गोरखपुर 24 मार्च। नेपाल के काठमांडू के धारके गांव में तीन महीने से बेइंतहा जुल्म के शिकार हो रहे 39 मजदूरों और उनके परिवारीजनों को छुड़ाकर शुक्रवार को गोरखपुर लाया गया। यहां पहुंचकर उन्होंने पिछले एक साल से उन्हें बार-बार बेचे जाने और सूरत, श्रीनगर से लेकर नेपाल तक झेले दर्द के किस्से सुनाने शुरू किए तो सुनने वालों की आंखें भर आईं।
रोज ढाई-तीन हजार ईंटे तैयार करते थे
मजदूरों को छुड़ाने में गोरखपुर मानव सेवा संस्थान और विलासपुर के जन जागृति केंद्र की महत्वपूर्ण भूमिका रही। गुलामी के पिछले एक साल में इन मजदूरों से रोज ढाई से तीन हजार ईंटें तैयार करवाई जाती थीं। बदले में मजदूरी न के बराबर दी जाती थी।
बेहतर जिंदगी के नाम पर मिला धोखा
अच्छी आमदनी के सब्जबाग दिखाकर मजदूरों को छत्तीसगढ़ के विलासपुर से सबसे पहले गुजरात के सूरत ले जाया गया। कुछ महीने बाद उन्हें श्रीनगर के पास एक गांव में ईंट भट्ठा मालिक को बेच दिया गया। सूरत और श्रीनगर में इन मजदूरों से हाड़-तोड़ मेहनत कराई गई। बदले में दो जून की रोटी भी बड़ी मुश्किल से दी जाती थी।
मजदूरों को थमाया फर्जी चेक
एक मजदूर ने फोन पर विलासपुर में अपने रिश्तेदार को हकीकत बताई। उस रिश्तेदार ने विलासपुर के कलेक्टर को मामले की जानकारी दे दी तो मामला श्रीनगर पुलिस तक पहुंच गया। लेकिन पुलिस कार्यवाही से पहले ही श्रीनगर के अहमद और मेंहदी नाम के दो दलालों ने उन्हें नेपाल के धारके गांव के एक ईंट-भट्ठे पर बेच दिया। श्रीनगर के कारोबारी ने मजदूरों को जम्मू-कश्मीर के एक बैंक का दो लाख रुपए का चेक थमा दिया था जो बाद में फर्जी निकला।
तीन महीने से नर्क की जिन्दगी जी रहे थे
मजदूर, रामकिशन और अजय कोर ने बताया कि नेपाल में उन्हें खाने तक के लिए पैसे नहीं मिलते थे। कहीं बाहर नहीं जाने दिया जाता था।
रंजीता ने बताया कि हाड़-तोड़ मेहनत के बाद भी ईंट-भट्ठा मालिक के लोग अक्सर पीटते और गाली-गलौच करते थे। भूख से तड़पते बच्चों पर भी उन्हें दया नहीं आती थी। रामकिशन ने बताया कि भट्ठे पर महिलाओं के साथ अक्सर छेड़छाड़ की घटनाएं भी होती थीं। शिकायत करने पर उल्टे उन्हें मारा-पीटा जाता था।
नेपाल पुलिस ने भी नहीं दिलाई मजदूरी
संस्थाओं द्वारा भारत सरकार से सम्पर्क करने और भारत सरकार द्वारा नेपाली दूतावास को सक्रिय किए जाने के बाद नेपाल पुलिस ने मजदूरों को छुड़ा तो दिया लेकिन उन्हें मजदूरी दिलाने की कोई कोशिश नहीं की। तीन महीने की मेहनत के बाद मजदूर बिना कुछ लिए वहां से आए हैं।
चम्पावत में घेर लिया था मानव तस्करों ने
नेपाल पुलिस ने ईंट-भट्ठा मालिक पर दबाव बनाकर 40 हजार रुपए में एक बस बुक करवाई और मजदूरों को उत्तराखंड से लगे महेन्द्र बार्डर पर छुड़वा दिया। लेकिन वहां एक बार फिर दलालों और मानव तस्करों ने उन्हें घेर लिया।
चम्पावत एसपी के सहयोग से सेवा ने छुड़ाया
बार्डर पर मजदूरों को रोके जाने की सूचना मिलने पर मानव सेवा संस्थान के निदेशक राजेश मणि ने चम्पावत के एसपी से मोबाइल और ईमेल के जरिए सम्पर्क किया। इसके बाद चम्पावत पुलिस हरकत में आई। मजदूरों को अपनी सुरक्षा में लेकर गोरखपुर पहुंचाने का इंतजाम किया।
बिलासपुर भेजे जाएंगे
गोरखपुर पहुंचने पर मजदूरों को परिवार सहित विकासनगर स्थित यूएस एकेडमी में ठहराया गया। श्री राजेश मणि ने बताया कि 24 मार्च को उन्हें विलासपुर के लिए रवाना किया जाएगा।
मजदूरों की लड़ाई जारी रहेगी
श्री मणि ने कहा कि मानव सेवा संस्थान मजदूरों की लड़ाई जारी रखेगा। विदेश मंत्रालय, केंद्र सरकार और जम्मू-कश्मीर सरकार से सम्पर्क कर नेपाल और श्रीनगर के कारोबारियों के यहां फंसा मजदूरों का मेहनताना दिलवाया जाएगा।attacknews.in