सिखों के लिए करतारपुर स्थान बहुत ही महत्वपूर्ण है,माना जाता है कि गुरु नानक का जन्म 15 अप्रैल 1469 को तलवंडी नाम के एक कस्बे में हुआ। पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में स्थित यह कस्बा अब ननकाना साहिब के नाम से जाना जाता है।उनका निधन 22 सितंबर 1539 को करतारपुर में हुआ। उन्होंने अपने जीवन के लगभग आखिरी 18 साल यहीं पर बिताए।
इस तरह सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव का जन्म मौजूदा पाकिस्तान में हुआ और वहीं उन्होंने आखिरी सांस भी ली।वह जहां पैदा हुए,उसे आज ननकाना साहिब के नाम से जाना जाता है और उन्होंने अपनी जिंदगी के आखिरी साल करतारपुर में बिताए।
दरबार साहिब करतारपुर को पाकिस्तान में सिखों के सबसे पवित्र स्थलों में गिना जाता है।ननकाना साहिब में जहां गुरु नानक पैदा हुए।वहां गुरुद्वारा जनम अस्थान है।इसके अलावा गुरुद्वारा पंजा साहिब और गुरुद्वारा सच्चा सौदा पाकिस्तान में स्थित सिखों के अन्य पवित्र स्थल हैं।
सिखों के पहले गुरु नानक देव जी ने करतारपुर गुरुद्वारे की बुनियाद 1504 में रखी।जहां रावी नदी पाकिस्तान में दाखिल होती है।उसके पास ही यह गुरुद्वारा स्थित है। उन्होंने अपने जीवन का आखिरी समय इस जगह पर बिताया।इसलिए सिखों के लिए यह स्थान बहुत महत्व रखता है।
दुनिया भर के सिख लंबे समय से करतारपुर कॉरिडोर को खोलने की मांग कर रहे थे. इससे पहले वे भारतीय पंजाब से दूरबीनों की मदद से करतारपुर गुरुद्वारे के दर्शन करते थे।
भारतीय पंजाब में स्थित डेरा बाबा नानक साहब को पाकिस्तान में पड़ने वाले दरबार साहिब से जोड़ने वाले कॉरिडोर को करतारपुर कॉरिडोर का नाम दिया गया है. यह लगभग पांच किलोमीटर लंबी सड़क है. सिख अनुयायी खास वीजा लेकर इसका इस्तेमाल कर सकते हैं।
भारत से आने वाले सिख अनुयायी पांच नवंबर की शाम ननकाना साहिब पहुंचे. अगले दो दिनों तक उन्होंने अपने धार्मिक अनुष्ठान किए. वे नौ नवंबर को करतारपुर में होने वाले आयोजन में हिस्सा लेने जाएंगे. वहां पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इस कॉरिडोर का उद्घाटन करेंगे.
गुरु नानक देव की 550वीं जयंती पर दुनिया भर में कार्यक्रम हो रहे हैं. इसी मौके पर करतारपुर कॉरिडोर को खोला जा रहा है. माना जा रहा है कि दुनिया भर के 50 हजार सिख इस आयोजन में शामिल होंगे।
इमरान खान ने प्रधानमंत्री पद संभालने के बाद ही करतारपुर कॉरिडोर को खोलने का फैसला किया था. इसे बनाने का काम नवंबर 2018 में शुरू हुआ. कॉरिडोर बनाने के अलावा यात्रियों के रुकने की व्यवस्था और गुरुद्वारे की साज सज्जा का काम रिकॉर्ड समय में पूरा किया गया है।