भोपाल, 10 मार्च ।भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेताओं के एक प्रतिनिधिमंडल ने आज यहां विधानसभा अध्यक्ष एन पी प्रजापति के निवास पर पहुंचकर बंगलूर में डेरा जमाए कांग्रेस के 19 विधायकों के त्यागपत्र (हार्डकॉपी)सौंपे।
पूर्व गृह मंत्री भूपेंद्र सिंह बंगलूर से ये 19 त्यागपत्र लेकर विमान से भोपाल पहुंचे। इसके बाद श्री सिंह, विधानसभा में विपक्ष के नेता गोपाल भार्गव, पूर्व विधानसभा अध्यक्ष डॉ सीतासरन शर्मा, पूर्व मंत्री डॉ नरोत्तम मिश्रा के अलावा अनेक भाजपा विधायक पैदल मार्च करते हुए अध्यक्ष के निवास पर पहुंचे।
पूर्व गृह मंत्री ने मीडिया की मौजूदगी में अध्यक्ष को 19 विधायकों के नाम पढ़कर सुनाए और त्यागपत्रों की हॉर्डकॉपी सौंपी।
श्री सिंह ने अध्यक्ष से कहा कि विधायकों ने आज दोपहर 12 से दो बजे के बीच त्यागपत्र ईमेल से आपको भेजे हैं। उनकी हॉर्डकॉपी वे स्वयं आपको सौंप रहे हैं।
श्री सिंह ने अध्यक्ष को बताया कि 19 विधायकों ने बंगलूर से त्यागपत्र भेजे हैं। कुछ और कांग्रेस विधायकों ने भी आपको त्यागपत्र भेजे हैं।
श्री सिंह ने दावा करते हुए कहा कि कल तक कांग्रेस के त्यागपत्र देने वाले विधायकों की संख्या बढ़कर तीस तक हो सकती है।
उन्होंने कहा कि बसपा और सपा के विधायक भी भाजपा के साथ हैं। श्री सिंह ने कहा कि इन हालातों में राज्य की कांग्रेस सरकार अल्पमत में आ गयी है।
उन्होंने अध्यक्ष से विधायकों के त्यागपत्र स्वीकार करने का आग्रह भी किया।
त्यागपत्र लेने के बाद अध्यक्ष श्री प्रजापति ने कहा कि उन्हें त्यागपत्र दिए गए हैं। वे अभी तक सब सुन रहे थे।
श्री प्रजापति ने कहा कि वे स्थापित नियम कानूनों के तहत आवश्यक कार्रवाई करेंगे। इसके साथ ही अध्यक्ष अपने कक्ष में अंदर चले गए।
श्री सिंह ने बताया कि श्री गोविंद सिंह, तुलसी सिलावट, हरदीप सिंह डंग, जसपाल सिंह जज्जी, राजवर्धन सिंह दत्तीगांव, ओपीएस भदौरिया, मुन्नालाल गोयल, प्रद्युम्न सिंह तोमर, जसवंत जाटव, कमलेश जाटव, बृजेंद्र सिंह यादव, सुरेश धाकड़, महेंद्र सिंह सिसोदिया, प्रभुराम चौधरी, श्रीमती इमरती देवी, गिर्राज डंडोतिया, श्रीमती रक्षा संतराम, रघुराज कंसाना और रणवीर जाटव ने त्यागपत्र दिए हैं।
इसके अलावा कांग्रेस विधायक बिसाहूलाल सिंह, ऐदल सिंह कंसाना और मनोज चौधरी भी अपना त्यागपत्र अध्यक्ष को भेज चुके हैं।
कांग्रेस विधायक कंसाना और चौधरी ने दिया त्यागपत्र:
मध्यप्रदेश में अभूतपूर्व संकट झेल रही लगभग सवा साल पुरानी कमलनाथ सरकार का संकट और बढ़ता जा रहा है। एक और कांग्रेस विधायक ऐदल सिंह कंसाना और मनोज चौधरी के त्यागपत्र देने के साथ ऐसा करने वाले विधायकों की संख्या बढ़कर 22 हो गयी है।
मुरैना जिले के सुमावली से विधायक श्री कंसाना ने अपने पद से त्यागपत्र विधानसभा सचिवालय भेज दिया है। माना जा रहा है कि वे भी शीघ्र भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में शामिल हो जाएंगे। इसके पहले वरिष्ठ आदिवासी नेता एवं अनूपपुर से विधायक बिसाहूलाल सिंह ने भी त्यागपत्र देकर भाजपा का दामन अौपचारिक तौर पर थाम लिया है।
वहीं बंगलूर में डटे 19 कांग्रेस विधायक अपना त्यागपत्र ईमेल से विधानसभा सचिवालय को भेज चुके । इनमें लगभग पांच मंत्री भी शामिल हैं। ये सभी ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थक हैं। कुछ वीडियो भी जारी हुए हैं, जिसमें ये 19 विधायक बंगलूर में किसी होटल में दिखायी दे रहे हैं और मध्यप्रदेश के कुछ भाजपा नेता भी उनके साथ हैं।
अब सभी की निगाहें यहां मुख्यमंत्री निवास पर होने वाली विधायक दल की बैठक पर लगी हुयी है। कांग्रेस विधायक मुख्यमंत्री निवास पहुंच गए हैं। इसके बाद शाम सात बजे भाजपा विधायक दल की बैठक भी प्रदेश भाजपा कार्यालय में हैं ।
भाजपा के वरिष्ठ नेता राज्य में सरकार बनाने की बात औपचारिक तौर पर भले ही नहीं कर रहे हैं, लेकिन अंदर ही अंदर इस दल ने अपनी सरकार बनाने के लिए ठोस रणनीति तैयार की है, जो अब सतह पर दिखायी देने लगी है।
दो सौ तीस सदस्यीय विधानसभा में आगर और जौरा विधानसभा सीट रिक्त हैं। शेष 228 सीटों में से कांग्रेस के 114, भाजपा के 107, बसपा के दो, सपा का एक और चार निर्दलीय विधायक हैं। कांग्रेस के 22 विधायकों के त्यागपत्र स्वीकार हो जाने की स्थिति में कांग्रेस के सदस्यों की संख्या 92 रह सकती है। हालाकि माना जा रहा है कि अभी कांग्रेस के और विधायकों के भी त्यागपत्र होंगे।
मध्यप्रदेश में नवंबर दिसंबर 2018 के विधानसभा चुनाव के बाद पंद्रह सालों बाद कांग्रेस सत्ता में काबिज हुयी थी और श्री कमलनाथ ने मुख्यमंत्री के रूप में 17 दिसंबर 2018 को शपथ ग्रहण की थी। कांग्रेस ने यह विधानसभा चुनाव श्री कमलनाथ और श्री ज्योतरादित्य सिंधिया का चेहरा आगे रखकर लड़ा था। तत्कालीन परिस्थितियों में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की कमान संभालने वाले श्री कमलनाथ की मुख्यमंत्री के रूप में ताजपोशी केंद्रीय नेतृत्व के हस्तक्षेप के बाद हुयी थी। इसके बाद अनेक बार श्री सिंधिया को प्रदेश अध्यक्ष बनाने की भी मांग उठी, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया।