उडुपी, 29 दिसंबर ।कर्नाटक में उडुपी पेजावर मठ के प्रमुख विश्वेश तीर्थ स्वामी का रविवार को निधन हो गया।
वह 88 वर्ष के थे और लंबे अरसे से अस्वस्थ थे।
निमोनिया के इलाज के लिए उन्हें 20 दिसंबर को मणिपाल के कस्तूरबा अस्पताल में भर्ती कराया गया था और तब से वह गहन चिकित्सा कक्ष (आईसीयू) में थे। डॉक्टरों ने शनिवार को बताया था कि श्री तीर्थ की हालत गंभीर है और उनकी तबीयत बिगड़ती जा रही है। उनकी तबीयत अधिक बिगड़ने पर रविवार सुबह उन्हें वेंटीलेटर पर ही पेजावर मठ लाया गया जहां कुछ घंटों बाद उनका निधन हो गया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनके निधन पर गहरा शोक व्यक्त करते हुए उन्हें सेवा और आध्यात्मिकता का शक्तिपुंज बताया है। उन्होंने ट्वीट कर कहा , “उडुपी में पेजावर मठ के श्री विश्वेश तीर्थ स्वामीजी सदैव लोगों के मन-मस्तिष्क में रहेंगे और उन्हें प्रकाशित करते रहेंगे। लोगों के लिए वह सदैव पथ प्रदर्शक बने रहेंगे। आध्यमिकता एवं सेवा के शक्तिपुंज के रुप में उन्होंने सदैव न्यायपूर्ण एवं सद्भावपूर्ण समाज के लिए काम किया। ओम शांति।”
कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने श्री विश्वेश तीर्थ स्वामी के निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया है। उन्होंने एक ट्वीट में कहा , “उडुपी में पेजावर मठ के श्री विश्वेश तीर्थ स्वामी जी के निधन के समाचार से बहुत दुख हुआ। मेरी संवेदना दुनिया भर में फैले उनके अनुयायियों के साथ हैं। ओम शांति।”
कर्नाटक के मुख्यमंत्री बी एस येदियुरप्पा ने मठ जाकर उनके अंतिम दर्शन किये और शोक व्यक्त किया है। स्वामीजी के निधन पर राज्य तीन दिन के राजकीय शोक की घोषणा की गयी है। उनकी अंत्येष्टि पूरे राजकीय सम्मान के साथ की जायेगी।
विधायक रघुपति भट ने इससे पहले बताया था कि स्वामीजी का पार्थिव शरीर माधव सरोवर तालाब में पवित्र स्नान के लिए श्री कृष्ण मठ ले जाया जायेगा। उनका पार्थिव शरीर कृष्ण मठ से खुली जीप में अज्जरकड मैदान ले जाया जायेगा जहां श्रद्धालु उनका अंतिम दर्शन करेंगे। इसके बाद उसे हेलिकॉप्टर से बेंगलुरु ले जाया जायेगा। । उनका अंतिम संस्कार उनकी इच्छा के अनुसार करीब सात बजे बेंगलुरु के पूर्णप्रज्ञा विद्यापीठ में किया जायेगा।
स्वामीजी का जन्म दक्षिण कन्नड़ जिले के रामकुजना में एम. नारायणाचार्य और कमलम्मा के घर 27 अप्रैल 1931 को हुआ था। उन्हें 1938 में आठ वर्ष की आयु में एक भिक्षु बनाया गया था। वह पेजावर मठ की ‘गुरु परंपरा’ के तहत 33 वें गुरु थे।
उन्होंने अपनी आध्यात्मिक शिक्षा पलिमार और भंडारकरी मठ के दिवंगत विद्यामान तीर्थ स्वामी के अधीन हासिल की।
स्वामीजी को “सुधारवादी स्वामी” के तौर पर जाना जाती है। उन्होंने ऐसे समय में दलित कालोनियों का दौरा किया जब इसे निषेध माना जाता था। वह परंपराओं को त्यागे बिना हिंदू धर्म में जाति प्रथा जैसी समस्याओं के हिमायती थे। विश्वास और राजनीति पर उनके विचारों से कभी-कभी विवाद भी उत्पन्न हुए।