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उतर प्रदेश बना देश की राजनीतिक घमासान का केन्द्र attacknews.in

लखनऊ 29 दिसम्बर । वर्ष 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव के मद्देनजर केन्द्र की सत्ता में ‘बैलेंस ऑफ पावर’ के लिये संसद मेें सर्वाधिक 80 सांसद भेजने वाले उत्तर प्रदेश में वर्षभर राजनीतिक घमासान चलता रहा।

संसद में सर्वाधिक सांसद भेजने वाले उत्तर प्रदेश को देश की राजनीति की दिशा तय करने वाला राज्य माना जाता है। इस राज्य से ही सर्वाधिक प्रधानमंत्री चुने गये है। केन्द्र में विपक्ष की अहम भूमिका निभाने वाली पार्टी के अध्यक्ष तथा प्रधानमंत्री इसी राज्य से सांसद हैं।

इसमें से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी वाराणसी सीट से, संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) अध्यक्ष सोनिया गांधी रायबरेली से, कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी अमेठी से तथा समाजवादी पार्टी (सपा) के संरक्षक आजमगढ़ सीट से सांसद है। इसके अलावा बहुजन समाज पार्टी (बसपा) अध्यक्ष मायावती, सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव, राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) अध्यक्ष जयन्त चौधरी भी इसी राज्य से ताल्लुक रखते हैं।

वर्ष 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव के बाद बैलेंस आॅफ पावर बनने के लिये भारतीय जनता पार्टी (भाजपा), कांग्रेस, सपा, बसपा और रालोद ने वर्ष 2018 से अपनी अपनी गोटिया बिछानी शुरू कर दी है। राज्य मेें अपनी स्थिति मजबूत करने के लिये एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाना शुरू कर दिया है। राजनीतक दलों ने क्षेत्रीय मुद्दे उठाने में कोई कोर कसर नही छोड़ी।

अगले साल होनेे वाले लोकसभा चुनाव के मद्देनजर प्रचार के मामले में भाजपा से वर्ष 2018 से तैयारिया शुरू कर दी है जबकि विपक्षी दल अभी महागठबंधन पर नजर गड़ाये हैै। राज्य में मुख्य विपक्षी दल अभी कांग्रेस के साथ गठबंधन को लेकर संशय मेें है। केन्द्र की सत्ता को अपने हाथ में रखने को लेकर गठबंधन में पेच फस रहा है। मुख्य विपक्षी दलों सपा-बसपा और रालोद का अन्य राज्यों में प्रभाव कम होने कारण केन्द्र की सत्ता में वैलेंस आफ पावर बनने के लिये अधिक से अधिक सांसद इस राज्य से भेजना चाहते है।

उत्तर प्रदेश में लोकसभा की तीन सीटों गोरखपुर, फूलपुर और कैराना पर हुये उपचुनाव में सपा-बसपा-रालोद गठबंधन को मिली जीत से विपक्षी दलों के हौसले बुलंद है। गोरखपुर सीट से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, फूलपुर सीट से उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के त्यागपत्र देने के बाद जबकि कैराना सीट हुकुम सिंह के अचानक निधन हो जाने से खाली हुई थी।

उप चुनाव में विपक्ष को मिली सफलता के बाद सपा-बसपा-रालोद ने महागंठबधन की तैयारियां शुरू की हैं। हां हांलाकि कांग्रेस का मामला अभी अधर में लटका है। कांग्रेस ने सपा-बसपा की पहुच वाले राज्यों मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में अकेले चुनाव लड़ा था। चुनाव के बाद सपा-बसपा ने राजस्थान और मध्यप्रदेश में सरकार बनाने के लिये कांग्रेस को समर्थन देने का ऐलान किया था।

इसी साल शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने पहली बार अयोध्या पहुंचकर प्रदेश की राजनीति में अपनी पहुंच बनाने के लिये प्रयास शुरू किये। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत तथा संगठन के अन्य नेताओं के समय-समय पर राज्य में अपनी बैठकें की। विश्व हिन्दु परिषद (विहिप) समेत तमाम हिन्दुवादी संगठनों ने ऐन चुनाव से पहले मंदिर मुद्दा जोर -शोर से उठाया है।

राज्य में इस साल चुनाव की तैयारियों के मद्देनजर भाजपा की केन्द्र तथा राज्य सरकार ने प्रदेश के विकास पर जोर दिया है, वहीं विपक्षी दलों ने कानून व्यवस्था को लेकर सरकार को घेरने की कोशिश में लग रहे। इसी साल भाजपा ने अनेक कार्यक्रमों का आयोजन किया। मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्रियों समेत केन्द्र सरकार के कई मंत्री तथा भाजपा के बड़े नेता मोटरसाइकिल रैलियों में शामिल हुये।

सपा-बसपा दोनों वैसे तो गठबंधन के लिए राजी हैं लेकिन अंदरखाने यह समीकरण क्या होगा यह अभी तक तय नहीं हो पा रहा है। इस मामले में बसपा मुखिया मायावती ने अभी चुप्पी साधी है। बसपा अध्यक्ष यह कहती रही हैं कि गठबंधन तभी होगा जब उन्हें ‘सम्मानजनक’ सीटें मिलेंगी। अब सियासी जानकार इस ‘सम्मानजनक’ की गुत्थी को अपने-अपने तरीके से सुलझाने में जुटे हैं।

एक ओर तो ‘सम्मानजनक’ सीटों का पेेंच है तो दूसरी ओर कांग्रेस को साथ लेने पर सपा और बसपा में अतीत के अपने-अपने संशय हैं। बसपा को यह संशय रहता है कि वर्ष 1996 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस से गठबंधन का उसे लाभ नहीं हुआ। वहीं दलित कांग्रेस के पराभव से पहले उसका वोट बैंक रहे हैं। बसपा को दलितों के कांग्रेस की झोली में जाने का संशय भी सताता है।

दूसरे सपा भी वर्ष 2017 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस से गठबंधन कर कटु अनुभव कर चुकी है। वहीं बसपा को संशय है कि क्या यादव वोट उसकी झोली में जाएंगे। तीन राज्यों के चुनाव नतीजे आने के बाद बसपा एक बार फिर पूरी तरह विश्वास से परिपूर्ण दिख रही है। वहीं कांग्रेस भी पूरे जोश में है। ऐसे में राज्य में अकेले चुनाव लड़ने को संभावनाओं पर कदम बढ़ाती दिख रही है।

उत्तर प्रदेश से संसद में 80 सांसद भेजने वाले देश के सबसे राज्य में भाजपा ने इसी साल से तैयारिया शुरू कर दी है। गत 17 नवम्बर को कमल संदेश बाइक रैली आयोजित की। इस रैली को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने वाराणसी, उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने फूलपुर और उपमुख्यमंत्री दिनेश शर्मा ने लखनऊ में हरी झंडी दिखाई। इसके अलावा प्रदेश प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पांच से अधिक रैलियों को संबोधित कर चुके है।

इसके अलावा सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव और बसपा अध्यक्ष मायावती ने प्रदेश में कानून-व्यवस्था को लेकर सरकार को घेरने में जुटी हैं। उत्तर प्रदेश की राजनीति में वर्ष 2018 के दौरान राजनैतिक परिदृश्य में दूरगामी बदलाव हुए है। इनमें एक बदलाव तो ऐसा रहा जिससे भाजपा सकते में है। दो जून 1995 को सपा के कार्यकर्ताओं द्वारा एक गेस्ट हाऊस में जानलेवा हमले का शिकार बनने के बाद बसपा कट्टर दुश्मन बन गयी थी लेकिन वर्ष 2018 आते आते दोनों पार्टियों ने उपचुनाव में हाथ मिलाया और प्रयोग सफल रहा।

भाजपा को दोनों पार्टी के बीच मतभेदों का हमेशा फायदा मिलता रहा था। भाजपा उत्तर प्रदेश के पिछड़ों और अनुसूचित जातियों में मजबूत पकड़ रखने वाली दोनों पार्टियों को एक साथ नही चाहती है। इसी वजह से भाजपा की सीट में चुनाव दर चुनाव इजाफा होता चला गया। इनके साथ आने के साथ ही गोरखपुर, कैराना और फूलपुर की संसदीय सीट उपचुनाव में भाजपा के हाथ से निकल गयी। बसपा अध्यक्ष मायावती और सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अपनी राजनैतिक दूरी की वजह से एक-दूसरे से जुड़े हैं। दोनों वर्ष 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव के बाद श्री मोदी के दोबारा सत्ता में वापसी को लेकर भी आशंकित हैं।

लोकसभा चुनाव के मद्देनजर अखिलेश सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे शिवपाल यादव ने अलग होकर प्रगतिशील समाजवादी पार्टी का गठन किया। वही निर्दलीय विधायक रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया ने नया दल जनसत्ता पार्टी बनायी है। उन्होंने सवर्णों के पक्ष में एससी-एसटी कानून का विरोध किया है।

गोरखपुर और फूलपुर उपचुनाव में विपक्ष को मिली जीत से उत्साहित सपा, बसपा ने कैराना सीट पर राष्ट्रीय लोकदल को समर्थन दिया। कैराना लोकसभा उपचुनाव में तबस्सुम बेगम ने जीत दर्ज की थी। तब से माना जा रहा है कि सपा-बसपा और रालोद का गठबंधन होगा।

भाजपा की सहयोगी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) के अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश के काबीना मंत्री ओम प्रकाश राजभर भी अपने बयानों से सरकार को असहज करते रहे हैं। इस बीच भगवान हनुमान भी खूब चर्चा में रहे किसी ने उनको दलित तो किसी ने जाट और किसी ने भगवान हनुमान को मुसलमान भी बताया जिससे वोट के लिये सियासी हलकों में उन्हें अपना बताने की होड़ मच गयी।
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