देहरादून ! उत्तराखंड विधानसभा में कांग्रेस विधायकों द्वारा विनियोग विधेयक के विरुद्ध मत देकर सरकार गिराने के प्रयास के बाद राज्यपाल ने पूरे घटनाक्रम का संज्ञान लेते हुए भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और कांग्रेस का पक्ष सुनने के बाद कांग्रेस को भले ही 28 मार्च तक का समय दिया है लेकिन इसके साथ ही राज्य में एक बार फिर जोड़-तोड़ की राजनीति शुरू हो गयी हैं। विधायकों को रामनगर ले गई सहमी कांग्रेस भाजपा और बागी कांग्रेस विधायकों की तर्ज पर कांग्रेस भी अपने विधायकों को समेटकर देहरादून से बाहर ले गई। मुख्यमंत्री हरीश रावत के विश्वासपात्र रंजीत रावत कांग्रेस और पीडीएफ के विधायकों को लेकर देहरादून से रामनगर रवाना हो गए हैं।
खबर है कि तीन हेलीकाप्टरों में सवार इन विधायकों को रामनगर के कांग्रेसी नेता के रिजार्ट में रखा जाएगा। कांग्रेस कुछ और विधायकों के टूटने के खतरे के मद्देनजर सतर्क है। इसीलिए इन्हें विश्वासमत हासिल करने तक एक साथ रखने की योजना बनाई गई है। उत्तराखंड में शह और मात का खेल शुरू हो गया है। गेंद अब वापस विधानसभा अध्यक्ष के पाले में आ गयी है।
सूत्रों के अनुसार राजनीति के इस खेल में कांग्रेस को भले ही फौरी राहत मिल गयी हो परन्तु विधानसभा में विश्वास प्रस्ताव पारित कराना कांग्रेस के लिए आसान नहीं है।
दूसरी तरफ विश्वास प्रस्ताव को गिराकर भले ही भाजपा सफल हो जाए परन्तु दल बदल कानून की चपेट में आने वाले विधायकों का विधिक रूप से समर्थन उन्हें हासिल नहीं हो पाएगा, जिसके चलते सरकार बनाना भाजपा के लिए आसान नहीं है।
सूत्रों के अनुसार कांग्रेस ने अपनी सरकार बनाने की रणनीति पर काम करना शुरू कर दिया है। बागी मंत्री हरक सिंह रावत को मंत्रिमंडल से बाहर करके मुख्यमंत्री हरीश रावत ने पहला पैंतरा चल दिया हैं। इसके साथ ही बागी सभी नौ विधायकों के आवास पर विधानसभा अध्यक्ष के निर्देश पर नोटिस चस्पां किये जा रहे हैं।
यदि 28 मार्च से पहले वे नहीं माने तो उन्हें अयोग्य घोषित कर सदन में वोट डालने से वंचित किया जा सकता है।
विधानसभा अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल ने बागी विधायकों को नोटिस भेजकर 26 मार्च तक अपना जबाव देने के लिए कहा है। उनके निजी सचिवों को नोटिस थमाए जा रहे हैं। ई-मेल के जरिये भी उन्हें नोटिस भेज दिये गये है। साथ ही उनके आवासों पर भी नोटिस चस्पां किये जा रहे हैं ताकि उन्हें एक सप्ताह में जवाब देने के लिए बाध्य किया जा सके।