भोपाल 5 मार्च। बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने मध्य प्रदेश में बीजेपी टॉप लीडर्स को एक बंद कमरा मीटिंग में जोश भरते हुए कहा था कि दुनिया में जीत का कोई विकल्प नहीं है. उन्होंने मणिपुर की केस स्टडी बताते हुए कहा था की वहां पर बीजेपी ने किस तरह रिकॉर्ड समय में ढाई पर्सेंट वोट बैंक को अड़तीस पर्सेंट तक पहुंचाया. पर लगता है अमित शाह का ये सबक बीजेपी संगठन के लिए इतना असरदार नहीं रहा. वरना रविवार को भोपाल में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को ये नहीं कहना पड़ता कि उन्हें मुंगावली- कोलारस हारने की कसक है.
शिवराज ही सीएम और शिवराज ही संगठन
दरअसल त्रिपुरा जीतने वाली बीजेपी का संगठन मध्य प्रदेश में कमजोर हुआ है. सिर्फ चार साल में चालीस पर्सेंट वोट बैंक हासिल कर त्रिपुरा में करिश्मा करने वाली बीजेपी मध्य प्रदेश के मुंगावली- कोलारस के उपचुनाव में सिर्फ दस और तेरह पर्सेंट वोट ही बढ़ा पाई है. इस हार को लेकर अब संघ और पार्टी हाईकमान में चिंतन शुरू हो गया है क्योंकि ये लड़ाई सिर्फ सिंधिया के खिलाफ नहीं बल्कि कांग्रेस का मनोबल को तोड़ने के लिए भी लड़ी जा रही थी.
पार्टी के सीनियर लीडर मानते हैं कि मुंगावली और कोलारस ने साफ़ कर दिया है कि मध्य प्रदेश में सत्ता भारी और संगठन कमजोर हो रहा है. संगठन कार्यकर्ता से ज्यादा सत्ता के भरोसे हो गया है.
शिवराज ही सीएम और शिवराज ही संगठन दिखाई दे रहे हैं. बीजेपी अध्यक्ष नंदकुमार सिंह की भूमिका पर सवाल उठने लगे हैं. शिवराज और नंदकुमार का एक साथ होना और बीजेपी के संगठन महामंत्री सुहास भगत का अलग- थलग दिखाई पड़ना पार्टी कार्यकर्ताओं में असंतोष पैदा कर रहा है.
हार ने बीजेपी वर्कर को जैसे हारने की आदत डाल दी
पार्टी के सीनियर पदाधिकारी का कहना है कि बीजेपी अपने कैडर और कार्यकर्ता के दम पर चलती है. और एक प्रभावशाली संगठन यानी समानांतर सत्ता उसकी ताकत है. सत्ता हमेशा दो ध्रुवों में बंटी रही. अब वैसे हालात नहीं है. भगत अपनी प्रभावी भूमिका में दिखाई नहीं दे रहे. कार्यकर्ताओ का असंतोष सिर चढ़कर बोल रहा है.
अटेर, चित्रकूट, मुंगावली, कोलरस की हार ने बीजेपी वर्कर को जैसे हारने की आदत डाल दी है. जो कि अगले चुनाव में भारी पड़ सकती है. इतना ही नहीं अब प्रदेश में बागियों की ताकत भी दिखने लगी है. हाल ही में हुए नगर पालिका चुनाव में कई बागियों ने मैदान संभाला जिसका सीधा फायदा कांग्रेस के खाते में गया.
सिंधिया ने संघ शैली में चुनाव लड़ा
एक सीनियर लीडर मानते हैं कि मुंगावली कोलारस में सरकारी मशीनरी ज्यादा प्रभावी दिखी जिसके चलते फर्जी वोटर लिस्ट मामले में कलेक्टर तक को बदलना पड़ा. बीजेपी जहां चुनाव में सत्ता और सरकारी मशीनरी के भरोसे दिखाई दे रही थी, वहीं सिंधिया अपना चुनाव संघ की शैली में लड़ते दिखाई दिए. उनकी पन्ना कमेटियों का ही कमाल है कि उनके कार्यकर्ताओं ने घर-घर जाकर वोटर लिस्ट चेक की और फर्जी वोटर्स को बाहर किया और कलेक्टर समेत कई अधिकारियों की छुट्टी करवाई.
बदलाव के संकेत
बीजेपी के वरिष्ठ नेता मानते हैं कि आज भी पार्टी के सबसे बड़े और लोकप्रिय नेता तो शिवराज ही हैं. पार्टी अध्यक्ष अमित शाह स्पष्ट कर चुके हैं कि अगला चुनाव भी शिवराज के नेतृत्व में होगा. इसलिए जो भी बदलाव है वो संगठन के स्तर पर होगा. चुनाव में सिर्फ आठ महीने हैं. इसे देखते हुए प्रभावी नेताओं की ताजपोशी की संभावना है
बीजेपी के प्रदेश प्रभारी विनय सहस्त्रबुद्धे केंद्र में बड़ी भूमिका में आ गए हैं जिसके चलते किसी अन्य प्रभारी की नियुक्ति की कवायद जारी है.
पार्टी हलकों में माना जा रहा है कि पिछले 15 साल से चुनाव में चाणक्य की भूमिका निभाने वाले दिवंगत नेता अनिल दवे की कमी इस बार खलने वाली है. वे चुनाव के रणनीतिक कौशल माने जाते थे. इन तमाम हालातों को देखते हुए बीजेपी में किसी बड़े बदलाव की संभावना दिखाई दे रही है.
2018 में परिणाम बदल देंगे
बीजेपी के पूर्व संगठन महामंत्री कृष्णा मुरारी मोघे मानते है कि मुंगावली और कोलारस अटेर या फिर चित्रकूट से बीजेपी के ग्राफ का आकलन नहीं किया जा सकता. ये सभी कांग्रेस के गढ़ वाली सीटें है. और हमने वहां अपना वोट प्रतिशत बढ़ाया है. 2018 के चुनाव में हम परिणाम बदल देंगे.attacknews.in