इटावा , 7 मार्च । उत्तर प्रदेश के इटावा में चंबल घाटी के खूंखार दस्यु सरगना जगजीवन परिहार ने करीब डेढ़ दशक पहले ऐसी खूनी होली खेली थी, जिसे आज भी गांव वाले भूल नही पाये हैं।
इटावा में बिठौली के चैरला गांव में 16 मार्च 2006 को हुई घटना ने हर किसी को झकझोर दिया था। सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव उस समय उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे और वे होली के दिन अपने गांव सैफई मे होलिका समारोह मे शामिल होने के लिए आये थे । पुलिस के बडे अफसर भी मुख्यमंत्री की वजह से आये थे जैसे उनको इस खूनी होली की खबर लगी वैसे ही अधिकारियो ने घटनास्थल की ओर पीडित की मदद के लिए दौड लगा दी ।
चंबल के खूखांर डाकुओ में शुमार रहे जगजीवन परिहार का उसके गांव चैरैला और आसपास के कई गांव में खासी दहशत और आंतक था। जगजीवन के अलावा उसके गिरोह के दूसरे डाकुओ का खात्मा हो जाने के बाद आसपास के गांव के लोगो में भय समाप्त हो गया था ।
16 मार्च 2006 को होली की रात जगजीवन गिरोह के डकैतो ने आंतक मचाते हुये चैरैला गांव में अपनी ही जाति के जनवेद सिंह को जिंदा होली में जला दिया और उसे जलाने के बाद ललुपुरा गांव में चढाई कर दी थी । वहां करन सिंह को बातचीत के नाम पर गांव में बने तालाब के पास बुलाया और मौत के घाट उतार दिया था। इतने में भी डाकुओ को सुकुन नहीं मिला तो पुरा रामप्रसाद में सो रहे दलित महेश को गोली मार कर मौत की नींद मे सुला दिया था। इन सभी को मुखबिरी के शक में डाकुओं ने मौत के घाट उतार दिया था। चैरैला गांव के रघुपत सिंह बताते है कि होली वाली रात जगजीवन परिहार गैंग के हथियार बंद डाकुओ ने गांव मे धावा बोला तो किसी को भी इस बात की उम्मीद नही थी कि डाकुओ का दल गांव मे खूनी वारदात करने के इरादे से आये हुए है क्योंकि अमूमन जगजीवन परिहार का गैंग गांव के आसपास आता रहता था लेकिन होली वाली रात जगजीवन परिहार गैंग ने सबसे पहले उनके घर पर गोलीबारी की। डाकुओ का इरादा उनकी हत्या करना था लेकिन वे घर का दरवाजा नही तोड पाये और वह बच गया लेकिन उसके और दूसरे गांव के तीन लोगो को मौत के घाट उतार दिया गया तथा दो अन्य लोगो को गोली मार कर मरणासन्न कर दिया गया था।
इस लोमहर्षक घटना की गूंज पूरे देश मे सुनाई दी । इससे पहले चंबल इलाके में होली पर कभी भी ऐसा खूनी खेल नहीं खेली गयी थी । इस कांड की वजह से सरकारी स्कूलो में पुलिस और पीएसी के जवानो को कैंप कराना पडा था । क्षेत्र के सरकारी स्कूल अब डाकुओं के आंतक से पूरी तरह से मुक्ति पा चुके है । इलाके में अब कई प्राथमिक स्कूल खुल चुके है। इसके साथ ही कई जूनियर हाईस्कूल भी खोले जा रहे है। जिनमें गांव के मासूम बच्चे पढ़ने के लिये आते है और पूरे समय रहकर करके शिक्षको से सीख लेते है।
ललूपुरा गांव के बृजेश कुमार बताते है कि जगजीवन के मारे जाने के बाद पूरी तरह से सुकुन महसूस हो रहा है । उस समय गांव में कोई रिश्तेदार नही आता था । लोग अपने घरो के बजाय दूसरे घरो में रात बैठ करके काटा करते थे । उस समय डाकुओं का इतना आंतक था कि लोगों नींद में उडा गई थी। पहले किसान खेत पर जाकर रखवाली करने में भी डरते थे। आज वे अपनी फसलो की भी रखवाली आसानी से करते है।
कभी स्कूल में चपरासी रहा जगजीवन एक वक्त चंबल मे आंतक का खासा नाम बन गया था। चंबल घाटी के कुख्यात दस्यु सरगना के रूप मे आंतक मचाये रहे जगजीवन परिहार ने अपने ही गांव चैरैला गांव के अपने पडोसी उमाशंकर दुबे की छह मई 2002 को करीब 11 लोगो के साथ मिल कर धारदार हथियार से हत्या कर दी थी।
डाकू उसका सिर और दोनो हाथ काट कर अपने साथ ले गये थे । उमाशंकर दुबे की हत्या के बाद डाकू जगजीवन को लेकर एक चर्चा भी बीहडो मे प्रचारित हुई थी कि उसके ब्राहमण जाति के एक सैकडो लोगो के सिर कलम करने का ऐलान किया है लेकिन इस बात की पुष्टि उसके मारे जाने तक भी नही हो सकी । जगजीवन अपना प्रण पूरा कर पाता उससे पहले ही मध्यप्रदेश में पुलिस ने मुठभेड में जगजीवन समेत गिरोह के आठ डकैतो का खात्मा कर दिया था। इटावा पुलिस ने इसी कांड के बाद जगजीवन को जिंदा या मुर्दा पकडने के लिये पांच हजार का इनाम घोषित किया था। जगजीवन परिहार चंबल घाटी का नामी डकैत बन गया था। एक समय जगजीवन परिहार के गिरोह पर उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश और राजस्थान पुलिस ने करीब आठ लाख का इनाम घोषित किया था ।
14 मार्च 2007 को सरगना जगजीवन परिहार और उसके गिरोह के 5 डाकुओं को मध्यप्रदेश के मुरैना एवं भिंड जिला पुलिस ने सयुक्त आपरेशन में मार गिराया । गढि़या गांव में लगभग 18 घंटे चली मुठभेड़ मे जहाॅ एक पुलिस अफसर शहीद हुआ वही पांच पुलिसकर्मी घायल हुए।
मध्यप्रदेश,उत्तर प्रदेश और राजस्थान में आतंक का पर्याय बन चुके करीब 8 लाख रुपये के इनामी डकैत जगजीवन परिहार गिरोह का मुठभेड़ में खात्मा हुआ साथ ही पनाह देने वाला ग्रामीण हीरा सिंह परिहार भी मारा गया । जगजीवन और उसके गैंग के डाकुओ के मारे जाने के बाद चंबल मे अब पूरी तरह से शांत का माहौल बना हुआ है ।
मुलायम की कपडा फाड़ होली का जुदा था अंदाज
इसी प्रकार इटावा में मथुरा की लठठमार होली की तुलना एक जमाने में समाजवादी पार्टी (सपा) संरक्षक मुलायम के गांव सैफई की कपडा फाड होली से की जाती थी हालांकि अब यह यादों मे सिमट करके रह गई है क्योंकि कपडा फाड की जगह अब फूलो की होली ने ले ली है ।
मुलायम की होली का अंदाज कुछ निराला ही है। सैफई मे उनके घर के भीतर लान मे होली का जश्न सुबह से ही हर साल मनाया जाता रहा है जहाॅ गांव के लोग होली के जश्न मे फाग के जरिये शामिल होते है वहीं पार्टी के छोटे बडे राजनेता भी होली के आंनद मे सराबोर होने के लिये दूर दराज से आते रहते है। रंगो से दूरी बना चुके बुजुर्ग नेता अब गुलाल और फूलो से होली खेल करके आंनद लेते है इसलिये होली के एक दिन पहले ही कानपुर और आगरा जैसे बडे महानगरो से खासी तादात मे फूलो को मंगवा लिया जाता है ।
करीब 30 साल पहले लोगो के कपडे फटने की वजह से खुद नेताजी ने ही कपडा फाडने पर रोक लगवा दी थी। तब से लगातार रोक लगी हुई है लेकिन कोई यह बता पाने कि स्थिति मे नही है कि यह कपडा फाड पंरपरा की शुरूआत कब हुई और किसने की ।
नेता जी के घर पर के पास बना हुआ तालाब ही होली के उत्साह का सबसे बडा गवाह है क्योंकि 1989 मे मुख्यमंत्री बनने से पहले ही इसी तालाब मे खुद नेता जी गांव के बुर्जगो का डुबो करके होली की शुरूआत करते थे । कई बार कई अहम राजनेताओ के कपडे होली के उत्साह मे फट गये जिससे उमंग मे खलल पडने के बाद इस प्रथा को बदला गया ।
मुलायम की एक खासियत है कि वो होली से लेकर दूसरे पंरपरागत त्यौहारो को अपने गांव सैफई मे अपने परिवार और गांव वालो के बीच ही आकर ही मनाते है। होली की उमंग का ब्रज में अलग ही अंदाज होता है । लट्ठमार होली, रसिया गीत और रंग के साथ फूलों की होली ब्रज में सर्वत्र दिखायी देती है। ढोलक मजीरा, हारमोनियम, चीमटा और खडताल की ध्वनि के मध्य किया फाग गाया जाता है । फाग विशेष तौर से इटावा, मैनपुरी, एटा, फीरोजाबाद, आगरा, मथुरा आदि जिलों में होता है ।
इटावा में अब से 40 वर्ष पहले यादव बाहुल्य गांवों में फाग जमकर होती थी । बूढे-बडों और युवाओं में इसके प्रति न केवल लगाव था, बल्कि होली आने से पहले खेतों पर काम करते, हल चलाते और बुवाई-कटाई करते समय फाग गाने की प्रैक्टिस करते थे, मगर अब इसका शौक कम ही है । अन्य लोकगीतों की तरह फाग गायन विधा भी विलुप्तता की ओर बढने लगी ।
श्री मुलायम सिंह यादव अपनी युवा अवस्था से ही फाग गायन के शौकीन रहे । उनके गांव सैफई में फाग की जो टोलियां उठती थीं, उनमें वह शरीक होते थे इसलिए राजनीति में ऊंचाई हासिल करने के बावजूद उन्होंने फाग गायन से मुंह नहीं मोडा बल्कि इस गायकी को प्रमुखता देने का बीडा उठाया। हमसंगी सैफई गांव के प्रधान दर्शन सिंह यादव के साथ मुलायम फाग गाते थे । फाग को भुला न दिया जाये इसके लिए हर वर्ष सैफई महोत्सव में उनके निर्देश पर दो दिन तक फाग गायन का मुकाबला होता है लेकिन पिछले सालो से परिवारिक विवाद के कारण सैफई महोत्सव का आयोजन नही हो सका है परिणामस्वरूप फाग गायक मायूस बने हुए है ।
मुलायम के भाई रामगोपाल यादव भी ऐसे ही राजनेताओ मे से एक ही है जो पिछले 50 सालो से अपने गांव सैफई मे होली का लुफत उठाने के अलावा फाग गाने मे अपने आप को सबसे आगे रखते है ।
रामगोपाल यादव होली पर्व को बेहद ही महत्वपूर्ण मानते है । उनका कहना है कि इस देश मे और खासकर उत्तर भारत मे होली सबसे महत्वपूर्ण पर्व है क्यो कि यह ऐसा अवसर होता है जब फसल किसान के घर आती है । उसकी सारी उम्मीदे उस पर होती है और इसमे इतना उल्लास होता है और इसके पीछे एक थ्योरी होती है कि होली के अवसर पर व्यक्ति पिछली सारी लडाईयो को ,एक दूसरे झगडो को भूल कर गले मिलते है और सारे सिकवो को दूर कर देते है।
साल 2009 मे संसदीय चुनाव के दौरान भी मुलायम की होली पर चुनाव आयोग की छाया पड चुकी है उस समय मुलायम सिंह यादव मैनपुरी संसदीय सीट से सपा प्रत्याशी थे और उनके सामने ही वहॉ पर फाग गायको को पैसे बांटे जा रहे थे । आयोग के नोटिस मिलने के बाद इसे आचार संहिता के दायरे मे नही माना गया था ।