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नेपाल का संकट नहीं सुलझा:ओली फिर से प्रधानमंत्री नियुक्त: सरकार गठन की समयसीमा खत्म होने के बाद भी, अगर-मगर में उलझे राजनीतिक दल attacknews.in

काठमांडू 13 मई । नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली, जो 10 मई को संसद में पेश विश्वास मत हार चुके थे, को फिर से देश का प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया है क्योंकि विपक्षी पार्टियां सरकार के गठन के लिए आवश्यक बहुमत वोट जुटाने में विफल रहीं।

श्री ओली को गुरुवार को फिर से प्रधानमंत्री नियुक्त कर दिया गया क्योंकि वह सदन में सबसे बड़ी पार्टी के नेता हैं।

स्थानीय मीडिया के मुताबिक नेपाल की राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने बहुमत की सरकार के गठन के लिए संसदीय पार्टियों को तीन दिनों का समय दिया था। सुश्री भंडारी ने एक बयान में कहा कि सरकार के गठन के लिए अभीतक कोई भी पार्टी या गठबंधन आगे नहीं आया है।

अब श्री ओली को 30 दिनों के भीतर फिर से संसद में विश्वास मत हासिल करना होगा।

इससे पहले श्री ओली सोमवार को संसद के निचले सदन प्रतिनिधि सभा में पेश विश्वास प्रस्ताव हार गये। संसद में बहुमत परीक्षण के दौरान श्री ओली के पक्ष में सिर्फ 93 वोट पड़े। वहीं 124 सदस्यों ने उनके विरोध में मत किया। श्री ओली को विश्वास प्रस्ताव जीतने के लिए 136 मत चाहिए थे।

नेपाल में 271 सदस्यीय संसद में 232 सदस्य हैं। जो लोग मतदान नहीं कर सके या उपस्थित नहीं थे, उनमें कम्युनिस्ट पार्टी के 28 बागी सदस्य भी शामिल हैं। नेपाल में 2015 में संवैधानिक तरीके से चुनी गई पहली सरकार का यह पहला विश्वास प्रस्ताव था। इसमें ओली असफल रहे।

श्री ओली की पार्टी के माधव नेपाल-झाला नाथ खनाल गुट के सांसद को सीपीएन-यूएम ने रोक दिया।

नेपाली कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (माओवादी केंद्र) के क्रमशः 61 और 49 वोट हैं। दोनों ने विश्वास प्रस्ताव के दौरान श्री ओली के खिलाफ मतदान किया।

नेपाल में सरकार गठन की समयसीमा खत्म होने के बाद भी अगर-मगर में उलझे राजनीतिक दल

नेपाल में प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के सोमवार को विश्वास मत खोने के बाद राष्ट्रपति ने बृहस्पतिवार रात तक सरकार गठन की समयसीमा तय की थी, लेकिन नेपाल के राजनीतिक दल अपने धड़ों के बीच गुटबाजी के चलते अभी तक इस मामले पर कोई सहमति कायम नहीं कर पाए ।

शेर बहादुर देउबा के नेतृत्व वाली नेपाली कांग्रेस ने मंगलवार को प्रधानमंत्री पद के लिये दावा पेश करने का निर्णय लिया था, लेकिन गठबंधन सरकार बनाने की उसकी कोशिशों को तब झटका लगा जब महंत ठाकुर की अगुवाई वाली जनता समाजवादी पार्टी-नेपाल (जेएसपी-एन) के एक वर्ग ने साफ कर दिया कि वह सरकार गठन की प्रक्रिया में हिस्सा नहीं लेगा।

ठाकुर के नेतृत्व वाले धड़े के प्रतिनिधि सभा में करीब 16 मत हैं।

नेपाली कांग्रेस के पास 61 मत हैं। उसे नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी मध्य) का समर्थन हासिल है, जिसके पास 49 मत हैं।

कांग्रेस-माओवादी मध्य के गठबंधन को उपेन्द्र यादव नीत जनता समाजवादी पार्टी के करीब 15 सांसदों का भी समर्थन हासिल है। लेकिन इन तीनों दलों के पास कुल 125 मत हैं जो 271 सदस्यीय सदन में बहुमत के आंकड़े 136 से 11 मत कम हैं।

सरकार गठन के लिये दी गई समयसीमा बृहस्पितवार रात को खत्म हो गई, ऐसे में राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने विपक्षी दलों से बहुमत की ओर बढ़ रहे गठबंधन का समर्थन करने की अपील की ।

सीपीएन-यूएमएल के माधव कुमार नेपाल-झालानाथ खनल धड़े से संबंध रखने वाले सांसद भीम बहादुर रावल ने गतिरोध खत्म करने के लिये मंगलवार को दोनों नेताओं के करीबी सांसदों से नयी सरकार का गठन करने के लिये संसद सदस्यता से इस्तीफा देने का आग्रह किया।

रावल ने बुधवार को ट्वीट किया कि ओली नीत सरकार को गिराने के लिये उन्हें संसद सदस्यता से इस्तीफा देना चाहिये।

उन्होंने लिखा, ‘असाधारण समस्याओं के समाधान के लिये असाधारण कदम उठाए जाने की जरूरत होती है। प्रधानमंत्री ओली को राष्ट्रीय हितों के खिलाफ अतिरिक्त कदम उठाने से रोकने के लिये उनकी सरकार गिराना जरूरी है। इसके लिये हमें संसद की सदस्यता से इस्तीफा देना चाहिये। राजनीतिक नैतिकता और कानूनी सिद्धांतों के लिहाज से ऐसा करना उचित है। ‘

यदि नेपाल-खनल धड़े के यूएमएल के 28 सांसद एक साथ संसद की सदस्यता से इस्तीफा दे देते हैं तो नेपाली कांग्रेस और सीपीएन-माओवाद मध्य के लिये जनता समाजवादी पार्टी-नेपाल (जेएसपी-एन) के एक धड़े के सांसदों का समर्थन लिये बिना भी नयी सरकार के गठन की राह आसान हो जाएगी।

यदि यूएमएल के 28 सांसद सामूहिक रूप से इस्तीफा दे देते हैं तो 271 सदस्यों वाली प्रतिनिधि सभा में सांसदों की संख्या घटकर 243 रह जाएगी, जिसके बाद बहुमत का आंकड़ा भी कम हो जाएगा और नेपाली कांग्रेस तथा सीपीएन-माओवाद मध्य गठबंधन आसानी से सरकार गठन कर सकता है।

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