अयाेध्या 16 अक्टूबर ।उत्तर प्रदेश की पौराणिक नगरी अयोध्या में रामजन्मभूमि विवाद ने यूं तो 18वीं शताब्दी में ही जन्म ले लिया था लेकिन छह दिसम्बर 1992 को बाबरी विध्वंस के बाद देश भर में भड़के सांप्रदायिक दंगों ने यहां की गंगा जमुनी संस्कृति पर गहरा आघात किया जिससे आहत अमन पसंद अयोध्या पिछले करीब तीन दशकों से विवाद के खत्म होने की राह तक रही है।
उच्चतम न्यायालय में बुधवार को रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद की सुनवाई पूरी हो गई। पिछली छह अगस्त को शुरू हुयी अंतिम सुनवाई 40 दिनो तक चली। इस दौरान हिंदू पक्ष की ओर से निर्मोही अखाड़ा, हिंदू महासभा, रामजन्मभूमि न्यास की ओर से दलीलें रखी गईं तो वहीं मुस्लिम पक्ष की तरफ से अधिवक्ता राजीव धवन ने अपनी दलीलें रखीं। अदालत ने इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है और एक माह के भीतर इस मामले में ऐतिहासिक फैसला आने की उम्मीद है जिसे फिलहाल दोनो पक्षों ने स्वीकार करने का भरोसा दिलाया है।
अतीत में झांके तो इतिहासकारों के मुताबिक 1853 में हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच इस जमीन को लेकर पहली बार विवाद हुआ था हालांकि सात समंदर पार से देश को गुलामी की जंजीरों में जकड़ने आये अंग्रेजो ने 1859 में पूजा और नमाज के लिए मुसलमानों को अन्दर का हिस्सा और हिन्दुओं को बाहर का हिस्सा उपयोग में लाने को कहा। वर्ष 1949 में अन्दर के हिस्से में भगवान राम की मूर्ति रखी गई जबकि तनाव को बढ़ता देख सरकार ने इसके गेट में ताला लगा दिया।
30 अक्टूबर 1990 को तत्कालीन मुलायम सिंह यादव सरकार के शासनकाल में हजारों रामभक्तों ने अयोध्या में प्रवेश किया और विवादित ढांचे के ऊपर भगवा ध्वज फहरा दिया जबकि दो नवम्बर, 1990 को कारसेवकों पर गोली चलायी गयी जिसमें कोलकाता के कोठारी बंधुओ समेत कई कारसेवक मारे गये। गोलीकांड के विरोध में चार अप्रैल, 1991 को दिल्ली के वोट क्लब पर अभूतपूर्व रैली हुई जिसके चलते श्री मुलायम सिंह यादव को इस्तीफा देना पड़ा।
निचली अदालतों से लेकर उच्चतम न्यायालय तक पहुंचे इस मामले की सुनवाई के बीच इस विवाद के स्थायी समाधान का रास्ता सुलह समझौते से कराने की कई बार कोशिश की गयी लेकिन परिणाम नहीं निकल सका। जनवरी 2002 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने कार्यालय में एक अयोध्या विभाग शुरू किया, जिसका काम विवाद को सुलझाने के लिए हिंदुओं और मुसलमानों से बातचीत करना था। अयोध्या विवाद सुलझाने के लिए प्रधानमंत्री वाजपेयी ने अयोध्या समिति का गठन किया।
वरिष्ठ अधिकारी शत्रुघ्न सिंह को हिन्दू और मुसलमान नेताओं के साथ बातचीत के लिए नियुक्त किया गया लेकिन 27 फरवरी 2002 को गुजरात के गोधरा में बाबरी विध्वंश के प्रतिरोध स्वरूप 59 कारसेवकों को आग में जलाकर मार दिया गया। जिस वक्त ये हादसा हुआ, श्री नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे। गोधरा की घटना के बाद गुजरात सांप्रदायिक दंगो की आग में झुलस उठा। इन दंगों में एक हजार से अधिक लोगों की जाने गयी।
न्यायालय का फैसला सर माथे पर लेने को तैयार राम की नगरी
अयोध्या में विवादित रामजन्मभूमि विवाद मामले की सुनवाई उच्चतम न्यायालय में पूरी होने पर संतोष व्यक्त करते हुये हिन्दू और मुस्लिम समाज ने बुधवार को एक सुर में कहा कि उन्हे न्यायालय का फैसला सर्वसम्मति से मान्य होगा।
श्रीरामजन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष एवं मणिरामदास छावनी के महंत नृत्यगोपाल दास ने कहा कि मंदिर-मस्जिद के विवाद की उच्चतम न्यायालय में सुनवाई आज पूरी हो गयी है। अब केवल फैसला आना है। देश की जनता को इस फैसले का सम्मान करना चाहिये।
विवादित श्रीरामजन्मभूमि पर विराजमान रामलला के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येन्द्र दास ने कहा कि यह बड़ी खुशी की बात है कि उच्चतम न्यायालय में चल रही सुनवाई आज पूरी हो गयी है और अब देश भर के करोड़ों रामभक्तों को अदालत के फैसले का इंतजार है। जहां तक अयोध्या का सवाल है तो यह नगरी पहले भी शांत थी और आगे भी रहेगी क्योंकि सौहार्द का जो फूल यहां से जाता है वह पूरे देश में महकता है।
इस मामले में बाबरी मस्जिद के मुद्दई इकबाल अंसारी ने कहा “ अयोध्या विवाद की सुनवाई पूरे होने पर आज मैं बड़ा सुकून महसूस कर रहा है। अब वह दिन दूर नहीं है जब देश की जनता सर्वोच्च न्यायालय का फैसला सुनने के बाद दोनों पक्षकार मानेंगे। हम तो बराबर अपने बयान में यह कहा करते हैं कि सुप्रीम कोर्ट का जो फैसला होगा उसको मुस्लिम समाज तो मानेगा ही इसको हिन्दू समाज को भी मानना चाहिये। अयोध्या आज भी अमन-चैन का संदेश देती है और आने वाले समय में भी अमन चैन रहेगा।”
यहां के हिन्दू हो या मुस्लिम धर्म मजहब, सम्प्रदाय से ऊपर उठकर एक बार फिर वह अमन-चैन की वैसी ही जिंदगी जीना चाहते हैं जैसा वर्षों पहले यहा हुआ करती थी। वे एक बार फिर दुनिया को बताना चाहते हैं कि इस मुद्दे ने भले ही लोगों के मन में एक खाईं बना दी हो लेकिन अयोध्यावासियों के दिल में कोई ऐसी बात नहीं है।
अयोध्या निवासी रईस का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट में मंदिर-मस्जिद की सुनवाई पूरी होने से मुस्लिम समाज बहुत खुश नजर आ रहा है क्योंकि हिन्दू और मुसलमान के आपसी प्रेम और भाईचारे का अनूठा उदाहरण यहां पर हमेशा रहा है। उन्होंने कहा “ मेरी दिली इच्छा है कि इस मसले का जल्द से जल्द हल निकल जाय और यहां के लोग पूर्ववत: अपनी जिंदगी जी सकें।”