लखनऊ, 28 दिसम्बर। उत्तर प्रदेश में राजनीतिक क्षितिज की दो धुरी माने जाने वाली समाजवादी पार्टी (सपा) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की निकटता वर्ष 2018 में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के लिये परेशानी का सबब बनी रही वहीं सहयोगी दलों सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) और अपना दल के साथ ही भाजपा के कुछ नेताओं ने बगावती तेवर अपना कर सरकार की मुसीबतों में इजाफा किया।
वर्ष 2014 के लाेकसभा चुनाव में मोदी लहर पर सवार होकर उत्तर प्रदेश में 80 में से 71 सीट झटकने वाली भाजपा ने वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता के दम पर प्रचंड बहुमत हासिल किया। गोरखपुर के तत्कालीन सांसद योगी आदित्यनाथ ने मुख्यमंत्री के तौर पर अपनी नयी पारी का आगाज करते हुये किसानों की कर्ज माफी समेत कई अहम फैसले लिये। तेजतर्राक छवि वाले श्री योगी के मंत्रिमंडल में सुभासपा को जगह दी गयी।
उत्तर प्रदेश में पिछड़ों की नुमाइंदगी करने वाले सुभासपा अध्यक्ष और कबीना मंत्री ओम प्रकाश राजभर के अलावा भाजपा की सांसद सावित्री बाई फूले ने समय समय पर बगावती तेवर अपना कर पार्टी की पेशानी में बल डाले वहीं साल के अाखिरी महीने में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के घटक दल अपना दल ने भी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से नाराजगी व्यक्त करते हुये 2019 के लोकसभा चुनाव में अलग राह चुनने की धमकी दे डाली।
सहयोगी दलों के साथ ही भाजपा और उसके अनुसांगिक संगठनों ने भी योगी सरकार की परेशानी बढ़ाने में कोई कोर कसर नहीं छोडी। पिछले मार्च में उन्नाव में भाजपा विधायक कुलदीप सिंह सेंगर बलात्कार और हत्या के मामले में जेल गये। कानून व्यवस्था के दम पर सत्ता में आयी योगी सरकार की इस मामले को लेकर खासी किरकिरी हुयी। वहीं पूर्व भाजपा प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मीकांत पांडेय ने अफसरों की कार्यशैली को थाने में धरना दिया तो पार्टी के ही एक विधायक श्याम प्रकाश ने भी सरकार के रवैये पर सवाल उठा दिये। बुंदेलखंड के मसले पर विधानसभा की कार्यवाही के दौरान हमीरपुर के भाजपा विधायक ने पृथक राज्य की मांग उठाकर विपक्ष को चुटकी लेने का मौका दे दिया।
दूसरी ओर,श्री मोदी की बढ़ती लोकप्रियता से सकते में आयी सपा और बसपा ने आपसी मतभेद भुलाकर एक राह पर चलने का फैसला किया ,जिसके अनुकूल परिणाम लोकसभा उप चुनाव में दिखायी पड़े जब सपा उम्मीदवार ने एक के बाद एक तीन सीटों कैराना,गोरखपुर और फूलपुर को भाजपा के कब्जे से मुक्त करा लिया। साथ ही बिजनौर जिले की नूरपुर विधानसभा सीट पर भी सपा ने कब्जा कर लिया। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने उपचुनाव में जीत का श्रेय पार्टी कार्यकर्ताओं को दिया। साथ में ही उन्होंने बसपा मुखिया मायावती के प्रति आभार भी व्यक्त किया जिनकी पार्टी ने अपरोक्ष रूप से सपा उम्मीदवारों का समर्थन किया था।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गढ़ के तौर पर गिनी जाने वाली गोरखपुर संसदीय सीट और उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के प्रभुत्व वाले फूलपुर लोकसभा क्षेत्र पर सपा की जीत राजनीति के पंडितों के लिये अचरज भरी थी हालांकि भाजपा ने उपचुनाव के नतीजों को दरकिनार करते हुये इसका असर आगामी चुनाव पर नहीं पड़ने की दलील दी।
इस जीत के बाद सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने अपने हर बयान में भाजपा को निशाने पर रखा जबकि बसपा के साथ गठबंधन की इच्छा भी जाहिर की। उधर, बसपा प्रमुख मायावती के निशाने पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ही रहे जबकि सपा अध्यक्ष की गठबंधन की लालसा को उन्होंने अपना मूक समर्थन दिया।
गोरखपुर और फूलपुर उपचुनाव में भाजपा को मिली हार के बाद आजमगढ़ से भाजपा सांसद रमाकांत यादव ने कहा कि पार्टी पिछड़े और दलितों पर ध्यान नहीं देती है। उत्तर प्रदेश में पिछड़े और दलितों की जिस तरह से उपेक्षा की जा रही है, उसका परिणाम प्रदेश के उपचुनाव में देखने को मिल गया। अगर भाजपा दलितों, पिछड़ों को साथ लेकर नहीं चलेगी तो 2019 में मोदी सरकार की स्थिति चिंता जनक बनी रहेगी।
उधर, बहराइच सुरक्षित लोकसभा सीट से भाजपा सांसद साध्वी सावित्री बाई फुले के बगावती सुर सरकार के लिये परेशानी खडी करते रहे। सांसद ने कहा कि भाजपा नेताओं का अनुसूचित जाति के घर जाना अौर फाइव स्टार जैसी सुविधाओं के बीच खाना-पीना अनुसूचित जाति का सबसे बड़ा अपमान है क्योंकि खाना बाहर से आता है, परोसने वाले दूसरे होते हैं। सिर्फ द्वार अनुसूचित जाति के व्यक्ति का होता है। यदि दलितों के घर पहुंचना है तो अचानक पहुंचिए, उसके घर बनी रोटी-नमक खाइये, उनके उत्थान की बात करिए, तब असल में अनुसूचित जाति का सम्मान होगा।
राजनीतिक विश्लेषक के अनुसार गोरखपुर, फूलपुर लोकसभा सीट के बाद कैराना और नूरपुर में हुए उपचुनाव में भाजपा को मिली शिकस्त के बाद अपना दल और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी की बेचैनी बढ़ना लाजिमी है। दोनों सहयोगियों का लक्ष्य अपनी राजनीतिक जमीन को बचाना है, जिससे कार्यकर्ताओं और समर्थकों में चुनाव के मद्देनजर ऊर्जा भरी जा सके।
हाल ही में पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के नतीजों के बाद केंद्र में भाजपा गठबंधन की अहम सहयोगी अपना दल-सोनेलाल ने श्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ नाराजगी जाहिर की। पार्टी अध्यक्ष आशीष पटेल ने दावा किया कि न केवल अपना दल बल्कि भाजपा के भी कई विधायक, सांसद और मंत्री सरकार से नाराज हैं।
दरअसल अपना दल की नाराजगी इस बात को लेकर है कि केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल को उत्तर प्रदेश में वो सम्मान नहीं मिलता जिसकी वे हकदार हैं। यहां तक की वाराणसी संसदीय क्षेत्र में आयोजित कार्यक्रमों में भी अनुप्रिया पटेल को नहीं बुलाया जाता, जबकि यह प्रधानमंत्री का संसदीय क्षेत्र है और अनुप्रिया के संसदीय क्षेत्र से मिर्जापुर से सटा है। आशीष पटेल ने चेतावनी देते हुए कहा कि अगर इसी तरह सहयोगी दलों की प्रदेश भाजपा उपेक्षा करती रही तो सोचना पड़ेगा।
दूसरी ओर सुभासपा मुखिया ओम प्रकाश राजभर लंबे समय से योगी सरकार के कामकाज के तरीके को लेकर नाराजगी जताते रहे। राजभर की मांग है कि सरकारी नौकरियों में राजभर समुदाय के लोगों को आरक्षण दिया जाए और राज्य में पूर्ण रूप से शराब बंदी को लागू किया जाए।
श्री राजभर ने कहा कि विमुक्त जातियों को ओबीसी के तहत रखते हुए सरकारी नौकरियों में तीन फीसदी आरक्षण दिया जाए, जिसमें राजभर समुदाय भी आता है। उत्तर प्रदेश में पूर्ण रूप से शराब को प्रतिबंधित किया जाए। उन्होंने यह भी कहा कि वह वर्ष 2019 में चार से पांच लोकसभा सीटों से कम में कतई नहीं समझौता करेंगे।
गौरतलब है कि पिछले लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में अपना दल और फिर 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में ओम प्रकाश राजभर की पार्टी के साथ समझौता कर भाजपा बड़ी सफलता हासिल की। भाजपा के रणनीतिकार मानते हैं कि पूरे देश में 70 से अधिक ऐसी छोटी-छोटी पार्टियां हैं जो भले ही अपने दम पर चुनाव नहीं जीत सकती हैं, लेकिन इन दलों के पास 50 हजार से लेकर 10 लाख तक वोट हैं।
ये वोट लोकसभा चुनाव के लिहाज से देखने में भले कम दिखते हों लेकिन अगर भाजपा के साथ ये दल जुड़ते हैं तो उन राज्यों में भी उसे बड़ी सफलता हासिल हो सकती है, जहां फिलहाल वह कमजोर मानी जाती है। इनमें से कई छोटे दलों की पकड़ किसानों के बीच अच्छी है. कुछ दलों की मजदूर संगठनों में तो कुछ की आध्यात्मिक जगत के लोगों में अपनी पहचान है।
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