नयी दिल्ली, 11 जून । उच्चतम न्यायालय ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ कथित आपत्तिजनक टिप्पणी करने के मामले में गिरफ्तार पत्रकार प्रशांत कनौजिया को बड़ी राहत प्रदान करते हुए उन्हें जमानत पर तत्काल रिहा करने का मंगलवार को आदेश दिया।
न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी और न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी की अवकाशकालीन पीठ ने प्रशांत की पत्नी जगीशा अरोड़ा की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका की सुनवाई के दौरान उत्तर प्रदेश पुलिस की कार्रवाई और निचली अदालत द्वारा 22 जून तक न्यायिक हिरासत में भेजने के फैसले की आलोचना की।
न्यायालय ने स्पष्ट किया कि ट्विटर पर प्रशांत के पोस्ट को उचित नहीं ठहराया जा सकता, लेकिन इसकी वजह से पुलिस की कार्रवाई भी उचित नहीं कही जा सकती।
सुनवाई के दौरान उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल विक्रमजीत बनर्जी ने दलील दी कि आरोपी को न्यायिक मजिस्ट्रेट ने न्यायिक हिरासत में भेजा है, इसलिए इस मामले में संविधान के अनुच्छेद-32 के तहत दायर याचिका पर सुनवाई नहीं की जानी चाहिए।
उन्होंने यह भी कहा कि आरोपी को जमानत पर रिहाई के लिए निचली अदालत या उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाना चाहिए था, लेकिन न्यायमूर्ति बनर्जी ने कहा कि शीर्ष अदालत न्याय के लिए संविधान के अनुच्छेद-142 के तहत प्रदत्त अधिकारों के दायरे में कोई भी आदेश जारी कर सकती है।
उन्होंने कहा, “संविधान के तहत स्वतंत्रता को अक्षुण्ण रखा गया है और जब भी कोई अनुचित कार्रवाई होगी यह अदालत अपने अधिकार के इस्तेमाल से पीछे नहीं रहेगी।”
न्यायमूर्ति बनर्जी ने कहा, “हमने ट्वीट देखे हैं। इस तरह के ट्वीट नहीं किये जाने चाहिए थे, लेकिन क्या इस मामले में गिरफ्तारी जरूरी थी।”
न्यायमूर्ति रस्तोगी ने एएसजी से पूछा कि आखिर किस आधार पर भारतीय दंड संहिता की धारा 505 लगायी गयी?
न्यायमूर्ति बनर्जी ने कहा कि आरोपी को 22 जून तक न्यायिक हिरासत में भेजने का न्यायिक मजिस्ट्रेट का आदेश अनुचित था। उन्होंने आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा, “22 जून तक? आरोपी को 11 दिन के लिए न्यायिक हिरासत? क्या यह हत्या का आरोप है?”
न्यायालय ने कहा कि प्रशांत को जमानत पर तत्काल रिहा किया जाये, हालांकि उसने स्पष्ट किया कि सरकार कानून के दायरे में आरोपी के खिलाफ कार्रवाई कर सकती है। attacknews.in