श्रीराममंदिर तीर्थ ट्रस्ट ने 100 प्रतिशत शुद्ध डील की है,कैसे,विस्तार से समझिए…
आज पूरा विपक्ष अयोध्या में भगवान श्री राम के मंदिर निर्माण के लिए खरीदी गई जमीन को लेकर भ्रष्टाचार के आरोप लगा रहा है और वह इस सत्यता को भी जानता है कि,इस जमीन खरीदी में कोई भ्रष्टाचार नहीं हुआ हैं लेकिन भगवान के नाम पर झूठे आरोप लगाकर राजनीति का खेल,खेल रहा है ।
आईये हम बताते हैं कि,इस जमीन खरीदी का सच क्या है:
एसपी, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने मुख्य आरोप यही लगााया है कि 10 मिनट में जमीन की कीमत करोड़ों में पहुंच गई,आरोप यह भी लगाया गया कि 5.5 लाख प्रति सेकेंड के हिसाब से जमीन का दाम कैसे बढ़ गया ?
-दरअसल ये मामला 10 मिनट का है ही नहीं… जो पहली कीमत बताई गई है, 2 करोड़,वो 10 साल पहले यानि 2011 की कीमत है और सब कुछ कागजों पर दर्ज है कोई भी बात हवा हवाई नहीं है।
-दरअसल मूल रूप से ये जमीन कुसुम पाठक और हरीश पाठक की थी।
कुसुम पाठक और हरीश पाठक ने 2011 में इस जमीन को बेचने की प्रक्रिया प्रारंभ की ।
सुल्तान अंसारी और रवि मोहन तिवारी को ये जमीन करीब 2 करोड़ रुपए में बेचे जाने की बात तय हुई ।
- इसके लिए 4 मार्च 2011 को कुसुम पाठक का सुल्तान अंसारी और रवि मोहन तिवारी के साथ एग्रीमेंट टू सेल हुआ,इसका मतलब यह हुआ कि बेचने का समझौता हो गया,लेकिन बेचा नहीं गया,क्योंकि यह एग्रीमेंट (समझौता) टू सेल था।
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लेकिन इस जमीन को लेकर कुछ विवाद भी चल रहा था।यह बात भी कही जा रही थी कि इस जमीन पर सुन्नी वक्फ बोर्ड का हक है । इसीलिए लंबे समय से ये मामला टल रहा था।सुल्तान अंसारी और रवि मोहन तिवारी चाहते थे कि विवाद की जमीन है तो और सस्ती मिल जाए।इसीलिए वो मामले को टाल रहे थे ।
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लेकिन अटके हुए मामले को भी अगर कंटीन्यू करना है तो हर तीन साल में दोबारा एग्रीमेंट टू सेल करने का नियम है,इसीलिए 4 मार्च 2014 को दोबारा एग्रीमेंट टू सेल हुआ और चुंकि सौदा 2011 से शुरू हुआ था इसलिए 2011 की ही कीमत यानी 2 करोड़ रुपए ही एग्रीमेंट टू सेल पर दर्ज की गई ।
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जमीन सुल्तान अंसारी और रवि मोहन तिवारी को नहीं बेची गई इसलिए तीसरी बार 7 सितंबर 2019 को भी एग्रीमेंट टू सेल हुआ और इस दस्तावेज पर भी 2011 की ही कीमत यानी 2 करोड़ रुपए दर्ज की गई ।
-लेकिन 2 जून 2020 में सुन्नी वक्फ बोर्ड ने जमीन के विषय में ये साफ कर दिया कि ये जमीन सुन्नी वक्फ बोर्ड की नहीं है।
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चूंकि यह जमीन रेलवे स्टेशन के पास थी और श्री राम मंदिर तीर्थ के लिए रणनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण थी इसलिए सुन्नी वक्फ बोर्ड के पीछे हटने के बाद श्री राम मंदिर तीर्थ ट्रस्ट ने सीधे कुसुम पाठक और हरीश पाठक से बात की क्योंकि उस समय तक भी वो जमीन उन्हीं के नाम पर थी ।
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लेकिन कुसुम और हरीश ने बताया कि 2011 में उनका एग्रीमेंट टू सेल सुल्तान अंसारी और रवि मोहन तिवारी के साथ हो चुका है।
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यानि अब पेंच फंस गया,तो कानूनी तौर पर मामले को हल करने के लिए कुसुम पाठक,हरीश पाठक,सुल्तान अंसारी और रविमोहन तिवारी वगैरह सभी पक्षों को साथ बैठाया गया।ट्रस्ट के लोग भी इस बातचीत में शामिल हुए।
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अब फैसला यह हुआ कि पहले कुसुम पाठक और हरीश पाठक एग्रीमेंट टू सेल के हिसाब से ये जमीन सुल्तान अंसारी और रवि मोहन तिवारी को बेच दें और इसके बाद जब सुल्तान अंसारी और रवि मोहन तिवारी जमीन के मालिक होंगे तो उनसे ट्रस्ट ये जमीन खऱीद लेगा।
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तो कुसुम पाठक और हरीश पाठक ने एग्रीमेंट टू सेल यानि 2011 की कीमत के हिसाब से यानि 2 करोड़ रुपए में जमीन सुल्तान अंसारी और रवि मोहन तिवारी को बेच दी ।
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इसके बाद यही जमीन सुल्तान अंसारी और रवि मोहन तिवारी ने मंदिर निर्माण के लिए अब की 2021 की कीमत पर श्री राम मंदिर तीर्थ ट्रस्ट को बेच दी । और तब ये कीमत करीब 18 करोड बैठी ।
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मामला बिलकुल पानी की तरह क्रिस्टल क्लीयर है, कहीं कोई घोटाला नहीं है लेकिन इसके बाद भी उत्तरप्रदेश के चुनाव में राजनीति करने के लिए और ट्रस्ट पर कलंक चिपकाने के लिए सेकुलर और रामद्रोही पार्टियों ने यह दुराग्रह किया है।