क्या उत्तर प्रदेश में भाजपा से ब्राह्मणों की नाराजगी दूर कर पाएंगे जितिन प्रसाद;
नईदिल्ली 8 जून ।भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने उत्तर प्रदेश में राजनीतिक बिसात में अपने खिसकते ब्राह्मण वोट बैंक को मजबूती से थामने के उद्देश्य से आज कांग्रेस में हाशिये पर आये एक प्रभावशाली ब्राह्मण नेता पूर्व केन्द्रीय मंत्री जितिन प्रसाद को भगवा ब्रिगेड में शामिल कर लिया।
तीन पीढ़ियों से कांग्रेस से जुड़े श्री प्रसाद ने बुधवार को यहां गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात करने के बाद पार्टी कार्यालय में मोदी मंत्रिमंडल के हाई प्रोफाइल मंत्री पीयूष गोयल के हाथों सदस्यता पर्ची और गुलदस्ता ग्रहण करके भाजपा परिवार में पदार्पण किया। बाद में उन्होंने भाजपा अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा से भी मुलाकात की।
पूर्व केंद्रीय मंत्री जितिन प्रसाद का कांग्रेस पार्टी से बाहर होकर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में उनका शामिल होने के कयास लंबे समय से चल रहे थे।
कांग्रेस पार्टी के कद्दावर नेता और पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के विश्वासपात्र माने जाने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया का पार्टी से बाहर होना और अब जितिन प्रसाद का ऐसे समय में पार्टी को छोड़ना जब उनके गृह राज्य उत्तर प्रदेश में अगले साल विधानसभा चुनावों होने वाला है, उससे पहले ये खेल कांग्रेस के लिए नुकसानदायक होगा ।
यूपी में भाजपा की अगुवाई में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार है, जो योगी लगातार दूसरी बार चुनावी जीत की उम्मीद कर रहे हैं। हालांकि, यह स्पष्ट है कि राहुल और कांग्रेस को शर्मिंदा करने और सबसे पुरानी पार्टी की स्थिति को कमजोर करने से इतर यकीनन कुछ और है जो भाजपा में प्रसाद के शामिल होने से राजनीतिक लाभ मिलता है।
जितिन प्रसाद दो साल से भी अधिक समय से कांग्रेस में नाराज़ चल रहे थे और पार्टी के भीतर, खास तौर से उत्तर प्रदेश में दरकिनार किए जाने के बाद से वो अपना धैर्य खो चुके थे। 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले जब पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा और तत्कालीन राज्य कांग्रेस प्रमुख राज बब्बर ने मध्य यूपी की कुछ सीटों, खास तौर से खीरी और सीतापुर के लिए पार्टी की तरफ से उम्मीदवारों का फैसला करने से पहले प्रसाद को लेकर इनकार कर दिया था, तभी से पूर्व केंद्रीय मंत्री ने लगभग कांग्रेस छोड़ने का फैसला कर लिया था।
इन दोनों क्षेत्र से सटे धौरहरा निर्वाचन क्षेत्र से प्रसाद ने 2009 का चुनाव जीता था जबकि दूसरी बार 2014 में भाजपा की रेखा वर्मा से वो हार गएं। हालांकि, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के आश्वासनों के बाद जितिन प्रसाद ने भाजपा में जाने की अपनी योजना को छोड़ दिया था।
उसके बाद जितिन प्रसाद लगातार तीसरी बार हार गए। 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में उन्हें अपने गृह जिले शाहजहांपुर के तिलहर निर्वाचन क्षेत्र से उतारा गया था लेकिन वो हार गए। 2019 में, कांग्रेस पार्टी के नेशनल और उत्तर प्रदेश, दोनों मोर्चों पर भाजपा के खिलाफ कमजोर पड़ती कांग्रेस ने उन्हें ठंडे बस्ते में डाल दिया।
2019 में उनके भाजपा में शामिल होने की अफवाह और बीते साल अगस्त में 23 कांग्रेस नेताओं द्वारा सोनिया गांधी को पार्टी के प्रभावी नेतृत्व की मांग करने वाले पत्र पर हस्ताक्षर करने के बाद से उन्होंने राहुल-प्रियंका का विश्वास खो दिया, जिन्होंने उन्हें पार्टी के भीतर किसी पुराने राजनीतिक कोने में डाल दिया था।
कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि पूर्व केंद्रीय मंत्री जितिन प्रसाद की भाजपा के साथ लगातार पीछे के दरवाजे से चल रही बातचीत के बारे में पार्टी नेतृत्व को पता था। हालांकि, गांधी परिवार को उम्मीद थी कि जितिन प्रसाद, जिनके दिवंगत पिता जितेंद्र प्रसाद 2000 में पार्टी के अध्यक्ष पद के चुनाव में सोनिया को खुले तौर पर और असफल रूप से चुनौती देने के बावजूद कांग्रेस के प्रति वफादार रहे थे, को और अधिक जिम्मेदारियां दी गईं तो वे भाजपा के साथ अपने संबंधों को खत्म कर देंगे।
जी-23 पत्र विवाद के बाद सोनिया ने न केवल जितिन को नई कांग्रेस कार्यसमिति में बनाए रखने का फैसला किया था, बल्कि उन्हें पार्टी की पश्चिम बंगाल इकाई के प्रभारी महासचिव की जिम्मेदारी भी दी थी। हालाँकि, प्रसाद ने बंगाल में अपनी नई भूमिका को गांधी परिवार द्वारा अपने गृह राज्य यूपी से दूर रखने की एक चाल के रूप में देखा था। विशेष रूप से बाद के महीनों में, जब उन्हें कई आंतरिक समितियों से बाहर रखा गया था, जिन्हें प्रियंका ने कांग्रेस की चुनावी तैयारियों के लिए यूपी में गठित किया था।
हाल में संपन्न हुए बंगाल विधानसभा चुनावों में कांग्रेस एक भी सीट जीतने में नाकाम रही। बंगाल और अन्य राज्यों में चुनाव की हार पर चर्चा को लेकर आयोजित कांग्रेस कार्य समिति की एक बैठक में जितिन प्रसाद ने संकेत दिया था कि बंगाल में हार केंद्रीय नेतृत्व की वजह से हुई।
प्रसाद ने गांधी परिवार पर परोक्ष रूप से हमला करते हुए सीडब्ल्यूसी में कहा था कि ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी (एआईसीसी) ने न केवल राज्य के नेताओं को कठिन चुनाव में खुद को बचाने के लिए छोड़ दिया है, बल्कि ममता बनर्जी के खिलाफ स्पष्ट रूप से ‘नरम’ अभियान के जरिए मतदाताओं को भ्रमित करके माहौल को और भी खराब कर दिया एआईसीसी ने न केवल राज्य के नेताओं को एक कठिन चुनाव में खुद को बचाने के लिए छोड़ दिया था, बल्कि ममता बनर्जी के खिलाफ स्पष्ट रूप से ‘नरम’ अभियान के माध्यम से मतदाताओं को भ्रमित करके चीजों को और भी खराब कर दिया था, क्योंकि अधीर रंजन चौधरी जैसे राज्य के नेताओं के द्वारा मुखर आलोचना से इतर सीएम ममता को पार्टी के अधीन किया जा रहा था। जबकि जितिन प्रसाद की कथित टिप्पणियों में कोई कमी नहीं थी, कांग्रेस के कामकाज के बारे में दूर से ही किसी को पता होगा कि उनके बयानों से गांधी परिवार खुश नहीं होंगे।
जितिन प्रसाद ने अपना पाला ऐसे समय में बदला है जब अगले साल यूपी में होने वाले विधानसभा चुनावों में अपनी सीटों की संख्या और वोट शेयर बढ़ाने की पूरी कोशिश कांग्रेस कर रही है। जाहिर है, एक हाई-प्रोफाइल, ब्राह्मण चेहरे का पार्टी से बाहर होना, जो कभी राहुल गांधी के सबसे नजदीकी में से एक थे और जिन्होंने स्टील, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस, मानव संसाधन विकास और सड़क परिवहन जैसे महत्वपूर्ण विभागों के लिए केंद्रीय राज्य मंत्री के रूप में कार्य किया था। कांग्रेस के लिए एक बड़ा झटका है, ऐसे समय में जब यूपी में प्रियंका और उनके कांग्रेसी सहयोगी सीएम योगी आदित्यनाथ को कोविड महामारी के खराब प्रबंधन, बिगड़ती कानून व्यवस्था और सांप्रदायिक विभाजन को जोर देने सहित कई मुद्दों पर घेरने की कोशिश कर रहे हैं। जितिन प्रसाद का पार्टी बदलना भाजपा के लिए एक बड़ी राजनीतिक जीत है।
लेकिन, अभी यूपी चुनाव आठ महीने दूर हैं। प्रसाद का भाजपा में शामिल होना और कांग्रेस का राज्य में अपने प्रमुख ब्राह्मण नेता को पार्टी के भीतर बनाए रखने में किस तरह की विफलता रही, यह लंबे समय तक जारी नहीं रह सकता। सवाल ये है कि जितिन प्रसाद के दल बदलने से भाजपा को क्या लाभ हो सकता है?
ज्योतिरादित्य सिंधिया ने पाला बदलकर मध्यप्रदेश में कांग्रेस पार्टी का बड़ा नुकसान किया था। कमलनाथ सरकार गिर गई थी। लेकिन, इससे इतर जितिन प्रसाद का यूपी में ऐसा कोई राजनीतिक दबदबा नहीं है। वो लगातार तीन चुनाव हारे हैं, उनके पास कांग्रेस पार्टी के ऐसे कोई विधायकी खेमे साथ में नहीं है, जो भाजपा में शामिल हो सकते हैं। जितिन प्रसाद, जो बेहतर अंग्रेजी बोलने वाले, मीडिया के साथ अच्छे तालुकात, जिन्हें कांग्रेस ने अब खो दिया है।
पूर्व केंद्रीय मंत्री जितिन प्रसाद ने पिछले एक साल में खुद को चुनावी रूप से ब्राह्मण समुदाय के महत्वपूर्ण नेता के रूप में पेश करने की भरपूर कोशिश की है। यूपी में ब्राह्मणों का लगभग 12 प्रतिशत वोट शेयर है। उन्होंने ब्राह्मण चेतना संवाद का नेतृत्व इसी उम्मीद में किया था कि उन्हें ऐसे कार्यक्रमों के जरिए इस समुदाय का विश्वास जीतने में मदद मिलेगी, जो एक ठाकुर समुदाय की अगुवाई वाले सीएम योगी आदित्यनाथ के खिलाफ नाराज थे। हालाँकि, इस समुदाय के वोट बैंक पर उनकी पकड़ भाजपा की रेखा शर्मा से अधिक मजबूत नहीं है, जिन्होंने 2014 और 2019 के आम चुनावों में धौरहरा क्षेत्र से जितिन प्रसाद को हराया था या दिनेश शर्मा जो राज्य में योगी सरकार में बनाए गए दो उपमुख्यमंत्रियों में से एक हैं।
इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि यूपी में ब्राह्मणों के बीच भाजपा की स्थिति अपने ही समुदाय के लिए योगी की कथित वरीयता को लेकर मजबूत नहीं है। जितिन प्रसाद के रूप में एक और ब्राह्मण चेहरे को जोड़ने से भाजपा को इस समुदाय तक अपनी निरंतर पहुंच बनाने में मदद मिल सकती है।
यदि जितिन प्रसाद भाजपा में शामिल होकर अपने राजनीतिक प्रोफाइल में किसी भी तरह के आमूल-चूल बदलाव की उम्मीद कर रहे हैं, तो वे कांग्रेस की एक अन्य पूर्व सहयोगी और ब्राह्मण नेता रीता बहुगुणा जोशी से भी संपर्क कर सकते थे। रीता बहुगुणा जोशी ने भाजपा में शामिल होने के साथ कई असफलताओं के बाद साल 2017 के विधानसभा चुनाव में सफलतापूर्वक जीत हासिल की थी। बीजेपी के टिकट पर 2019 के चुनावों में, एक और चुनावी जीत से पहले उन्हें महिला कल्याण, परिवार कल्याण और पर्यटन मंत्री के रूप में योगी कैबिनेट में शामिल किया गया था।
भाजपा के मंच से अपने प्रथम वक्तव्य में श्री प्रसाद ने कहा कि उन्होंने बहुत सोच विचार कर कांग्रेस के साथ तीन पीढ़ी का संबंध छोड़ने और भाजपा में शामिल होने का फैसला किया है।
उन्होंने कहा, “मैंने देश भर में भ्रमण करके और लोगों से बात करके महसूस किया है कि देश में असली मायने में कोई राजनीतिक दल है, संस्थागत दल है तो केवल भाजपा ही है, बाकी दल व्यक्ति आधारित या क्षेत्रीय दल हैं।”
उन्होंने कहा, “वैश्विक पटल पर ये दशक भारत के भविष्य के लिए निर्णायक है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नये भारत के निर्माण के लिए दिन-रात जुटे हैं। मुझे भी छोटा सा योगदान करने का मौका मिलेगा।”
उन्हाेंने कहा कि कांग्रेस में रह कर महसूस हो रहा था कि इस दल में रह कर जनता के हितों की रक्षा नहीं कर सकते। यदि आप जनता के हितों की रक्षा नहीं कर सकते तो राजनीति में रहने का कोई मतलब नहीं रह जाता है। अब वह भाजपा के सशक्त माध्यम से जनसेवा करेंगे।
श्री प्रसाद ने उन्हें भाजपा में शामिल करने के लिए श्री मोदी, भाजपा अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा और गृह मंत्री अमित शाह के प्रति आभार प्रकट करते हुए कहा, “आपके स्नेह, अपनेपन से अभिभूत हूँ। भाविष्य में देश के यशस्वी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ,राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा, आपने एवं भाजपा परिवार ने जो विश्वास मुझ पर व्यक्त किया है उस पर पूर्ण रूप से खरा उतरने का प्रयास करूँगा।”
उन्होंने कांग्रेस नेतृत्व के प्रति किसी प्रकार की कटुता या आलोचना के शब्दों से परहेज किया तथा करीब 20 साल के उनके राजनीतिक कार्यकाल में उन्हें सहयोग देने वाले कांग्रेस के नेताओं के प्रति भी धन्यवाद ज्ञापित किया।