भारतीय ज्योतिष में आत्मा का कारक एवं प्रत्यक्ष दिखाई देने वाला सूर्यग्रह 17 अक्टूबर को कन्या राशि में से निकलकर तुला राशि में प्रवेश कर गया!
यहां सूर्य अपनी सबसे कमजोर स्थिति यानी नीच के हो गए! सूर्य के नीच के होने से आशय, ब्रह्मण्ड सहित धरती पर सूर्य के प्रकाश के द्वारा प्राप्त होने वाली शुभता एवं ऊर्जा की अल्पता से है! ऋृतु परिवर्तनवश धरती पर शीत का प्रभाव बढ़ेगा, जनमानस सूर्यदेव के प्रकाश की प्रतीक्षा करेंगे, ज्यादा से ज्यादा उनके समक्ष बेठने के लिए लालायित रहेंगे! कुल मिलाकर ग्रीष्म ऋृतु से उलट स्थिति रहेगी!
विज्ञान के अनुसार प्रकाश की अल्पता यानि अंधेरे में जीवाणु बहुत तेजी से पनपते हैं! ठीक यही स्थिति, मानव-मन की भी होती है! अंधेरे में मन के प्रभावित होने की संभावना बढ़ जाती है! अंधेरा ना सिर्फ भय एवं हानिकारक जीवाणुओं को आकर्षित करता है, बल्कि दोनों की मात्रा द्विगुणित भी कर देता है! वहीं प्रकाश भयनाशक होता है, ऊर्जा का संचार करने वाला होता है और जीवाणुओं को पनपने नहीं देता! संभवतः इसीलिए प्राचीन मनीषियों ने कार्तिक मास में अधिकाधिक दीप प्रज्जवलन, दीपदान एवं स्वच्छता की महत्ता को प्रतिपादित किया है!
स्पष्ट है साधारण-सा दिखने वाला मिटटी का दीपक अपने आपमें कई सारी आध्यात्मिक एवं वैज्ञानिक ऊर्जा समेटे हुए होता है! तभी तो प्रत्येक पूजा का आधार भी माना गया है! शुद्ध घी का दीपक तो प्राणवायु आक्सीजन तक का निर्माण कर देता है! दीप प्रज्जवलन को लेकर शास्त्रों में एक श्लोक आता है शुभम करोति कल्याणम, आरोग्यं-धनसंपदा, शत्रुबुद्धि विनाशाय दीपज्योति नमोस्तुते! कार्तिक माह विशेष में इसकी वैज्ञानिक विवेचना आसान हो जाती है! उपरोक्त श्लोक का वैज्ञानिक आधार यह है कि प्रज्जवलित दीप से जब प्रकाश व्याप्त होगा तो वह जीवाणुओं का नाश करेगा! इससे कल्याण एवं आरोग्य की प्राप्ति होगी, धन चिकित्सकीय कार्यों में ना लगकर स्वयं के पास संरक्षित रहेगा! और यदि बात शत्रु की करें तो सर्वप्रथम हमारे स्वयं के नकारात्मक विचार स्वयं के सबसे बडे‐ शत्रु हैं, पर्याप्त प्रकाश उनसे भी रक्षा प्रदान करेगा! विज्ञान यह स्पष्ट रूप से कहता है कि दिमाग को स्वस्थ्य रखने के लिए पर्याप्त ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है, समुख प्रज्जवलिता घी का दीपक वह प्रदान कर ही रहा है!
पुराने समय में गांवों में एक अलग तरह के दान की एक प्रथा हुआ करती थी! वह यह कि गांव की मुख्य पगडंडी अथवा सड़क पर बडे़ पेड़ के नीचे रात के समय भोजन एवं प्रकाश के लिए दीपक प्रज्जवलित कर दिया जाता था! इसका उददेश्य हुआ करता था कि रात्रि में दूसरे गांवों के जरूरतमंद राहगीर यहां रूककर खानपान एवं दीपक की रोशनी में आराम कर लें! आज बदलते समय में कई प्रकार के दान का क्रम शुरू हो गया है! मगर आज भी प्रकाश का दान श्रेष्ठ है और कल भी रहेगा! दूसरी ओर अपने आसपास की स्वच्छता, रंगरोगन एवं सजावट ना सिर्फ मानव-मन एवं आत्मा को प्रफुल्लित रखने में सहायक होगी, बल्कि यह देवताओं की भी प्रसन्नता का आधार बनेगी!
सूर्यदेव एक माह उपरांत, 16 नवंबर को तुला राशि का त्याग कर वृश्चिक राशि में आ गए! तब तक आत्मा एवं स्वास्थ्य की रक्षा एवं उत्थान के लिए हमें चाहिए कि हम अपने आसपास दीप का प्रज्जवलन, दीपदान एवं स्वच्छता सुनिश्चित करें! चूंकि मुख्य रूप से उपरोक्त कार्यों के निमित्त सूर्यदेव बनते हैं! उनके कमजोर स्थिति में होने पर, आप-हम यदि इस पुनीत कार्य में सहभागी बनेंगे, तो निश्चित रूप से यह तुला के सूर्य सहित स्वयं की भी सहायता का मार्ग प्रशस्त कर पायेंगे!
ज्योतिष आचार्य आशीष ममगाई,
संस्थापक सर्वसिद्धी ज्योतिष संस्थान,
नई दिल्ली