नईदिल्ली 26 जून। थॉमस रॉयटर्स फाउंडेशन के एक ताजा सर्वेक्षण में भारत को महिलाओं के लिए दुनिया का सबसे खतरनाक देश बताया गया है।
सर्वेक्षण के अनुसार भारत में हालात गृहयुद्ध के शिकार अफगानिस्तान और सीरिया से भी बदतर हैं. इससे साफ है कि 2012 के निर्भया कांड के बाद तमाम नए कानून बनने और महिला सुरक्षा पर ध्यान देने के सरकारी दावों के बावजूद जमीनी स्तर पर हालात सुधरने की बजाय और बिगड़े ही हैं. इस सूची में अफगानिस्तान दूसरे और पाकिस्तान छठे स्थान पर है।
सात साल पहले हुए ऐसे ही सर्वेक्षण में भारत चौथे स्थान पर था, लेकिन इस दौरान हालात तेजी से बिगड़े हैं. इस दौरान पाकिस्तान तीन रैंक ऊपर आया है और भारत इतने ही अंक नीचे गिरा है. 2016 में देश में बलात्कार के कुल 40 हजार मामले दर्ज हुए थे. लेकिन गैर-सरकारी संगठनों का दावा है कि बलात्कार के आंकड़े जमीनी हकीकत से कोसों दूर हैं।
थॉमस रॉयटर्स फाउंडेशन ने भारत समेत विभिन्न देशों में फैले 548 विशेषज्ञों से महिलाओं से संबंधित छह मुद्दों पर पूछे गए सवालों के जवाब के आधार पर अपनी रिपोर्ट तैयार की है. इसमें भारत अव्वल रहा है. महिलाओं की सुरक्षा को लेकर तमाम सरकारों के दावों के बावजूद जमीनी स्तर पर परिस्थिति और बदतर हुई है. अफगानिस्तान, सीरिया, सोमालिया और पाकिस्तान जैसे देशों के भारत से नीचे रहने से परिस्थिति को समझा जा सकता है।
यह हालत तब है जब 2012 में दिल्ली में एक युवती के साथ चलती बस में हुए गैंगरेप ने पूरी दुनिया में सुर्खियां बटोरी थीं. बाद में उस युवती की मौत हो गई थी. उसके बाद केंद्र सरकार ने बलात्कार से संबंधित कानूनों को कड़ा बनाते हुए उनमें कई संशोधन किए थे.
बावजूद इसके ऐसी घटनाओं पर अंकुश नहीं लग पा रहा है. विशेषज्ञों का कहना है कि बीते सात वर्षों के दौरान उक्त सर्वेक्षण में भारत के तीन स्थान ऊपर चढ़ कर शीर्ष पर पहुंचने से साफ है कि महिलाओं के समक्ष मौजूद खतरों से निपटने के ठोस व प्रभावी उपाय नहीं किए गए हैं. यह बेहद चिंताजनक है.
बढ़ रहे हैं अपराध
तमाम कानूनों के बावजूद महिलाओं के खिलाफ आपराधिक मामले लगातार बढ़ रहे हैं. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी) के ताजा आंकड़ों में कहा गया है कि 2016 के दौरान देश में बलात्कार की लगभग 40 हजार घटनाएं दर्ज की गईं, यानी हर घंटे औसतन चार और रोजाना 106 घटनाएं. हर 10 पीड़िताओं में से चार नाबालिग थीं. लेकिन महिला संगठन सरकार के इन दावों पर सवाल खड़ा करते हैं.
उनका कहना है कि पहले के मुकाबले जागरूकता आने के बावजूद खासकर ग्रामीण इलाकों में अब भी ज्यादातर मामले पुलिस तक नही पहुंचते. उन इलाकों में ऐसे मामलों को स्थानीय पंचायतों के स्तर पर ही लेन-देन कर निपटा दिया जाता है. इसकी एक वजह यह है कि ऐसे ज्यादातर मामलों में अपराधी पीड़िता का रिश्तेदार ही होता है. 2007 से 2016 के बीच महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों में 83 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है. हाल में जम्मू-कश्मीर के कठुआ और उत्तर प्रदेश के उन्नाव रेप कांड ने भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियां बटोरीं.
बंगाल में हालात बदतर
पश्चिम बंगाल में भी महिलाओं की हालत बदतर ही है. यह राज्य महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों के मामले में पूरे देश में पहले स्थान पर है. बीते सात साल से एक महिला मुख्यमंत्री का राज होने के बावजूद महिलाओं के खिलाफ अपराधों पर अंकुश नहीं लगाया जा सका है. हालांकि राज्य सरकार अपनी सफाई में एनसीआरबी के आंकड़ों पर सवाल उठाती रही है. बावजूद इसके महज पुलिस तक पहुंचने वाले मामलों को ध्यान में रखें, तो तस्वीर भयावह नजर आती है.
2016 में यहां महिलाओं के खिलाफ अपराध के 32,500 मामले दर्ज किए गए थे. गैर-सरकारी आंकड़ों को साथ लेने पर परिस्थिति का अनुमान लगाना कोई मुश्किल नहीं है. महिलाओं की तस्करी के मामले में भी बंगाल अव्वल है. हर साल बेहतर भविष्य का सपना दिखा कर राज्य की हजारों युवतियों को दूसरे राज्यों में या विदेशों में भेज दिया जाता है. राज्य सरकार का कहना है कि गांवों में गरीबी, रोजगार का बेहतर साधन नहीं होने और जागरूकता की कमी की वजह से लोग दलालों के चंगुल में फंस कर अपनी बहन-बेटियों को उनके साथ भेज देते हैं. बाद में इन महिलाओं का कहीं कोई अता-पता नहीं मिलता.
महिला अधिकारों के लिए काम करने करने वाली सुनंदा सान्याल कहती हैं, “महिला मुख्यमंत्री के राज में यह स्थित शर्मनाक है. इससे साफ है कि पुलिस व दूसरी एजंसियां अपने राजनीतिक आकाओं के हित साधने में जुटी हैं.”
महिला संगठनों का कहना है कि सरकार ने कानून तो जरूर बनाए हैं लेकिन जमीनी स्तर पर उनको कड़ाई से लागू करने की इच्छाशक्ति न तो पुलिस में है और न ही सरकार में. बंगाल में दशकों से खासकर ग्रामीण इलाकों में कंगारू अदालतों या ग्राम पंचायतों में ही बलात्कार के मामलों को निपटा दिया जाता है. लेकिन सबकुछ जानते-बूझते हुए सरकार और पुलिस प्रशासन चुप्पी साधे रहता है.
वजह और उपाय
विशेषज्ञों का कहना है कि अभियुक्तों के सजा पाने की दर बेहद कम होना भी बलात्कार के मामलों के लगातार बढ़ने की प्रमुख वजह है. अभियुक्त कुछ महीने जेल में रहने के बाद जमानत पर छूट जाते हैं. ज्यादातर मामलों में सबूत के अभाव में वह बेदाग बच निकलते हैं. देश में ऐसे मामलों में सजा का औसत महज 19 फीसदी है. पश्चिम बंगाल के मामले में तो यह दर सबसे कम महज 3.3 फीसदी है. इससे अपराधियों का हौसला बढ़ता है।
राज्य महिला आयोग की पूर्व प्रमुख यशोधरा बागची कहती हैं, “महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों पर अंकुश लगाने के लिए सरकार व गैर-सरकारी संगठनों को तो मिल कर काम करना ही होगा, ग्रामीण इलाकों के लोगों को भी भरोसे में लेना होगा. इसके साथ ही सरकार को ऐसे मामलों में कड़ी इच्छाशक्ति का परिचय देते हुए राजनीतिक समीकरणों से ऊपर उठ कर काम करना होगा.”
एक गैर-सरकारी संगठन के प्रमुख सुरजीत गुहा कहते हैं, “मौजूदा परिस्थिति पर अंकुश लगाने के लिए सरकार को विभिन्न सामाजिक संगठनों के साथ मिल कर एक ठोस रणनीति बनानी चाहिए.” इन संगठनों का कहना है कि इस समस्या के बहुआयामी होने की वजह से इस पर अंकुश लगाने की दिशा में भी बहुआयामी कदम उठाने होंगे।attacknews.in