मुंबई, चार अक्टूबर । रिजर्व बैंक ने सूक्ष्म वित्त संस्थानों के लिये कर्ज देने की सीमा को पहले के एक लाख रुपये से बढ़ाकर शुक्रवार को 1.25 लाख रुपये कर दिया। यह कदम ग्रामीण और कस्बाई क्षेत्रों में कर्ज की उपलब्धता बेहतर बनाने के लिये उठाया गया है।
रिजर्व बैंक ने गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) या सूक्ष्म वित्त संस्थानों (एमएफआई) से कर्ज लेने वाले कर्जदारों के लिये घरेलू आय की पात्र सीमा को ग्रामीण क्षेत्रों के लिये पहले के एक लाख रुपये से बढ़ाकर 1.60 लाख रुपये और शहरी एवं कस्बाई क्षेत्रों के लिये 1.25 लाख रुपये से बढ़ाकर दो लाख रुपये कर दिया।
रिजर्व बैंक ने कहा कि इस बारे में जल्दी ही विस्तृत दिशानिर्देश जारी किये जाएंगे।
सूक्षम वित्त इकाइयों के मंच एमएफआईएन के अध्यक्ष मनोज नाम्बियार ने इस निर्णय का स्वागत करते हुए एक बयान में कहा कि ‘‘ यह अच्छा फैसला है परिवारों की आय में 2015 से हुए बदलाव को परिलक्षित करता है और इससे सूक्ष्म वित्त संस्थाओं के ग्राहक पहले से ज्यादा कर्ज ले सकेंगे।’’ उन्होंने कहा कि सूक्ष्म रिण संस्थाएं पांच करोड़ से अधिक लोगों की मदद कर वित्तीय समावेश को बढ़ाने में योगदान कर रही हैं।
उल्लेखनीय है कि रिजर्व बैंक ने 2010 में आंध्र प्रदेश के सूक्ष्म वित्त संकट के मद्देनजर वाई.एच.मालेगम की अध्यक्षता में एक उप-समिति का गठन किया था। उप-समिति को सूक्ष्म वित्त क्षेत्र के मुद्दों तथा चुनौतियों का अध्ययन करने की जिम्मेदारी दी गयी थी।
उप-समिति के सुझावों के आधार पर ही एनबीएफसी-एमएफआई की अलग श्रेणी गठित की गयी थी तथा दिसंबर 2011 में विस्तृत नियामकीय रूपरेखा जारी की गयी थी।
रिजर्व बैंक ने कहा कि वह भारतीय रुपये में विदेशी लेन-देन विशेषकर बाह्य वाणिज्यिक कर्ज, व्यापार ऋण तथा निर्यात एवं आयात को प्रोत्साहित करने के कदम उठा रहा है।
विदेशों में रुपये के बाजार के संबंध में रिजर्व बैंक ने उषा थोरट समिति की रिपोर्ट के सुझावों का अध्ययन किया और उनमें से कुछ सुझावों को स्वीकार कर लिया। इनमें घरेलू बैंकों को किसी भी समय अनिवासी भारतीयों को भारतीय खाते से बाहर घरेलू बिक्री टीम या विदेशी शाखाओं के जरिये विदेशी विनिमय की पेशकश करना शामिल है।
रिजर्व बैंक ने कहा कि समिति के अन्य सुझावों पर विचार किया जा रहा है और आने वाले समय में लिये जाने वाले निर्णयों की घोषणा की जाएगी।
आर्थिक वृद्धि दर 6.1 प्रतिशत रहने का आकलन-
भारतीय रिजर्व बैंक ने चालू वित्त वर्ष 2019- 20 के लिये आर्थिक वृद्धि दर का अनुमान शुक्रवार को घटाकर 6.1 प्रतिशत कर दिया। पहले यह 6.9 प्रतिशत रखा गया था। उसने उम्मीद जतायी है कि वर्ष की दूसरी छमाही में वृद्धि में सुधार होगा।
चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में आर्थिक वृद्धि दर के छह साल के निचले स्तर पांच प्रतिशत पर पहुंच जाने के बाद केंद्रीय बैंक का जीडीपी वृद्धि दर के बारे में यह ताजा अनुमान आया है। निजी क्षेत्र की खपत और निवेश में नरमी को इसकी प्रमुख वजह माना जा रहा है।
आर्थिक वृद्धि को गति देने के लिए सरकार ने कई प्रोत्साहन उपाय किए हैं। इनमें कारपोरेट कर में 10 प्रतिशत तक की भारी कटौती जैसे प्रावधान शामिल हैं। इसके अलावा सरकार ने बैंकों में पूंजी डालने की भी घोषणा की है।
चालू वित्त वर्ष की चौथी द्विमासिक मौद्रिक नीति की घोषणा शुक्रवार को की गयी। इसमें केंद्रीय बैंक ने कहा है कि सरकार के प्रोत्साहन उपायों, नीतिगत दरों में कटौती और अनुकूल बुनियादी कारकों के चलते हर तिमाही में आर्थिक वृद्धि की रफ्तार सुधरेगी।
रिजर्व बैंक ने 2020-21 में देश की आर्थिक वृद्धि दर के सात प्रतिशत पर वापस लौटने का अनुमान जताया है। हालांकि, केंद्रीय बैंक ने कहा कि निकट अवधि में अर्थव्यवस्था का सफर ‘कई जोखिमों से भरा’ है।
वृद्धि अनुमान में इस बड़ी कटौती की वजह बताते हुए रिजर्व बैंक ने कहा कि निजी क्षेत्र की खपत और निवेश उम्मीद के मुताबिक नहीं बढ़ सकी। वहीं वैश्विक व्यापार में नरमी के दबाव से निर्यात की रफ्तार खो गयी।
मौद्रिक नीति के अनुसार, ‘‘ आधारभूत आकलनों, सर्वेक्षण के संकेतकों, बुनियादी कारकों और फरवरी से रेपो दर में की जा रही कटौती को ध्यान में रखते हुए 2019-20 में जीडीपी की वास्तविक वृद्धि दर 6.1 प्रतिशत रहने का अनुमान है। जोखिमों का समान रूप से संतुलन करने के साथ यह दूसरी तिमाही में 5.3 प्रतिशत, तीसरी में 6.6 प्रतिशत और चौथी तिमाही में 7.2 प्रतिशत रह सकती है।’’
रपट में कहा गया है कि व्यापार तनाव बढ़ने, नो-डील ब्रेक्जिट समझौता नहीं होने और वैश्विक वित्तीय बाजार में अस्थिरता बढ़ने से बुनियादी विकास के रास्ते में जोखिम बना है।
हालांकि, अगस्त-सितंबर में निवेश और वृद्धि बढाने के सरकार के उपायों, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश नीति में सुधार सरकारी बैंकों में पूंजी डालने और सरकारी बैंकों के विलय से जीडीपी वृद्धि दर की रफ्तार बढ़ाई जा सकती है।
इसके अलावा निर्यात और रीयल एस्टेट को प्रोत्साहन, कारपोरेट आयकर की दर में कमी, दबाव वाली परिसंपत्तियों के तेजी से समाधान और रेपो दर में कटौती का लाभ तेजी से नीचे तक पहुंचाने से वृद्धि बढ़ाने में मदद मिलेगी।
रिजर्व बैंक द्वारा पेशेवर आकलनकर्ताओं के बीच कराए गए छमाही सर्वेक्षण में भी जीडीपी वृद्धि दर अनुमान 6.1 प्रतिशत पर रहा। 2020-21 के लिए यह सात प्रतिशत तक पहुंचा है। यह केंद्रीय बैंक के स्वयं के अनुमान के मुताबिक है।
रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने बार-बार कहा है कि जब भी गुंजाइश होगी केंद्रीय बैंक वृद्धि संबंधी चिंताओं को दूर करने और अर्थव्यवस्था को उबारने में मदद करता रहेगा।