नयी दिल्ली, 08 जुलाई । उच्चतम न्यायालय ने फ़र्ज़ी बाबाओं और आध्यात्मिक गुरुओं द्वारा संचालित आश्रमों को बंद किये जाने संबंधी याचिका पर बुधवार को केंद्र सरकार की राय जाननी चाही।
मुख्य न्यायाधीश शरद अरविंद बोबडे, न्यायमूर्ति आर सुभाषरेड्डी और न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना की खंडपीठ ने तेलंगाना निवासी डुम्पाला रमारेड्डी की वह जनहित याचिका सुनवाई के लिए स्वीकार कर ली, जिसमें उन्होंने देश के 17 आश्रम एवं अखाड़ों में महिलाओं से संबंधित आपराधिक गतिविधियों के आरोपों और इन आश्रमों में रह रही महिलाओं के बीच कोरोना महामारी फैलने के ख़तरे के मद्देनजर न्यायालय से हस्तक्षेप की मांग की है।
न्यायालय ने याचिकाकर्ता को अपनी याचिका की एक प्रति केंद्र सरकार को सौंपने का निर्देश दिया तथा सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से पूछा कि सरकार इस मामले में क्या कर सकती है?
याचिकाकर्ता ने कहा है कि जुलाई 2015 में उनकी बेटी विदेश से डॉक्टरी की उच्च शिक्षा की पढ़ाई करके आई थी, जो दिल्ली में एक फ़र्ज़ी बाबा वीरेंद्र दीक्षित के चंगुल में फंस गई और पिछले पांच सालों से इस बाबा के दिल्ली के रोहिणी इलाक़े में बने आश्रम आध्यात्मिक विद्यालय में रह रही है। यह बाबा बलात्कार के आरोप में तीन साल से फ़रार चल रहा है।
याचिका में कहा गया है कि अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने देशभर में 17 आश्रम और अखाड़ों को फ़र्ज़ी करार दिया है, जिनमें ज़्यादातर अवैध निर्माण वाली बिल्डिंग में चल रहे हैं, जहां रहने लायक़ बेसिक सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं। इनमें लड़कियां और महिलाएं रह रही हैं जिनके हालात जेल के क़ैदियों से भी बदतर है।
याचिकाकर्ता ने दिल्ली के रोहिणी इलाक़े में बने आश्रम आध्यात्मिक विद्यालय को ख़ाली करवाये जाने और इस आश्रम में रह रही कम से कम 170 महिलाओं को आश्रम से मुक्त करवाने का मांग न्यायालय से की है। न्यायमूर्ति बोबडे ने श्री मेहता से कहा कि वह याचिका पढ़ लें और यह बतायें कि आखिर इसमें केंद्र सरकार क्या कर सकती है? मामले की सुनवाई दो हफ्ते बाद होगी।