श्रीनगर, 14 अप्रैल । दो साल पहले श्रीनगर लोकसभा उपचुनाव गलत वजहों से चर्चा में था और 18 अप्रैल को 12 लाख से अधिक मतदाता वाले इस निर्वाचन क्षेत्र में लोकतंत्र की अपील की परीक्षा होगी।
पीडीपी नेता तारिक हामिद कर्रा के इस्तीफे के बाद श्रीनगर सीट के लिए उपचुनाव कराया गया था। लेकिन उपचुनाव में हिंसक घटनाएं हुयीं और सबसे कम 7.2 प्रतिशत मतदान हुआ।
क्षेत्र के विभिन्न हिस्सों में प्रदर्शनकारियों के खिलाफ सुरक्षा बलों की कार्रवाई में नौ लोग मारे गए थे और सेना के एक अधिकारी ने मतदान के दिन अपने लोगों को पथराव से बचाने के लिए एक मानव ढाल के रूप में एक बुनकर का इस्तेमाल किया था।
इस वर्ष किसी भी अप्रिय घटना को रोकने के लिए सख्त सुरक्षा उपाय किए गए हैं। श्रीनगर लोकसभा सीट में श्रीनगर, गंदरबल और बडगाम तीन जिले आते हैं। तीनों जिलों में अतिरिक्त सुरक्षाकर्मी तैनात किए गए हैं।
यहां 12,90,318 मतदाता 10 उम्मीदवारों के राजनीतिक भाग्य का फैसला करेंगे।
यहां के उम्मीदवारों में नेशनल कांफ्रेंस अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला भी हैं जो चौथी बार लोकसभा में प्रवेश करने का प्रयास कर रहे हैं।
फारूक का मुकाबला पीपुल्स डेमोक्रेटिक कॉन्फ्रेंस (पीडीपी) के आगा सैयद मोहसिन से हो रहा है जिन्होंने 2014 के संसदीय चुनावों में निर्दलीय चुनाव लड़ा था।
राजनीतिक पर्यवेक्षकों को लगता है कि मोहसिन के रूप में ‘‘कमजोर’’ उम्मीदवार उतार कर पीडीपी ने शायद श्रीनगर लोकसभा सीट फारूक को दे दी है।
हालांकि पीडीपी प्रवक्ता हरबख्श सिंह का कहना है कि मोहसिन को अभी खारिज करना गलत होगा।
सिंह ने कहा, ‘‘उन्होंने (मोहसिन) 2014 का लोकसभा चुनाव लड़ा था और खासी संख्या में मत हासिल किए थे। वह एक प्रमुख शिया नेता और विद्वान हैं। इसके अलावा, उन्हें राज्य की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी का समर्थन है।’’
सजाद गनी लोन नीत पीपुल्स कांफ्रेंस क्षेत्रीय राजनीति में नेकां और पीडीपी के विकल्प के रूप में उभरी है।
अलगाववादी खेमे से बाहर होकर चुनावी राजनीति में शामिल होने वाली पार्टी ने श्रीनगर नगर निगम में महापौर का चुनाव जीता।
पीपुल्स कॉन्फ्रेंस ने व्यवसायी इरफान अंसारी को फारूक के खिलाफ मैदान में उतारा है।
भाजपा ने भी यहां से पार्टी प्रवक्ता खालिद जहांगीर को उतारा है। वह जम्मू-कश्मीर में पीडीपी-भाजपा गठबंधन सरकार के दौरान जहांगीर ‘‘जम्मू-कश्मीर प्रोजेक्ट कंस्ट्रक्शन कॉरपोरेशन’’ के उपाध्यक्ष थे।
नेकां की सहयोगी कांग्रेस ने फारूक के खिलाफ कोई उम्मीदवार नहीं उतारने का फैसला किया है।
फारूक (83) अपने 42 साल के लंबे राजनीतिक सफर में सिर्फ एक बार चुनाव हारे हैं।
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