Home / राजनीति / पढ़िये- ये जो चर्चा में हैं: आजम खान का पिता कौन? रामपुर का नवाब या ताल्लुकेदार अरिमर्दन सिंह? अमर सिंह के साथ दुश्मनी और जयाप्रदा के साथ शुरू से ही हीन भावना का व्यवहार attacknews.in

पढ़िये- ये जो चर्चा में हैं: आजम खान का पिता कौन? रामपुर का नवाब या ताल्लुकेदार अरिमर्दन सिंह? अमर सिंह के साथ दुश्मनी और जयाप्रदा के साथ शुरू से ही हीन भावना का व्यवहार attacknews.in

यह जो तसब्बुर अली खान की रिपोर्ट सोशल मीडिया पर वायरल हुई है:

#किस्सा ऐ #आजम_खान

आजम खान का पिता मुमताज अली दरअसल मुस्लिम डोम/मिरासी जाति का था जो रामपुर के नवाब राजा वली खान बहादुर की घोडाबग्घी चलाते थे, एक दुर्घटना में उनकी मृत्यु होने के बाद परिवार पर दुखो का पहाड़ टूट पड़ा और आजम की माँ रुबिया को रामपुर नवाब के महल में ही रसोई सम्भालने के लिए पगार पर रख लिया गया।

रुबिया कम उम्र में ही विधवा हुई थी तो एक दिन नवाब रामपुर की नजर उसपर पड़ी और जल्द ही रुबिया की गिनती रामपुर नवाब की सबसे चहेती रखैल के रूप में होने लगी।

इसी बीच भारत विभाजन से एक वर्ष पूर्व आजम का जन्म हुआ और रुबिया ने नवाब पर उसे सार्वजनिक रूप से अपनाने का दबाव डाला,नवाब ने उसका स्कूल में दाखिला आजम खान नाम से तो करवा दिया पर बाप का नाम मुमताज लिखवाया!!

कुछ दिन बाद ही नवाब का मन रुबिया से भर गया था और उसने 1948 में उसे महल से बाहर निकाल दिया,
अब रुबिया फिर से बेसहारा हो गयी और उसे सहारा दिया अवध के मितानी ताल्लुक के एक अधेड़ राजपूत ताल्लुकेदार अरिमर्दन सिंह ने  जो नवाब रामपुर के मित्र थे और अक्सर रामपुर उनसे मिलने आते थे।
पर यहाँ भी रुबिया ज्यादा दिन टिक नही पायी और अरिमर्दन सिंह के परिवार ने लखनऊ के उस मकान से भी  रुबिया को बेदखल कर दिया जो उसे अरिमर्दन सिंह ने उपहार में दिया था।।

अब रुबिया अपने कम उम्र के बालक आजम को लेकर दर दर भटकने लगी, इसके बाद वो किस किसके साथ रही, इसकी किसी को जानकारी नही है, लेकिन आजम खान किसी तरह पढ़ लिख गया और लॉ करने के बाद सीधा राजनीती में आ गया और कट्टरपंथी इस्लाम की नाव पर सवार होकर राजनीती में आगे बढ़ता चला गया!!

आजम खान ने चाहे जितनी मर्जी तरक्की की हो किन्तु वो  बचपन में उसकी माँ और उसके साथ दुर्व्यवहार करने वाले रामपुर के नवाब और राजपूत ताल्लुकेदार को नही भूल पाया,

आज भी आजम खान उसी शिद्दत से सामन्तवाद, नवाब, ठाकुरो से जूनून की हद तक नफरत करता है और उसकी ये जहरीली सोच अक्सर उसके बयानों से पता चल जाती है।

सच कहें तो आजम खान को आज तक पता नही चल पाया कि उसका जैविक पिता दरअसल है कौन??
रामपुर का नवाब??
ताल्लुकेदार अरिमर्दन सिंह??
या उसकी माँ रुबिया का पहला पति मुमताज खान??

इस सवाल का जवाब सबसे बेहतर रुबिया दे सकती थी पर अफ़सोस ,उसके पूछने से पहले ही वो इस दुनिया से चल बसी!!!

आज भी रामपुर नवाब के महल के ठीक सामने तेलियों वाली गली में कंजर बस्ती में मुमताज खान और रुबिया का टूटा फूटा मकान मौजूद है जिसमे अब आजम का ड्राइवर शौकत कुरैशी रहता है।

आजम खान की आज की मनोदशा दरअसल उनके बदहाल बचपन के कारण है और वो आज भी उस दौर को भूल नही पाते हैं।

रामपुर से #तसब्बुरअलीखान की रिपोर्ट
21 नवंबर 2017 की पोस्ट

आजम खान और अमर सिंह की दुश्मनी की कहानी:

लखनऊ से यह भी रिपोर्ट हैं,आजम खान और अमर सिंह की अदावत जगजाहिर है, लेकिन इस अदावत की वजह क्या है? आजम और अमर क्यों एक दूसरे को पसंद नहीं करते? वो कौन सा कारण है जिसने इन दोनों के बीच दरार डाल दी? सवाल ये भी है कि क्या इस दुश्मनी की कीमत समाजवादी पार्टी को चुकानी पड़ी है?

अमर सिंह कोलकाता में पढ़े थे और वहीं बिजनेस कर रहे थे,यूपी की राजनीति में वो इत्तेफाक से आए थे,मुलायम सिंह के साथ उनकी जोड़ी जम गई और ऐसी जम गई कि संजय दत्त से लेकर अमिताभ बच्चन तक समाजवादी खेमे में नजर आने लगे थे,हालांकि राजब्बर के पार्टी छोड़ने की वजह अमर सिंह को माना जाता है।

दूसरी ओर आजम खान, रामपुर के नवाब परिवार के खिलाफ खड़े होने के लिए जाने जाते थे, नवाब परिवार उन्हें हमेशा इग्नोर करता रहा लेकिन आजम की ताकत बढ़ती गई. यूपी भर के मुसलमानों के बीच उनका कद और पहचान बहुत बढ़ गयी थी।समाजवादी पार्टी में वो नंबर दो पर थे और मुलायम के सबसे खास माने जाते थे।

सब कुछ ठीक ही चल रहा था। मुलायम, राष्ट्रीय राजनीति में कदम बढ़ा रहे थे और समाजवादी पार्टी के पास यूपी में कई कद्दावर नाम, चेहरे थे,रामगोपाल यादव पार्टी के लिए थिंक टैंक थे तो जमीनी स्तर पर शिवपाल पार्टी को संभालते थे,आजम खान मुसलमान नेता के रूप में पहचान बना रहे थे तो अमर सिंह मुश्किलों को साधने का काम कर रहे थे।

माना जाता है कि तेलुगूदेशम पार्टी की राज्यसभा सांसद रहीं जया प्रदा को रामपुर से लोकसभा चुनाव लड़ाने का फैसला आजम और अमर की अदावत की जड़ में है।दरअसल अमर सिंह ही जया प्रदा को समाजवादी पार्टी में लेकर आए थे।

आजम खान रामपुर से नवाब परिवार को लोकसभा चुनाव हराना चाहते थे. 2004 में पार्टी ने जया प्रदा को नूरबानो के खिलाफ चुनाव मैदान में उतारा. उस वक्त आजम और अमर की जोड़ी कमाल दिखा रही थी, आजम भी जया को जिताने के लिए जान लगा रहे थे. लेकिन इसी सबके बीच कुछ ऐसा हुआ जो अमर सिंह और आजम खान के बीच दरार पड़ गई।

जितने मुंह उतनी बातें, सच केवल आजम और अमर ही जानते हैं. नूरबानो ने असरानी और जीनत अमान से प्रचार भी कराया लेकिन जया प्रदा के लिए भीड़ ऐसी उमड़ी कि संभाले नहीं संभली. जया चुनाव जीत गई लेकिन आजम और अमर के बीच तलवारें खिंच गई थीं।

फिर एक दिन वो भी आया जब आजम खान को पार्टी से बाहर निकाल दिया गया।2009 के लोकसभा चुनाव में आजम खान के विरोध के बावजूद एक बार फिर जया प्रदा रामपुर से सांसद बनीं।  इसी चुनाव में रामपुर में कुछ पोस्टर भी लगे थे जिन्होंने आजम-अमर की दुश्मनी को बढ़ाने का काम किया था।

इस बीच समाजवादी पार्टी में कल्याण सिंह की एंट्री हो गई थी और मुसलमानों का पार्टी से मोहभंग होने लगा था।2009 के चुनाव के फौरन बाद मुलायम सिंह हालातों को समझ गए. इस चुनाव में पार्टी को 23 सीटें मिली थीं जबकि 2004 में पार्टी को 36 सीटें मिली थीं।

2010 में समाजवादी पार्टी में आजम खान की वापसी हो गई और उन्हें नेता विपक्ष भी बना दिया गया।साल 2010 में ही जया प्रदा को अमर सिंह के साथ पार्टी से निकाल दिया गया।इसके बाद अमर सिंह ने अपने लिए एक नया संगठन बना लिया था।

2011 में कैश फॉर वोट केस में अमर सिंह को जेल भी जाना पड़ा था. 2012 में उनके संगठन ने विधानसभा चुनाव लड़ा लेकिन जीत हासिल नहीं हुई।2014 में वो राष्ट्रीय लोक दल के बैनर तले लोकसभा चुनाव लड़े लेकिन जीत हासिल नहीं हो सकी।

2016 में समाजवादी पार्टी में अमर सिंह की वापसी भी हुई. ये वापसी आजम खान को पसंद नहीं आई।अमर सिंह को राज्यसभा भेज दिया गया, दूसरी ओर आजम खान की नाराजगी पार्टी में दिखाई देने लगी. 2017 का चुनाव सिर पर था और रामगोपाल और अखिलेश, अमर सिंह के खिलाफ दिखने लगे थे।

अखिलेश ने अमर सिंह को आखिर पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया।माना जाता है कि आजम खान और रामगोपाल भी इसी पक्ष में थे. इसके बाद से ही अमर सिंह की नजदीकियां बीजेपी से बढ़ने लगी थीं।वो भगवा कपड़ों में योगी आदित्यनाथ के शपथ ग्रहण मंच पर भी दिखे थे।

अखिलेश यादव ने कई बार सार्वजनिक मंचों से कहा भी है कि पिता-पुत्र के बीच संबंध खराब कराने की साजिश ‘अंकल’ की थी. आजम और अमर की इस दुश्मनी से सबसे ज्यादा नुकसान समाजवादी पार्टी को हुआ।अखिलेश और मुलायम के बीच जो हुआ उसे दुनिया ने देखा।आज आजम पार्टी में हैं और अमर सिंह पार्टी के बाहर. भविष्य में क्या होगा भला कौन जानता है।

आजम खान के विवादित बयान

● दादरी हत्याकांड पर विवादित बयान देते हुए कहा आज़म ने कहा था कि गो भक्त आज के बाद किसी भी होटल के मीनू में बीफ का दाम न लिखने दें। अगर ऐसा होता है तो सभी फाइव स्टार होटल को बाबरी मजजिद जैसे तोड़ दिया जाए।

●2013 में कारगिल युद्ध पर तीखा बयान देते हुए कहा था कि कारगिल पर फतह दिलाने वाले सेना के जवान हिंदू नहीं मुस्लिम थे। आजम के इस बयान को लेकर काफी विवाद हुआ था लेकिन आजम अपने बयान पर कायम रहे।

●आजम खान ने पीएम मोदी के एक बयान को लेकर विवादित बयान दिया था। उन्होंने कहा था कि कुत्ते के बच्चे के बड़े भाई हमें तुम्हारा गम नहीं चाहिए। दरअसल मोदी ने एक इंटरव्यू में एक विदेशी मैग्जीन के एक सवाल का जवाब देते हुए मोदी ने कहा था कि अगर उनकी कार के नीचे कुत्ते का बच्‍चा भी आ जाता है तो उन्‍हें दुख होता है। आजम खान ने इस बयान को मुस्‍लिमों से जोड़ा था।

●2014 के लोकसभा चुनाव में आजम ने भड़काऊ बयाने देते हुए बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह पर निशाना साधते हुए कहा था कि 302 का अपराधी गुंडा नंबर वन शाह यूपी में दशहत फैलाने आया है। बाद में जब इस बयान खूब हंगामा बरता तो आजम ने कहा कि क्या ऐसे अपराधी को भारत रत्न दिलवा दूं।

●आजम को तीखे बयानों की वजह से 2014 में चुनाव आयोग ने नोटिस भी थमा दिया था।आजम जोश में हमेशा ऐसी बातें कह जाते हैं जिसका कोई सिर पैर नहीं होता।

●बदांयू के एक कार्यक्रम में उन्होंने महिलाओं के बारे में कई आपत्तिजनक टिप्पणी की। उन्होंने कहा है कि गरीब घरों की महिलाएं यार के साथ नहीं जा सकती, लिहाजा ज्यादा बच्चे पैदा करती हैं।

पार्टी से 6 साल के लिए निकाले भी गए

2009 के 15वें लोकसभा चुनाव में सपा की उम्‍मीदवार जयाप्रदा के खिलाफ खड़े हुए और हार गए। इसके बाद सपा ने आजम खान को 6 साल के लिए पार्टी से निष्‍कासित कर दिया, लेकिन 4 दिसंबर 2010 को पार्टी ने उनका निष्‍कासन रद्द करते हुए उन्‍हें पार्टी में वापस बुला लिया। 2012 में अखिलेश यादव सरकार में वे कैबिनेट मंत्री बने।

दंगों में उछला नाम

2013 में मुजफ्फरनगर दंगों में आजम का नाम उछला, एक न्यूज चैनल के स्टिंग ऑपरेशन ने अखिलेश सरकार को कठघरे में खड़ा किया था, स्टिंग में सामने आया था कि पुलिस अफसर पर दबाव डालकर दंगा करने वाले दोषियों को जेल से छुड़वाया गया। स्टिंग ऑपरेशन के दौरान फुगाना थाने के एसएचओ ने कहा था कि सरकार से जुड़े किसी आजम खान नाम के व्यक्ति ने फोन कर कहा था कि जो हो रहा है, होने दो।

बिगड़े बोल, जुबान पर बंदिश जयाप्रदा पर पहले भी की:

आज जयाप्रदा बीजेपी उम्मीदवार के तौर पर आजम खान के खिलाफ रामपुर सीट से आमने- सामने हैं।

आजम खान ने जयाप्रदा को लेकर अपत्तिजनक टिप्पणी की तो चुनाव आयोग ने 72 घंटे तक उनके चुनाव प्रचार पर हर तरह की बंदिशें लगा दी ।

हालांकि रामपुर के सियासी और जातीय समीकरण ऐसी है जिसमें रामपुर की राजनीति में आजम खान पहली बार लोकसभा चुनाव मैदान में उतरे हैं।

आजम को टक्कर देने के लिए इस सीट से दो बार सांसद रहीं फिल्म अभिनेत्री जयाप्रदा बीजेपी प्रत्याशी के तौर पर मैदान में हैं. वहीं, कांग्रेस ने पार्टी के राष्ट्रीय सचिव और पूर्व विधायक संजय कपूर को उतारा है।1967 के बाद रामपुर में पहली बार है जब कांग्रेस ने रामपुर के ‘नवाब परिवार’ से बाहर के किसी शख्स को प्रत्याशी बनाया है.

उत्तर प्रदेश की रामपुर लोकसभा सीट ऐसी है, जहां मुस्लिम मतदाता बहुतायात में  हैं।2011 की जनगणना के मुताबिक रामपुर में 51 फीसदी मुस्लिम आबादी है. 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के नेपाल सिंह जीतने में तब कामयाब रहे थे, जब कांग्रेस ने नवाब काजिम अली खान को, सपा ने नासिर अहमद खान को और बसपा ने अकबर हुसैन को मैदान में उतारा था. तीनों पार्टियों से मुस्लिम उम्मीदवार के चलते मुस्लिम वोटों के बिखराव का फायदा बीजेपी प्रत्याशी को मिला , इसके बावजूद सपा उम्मीदवार को महज 23 हजार वोटों से हार मिली थी।

रामपुर सीट पर नवाब परिवार का दबदबा सालों से रहा है. कांग्रेस ने अब तक लगभग हर चुनाव में नवाब परिवार के ही किसी सदस्य को टिकट दिया है. यह पहली बार है कि रामपुर के इस रसूखवाले परिवार से किसी को टिकट न देकर कांग्रेस ने संजय कपूर पर दांव खेला है. ऐसे में प्रमुख राजनीतिक दलों के उम्मीदवारों को देखें तो आजम खान एकलौते मुस्लिम उम्मीदवार हैं. आजम खान को बसपा और आरएलडी का समर्थन हासिल है।

हालांकि जयाप्रदा 2009 के लोकसभा चुनाव में आजम खान के विरोध करने के बावजूद जीत दर्ज की थी. इसी तरह से आजम खान ने 10 साल पहले भी जयाप्रदा के लिए गलत बयानबाजी की थी. उस समय जया प्रदा ने आजम खान के बयान को लेकर मंच से रोईं थी. इसका उन्हें सियासी फायदा मिला था. सपा से होने के चलते मुस्लिम मतदाताओं ने आजम खान के मुखालफत के बावजूद वोट दिया था।

जयाप्रदा सपा के बजाय बीजेपी से उम्मीदवार के तौर पर मैदान में है. इतना ही नहीं रामपुर नवाब खानदान से कोई प्रत्याशी नहीं है।

सपा के मुस्लिम चेहरा माने जाने वाले आजम खान रामपुर विधानसभा सीट से 9 बार विधायक रह चुके हैं. इतना ही नहीं रामपुर की पांच विधानसभा सीटों में से तीन पर सपा का कब्जा है. इसके अलावा रामपुर के नवाब खान की सियासत इन दिनों हाशिये पर है।रामपुर के सियासी वारिस नवाब काजिम अली को आजम खान के बेटे रिकॉर्ड मतों से मात देकर विधायक चुने गए हैं. इसके बाद नवाब परिवार के किसी का लोकसभा चुनाव में नहीं उतरने से माहौल बदला हुआ है जिसका फायदा जयाप्रदा को हो सकता है ।

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