः 7.00 बजे रामघाट पर श्रमदान किया जावेगा।

शिप्रा लोक संस्कृति समिति के सचिव श्री नरेश शर्मा द्वारा जनमानस व नगर के प्रबुद्ध वर्ग से अनुरोध किया हे कि अधिकाधिक संख्या में उपस्थित होकर श्रमदान में सम्मिलित होकर पुण्य लाभ अर्जित करे।

मध्यप्रदेश के उच्च शिक्षा मंत्री डा मोहन यादव की माता श्रीमती लीलाबाई यादव का निधन,मंगलवार को निकलेगी अंतिम यात्रा attacknews.in

उज्जैन 13 मार्च । वरिष्ठ समाजसेवी पूनम चंद जी यादव की धर्मपत्नी तथा नंदलाल यादव(निदेशक अपना चैनल ), नारायण यादव ( अध्यक्ष, यादव महासभा ),श्रीमती कलावती यादव (सभापति नगर निगम उज्जैन ) ,डॉ. मोहन यादव, (मंत्री, उच्च शिक्षा म. प्र.), की पूज्य माताश्री एवं गोविंद यादव ( बबलू ), निलेश यादव की बड़ी मां और पायल दीपक यादव, डॉ.आकांक्षा आयुष पटेल, अनामिका, आनंदिता,अदिति, निशांत, अभय, आयुष, वैभव, अभिमन्यु, अनंत,सिद्धार्थ की दादीजी श्रीमती लीला बाई यादव ( 95 ) का आज दोपहर निधन हो गया है ।

अंतिम यात्रा चक्रतीर्थ हेतु 14.03.2023 मंगलवार को प्रात: 9.30 बजे निज निवास गीता कॉलोनी अब्दालपुरा उज्जैन से निकलेगी ।

राजपूत अध्यात्मिक मंडल उज्जयिनी (म. प्र.) का 24 वाँ श्री राम चरित मानस वार्षिक पारायण समारोह प्रारंभ attacknews.in

उज्जैन 21 जनवरी । राजपूत अध्यात्मिक मंडल उज्जयिनी (म. प्र.) का 24 वाँ श्री राम चरित मानस वार्षिक पारायण समारोह प्रारंभ हुआ।


यह जानकारी देते हुए मंडल के वरिष्ठ संचालक सदस्य श्री राजेश सिंह कुशवाह ने बताया कि राजपूत समाज में श्री रामचरित मानस के पाठ का यह प्रकल्प निरंतर निर्बाध रूप से 24 वर्ष पूर्ण करने पर प्रतिवर्षानुसार 2 दिवसीय वार्षिक परायण समारोह 21 – 22 जनवरी 2023 को आयोजित किया जा रहा है ।

समारोह के अंतर्गत आज प्रात: श्री रामचरित मानस के अखंड पाठ का शुभारंभ श्री मायापती हनुमान मंदिर सामाजिक न्याय परिसर आगर रोड उज्जैन पर शास्त्रोक्त विधि विधान से किया गया।

समारोह का शुभारंभ श्री मनीषदास जी महाराज महंत ददरौआ आश्रम उज्जैन की पावन उपस्थिति में समाजसेवी श्री सुरेन्द्र सिंह तोमर व श्री भानुप्रताप सिंह भदोरिया ने किया ।

दो दिवसीय समारोह के अंतर्गत प्रथम दिवस रंगोली प्रतियोगिता का आयोजन किया गया है । 22 जनवरी रविवार को मानस के अखंड पाठ पूर्ण होने पर विश्व कल्याण हेतु 108 जोड़ों द्वारा पंच कुंडीय श्री राम यज्ञ में मानस की चौपाईयों पर आहुति दी जावेगी।

पश्चात परम पूज्य श्री श्री 108 महंत श्री राजेश्वर दास जी महाराज, श्रीधाम वृंदावन उपस्थित जनसमुदाय को मानस पर आशीर्वचन प्रदान करेंगे।

समारोह में पूर्व आईपीएस एवं सदस्य मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग डॉ. रमन सिंह सिकरवार,राजपूत समाज के नवनिर्वाचित पार्षदगण सर्वश्री विजय सिंह कुशवाह, संग्राम सिंह भाटी व श्रीमती आईशा गौरव सिंह सेंगर तथा समाज के वरिष्ठ समाजसेवियों का अभिनंदन किया जावेगा साथ ही वर्ष 2021- 22 की हाई स्कूल, हायर सेकेंडरी व विश्वविद्यालयीन स्नातक, स्नातकोत्तर परीक्षाओं में सर्वाधिक अंक प्राप्त करने वाले नगर के मेघावी विद्यार्थियों को पुरस्कृत किया जावेगा। आध्यात्म, क्रीड़ा, सस्कृति, प्रौद्योगिकी, विज्ञान, साहित्य, प्रशासनिक, पत्रकारिता आदि आदि अन्यान क्षेत्रों में वर्ष 2021-22 मे राष्ट्रीय अथवा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विशिष्ट उपलब्धियां प्राप्त करने वाली प्रतिभाओं को भी सम्मानित किया जावेगा।

मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग की 2019 की पूरी परीक्षा को निरस्त करने का फैसला गलत था. यह पूरी तरह से औचित्यहीन;मध्यप्रदेश हाईकोर्ट नेअब नये तरीके से परीक्षा कराने को कहा attacknews.in

जबलपुर 15 दिसम्बर।मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने पीएससी 2019 की परीक्षा से जुड़े मामले में बड़ा फैसला दिया है. हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग (MP PSC EXAM 2019) की 2019 की पूरी परीक्षा को निरस्त करने का फैसला गलत था. यह पूरी तरह से औचित्यहीन है.


हाईकोर्ट ने एमपी पीएससी से कहा है कि परीक्षा में आरक्षित वर्ग के उन उम्मीदवारों के लिए विशेष मुख्य परीक्षा आयोजित करें, जिन्होंने अनारक्षित वर्ग के कट-ऑफ से अधिक अंक प्राप्त किए हैं.

6 माह के भीतर पूरी करें परीक्षा और साक्षात्कार की प्रक्रिया

एमपी हाईकोर्ट ने अपने आदेश में इस बात का भी जिक्र किया है कि भर्ती नियम 2015 से मुख्य और विशेष मुख्य परीक्षा के परिणाम के आधार पर इन उम्मीदवारों के साक्षात्कार के लिए नई सूची तैयार करें.

हाईकोर्ट ने पीएससी को कहा कि इसके लिए वही प्रक्रिया अपनाएं जो कि पूर्व की परीक्षाओं में अपनाई गई है.

हाईकोर्ट की जस्टिस नंदिता दुबे की एकलपीठ ने निर्देश दिए कि विशेष मुख्य परीक्षा व साक्षात्कार की पूरी प्रक्रिया 6 माह के भीतर पूरी करें.

इसके साथ ही हाईकोर्ट ने पीएससी के 7 अप्रैल 2022 को दिए उस आदेश को रद्द कर दिया जिसके तहत पीएससी 2019 की मुख्य परीक्षा के परिणाम को निरस्त कर नए सिरे से परीक्षा कराने कहा था.

कोर्ट के इस फैसले से अनारक्षित वर्ग के सैकड़ों छात्रों को राहत मिली है.

हाईकोर्ट ने याची की अपील को माना सही

बता दें कि जबलपुर निवासी हर्षित जैन, सागर निवासी जय प्रताप भदौरिया समेत, उमरिया, कटनी, नरसिंहपुर, छिंदवाड़ा, पन्ना और प्रदेश के अन्य जिलों के 102 उम्मीदवारों ने याचिका दायर कर पीएससी के फैसले को गैर कानूनी करार दिया था।

याचिकाकर्ताओं की अपील पर हाईकोर्ट ने पीएससी परीक्षा 2019 के प्रारंभिक व मुख्य परीक्षा के परिणाम निरस्त कर दिए थे.

याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता नमन नागरथ ने दलील दी थी कि पीएससी के उक्त आदेश से हजारों उम्मीदवारों का भविष्य खतरे पड़ गया है.

उन्होंने बताया कि जिन अभ्यर्थियों ने प्रारंभिक और मुख्य परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद साक्षात्कार के लिए तैयारी की है,अब उन्हें फिर से परीक्षा देनी होगी, जो कि पूरी तरह अनुचित है.

याची ने कोर्ट से मांग की थी कि 2019 की परीक्षा के बाद पूरी चयन प्रक्रिया निरस्त करने की बजाय, कुछ उम्मीदवारों के लिए विशेष परीक्षा आयोजित की जाए.

पूरी परीक्षा को रद्द करना जरूरी नहीं

याचिकाकर्ताओं की इस अपील पर हाईकोर्ट ने कहा कि नए सिरे से मुख्य परीक्षा आयोजित करने से बड़े स्तर पर आर्थिक और सार्वजनिक तौर पर नुकसान होगा. इससे बिना कोई गलती के उन उम्मीदवारों के एक बड़े वर्ग के साथ अन्याय होगा जो मुख्य परीक्षा उत्तीर्ण कर साक्षात्कार के लिए चयनित हुए हैं. यानि पूरी परीक्षा को निरस्त करना सही नहीं होगा.

हस्तक्षेपकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता रामेश्वर प्रसाद सिंह व विनायक प्रसाद शाह ने बताया कि पूर्व में हाईकोर्ट में एक याचिका दायर कर कहा गया था कि आरक्षित वर्ग के उन उममीदवारों को सामान्य श्रेणी में स्थान मिलना चाहिए जिनके अंक कट-ऑफ से ज्यादा आए हैं.

उन्होंने कहा कि एकलपीठ का फैसला संविधान के प्रावधानों पर प्रश्नचिन्ह है, इसलिए इस फैसले के खिलाफ डिवीजन बेंच के समक्ष अपील दायर की जाएगी.

बता दें कि इससे पहले भी परीक्षा के आयोजन में अनियमितताओं की वजह से साल 2011, 2013 व 2015 में कोर्ट से परीक्षा की पात्रता पाये उम्मीदवारों के लिए विशेष परीक्षा आयोजित हुईं थी.

मध्यप्रदेश में नहीं दिखेगी शाहरुख खान की ‘पठान’, गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा बोले- दीपिका की वेशभूषा आपत्तिजनक attacknews.in

भोपाल 15 दिसम्बर । बाॅलीवुड अभिनेता शाहरुख खान (Shahrukh Khan) की फिल्म ‘पठान’ (Pathaan) रिलीज से पहले ही विवादों में है। ‘बेशरम रंग’ (Besharam Rang) गाने के जरिए जानबूझकर अश्लीलता फैलाने के आरोप लग रहे हैं। फिल्म का बॉयकाट करने की बात हो रही है। सोशल मीडिया पर #BoycottPathan ट्रेंड कर रहा है।


मध्य प्रदेश के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा ने भी इस गाने में दीपिका पादुकोण (Deepika Padukone) की वेशभूषा और इसे फिल्माने के तरीके पर आपत्ति जताई है।

उन्होंने संकेत दिए हैं कि यदि इसे ठीक नहीं किया गया तो राज्य में ‘पठान’ को रिलीज करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।

नरोत्तम मिश्रा ने बुधवार (14 दिसंबर 2022) को कहा, “फिल्म पठान (Pathan) के गाने में टुकड़े-टुकड़े गैंग की समर्थक अभिनेत्री दीपिका पादुकोण की वेशभूषा बेहद आपत्तिजनक है। साफ दिख रहा है कि यह गाना दूषित मानसिकता के साथ फिल्माया गया है। ‘बेशरम रंग’ गाने के बोल, दृश्यों और भगवा व हरे रंग की वेशभूषा को ठीक किया जाए। वरना हम तय करेंगे कि मध्य प्रदेश में फिल्म की स्क्रीनिंग होनी चाहिए या नहीं।”

शाहरुख खान ‘पठान’ फिल्म से लंबे समय बाद बड़े पर्दे पर वापसी कर रहे हैं। इसके बावजूद उनकी फिल्म को लेकर दर्शक खासा उत्साहित नजर नहीं आ रहे हैं। फिल्म के कई सीन्स और ‘बेशरम रंग’ गाने को सोशल मीडिया पर कॉपी-पेस्ट बताया जा रहा है।

सोशल मीडिया पर कई यूजर्स दावा कर रहे हैं कि इस गाने का म्यूजिक माकेबा (Makeba) के गाने से चोरी किया गया है। यूजर्स ने सोशल मीडिया पर मेकर्स पर मकीबा गाने को चुराने का आरोप लगाते हुए बेशर्म रंग और मकीबा दोनों गानों के क्लिप्स को शेयर किया है।

हालाँकि, इससे पहले लोगों ने दावा किया था कि ‘पठान’ में दिखाए अधिकतर सीन्स ‘वॉर’, ‘टाइगर’, ‘कैप्टन अमेरिका: द विंटर सोल्जर’ जैसी हिट फिल्मों से कॉपी-पेस्ट किए गए हैं।

शाहरुख खान की फिल्म ‘पठान’ 25 जनवरी 2023 को सिनेमाघरों में रिलीज होगी। इस फिल्म में शाहरुख के साथ दीपिका पादुकोण और जॉन अब्राहम लीड रोल में हैं।

गौरतलब है कि निर्देशक सिद्धार्थ आनंद की फिल्म ‘पठान’ के ‘बेशरम गाने’ में जिस तरह से अश्लीलता दिखाई गई है, लोग उससे बेहद आक्रोशित हैं। दीपिका पादुकोण के ‘मोनोकिनी अवतार’ पर फोकस के बाद ये अंदेशा लगाया जा रहा है कि क्या शाहरुख़ खान अब दीपिका पादुकोण के ‘सेक्सी गाने’ को दिखा कर अपनी फिल्म ‘पठान’ को हिट कराना चाहते हैं। इस गाने को गीतकार कुमार ने लिखा है, जबकि विशाल-शेखर की जोड़ी ने संगीत दिया है। वहीं शिल्पा राव और कैरालीसा मोंटेरियो ने इसे आवाज़ दी है।

उत्तरप्रदेश का माफिया मुख्तार अंसारी व भीम सिंह को दस-दस साल की सजा;गैंगस्टर के मामले में माना गया दोषी attacknews.in

प्रयागराज 15 दिसम्बर । बाहुबली माफिया मुख्तार अंसारी की मुसीबतें बढ़ती जा रही हैं। गैंगस्टर के मामले में मुख्तार अंसारी व उसके सहयोगी भीम सिंह को दस-दस साल की सजा और पांच-पांच लाख रुपये का दंड लगाया गया है।


गुरुवार को एमपी एमएलए कोर्ट के जज दुर्गेश ने 1996 में गैंगस्टर के मुकदमे में मुख्तार अंसारी को दोषी माना। बनारस में पूर्व विधायक अजय राय के भाई अवधेश राय की हत्या के बाद जिले की पुलिस ने गैंगस्टर का मुकदमा दर्ज किया था। इसके बाद यहीं सुनवाई हुई।

गाजीपुर के मुकदमे में वीडियो कान्फ्रेंसिंग के जरिये कराई गई पेशी :

गाजीपुर जिले के एक मुकदमे में गुरुवार को माफिया मुख्तार की पेशी ईडी कार्यालय में वीडियो कान्फ्रेंसिंग के जरिए कराई गई। अदालत ने मुख्तार के मुकदमे में फैसला सुनाया गया है।

वीडियो कान्फ्रेंसिंग के लिए बुधवार को ही जरूरी इंतजाम ईडी कार्यालय में किया गया था।

माफिया मुख्तार के खिलाफ यूपी, दिल्ली, पंजाब के विभिन्न थानों में 40 से अधिक मुकदमे दर्ज हैं।

मुख्तार को पंजाब से बांदा जेल में ट्रांसफर किए जाने के बाद ईडी ने उसके परिवार पर भी शिकंजा कसा है।

नौ दिन ईडी की कस्टडी में रहेगा माफिया मुख्तार :

बाहुबली माफिया मुख्तार अंसारी आगामी नौ दिनों तक प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की कस्टडी में रहेगा। कस्टडी रिमांड की अर्जी पर सुनवाई करते हुए जिला जज संतोष राय ने अभियुक्त को 14 दिसंबर दोपहर एक बजे से लेकर 23 दिसंबर की दोपहर दो बजे तक ईडी को कस्टडी में रखने का आदेश दिया है।

अदालत ने यह भी कहा कि हिरासत अवधि समाप्त होने पर न्यायिक अभिरक्षा के समय मेडिकल परीक्षण कराया जाए।

कस्टडी रिमांड मिलने के बाद कड़ी सुरक्षा के बीच माफिया मुख्तार को ईडी कार्यालय ले जाकर पूछताछ शुरू की गई। इसी मामले में मुख्तार का बेटा विधायक अब्बास व साला आतिफ रजा भी जेल में बंद हैं।

बता दें कि कोर्ट में पेशी के दौरान मुख्तार अंसारी की सुरक्षा को लेकर पुलिस की ओर से पुख्ता इंतजाम किए गए थे। कचहरी से लेकर ईडी कार्यालय तक पुलिस और पीएसी के जवान तैनात रहे। पेशी के दौरान सुरक्षा में क्राइम ब्रांच को भी लगाया गया था। ईडी कार्यालय व आसपास सुरक्षा के दृष्टिगत कई पुलिसकर्मियों की ड्यूटी लगाई गई।