लखनऊ 13 जून ।उत्तर प्रदेश में 69 हजार शिक्षकों की भर्ती परीक्षा का परिणाम पिछले दिनों घोषित हुआ,भर्ती प्रक्रिया से लेकर पेपर लीक होने जैसे विवादों में घिरा यह परिणाम अब कोर्ट और सरकार के अलावा राजनीतिक विवाद का भी मुद्दा बन गया है।
उत्तर प्रदेश के प्राथमिक स्कूलों में 69 हजार सहायक अध्यापकों की भर्ती मामले में शुक्रवार को योगी सरकार को तो बड़ी राहत मिल गई लेकिन इस भर्ती प्रक्रिया में सफल हुए अभ्यर्थियों को अभी राहत के लिए इंतजार करना पड़ेगा।इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने सरकार की तीन विशेष अपील पर आदेश सुनाते हुए एकल पीठ के 3 जून के आदेश को स्थगित कर दिया,इसका मतलब है कि अब सरकार सुप्रीम कोर्ट के 9 जून के आदेश से करीब 37 हजार पदों पर लगी रोक के अलावा शेष बचे पदों पर भर्ती प्रकिया को आगे बढ़ाने के लिए स्वतंत्र है।
हाईकोर्ट की एकल पीठ ने 3 जून को भर्ती प्रक्रिया पर अंतरिम रोक लगा दी थी,एकल पीठ ने 8 मई को जारी उत्तर कुंजी को चुनौती देने वाली दर्जनों याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए पाया था कि,परीक्षा के दौरान पूछे गए कई प्रश्न और उनके उत्तर भ्रमित करने वाले हैं और कई तो पहली नजर में ही साफ तौर पर गलत मालूम हो रहे हैं।एकल पीठ ने विवादित प्रश्नों को मूल्यांकन के लिए यूजीसी को भेज दिया था।
यह भर्ती प्रक्रिया पिछले डेढ़ साल से जारी है और शिक्षक परीक्षा के योग्य लाखों उम्मीदवारों ने इसमें हिस्सा लिया था,यही नहीं, इस परीक्षा में वो शिक्षा मित्र भी शामिल हुए थे जिन्हें सुप्रीम कोर्ट ने शिक्षक मानने से इनकार करते हुए उनकी नियुक्ति खारिज कर दी थी। शिक्षा मित्रों को सरकार ने कुछ सहूलियतें भी दी थीं लेकिन जब परीक्षा के परिणाम आए तो शिक्षा मित्रों ने खुद को ठगा हुआ महसूस किया।
उत्तर प्रदेश में 69000 शिक्षकों की भर्ती का मामला पिछले दो साल से अधर में लटका हुआ है।उम्मीदवार हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के चक्कर लगा रहे हैं और हर रोज एक नई समस्या सामने आ रही है।कांग्रेस पार्टी इस मुद्दे पर लगातार मुखर है और पार्टी की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी ने तो इसकी तुलना मध्य प्रदेश के व्यापम घोटाले से कर दी है।
दिसंबर, 2018 में उत्तर प्रदेश की मौजूदा योगी सरकार ने सरकारी प्राइमरी स्कूलों में 69000 सहायक अध्यापकों की भर्ती के लिए विज्ञापन निकाला।अगले साल छह जनवरी 2019 को करीब चार लाख लोगों ने लिखित परीक्षा में हिस्सा लिया,लिखित परीक्षा के एक दिन बाद सरकार ने परीक्षा के लिए कटऑफ का मानक तय कर दिया।
दरअसल, शिक्षक भर्ती परीक्षा के पेपर 150 नंबर का था।सरकार की ओर से तय किए गए कटऑफ के तहत सामान्य वर्ग के उम्मीदवार को 150 में से 97 और आरक्षित वर्ग के उम्मीदवार को 150 में से 90 नंबर लाने थे।यानि सामान्य वर्ग का कटऑफ 65 प्रतिशत और आरक्षित वर्ग के लिए 60 प्रतिशत तय किया गया था।
उत्तर प्रदेश में 69 हजार शिक्षक भर्ती परीक्षा से पहले 68500 पदों के लिए सहायक अध्यापकों की भर्ती परीक्षा हुई थी, जिसमें पास होने के लिए आरक्षित वर्ग के लिए 40 और सामान्य वर्ग के लिए 45 प्रतिशत का कटऑफ तय किया गया था,कटऑफ की सीमा बढ़ने पर कुछ उम्मीदवारों ने नाखुशी जाहिर की।
इस भर्ती प्रक्रिया में दरअसल, उम्मीदवारों के दो वर्ग शामिल थे,एक प्राइमरी स्कूलों में पढ़ा रहे शिक्षामित्रों का और दूसरा बीएड-बीटीसी करने वाले प्रशिक्षित उम्मीदवारों का।शिक्षामित्र 60-65 प्रतिशत कटऑफ करने के फैसले का विरोध करते हुए हाईकोर्ट चले गए।
शिक्षामित्रों के मामले में 11 जनवरी, 2019 को इलाहाबाद हाईकोर्ट की सिंगल बेंच ने अपना फैसला सुनाया और शिक्षक भर्ती की कटऑफ को सामान्य वर्ग के लिए 45 और आरक्षित वर्ग के लिए 40 फीसदी तय कर दिया। यानि इस मुद्दे पर शिक्षा मित्रों की हाईकोर्ट में जीत हुई और सरकार का फैसला निरस्त कर दिया गया।
लेकिन योगी सरकार इलहाबाद हाईकोर्ट के इस फैसले को डबल बेंच में ले गई और सरकार के अलावा बीएड-बीटीसी वाले उम्मीदवारों ने कोर्ट के फैसले के खिलाफ एक याचिका दायर की।
हाईकोर्ट में इस मामले की कई बार सुनवाई हुई और सरकार की ओर से ढिलाई बरतने को लेकर कोर्ट ने सरकार को फटकार भी लगाई।इस दौरान, सरकार की इस कार्रवाई के खिलाफ लखनऊ में शिक्षा मित्रों ने धरना भी दिया और शिक्षा मित्रों पर पुलिस ने लाठी चार्ज भी किया।
बहरहाल, हाईकोर्ट की डबल बेंच में मामले की सुनवाई पूरी हुई और 6 मई 2020 को जस्टिस पंकज कुमार जायसवाल और जस्टिस करुणेश सिंह पवार की पीठ ने अपना फैसला सुनाया।
हाईकोर्ट की डबल बेंच ने सिंगल बेंच के फैसले को पलटते हुए योगी सरकार को राहत दी और सरकार की ओर से तय किए गए कटऑफ पर ही भर्ती परीक्षा का परिणाम जारी करने का आदेश दिया।कोर्ट ने राज्य सरकार को भर्ती प्रक्रिया को पूरा करने के लिए तीन महीने का समय भी दिया।हालांकि योगी सरकार ने कोर्ट को भरोसा दिलाया कि भर्ती प्रक्रिया हफ्ते भर के भीतर पूरी कर ली जाएगी।
परीक्षा परिणाम घोषित हुए और काउंसिलिंग भी शुरू हो गई लेकिन इस बीच, इस प्रक्रिया में नया पेंच सामने आ गया।कुछ उम्मीदवार परीक्षा में पूछे गए कुछ सवालों के चारों उत्तर गलत होने का आरोप लगाते हुए हाईकोर्ट में चले गए।कोर्ट ने भर्ती प्रक्रिया पर अंतरिम रोक लगाते हुए 12 जुलाई को सुनवाई की तारीख तय कर दी।
वहीं दूसरी ओर, हाईकोर्ट की डबल बेंच के फैसले से असंतुष्ट शिक्षामित्रों ने इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे दी. सुप्रीम कोर्ट ने शिक्षक भर्ती की 3 जून से 6 जून तक होने वाली काउंसलिंग पर रोक लगा दी।
इस प्रक्रिया में शामिल उम्मीदवार दिनेश कुमार सिंह बताते हैं, “शिक्षक भर्ती मामले में धांधली के भी कई मामले सामने आए हैं।कई सामान्य वर्ग के लोग आरक्षित कोटे के तहत चयन पा गए हैं।कई ऐसे लोग पास हो गए हैं जो इस परीक्षा में शामिल होने की भी योग्यता नहीं रखते।यह सब कैसे हुआ, इसका पता चलना चाहिए।धांधली के जितने मामले सामने आ रहे हैं, उसे देखते हुए ऐसा लगता नहीं है कि जल्दी लोग नौकरी पा सकेंगे।”
इस बीच, शिक्षक भर्ती के टॉपरों ने 150 में से 143 अंक अर्जित करके सबको चौंका दिया।शिक्षक भर्ती परीक्षा में फर्जीवाड़े और पेपर आउट होने जैसे मामलों में यूपी एसटीएफ और प्रयागराज पुलिस ने छापेमारी कर 8 नकल माफिया को भी गिरफ्तार किया है।
बताया जा रहा है कि परीक्षा में टॉप करने वाले व्यक्ति को भारत के राष्ट्रपति का नाम तक नहीं मालूम है और वह खुद इस परीक्षा में हुई धांधली में शामिल रहा है।
राज्य के बेसिक शिक्षा मंत्री सतीश कुमार द्विवेदी का कहना है कि परीक्षा में हुई कथित धांधली की जांच एसटीएफ को सौंप दी गई है और जो भी इसमें दोषी पाए जाएंगे, उन्हें बख्शा नहीं जाएगा।
अब तक मिली जानकारी के मुताबिक, परीक्षा में हुई धांधली में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के कुछ नेताओं पर भी आरोप लग रहा है।
सुप्रीम कोर्ट ने शिक्षामित्रों की अपील पर 9 जून 2020 को शिक्षक भर्ती केस में सुनवाई करते हुए 69000 हजार पदों में से 37339 पदों को होल्ड करने का आदेश दिया है।इसके साथ सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से रिपोर्ट मांगी है कि शिक्षामित्रों के कितने उम्मीदवारों ने अरक्षित वर्ग की 40 और सामान्य वर्ग के 45 फीसदी के कटऑफ पर परीक्षा पास की है।
यूपी में भर्ती प्रक्रियाओं में होने वाली धांधली और इस वजह से कोर्ट-कचहरी के चक्कर लगने वाली प्रक्रिया कोई नई नहीं है।इससे पहले लोक सेवा आयोग की कई परीक्षाओं में धांधली की खबरें आती रही है। शिक्षक भर्ती की परीक्षाओं में पहले भी धांधली हुई और बाद में पूरी परीक्षा ही रद्द करनी पड़ी।यही नहीं, इंटर कॉलेजों और डिग्री कॉलेजों में शिक्षकों के लिए परीक्षा कराने वाले माध्यमिक शिक्षा आयोग और उच्चतर शिक्षा आयोग भी घोटाले के आरोपों से मुक्त नहीं हैं।
परीक्षाओं में धांधली का मामला सिर्फ यूपी ही नहीं बल्कि अन्य राज्यों में भी देखने को मिलता है।बिहार और हरियाणा में भी शिक्षक भर्ती के मामलों में धांधली की खबरें आम हैं और कई बार पूरी भर्ती प्रक्रिया ही निरस्त हो चुकी है।हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला ऐसी ही एक भर्ती परीक्षा में हुई धांधली के मामले में अदालत में दोषी ठहराए गए थे और उस अपराध की सजा काट रहे हैं. फिलहाल उन्हें कोर्ट से पैरोल मिली है और वो जेल से बाहर हैं।