भोपाल, 24 मई । लंबे समय से भारतीय जनता पार्टी का गढ़ रहे देश के चुनिंदा राज्यों में से एक, मध्यप्रदेश में कांग्रेस ने भले ही पांच महीने पहले अपना परचम फहरा कर भाजपा को आत्ममंथन पर मजबूर कर दिया हो, लेकिन लोकसभा चुनाव में कुल 29 में से 28 सीटों पर बंपर जीत के साथ पार्टी ने एक बार फिर कांग्रेस के कई दिग्गज नेताओं का भी दम निकाल दिया है।
राज्य की एकमात्र छिंदवाड़ा सीट कांग्रेस के खाते में गई है, लेकिन वहां भी पार्टी प्रत्याशी और मुख्यमंत्री कमलनाथ के बेटे नकुलनाथ का जीत का अंतर सिमट कर मात्र करीब 37 हजार मतों का रह गया है। इसी सीट से पिछली बार स्वयं मुख्यमंत्री कमलनाथ ने करीब सवा लाख मतों से जीत हासिल की थी। ये सीट कांग्रेस की परंपरागत गढ़ मानी जाती है।
‘मोदी लहर’ की बदौलत राज्य में इस बार कई ऐसे प्रत्याशियों की भी नैया पार हो गई है, जिन्हें प्रत्याशी घोषित किए जाने के बाद न केवल क्षेत्र की जनता का, बल्कि कार्यकर्ताओं का भी विरोध झेलना पड़़ा था। वहीं पार्टी के बिल्कुल नए 15 चेहरों ने भी इसी लहर के चलते भारी अंतर से अपने नजदीकी प्रतिद्वंद्वियों पर जीत हासिल की है।
राज्य में जिन दिग्गजों की हार बिल्कुल अप्रत्याशित रही, उसमें पहला नाम कांग्रेस महासचिव ज्योतिरादित्य सिंधिया का रहा। श्री सिंधिया को एक समय में उनके ही समर्थक रहे के पी यादव ने करीब एक लाख 20 हजार मतों से शिकस्त दी है। सिंधिया परिवार का गढ़ रही गुना-शिवपुरी सीट का इतिहास रहा है कि यहां से सिंधिया परिवार के सदस्यों को सदैव जीत हासिल होती है, लेकिन इस बार ये धारणा भी टूट गई।
कांग्रेस के राष्ट्रीय स्तर के कद्दावर नेता और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह भी लंबे समय तक कानूनी प्रक्रिया का सामना कर चुकीं प्रज्ञा सिंह ठाकुर के समक्ष जीत नहीं हासिल कर पाए।
भोपाल सीट अपने दोनों प्रत्याशियों की बदौलत ‘हिंदुत्व की प्रयोगशाला’ के तौर पर देश भर में प्रचारित हो गई थी, लेकिन एक समय कथित तौर पर हिंदुत्व विरोधी रहे श्री सिंह हिंदू धर्म से जुड़े तमाम उपायों के बाद भी जीत नहीं हासिल कर पाए। श्री सिंह के लिए कंप्यूटर बाबा ने न केवल धूनी रमाई, बल्कि सैकड़ों साधु-संतों ने भोपाल में डेरा भी डाला, लेकिन सुश्री ठाकुर की करीब तीन लाख 64 हजार से भी ज्यादा मतों से जीत ने भोपाल की जनता का रुख स्पष्ट कर दिया।
विधानसभा चुनाव में हार का मुंह देख चुके कांग्रेस के दो दिग्गज नेता पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण यादव और विधानसभा में पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह लोकसभा चुनावों में भी जीत का सेहरा अपने सिर नहीं बांध पाए। श्री यादव को खंडवा सीट से भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान ने और श्री सिंह को सीधी सीट से भाजपा की रीति पाठक ने धूल चटा दी।
कांग्रेस का गढ़ रही रतलाम सीट के बाशिंदो ने भी इस बार बदलाव करते हुए भाजपा पर भरोसा जताया। भाजपा ने इस बार यहां से गुमान सिंह डामोर के तौर पर प्रयोग किया, जिन्होंने इस सीट से पांच बार सांसद रह चुके कांतिलाल भूरिया को पटखनी दे दी। श्री डामोर ने छह महीने झाबुआ विधानसभा सीट पर श्री भूरिया के पुत्र विक्रांत भूरिया को हराया था, जिसके बाद अब भाजपा ने उन्हें लोकसभा चुनाव में उतार दिया था।
भाजपा ने इस बार 15 सीटों पर नए चेहरे उतार कर 2014 में सांसद चुने गए कई नेताओं के विरोध और बगावत का भी सामना किया, लेकिन इन नए चेहरों में से कई ने लाखों के अंतर से जीत दर्ज कर हर विरोध की हवा निकाल दी। पार्टी ने नए चेहरों पर प्रयोग करते हुए भोपाल से सुश्री ठाकुर, इंदौर से शंकर लालवानी, बैतूल से डी डी उइके, भिंड से संध्या राय, देवास से महेंद्र सिंह सोलंकी, बालाघाट से ढाल सिंह बिसेन, गुना से के पी यादव, ग्वालियर से विवेक शेजवलकर, खजुराहो से वी डी शर्मा, खरगोन से गजेंद्र पटेल, रतलाम से गुमान सिंह डामोर, सागर से राजबहादुर सिंह, शहडोल से हिमाद्री सिंह, उज्जैन से अनिल फिरोजिया और विदिशा से रमाकांत भार्गव को मैदान में उतारा।
इनमें से खजुराहो प्रत्याशी श्री शर्मा को बाहरी प्रत्याशी होने के चलते स्थानीय स्तर पर खासा विरोध झेलना पड़ा, इसके बावजूद उन्होंने करीब चार लाख 92 हजार से भी ज्यादा मतों से कांग्रेस की कविता सिंह को पटखनी दी। श्रीमती सिंह इसी क्षेत्र के एक प्रभावी परिवार की बहू हैं, ऐसे में उन्होंने श्री शर्मा के बाहरी होने का मुद्दा जोर-शोर से उठाया था।
भिंड प्रत्याशी श्रीमती राय, सागर से श्री सिंह और शहडोल से श्रीमती सिंह पूर्ववर्ती सांसदों ने खासा विरोध किया। बालाघाट से श्री बिसेन की दावेदारी घोषित होने से नाराज होकर इस सीट से पिछली बार सांसद चुने गए बोध सिंह भगत ने निर्दलीय चुनाव भी लड़ा।
मुरैना प्रत्याशी नरेंद्र सिंह तोमर की भी सीट बदले जाने और अन्य कारणों के चलते उन्हें विरोध का सामना करना पड़ा था। दूसरी ओर मंदसौर प्रत्याशी सुधीर गुप्ता, सागर से राजबहादुर सिंह, राजगढ़ से रोडमल नागर और खरगोन से गजेंद्र पटेल के नामों की घोषणा के बाद पार्टी के अंदरुनी धड़ों से उनके नामों के विरोध की कई खबरें सामने आईं थीं, इसके बावजूद ये सभी भारी अंतर से अपने नजदीकी प्रत्याशियों को पराजय का मुंह दिखाने में कामयाब रहे।
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