भोपाल, 11 फरवरी।मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ ने आज कहा कि उनके चुनावी राजनीति में आने का मूल कारण ‘पानी’ है।
वरिष्ठ कांग्रेस नेता कमलनाथ ने यहां राष्ट्रीय जल सम्मेलन में बताया की 1979 में जब वे छिंदवाड़ा जिले के सौंसर से पांढुर्णा जा रहे थे, तब रास्ते में कुछ गांव के लोग सड़क पर खड़े होकर उनका 3 घंटे से इंतजार कर रहे थे। उस समय रात के 10 बज रहे थे। श्री कमलनाथ के अनुसार उन्होंने अपनी गाड़ी रोकी और उनसे खड़े होने का कारण पूछा, तो गांव वालों ने बताया कि सड़क से आधा किलोमीटर दूर उनका गांव है। उन्हें पानी लेने के लिए 12 किलोमीटर दूर जाना पड़ता है। इसके कारण हमारे गांव के लड़कों के विवाह नहीं हो रहे हैं। क्योंकि लड़की वाले कहते है कि उनकी बेटी इतने दूर से पानी नहीं लाएगी।
मुख्यमंत्री ने कहा कि उसी दिन उन्होंने तय किया था कि चुनावी राजनीति के जरिए लोगों को मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध करवाएंगे।
श्री कमलनाथ ने कहा कि छिंदवाड़ा में आज जो स्थिति है, वह सबके सामने है।
समारोह में जल पुरुष के नाम से विख्यात और मेगसेसे पुरस्कार प्राप्त प्रोफेसर राजेन्द्र सिंह ने बताया कि वर्ष 1990 से उनके श्री कमलनाथ ने संबंध हैं।
उन्होंने कहा कि श्री कमलनाथ का पर्यावरण के प्रति कितना गहरा जुड़ाव है, इसका एक उदाहरण है गुजरात, राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली राज्य में फैली हुयीं अरावली पर्वत श्रंखलाएं। उन्होंने कहा कि आज यह पर्वत सुरक्षित हैं, तो इसका श्रेय मुख्यमंत्री कमलनाथ को जाता है।
श्री सिंह ने बताया कि 7 मई 1992 को अरावली पर्वत में हो रहे अवैध उत्खनन और अतिक्रमण को लेकर वे श्री कमलनाथ से मिले थे, तब वे केन्द्र में वन एवं पर्यावरण मंत्री थे। जब उनके समक्ष यह मुद्दा रखा गया, उन्होंने तत्काल अरावली पर्वत को बचाने के लिए अधिसूचना जारी करायी। उसके कारण ही वे आज तक सुरक्षित हैं और वहां चारों तरफ हरियाली है।
इसी आयोजन में मुख्यमंत्री का तरुण भारत संघ की ओर से ‘राइट टू वॉटर’ कानून बनाने की पहल करने और मध्यप्रदेश को देश का पहला राज्य बनाने के लिए अभिनंदन पत्र भेंट किया गया। अभिनंदन पत्र में कहा गया है कि मुख्यमंत्री कमलनाथ की दूरदर्शी सोच के कारण 2020 में जल सुरक्षा अधिनियम बनाने की पहल की गयी है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के पर्यावरण संरक्षण को लेकर उनके विचारों पर अमल की दिशा में एक अद्भुत कदम है।
इस अभिनंदन पत्र में यह भी जिक्र है कि देश के वन एवं पर्यावरण मंत्री के रूप में श्री कमलनाथ ने अरावली पर्वत को अवैध अतिक्रमण और खनन से रोकने के लिए, जो अधिसूचना जारी की थी, वह पर्यावरण के प्रति उनकी गहरी निष्ठा को अभिव्यक्त करता है।
जलसंकट भविष्य में और गंभीर होने वाला है – कमलनाथ
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ ने आज कहा कि हमारी सोच के अभाव और लापरवाही के कारण जलसंकट बढ़ रहा है, जो आगे चलकर और भी गंभीर होने वाला है। इस चुनौती का मुकाबला हम सभी को मिलकर करना होगा।
श्री कमलनाथ ने यहां जलाधिकार कानून को लेकर मध्यप्रदेश सरकार और जल जन जोड़ाे आंदोलन की ओर से संयुक्त रूप से आयोजित राष्ट्रीय जल सम्मेलन को संबोधित किया। इस अधिवेशन में 25 राज्यों के जल और पर्यावरण से जुड़े समाजसेवी और विषय विशेषज्ञ शामिल हो रहे हैं। सम्मेलन में राज्य सरकार के प्रस्तावित ‘राइट टू वॉटर’ विषय पर भी विमर्श होगा।
श्री कमलनाथ ने कहा कि पानी की उपलब्धता समाज और सरकार के सामने आने वाले समय में सबसे बड़ी चुनौती है। सब मिलकर ही इसका मुकाबला कर पाएंगे। मुख्यमंत्री ने कहा कि उनका स्वप्न है कि हर व्यक्ति को शुद्ध जल उसके घर पर मिले। यह स्वप्न सबका हो, तो जरूर इसमें सफल होंगे
मुख्यमंत्री ने कहा कि हमारी सोच के अभाव, लापरवाही के कारण जल संकट बढ़ रहा है, जो आगे चलकर और भी गंभीर होने वाला है।
श्री कमलनाथ ने बताया कि 1982 में हुए ‘पृथ्वी सम्मेलन’ में उन्होंने इस मुद्दे को अंतर्राष्ट्रीय मंच पर उठाते हुए कहा था कि पर्यावरण, जंगल तभी तक सुरक्षित और जीवित हैं, जब तक हमारे पास पानी है। इसलिए पानी बचाने, जल स्त्रोतों को संरक्षित करने का काम सबसे पहले करना होगा।
मुख्यमंत्री ने बताया कि आज हमारे 65 बांध, 165 रिजर्ववायर सूखे की चपट में हैं। स्थानीय निकाय नागरिकों को 2 से 4 दिन में पानी उपलब्ध करवा पा रहे हैं। भविष्य में यह संकट और गहराएगा। इसकी चिंता हमें आज से करना होगी।
उन्होंने कहा कि हमारे पर्यावरण विद और जल संरक्षण के क्षेत्र में समर्पित भाव से काम करने वाले स्वयंसेवियों को इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाना होगी। उन्होंने कहा कि हम लोगों ने मिलकर इसकी आज से चिंता नहीं की, तो आने वाली पीढ़ी हमें माफ नहीं करेगी।
श्री कमलनाथ ने कहा कि ‘राइट टू वाटर’ कानून लाने का हमारा मकसद है कि जहाँ पानी को बचाने के प्रति लोगों में जागरूकता आए और वे सरकार के साथ संरक्षण के लिए सहभागी बनें। उन्होंने कहा कि जल संरक्षण के क्षेत्र में काम करने वाले लोगों से उनकी अपेक्षा है कि वे इस कानून को व्यवहारिक और प्रभावी बनाने अपने महत्वपूर्ण सुझाव दें। भविष्य में भी लोगों की पानी की जरूरत पूरी होती रहे, इस पर विचार कर ऐसे उपाय सुझाएं, जिस पर बेहतर ढंग से अमल हो सके।
मुख्यमंत्री ने कहा कि आज जल संरक्षण और भू-जल स्तर में वृद्धि करने की कई नई तकनीक आ गई हैं। इन आधुनिक तकनीकों को भी हम जाने और इनका उपयोग जल को बचाने से लेकर उसे आम आदमी तक पहुँचाने के लिए करें।
राज्य के लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी मंत्री सुखदेव पांसे ने कहा कि मुख्यमंत्री के नेतृत्व में यह सरकार पर्याप्त पानी, पहुँच में पानी और पीने योग्य पानी का कानूनी अधिकार देने जा रही है। ऐसा अधिकार देने वाला मध्यप्रदेश देश का पहला राज्य होगा। उन्होंने कहा कि वर्षा की एक – एक बूंद को सहेजने से लेकर उसे घर तक पहुँचाने के प्रत्येक पहलू का समावेश जल अधिकार कानून में रहेगा।
उन्होंने बताया कि पानी की रिसाइक्लिंग, वाटर रिचार्जिंग उसका वितरण एवं उपयोग भी इस कानून के दायरे में आयेगा। वर्तमान में प्रदेश की 72 प्रतिशत आबादी, 55000 गाँवाें की 01 लाख 28 हजार बसाहटों में निवास करती है। गाँवों की 98 प्रतिशत पेयजल व्यवस्था भू-जल पर आधारित है। इसीलिये गिरता हुआ भू-जल स्तर प्रतिवर्ष जल संकट को बढ़ा रहा है। उन्होंने बताया कि आने वाले पाँच सालों में हम प्रदेश के प्रत्येक घर में नल के माध्यम से 55 लीटर प्रति व्यक्ति शुद्ध एवं स्वच्छ जल पहुंचाने का प्रयास करेंगे।
जल पुरुष एवं मेगसेसे पुरस्कार प्राप्त प्रो. राजेन्द्र सिंह ने मुख्यमंत्री को बधाई दी कि उन्होंने जल अधिकार कानून बनाने की पहल कर पूरे देश को यह सोचने पर मजबूर किया है कि वे जल संरक्षण और इसके बेहतर उपयोग के लिए काम करें। सभी राज्य सरकारों को मध्यप्रदेश की इस पहल का अनुसरण करना चाहिए।
उन्होंने कहा कि जलाधिकार कानून बनाने की पहल करके मुख्यमंत्री ने समाज में विश्वास पैदाकर उनके अंदर मालिकाना हक का भाव जाग्रत किया है कि जल संसाधन हमारा है और हमारे लिए है। यह एक अवसर है जब हम सब मिलकर जल का उपयोग अनुशासित होकर करें।
इस मौके पर राज्य के मुख्य सचिव एस.आर. मोहन्ती, पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के अपर मुख्य सचिव मनोज श्रीवास्तव और लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग के प्रमुख सचिव संजय शुक्ला तथा देश भर से आए जल एवं पर्यावरण विशेषज्ञ उपस्थित थे।