पटना 21 अप्रैल।भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) से असंतुष्ट और पूर्व वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा ने अब पार्टी को खुद छोड़ दिया और वह पार्टी द्वारा अलग किये जाने का इंतजार करते रह गए। खास बात यह है कि,उन्होंने राजनीति से दूर रहकर अराजनीतिक रुप धारण करने की घोषणा की लेकिन उनके मंच पर सभी राजनीतिक दलों के नेता मौजूद थे। उन्होंने पटना में इसकी आधिकारिक घोषणा की.
केंद्र सरकार के विरोधी नेता आज पटना में एक मंच पर जुटे थे, जहां पूर्व वित्त मंत्री ने बीजेपी से सारे रिश्ते तोड़ने का ऐलान किया.
यशवंत सिन्हा ने कहा, “बीजेपी में दलगत राजनीति बढ़ती जा रही है. लोकतंत्र खतरे में है. इसलिए मैं बीजेपी से अपने सारे रिश्ते-नाते तोड़ रहा हूं.”
सिन्हा ने कहा कि मैं आज के बाद किसी दल के साथ नहीं रहूंगा न ही किसी भी राजनितिक दल से कोई रिश्ता नहीं रहेगा. आज देश में लोकतंत्र खतरे में है जिन लोगों ने लोकतंत्र को खतरे में डाला उन ताकतों को हम मटियामेट कर देंगे.
उन्होंने कहा कि पटना मेरा शहर है. आज से चार साल पहले ही मैं सक्रिय राजनीति से संन्यास ले चुका हूं. मैंने चुनावी राजनीति से खुद को अलग कर लिया है.
ऐसे में कुछ लोगों ने समझा कि मेरा दिल भी धड़कना बंद कर दिया है, लेकिन जब देश की बात आएगी तो मैं बढ़ चढ़कर भाग लूंगा. देश के सवाल पर ही मैंने राष्ट्र मंच का निर्माण किया है और ये मंच राजनीतिक मंच नहीं है.
उन्होंने कहा कि फिलहाल देश की हालात चिंताजनक है ऐसे में अगर आज हम चुप रहे तो आनेवाले पीढियां दोष देंगी.यशवंत ने कहा कि बिहार ने बड़े आंदोलन पैदा किए हैं.
केंद्र सरकार पर यशवंत सिन्हा ने हमला करते हुए कहा कि संसद का बजट सत्र इतना छोटा कभी नहीं रहा है, लेकिन भारत सरकार ने नियोजित ढंग से संसद को नहीं चलने दिया.उन्होंने कहा कि गुजरात चुनाव के कारण सत्र को छोटा कर दिया गया. सत्र नहीं चलने से सरकार बहुत खुश थी. सरकार ने अविश्वास प्रस्ताव के कारण सदन नहीं चलने दिया,
इस अधिवेशन में बीजेपी सांसद शत्रुघ्न सिन्हा, बिहार में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव, शरद यादव और जदयू के असंतुष्ट नेता उदय नारायण चौधरी भी मौजूद रहे. कार्यक्रम में कांग्रेस, राजद, आम आदमी पार्टी और सपा समेत भाजपा-जदयू के असंतुष्ट नेताओं को भी बुलाया गया.
बता दें कि यशवंत सिन्हा इससे पहले भी लगातार बीजेपी पर हमला बोलते रहे हैं. ऐसे में पटना में उनकी अगुवाई में बुलाई गई यह बैठक भविष्य के राजनीतिक परिप्रेक्ष्य को लेकर काफी अहम मानी जा रही है.
करीब साढ़े तीन दशक तक सक्रिय राजनीति में रहने के बाद पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा ने आज (21 अप्रैल को) दलगत राजनीति से संन्यास लेने का ऐलान कर दिया है।
वो लंबे समय से केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आलोचना करते रहे हैं। यशवंत सिन्हा अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में वित्त और विदेश मंत्री रह चुके हैं।
उन्हें लालकृष्ण आडवाणी का करीबी समझा जाता है लेकिन एक समय ऐसा भी आया जब वो आडवाणी से ही नाराज हो गए थे। कहा जाता है कि साल 2002 में जब झारखंड के पहले मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने सरकार गठन के 28 महीने बाद ही इस्तीफा दे दिया तब यशवंत सिन्हा खुद सीएम बनना चाहते थे। उस वक्त सिन्हा केंद्र सरकार में वित्त मंत्री थे। लेकिन उप प्रधानमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी और नितिन गडकरी ने यशवंत सिन्हा के सीएम बनाए जाने का पार्टी में विरोध किया था। इस वजह से सिन्हा अपने गुरू आडवाणी और नितिन गडकरी से लंबे समय तक नाराज रहे थे।
खास कार्यक्रम ‘थर्ड डिग्री’ में यशवंत सिन्हा ने अपनी महत्वाकांक्षा की बात तो कबूल की थी लेकिन इस बात से इनकार किया कि वो आडवाणी और गडकरी से नाराज थे। उन्होंने कहा कि वो अगर चाहते तो झारखंड का सीएम बन सकते थे। उन्होंने इस धारणा को गलत करार दिया। जब उनसे पूछा गया कि सिन्हा महत्वाकांक्षी हैं तो उन्होंने कहा कि वो खुद की जगह हमेशा से पार्टी को ज्यादा महत्व देते रहे हैं।
बता दें कि यशवंत सिन्हा नोटबंदी और जीएसटी समेत कई मुद्दों पर मोदी सरकार की आलोचना कर चुके हैं। इसी हफ्ते की शुरुआत में उन्होंने बीजेपी सांसदों को खुला खत लिखकर पार्टी नेतृत्व के सामने आंतरिक चुनौतियों के बारे में बोलने की अपील की थी। सिन्हा ने अपने लंबे पत्र में लाल कृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी से भी पार्टी को बचाने की अपील की थी।
गौरतलब है कि यशवंत सिन्हा फिलहाल राज्य सभा सांसद हैं और उनके बेटे जयंत सिन्हा मोदी सरकार में मंत्री हैं। यशवंत सिन्हा ने ही बीजेपी में सबसे पहले मोदी को पीएम बनाने और देश में मोदी लहर की बात कही थी।attacknews.in