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कर्-नाटक अंत का रिहर्सल: सदन में हंगामा, बार-बार कोर्ट जाना, राज्यपाल को कुछ नहीं समझना और कुमारस्वामी का सोमवार को बहुमत साबित करने का दावा attacknews.in

बेंगलुरु/नयी दिल्ली, 19 जुलाई । कर्नाटक में जारी सियासी नाटक अब संवैधानिक संकट में तब्दील हो गया है। शुक्रवार को कानूनी लड़ाई का रूप ले चुके इस ड्रामे ने प्रदेश के राजनीतिक संकट को और गहरा दिया है। विधानसभा में मुख्यमंत्री एच. डी. कुमारस्वामी को अपना बहुमत साबित करने के लिए राज्यपाल वजुभाई वाला द्वारा निर्धारित समय सीमा के भीतर प्रक्रिया पूरी नहीं हो सकी।

राज्यपाल ने कुमारस्वामी को अपना बहुमत साबित करने के लिए शुक्रवार को 1.30 बजे तक की समय सीमा निर्धारित की थी, लेकिन सदन में समयसीमा के भीतर विश्वासमत प्रस्ताव पर मत विभाजन नहीं हो सका, जिसके बाद राज्यपाल ने समयसीमा को फिर से निर्धारित कर इसे शाम के छह बजे कर दिया।

गौरतलब है कि करीब दो हफ्ते पहले सत्तारूढ़ गठबंधन के 15 बागी विधायकों के इस्तीफे से राज्य में राजनीतिक संकट पैदा हुआ था। विधायकों को लेकर उच्चतम न्यायालय ने 17 जुलाई को निर्देश दिया था कि इन विधायकों को विधान सभा की कार्यवाही में हिस्सा लेने के लिये बाध्य नहीं किया जाए।

उच्चतम न्यायालय के उस फैसले पर स्पष्टीकरण की मांग करते हुये मुख्यमंत्री एच डी कुमारस्वामी और कांग्रेस की कर्नाटक इकाई ने सर्वोच्च अदालत का रुख किया है, जिसमें उन्होंने दावा किया है कि न्यायालय का आदेश विधान सभा के चालू सत्र में अपने विधायकों को व्हिप जारी करने में बाधक बन रहा है।

शीर्ष अदालत ने अपने आदेश में कहा था कि विधान सभा की सदस्यता से इस्तीफा देने वाले कांग्रेस-जद (एस) के 15 विधायकों को विधान सभा के चालू सत्र की कार्यवाही में हिस्सा लेने के लिये बाध्य नहीं किया जायेगा और उन्हें यह विकल्प दिया जाना चाहिए कि वे कार्यवाही में हिस्सा लेना चाहते हैं या बाहर रहना चाहते हैं।

कुमारस्वामी ने कहा कि सदन की कार्यवाही को लेकर राज्यपाल विधानसभा अध्यक्ष के आर रमेश को कोई आदेश नहीं दे सकते।

कुमारस्वामी ने विश्वास मत की प्रक्रिया को पूरा करने के लिए राज्यपाल द्वारा एक के बाद एक निर्धारित की गई समय सीमा पर सवाल उठाया।

उन्होंने कहा कि राज्यपाल के निर्देश शीर्ष अदालत के पूर्व के फैसले के पूरी तरह विपरीत हैं।

अपनी याचिका में उन्होंने कहा कि जब विश्वास प्रस्ताव पर कार्यवाही पहले से ही चल रही है तो राज्यपाल वजुभाई वाला इस पर कोई निर्देश नहीं दे सकते।

उन्होंने कहा कि विश्वास प्रस्ताव पर बहस किस तरह से हो इसे लेकर राज्यपाल सदन को निर्देशित नहीं कर सकते।

इस बीच, कर्नाटक के राज्यपाल वजु भाई वाला ने शुक्रवार को राज्य विधानसभा में विश्वास मत प्रक्रिया पूरी करने के लिए एक नई समय-सीमा तय की। विधानसभा के आज दोपहर डेढ़ बजे तक विश्वास मत प्रक्रिया पूरी करने में विफल रहने के बाद राज्यपाल ने कुमारस्वामी को दूसरा पत्र लिखा।

उन्होंने विधानसभा में जारी विचार-विमर्श से विश्वास मत पारित होने में देरी की ओर इशारा किया। वाला ने विधायकों की खरीद-फरोख के व्यापक आरोपों का जिक्र करते हुए कहा कि यह संवैधानिक रूप से अनिवार्य है कि विश्वास मत प्रक्रिया बिना किसी विलंब के शुक्रवार को ही पूरी हो।

वाला ने कुमारस्वामी को दूसरे पत्र में कहा, ‘‘ जब विधायकों की खरीद-फरोख के व्यापक स्तर पर आरोप लग रहे हैं और मुझे इसकी कई शिकायतें मिल रही हैं, यह संवैधानिक रूप से अनिवार्य है कि विश्वास मत बिना किसी विलंब के आज ही पूरा हो।’’

कुमारस्वामी ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि उन्हें ‘‘दूसरा प्रेम पत्र’’ मिला है और इससे वह आहत हैं।

इससे पहले समय सीमा के करीब आने पर सत्तारूढ़ गठबंधन ने ऐसा निर्देश जारी करने को लेकर राज्यपाल की शक्ति पर सवाल उठाया। कुमारस्वामी ने उच्चतम न्यायालय के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि राज्यपाल विधानमंडल के लोकपाल के रूप में कार्य नहीं कर सकते।

कुमारस्वामी ने कहा कि वह राज्यपाल की आलोचना नहीं करेंगे और उन्होंने अध्यक्ष के आर रमेश कुमार से यह तय करने का अनुरोध किया कि क्या राज्यपाल इसके लिए समय सीमा तय कर सकते हैं या नहीं।

जैसे ही सदन में डेढ़ बजा, भाजपा ने राज्यपाल द्वारा कुमारस्वामी को भेजे गये पत्र के अनुसार विश्वासमत प्रस्ताव पर मत विभाजन पर जोर दिया। इस पर, राज्यपाल की भूमिका को लेकर भाजपा और कांग्रेस के सदस्यों के बीच गरमागरम बहस हुई और व्यवधान के बीच सदन की कार्यवाही तीन बजे तक के लिए स्थगित कर दी गयी थी।

वजू भाई वाला ने बृहस्पतिवार को बहुमत साबित करने के लिए शुक्रवार डेढ़ बजे की समय सीमा तय की थी क्योंकि उससे पहले अध्यक्ष द्वारा सदन की कार्यवाही स्थगित कर देने के चलते विश्वासमत प्रस्ताव पर मत-विभाजन नहीं हो पाया था।

राज्यपाल ने मुख्यमंत्री को लिखे पत्र में कहा था कि सत्तारूढ़ जनता दल (एस)-कांग्रेस गठबंधन के 15 विधायकों के इस्तीफे और दो निर्दलीय विधायकों के समर्थन वापसी के बाद प्रथम दृष्टया कुमारस्वामी सदन का विश्वास खो चुके हैं।

शुक्रवार को विधानसभा की कार्यवाही शुरू हुई और जब विश्वास प्रस्ताव पर समय सीमा करीब आयी, तब भाजपा नेता बी एस येदियुरप्पा खड़े हुए और मुख्यमंत्री द्वारा पेश किए गए विश्वास मत पर वोट कराने के लिए दबाव डाला। उनकी पार्टी ने इस बात पर जोर डाला कि कुमारस्वामी स्पष्ट करें कि वह राज्यपाल के निर्देश को मानेंगे या नहीं।

अध्यक्ष ने कहा कि प्रक्रिया का पालन किया जाना है। चर्चा के बाद नियमों के अनुसार, अगर जोर दिया गया, तो इस पर मतदान कराया जाएगा। उन्होंने भाजपा सदस्यों से यह भी कहा कि जब तक चर्चा चलेगी, वे मतविभाजन के लिए दबाव नहीं बना सकते।

इसके बाद हंगामे के बीच, सदन को तीन बजे तक के लिए स्थगित कर दिया गया था।

इससे पहले कर्नाटक के मुख्यमंत्री एच डी कुमारस्वामी ने कहा कि वह अपनी सरकार को बचाने के लिए सत्ता का दुरुपयोग नहीं करेंगे।

राज्यपाल वजुभाई वाला ने उन्हें शुक्रवार दोपहर 1.30 बजे तक बहुमत साबित करने के लिए कहा था। कुमारस्वामी ने आरोप लगाया कि पहले दिन से ही एक माहौल बनाया गया कि ‘‘यह सरकार गिर जाएगी’’ और यह अस्थिर है।

कुमारस्वामी ने कहा, ‘‘14 महीने (सत्ता में) के बाद, हम अंतिम चरण में आ गए हैं।’’ कुमारस्वामी ने भाजपा से कहा, ‘‘आइये चर्चा करते हैं। आप अभी भी सरकार बना सकते हैं। कोई जल्दबाजी नहीं है। आप इस काम को सोमवार या मंगलवार को भी कर सकते हैं। मैं सत्ता का दुरुपयोग नहीं करने जा रहा हूं।’’

कुमारस्वामी ने भाजपा से कहा, ‘‘जिस दिन से मैं सत्ता में आया हूं, मुझे पता है कि यह लंबे समय तक नहीं रहेगा … आप कब तक सत्ता में बैठेंगे, मैं भी यहां देखूंगा कि … आपकी सरकार उन लोगों के साथ कितनी स्थिर होगी जो अभी आपकी मदद कर रहे हैं।’’

उन्होंने भाजपा से यह भी पूछा कि अगर वह अपनी संख्या को लेकर इतने ही आश्चस्त हैं तो एक दिन में ही विश्वास मत पर बहस को खत्म करने की जल्दी में क्यों है।

मुख्यमंत्री ने भाजपा पर दलबदल विरोधी कानून को दरकिनार करने के तरीकों का सहारा लेने का भी आरोप लगाया।

राज्य की विपक्षी पार्टी पर निशाना साधते हुए उन्होंने आरोप लगाया कि विधायकों को लुभाने के लिए 40-50 करोड़ रुपये की पेशकश की गई और इसके साथ ही उन्होंने यह भी पूछा कि यह पैसा किसका है।

इसी बीच, जदएस विधायक श्रीनिवास गौड़ ने आरोप लगाया कि सरकार को गिराने के लिए उन्हें भाजपा ने पांच करोड़ रुपये की रिश्वत की पेशकश की थी।

विधानसभा अध्यक्ष के आर रमेश कुमार ने जब सदन की कार्यवाही शुरू करते हुये स्पष्ट किया कि विश्वासमत के अलावा किसी अन्य चर्चा की कोई गुंजाइश नहीं है, तो कुमारस्वामी ने अपने भाषण की शुरुआत की।

कुमारस्वामी ने अध्यक्ष से कहा कि उन्हें यह तय करना होगा कि क्या बहुमत साबित करने के लिए राज्यपाल उनके लिए समय सीमा (शुक्रवार दोपहर 1.30 बजे) निर्धारित कर सकते हैं या नहीं।

कुमारस्वामी ने उच्चतम न्यायालय के एक फैसले का हवाला दिया कि राज्यपाल विधानसभा के लोकपाल के तौर पर कार्य नहीं कर सकते।

अध्यक्ष ने उन टिप्पणियों को खारिज कर दिया कि वह विश्वास प्रस्ताव पर वोट में देरी करने की कोशिश कर रहे हैं।

उन टिप्पणियों पर नाराजगी जताते हुए कि वे विश्वासमत में देरी करने की कोशिश कर रहे हैं, कुमार ने कहा, ‘‘मैं पक्षपात नहीं कर रहा हूं।’’

उन्होंने बताया कि ऐसी चर्चा और ‘‘अप्रत्यक्ष टिप्पणियां’’ की गई कि वह प्रक्रिया (विश्वास मत पर मतदान) में देरी कर रहे हैं।

अपनी टिप्पणी करने के बाद, अध्यक्ष ने मुख्यमंत्री को विश्वास मत पर चर्चा शुरू करने के लिए कहा।

उन्होंने कहा, ‘‘मैं स्पष्ट कर देना चाहता हूं … किसी अन्य चर्चा (विश्वास मत को छोड़कर) के लिए कोई गुंजाइश नहीं है।’’

गौरतलब है कि कर्नाटक विधानसभा में गुरुवार को कुमारस्वामी द्वारा पेश किए गए विश्वासमत प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान हंगामे के बीच सदन की कार्यवाही को शुक्रवार तक के लिये स्थगित कर दिया गया। इसके बाद राज्यपाल वजुभाई वाला ने कुमारस्वामी से विधानसभा में शुक्रवार अपराह्न डेढ़ बजे से पहले बहुमत साबित करने को कहा था

कांग्रेस पार्टी ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के स्पष्टीकरण के लिए दायर की याचिका-

कर्नाटक में जारी सत्ता का संघर्ष शुक्रवार को एक बार फिर शीर्ष अदालत की चौखट पर पहुंच गया। कर्नाटक कांग्रेस ने जहां न्यायालय के 17 जुलाई के आदेश पर स्पष्टीकरण मांगा है, वहीं मुख्यमंत्री एच डी कुमारस्वामी ने विश्वास मत प्रक्रिया अपराह्न डेढ़ बजे तक पूरी करने के राज्यपाल वजू भाई आर वाला के आदेश को चुनौती दी है।

कर्नाटक कांग्रेस ने अपनी याचिका में कहा है कि न्यायालय के 17 जुलाई के आदेश की वजह से पार्टी का अपने विधायकों को व्हिप जारी करने का अधिकार खतरे में पड़ गया है। यह याचिका कर्नाटक कांग्रेस के अध्यक्ष दिनेश गुंडू राव ने दायर की है।

गौरतलब है कि मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस की पीठ ने अपने आदेश में कहा था कि बागी विधायकों को बहुमत परीक्षण की कार्यवाही में शामिल होने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। न्यायालय ने बागी विधायकों को सदन की कार्यवाही में भाग लेने या न लेने की छूट दी थी।

याचिका में दावा किया गया है कि खंडपीठ के आदेश से अपने विधायकों को व्हिप जारी करने का राजनीतिक दल का अधिकार कमजोर हुआ है। याचिकाकर्ता ने न्यायालय से इस आदेश पर स्पष्टीकरण जारी करने का अनुरोध किया है।

श्री कुमारस्वामी ने राज्यपाल वजू भाई आर वाला के उस आदेश को चुनौती दी है जिसमें राज्यपाल ने सरकार को आज अपराह्न डेढ़ बजे तक विश्वास मत प्रक्रिया पूरी करने को कहा है।

इस बीच, राज्यपाल ने दूसरा पत्र भी सरकार को भेजा है, जिसमें उन्होंने यह समय सीमा छह बजे तक बढ़ा दी है।

कुमारस्वामी का दावा:वह बहुमत साबित कर देंगे-

कर्नाटक के मुख्यमंत्री एच.डी. कुमारस्वामी ने शुक्रवार को दावा किया कि वह सदन में बहुमत साबित कर देंगे।

श्री कुमारस्वामी ने विश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान कहा कि विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने राज्य की जनता दल (एस)-कांग्रेस गठबंधन सरकार को गिराने की बार-बार पूरी कोशिश की है,लेकिन उसे सफलता नहीं मिल पायी है।

उन्होंने कहा, “भाजपा नेताओं ने लोकतांत्रिक तरीके से चुनी हुई राज्य सरकार को पहले भी छह बार गिराने की असफल कोशिश की है और वे लोग सातवीं बार भी अपने मकसद को पूरा करने में असफल रहेंगे।”

उन्होंने राज्यपाल वजू भाई आर. वाला द्वारा उन्हें दो चिट्टी भेजने के मुद्दे पर कहा कि इससे साबित होता है उनकी सरकार से पास कल भी बहुमत था और आज भी बहुमत है। उन्होंने कहा कि राज्यपाल ने अपनी चिट्टी में लिखा है कि राज्य में विधायकों की खरीद-फरोख्त को रोकने के लिए मुझे आज ही बहुमत साबित करना है।

मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य की मौजूद राजनीतिक माहौल में राज्यपाल का विधायकों की खरीद-फरोख्त की ओर ध्यान बहुत देर से गया, जबकि यह गैर कानूनी गतिविधि भाजपा नेताओं के सहयोग से चलायी जा रही है।

उन्होंने कहा, “विधायकों की खरीद-फरोख्त की आज हम जो देख रहे हैं, उसे टाला जा सकता था और यह सब राज्यपाल कर सकते थे। विधायकों का एक समूह जब राज्यपाल से मिलने गया था और उन्हें विधानसभा से अपने इस्तीफे के बारे में अवगत कराया था, यदि उस समय राज्यपाल चाहते तो यह स्थिति नहीं आती।”

उन्होंने कहा, “मैं यह नहीं समझ पाया कि जब विधायकों (सत्तारूढ़) के समूह को राज्य में अनिश्चितता की स्थित पैदा करने के उदेश्य से एक चार्टेड विमान में भरकर ले जाया गया था, तो उस समय राज्यपाल ने इस पर ध्यान क्यों नहीं दिया था ?”

श्री कुमारस्वामी ने विधानसभा अध्यक्ष के. आर. रमेश कुमार से अपील की कि वह सदन में विश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग कराने से पहले उन विधायकों को बोलने की अनुमति दें जो इसमें शामिल होना चाहते हैं और अपनी भावना सदन में व्यक्त करना चाहते हैं।

विश्वास प्रस्ताव मुख्यमंत्री की ओर से पेश किया गया है।

विधानसभा अध्यक्ष ने कहा कि: सदन को अब मैं अपने हिसाब से चलाउंगा-

कर्नाटक विधानसभा के अध्यक्ष के. आर. रमेश कुमार ने मुख्यमंत्री एच. डी. कुमारस्वामी की ओर से पेश किये गये विश्वास प्रस्ताव पर शुक्रवार को ही वोटिंग कराने की भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की मांग को ठुकाराते हुए कहा कि वह सदन के तय नियम के अनुसार कार्यवाही करेंगे।

श्री कुमार ने कहा कि वह सदन की कार्यवाही नियम एवं प्रक्रियाएं से चलायेंगे और नियमों के पालन किये बिना किसी प्रस्ताव को सीधे मतदान के लिए रखने की इजाजत नहीं हैं। उन्होंने कहा, “इस धरती पर कोई भी व्यक्ति मुझे सदन के तय नियमों से हटने के लिए बाध्य नहीं कर सकता है।”

इससे पहले विपक्ष के नेता बी. एस. येद्दियुरप्पा तथा अन्य भाजपा विधायकों ने विधानसभा अध्यक्ष से विश्वास प्रस्ताव को मतदान के लिए रखने की मांग की थी। विपक्षी नेताओं ने कहा था कि राज्यपाल द्वारा मुख्यमंत्री को बहुमत साबित करने के लिए दी गयी अवधि समाप्त हो रही है।

विपक्षी नेताओं ने आरोप लगाया कि कांग्रेस तथा जनता दल (एस) सदस्यों का विश्वास प्रस्ताव पर मतदान कराने का इरादा नहीं है। भाजपा ने विधानसभा अध्यक्ष से पूरजोर तरीके से मांग की कि वह अपराह्न से पहले इस प्रस्ताव को मतदान के लिए रखें।

इसके बाद विधानसभा अध्यक्ष के. आर. कुमार ने कहा, “आप लोग मुझे पर विश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग कराने के लिए दबाव डाल रहे हैं, लेकिन मैं सदन के नियमों का पालन किये बिना इसे मतदान के लिए नहीं रख सकता।”

कुमारस्वामी ने भी सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की:

कर्नाटक के मुख्यमंत्री एच डी कुमारस्वमाी ने भी शुक्रवार को उच्चतम न्यायालय में एक याचिका दायर कर कहा है कि राज्यपाल वजूभाई वाला विधानसभा को निर्देशित नहीं कर सकते कि विश्वास मत प्रस्ताव किस तरह लिया जाये।

मुख्यमंत्री कुमारस्वामी ने विश्वास मत प्रस्ताव की प्रक्रिया पूरी करने के लिये राज्यपाल द्वारा एक के बाद एक समय सीमा निर्धारित करने पर सवाल उठाते हुये कहा कि वह इस प्रस्ताव पर विचार करने के तरीके के बारे में निर्देश नहीं दे सकते।

मुख्यमंत्री ने न्यायालय से उसके 17 जुलाई के आदेश पर स्पष्टीकरण देने का अनुरोध किया है जिसमे कहा गया था कि 15 बागी विधायकों को सदन की कार्यवाही में हिस्सा लेने के लिये बाध्य नहीं किया जा सकता है।

कुमारस्वामी ने अपनी याचिका में कहा है कि राज्यपाल द्वारा बृहस्पतिवार को भेजे गये संदेश में विश्वास प्रस्ताव और मतदान शुक्रवार को डेढ़ बजे तक करने का निर्देश दिया था।

मुख्यमंत्री ने कहा, ‘‘जब पहले ही विश्वास प्रस्ताव पर कार्यवाही शुरू हो गयी है तो राज्यपाल द्वारा इस तरह का कोई भी निर्देश नहीं दिया जा सकता है। प्रस्ताव पर इस समय बहस जारी है और यह सदन के विचाराधीन है।’’

याचिका में कहा गया है कि विधानसभा अध्यक्ष के आर रमेश कुमार की भी यही राय है कि बहस के बाद ही विश्वास प्रस्ताव पर मतदान होगा। याचिका में कहा गया है कि इन परिस्थितियों में राज्यपाल सदन को यह निर्देश नहीं दे सकते हैं कि विश्वास प्रस्ताव पर किस तरीके से बहस की जानी है।

कुमारस्वामी ने कहा कि उन्होंने शुक्रवार को राज्यपाल को पत्र लिखकर सूचित किया है कि सदन विश्वास प्रस्ताव पर विचार कर रहा है और इस पर बहस जारी है।

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