नयी दिल्ली, पांच फरवरी । सीबीआई ने आज दिल्ली उच्च न्यायालय को बताया कि राष्ट्रीय राजधानी के एक आश्रम में महिलाओं और लड़कियों को कथित रूप से कैद रखने वाले वीरेंद्र देव दीक्षित के खिलाफ लुक आउट सर्कुलर (एलओसी) जारी किया गया है।
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल और न्यायमूर्ति सी हरि शंकर ने पूछा था कि क्या दीक्षित अपने आश्रम और अपने खिलाफ दर्ज शिकायत पर चल रही जांच में शामिल हुआ या नहीं, जिसके बाद सीबीआई ने अदालत को उक्त जानकारी दी।
सुनवाई के दौरान, अदालत ने यह भी कहा कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग अधिनियम की परिभाषा के मुताबिक आश्रम विश्वविद्यालय नहीं है और लिहाजा यह अपने आप को विश्वविद्यालय के तौर पर पेश नहीं कर सकता है।attacknews.in
अदालत ने यह भी टिप्पणी की कि उत्तर दिल्ली के रोहिणी इलाके में स्थित आध्यात्मिक केंद्र को विश्वविद्यालय का कोई कानूनी दर्जा प्राप्त नहीं था। यह न तो पंजीकृत सोसाइटी है और न ही कंपनी कानून के तहत कारपोरेट संस्था है।
बहरहाल, पीठ ने आश्रम द्वारा विश्वविद्यालय का नाम इस्तेमाल करने पर रोक लगाने का आदेश नहीं दिया क्योंकि आश्रम के वकील ने कहा कि आदेश देने से पहले उन्हें सुना जाए।
वकील ने यह भी बताया कि आश्रम विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अधिकार क्षेत्र मे नहीं है क्योंकि इसे ईश्वर अपने अवतार के माध्यम से चला रहे हैं और ईश्वर खुद ही शिक्षा देते हैं।attacknews.in
अदालत इस मामले में अब आठ फरवरी को आगे सुनवाई करेगा।
पीठ एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें एक गैर सरकारी संगठन ने आरोप लगाया है कि रोहिणी में आध्यात्मिक विश्वविद्यालय में लड़कियों और महिलाओं को अवैध तरीके से कैद करके रखा गया था।
इससे पहले अदालत ने आश्रम के संस्थापक दीक्षित के आचरण को ‘बेहद संदिग्ध’ बताते हुए सीबीआई को उसके ठिकाने पर एक रिपोर्ट दायर करने के निर्देश दिए थे।attacknews.in
अदालत ने पूछा था कि अगर आश्रम ‘आध्यात्मिक’ स्थान है तो वहां लड़कियों और महिलाओं को ताले में बंद करके क्यों रखा गया था?
अदालत ने रोहिणी आश्रम और दिल्ली में इसकी अन्य शाखाओं को निरीक्षण करने के लिए एक पैनल नियुक्त किया था जिसमें दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल, वकील नंदिता राव और अजय शर्मा शामिल थे।attacknews.in