नयी दिल्ली, 09 नवम्बर । उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ ने पिछले चार दशकों से देश की राजनीति पर छाये रहे अयोध्या राम जन्मभूमि विवाद में आज एकमत से 45 मिनट में ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए सरकार को विवादित भूमि पर राम मंदिर बनाने के लिए एक न्यास का गठन करने और सुन्नी वक्फ बोर्ड को मस्जिद बनाने के लिए पांच एकड़ वैकल्पिक भूमि आवंटित करने का आदेश दिया।
देश भर में कड़ी सुरक्षा व्यवस्था और चाक चौबंद इंतजामों के बीच सुनाये गये इस फैसले से दशकों से चले आ रहे विवाद के समाधान के साथ विवादित स्थल पर राम मंदिर तथा वैकल्पिक स्थान पर मस्जिद के निर्माण का मार्ग प्रशस्त हो गया।
इस मामले के हिन्दू और मुस्लिम पक्षकारों और दोनों समुदाय के संगठनों ने आमतौर पर इसका स्वागत किया है। लगभग सभी राजनीतिक दलों ने भी फैसले को देश की एकता, अखंडता और संंस्कृति को मजबूत करने वाला बताया है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि न्याय के मंदिर ने दशकों पुराने मामले का सौहार्दपूर्ण तरीके से समाधान कर दिया है और इसे किसी की हार या जीत के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि रामभक्ति हो या रहीमभक्ति, ये समय हम सभी के लिए भारतभक्ति की भावना को सशक्त करने का है।
देश के प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने गत 6 अगस्त से मामले की लगातार 40 दिन तक सुनवाई के बाद गत 16 अक्टूबर को इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। संविधान पीठ में न्यायमूर्ति गोगोई के अलावा न्यायमूर्ति शरद अरविंद बोबडे , न्यायमूर्ति अशोक भूषण, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर शामिल थे।
पीठ ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के विवादित भूमि को तीन बराबर भागों में बांटने के फैसले को निरस्त करते हुए कहा कि केन्द्र सरकार समूची 2.77 एकड़ विवादित भूमि पर राम मंदिर बनाने के लिए तीन से चार महीने में एक न्यास का गठन करे और उसके प्रबंधन तथा आवश्यक तैयारियों की व्यवस्था करे। गर्भगृह और मंदिर का बाहरी अहाता भी न्यास मंडल को सौंपा जाये।
फैसले में कहा गया है कि निर्मोही अखाड़े को केन्द्र सरकार द्वारा मंदिर के निर्माण के लिए बनाये जाने वाले न्यास में उचित प्रतिनिधित्व दिया जाये।
पीठ ने कहा कि नये न्यास के गठन तक विवादित भूमि का कब्जा सरकार द्वारा नियुक्त रिसिवर के पास ही रहेगा। न्यायालय ने साथ ही कहा कि 06 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद का गिराया जाना “गैरकानूनी” था तथा धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र में इस तरह की घटना नहीं होनी चाहिये थी।
आदेश में कहा गया है कि सुन्नी वक्फ को बोर्ड अयोध्या में ही पांच एकड़ वैकल्पिक जमीन उपलब्ध करायी जाये।
न्यायालय ने कहा कि यह जमीन 1993 में केन्द्र सरकार द्वारा अधिगृहीत भूमि में दी जा सकती है या राज्य सरकार इसके लिए अलग से प्रमुख स्थान पर अलग से भूमि आवंटित कर सकती है। केन्द्र और राज्य सरकार परस्पर विचार विमर्श के आधार पर निर्धारित समय में इस जमीन को आवंटित करे। अदालत ने कहा कि जमीन आवंटित किये जाने पर सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड मस्जिद बनाने के लिए सभी जरूरी कदम उठा सकती है।
उच्चतम न्यायालय ने शनिवार को सर्वसम्मति के फैसले में अयोध्या में विवादित स्थल पर राम मंदिर के निर्माण का मार्ग प्रशस्त कर दिया और केन्द्र को निर्देश दिया कि नयी मस्जिद के निर्माण के लिये सुन्नी वक्फ बोर्ड को प्रमुख स्थान पर पांच एकड़ का भूखंड आबंटित किया जाए।
प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने इस व्यवस्था के साथ ही राजनीतिक दृष्टि से बेहद संवेदनशील 134 साल से भी अधिक पुराने इस विवाद का पटाक्षेप कर दिया।
हालांकि, उप्र सुन्नी वक्फ बोर्ड ने इस निर्णय पर असंतोष व्यक्त करते हुये कहा है कि वह इस पर पुनर्विचार के लिये याचिका दायर करेगा। इस विवाद ने देश के सामाजिक और साम्प्रदायिक सद्भाव के ताने बाने को तार तार कर दिया था।
संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर शामिल हैं।
संविधान पीठ ने अपने 1045 पन्नों के फैसले में कहा कि नयी मस्जिद का निर्माण ‘प्रमुख स्थल’ पर किया जाना चाहिए । साथ ही उस स्थान पर मंदिर निर्माण के लिये तीन महीने के भीतर एक ट्रस्ट गठित किया जाना चाहिए जिसके प्रति हिन्दुओं की यह आस्था है कि भगवान राम का जन्म यहीं हुआ था।
इस स्थान पर 16वीं सदी की बाबरी मस्जिद थी जिसे कार सेवकों ने छह दिसंबर, 1992 को गिरा दिया था। विवादित स्थल गिराये जाने की घटना के बाद देश में सांप्रदायिक दंगे भड़क गये थे।
पीठ ने कहा कि 2.77 एकड़ की विवादित भूमि का अधिकार राम लला विराजमान को सौंप दिया जाये, जो इस मामले में एक वादकारी हैं। हालांकि यह भूमि केन्द्र सरकार के रिसीवर के कब्जे में ही रहेगी।
न्यायालय ने कहा कि हिन्दू यह साबित करने में सफल रहे हैं कि विवादित ढांचे के बाहरी बरामदे पर उनका कब्जा था और उप्र सुन्नी वक्फ बोर्ड अध्योध्या विवाद में अपना मामला साबित करने में विफल रहा है।
संविधान पीठ ने यह माना कि विवादित स्थल के बाहरी बरामदे में हिन्दुओं द्वारा व्यापक रूप से पूजा अर्चना की जाती रही है और साक्ष्यों से पता चलता है कि मस्जिद में शुक्रवार को मुस्लिम नमाज पढ़ते थे जो इस बात का सूचक है कि उन्होंने इस स्थान पर कब्जा छोड़ा नहीं था।
शीर्ष अदालत ने कहा कि मस्जिद में नमाज पढ़ने में बाधा डाले जाने के बावजूद साक्ष्य इस बात के सूचक है कि वहां नमाज पढ़ना बंद नहीं हुआ था।
संविधान पीठ ने कहा कि अयोध्या में विवादित स्थल के नीचे मिली संरचना इस्लामिक नहीं थी लेकिन भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने यह साबित नहीं किया कि क्या मस्जिद निर्माण के लिये मंदिर गिराया गया था।
न्यायालय ने कहा कि पुरातत्व सर्वेक्षण के साक्ष्यों को महज राय बताना इस संस्था के साथ अन्याय होगा।
न्यायालय ने कहा कि हिन्दू विवादित स्थल को ही भगवान राम का जन्म स्थान मानते हैं और मुस्लिम भी इस स्थान के बारे में यही कहते हैं।
पीठ ने कहा कि विवादित ढांचे में ही भगवान राम का जन्म होने के बारे में हिन्दुओं की आस्था अविवादित है। यही नहीं, सीता रसोई, राम चबूतरा और भण्डार गृह की उपस्थिति इस स्थान के धार्मिक तथ्य की गवाह हैं।
हालांकि, न्यायालय ने कहा कि सिर्फ आस्था और विश्वास के आधार पर मालिकाना हक स्थापित नहीं किया जा सकता और ये विवाद का निबटारा करने में सूचक हो सकते हैं।
संविधान पीठ ने 2.77 एकड़ विवादित भूमि तीन पक्षकारों- सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला विराजमान- के बीच बराबर बराबर बांटने के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के सितंबर, 2010 के फैसले के खिलाफ दायर 14 अपीलों पर 16 अक्टूबर को सुनवाई पूरी की थी।
पीठ ने कहा कि उच्च न्यायालय ने विवादित भूमि तीन हिस्सों में बांटने का रास्ता अपना कर गलत तरीके से मालिकाना हक के मामले का फैसला किया।
राम लला विराजमान की ओर से बहस करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता सी एस वैद्यनाथन ने इस निर्णय पर प्रतिक्रया व्यक्त करते हुये कहा, ‘@यह बहुत ही संतुलित है और यह जनता की जीत है।’’ लेकिन इस वाद में एक पक्षकार सुन्नी वक्फ बोर्ड फैसले से संतुष्ट नहीं है और उसने कहा कि वह इस पर पुनर्विचार का अनुरोध करेगा।
सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील जफरयाब जिलानी ने कहा कि इस फैसले का कोई महत्व नहीं है और इसमें बहुत सारे विरोधाभास हैं।
इस वाद के एक अन्य पक्षकार निर्मोही अखाड़ा ने कहा कि उसे उसका दावा खारिज होने का कोई अफसोस नहीं है।
गृह मंत्री अमित शाह ने सभी समुदायों से फैसले को स्वीकार करने और शांति बनाये रखने की अपील करते हुये कहा कि वे ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ के प्रति प्रतिबद्ध रहें जबकि रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि यह निर्णय सामाजिक ताने बाने को सुदृढ़ करेगा।
कांग्रेस ने भी कहा कि वह फैसले का सम्मान करती है और अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के पक्ष में है।
विहिप के पूर्व अध्यक्ष प्रवीण तोगडिया ने कहा कि राम मंदिर निर्माण के लिये राम लाल जन्म स्थान दिया जाना लाखों कार्यकर्ताओं के त्याग का सम्मान है।
न्यायमूर्ति रंजन गोगोई ने वकीलों और पत्रकारों से खचाखच भरे न्यायालय कक्ष में इस बहुप्रतीक्षित फैसले के मख्य अंश पढ़कर सुनाये और इसमें उन्हें 45 मिनट लगे।