नयी दिल्ली, 05 नवंबर । अयोध्या में विवादित भूमि के बारे में उच्चतम न्यायालय का फैसला आने से पहले, अखिल भारतीय संत समिति, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एवं विश्व हिन्दू परिषद (विहिप) ने साफ कर दिया है कि फैसला चाहे जो हो, वे इसे हिन्दू-मुसलमान का सांप्रदायिक रंग नहीं लेने देंगे और न ही काशी या मथुरा का मुद्दा उछालने की कोशिश करेंगे।
देश में साधु-संतों की सर्वाेच्च संस्था अखिल भारतीय संत समिति के राष्ट्रीय महामंत्री दंडी स्वामी जीतेन्द्रानंद सरस्वती ने देश के सभी संतों को एक पत्र लिख कर निवेदन किया है कि सभी संत इस विषय को जय-पराजय से दूर रख कर राष्ट्रीय एकता एवं अखंडता बनाये रखने में सहयोग करें। उनके प्रवचन तथा भाषण समाज में उन्माद पैदा न करें। किसी को चिढ़ाने का कार्य न हो।
उन्होंने कहा कि न्यायालय का निर्णय आने के पहले या बाद में संतों की प्रतिक्रिया पत्रकारों एवं सोशल मीडिया के माध्यम से समाज तक पहुंचेगी। सभी से यह प्रार्थना है कि यदि किसी को प्रसन्नता व्यक्त करनी भी हो तो वह अपने घर में व्यक्तिगत पूजा-पाठ, भजन-कीर्तन करके आनंदित हों। किसी भी प्रकार की प्रतिक्रिया व्यक्त करने की बजाय अपने भक्तों तथा सहयोगियों को समाज में शांति बनाये रखने के लिए प्रेरित करें।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और विहिप के उच्च पदस्थ सूत्रों के अनुसार संघ ने भी समाज में नीचे तक यह संदेश दिया है कि उच्चतम न्यायालय के फैसले को लेकर किसी की हार या जीत के रूप में टीका टिप्पणी न हो। यदि ‘अनुकूल’ निर्णय आता है तो इसे केवल सत्य एवं न्याय के पक्ष में फैसला कहकर संयम बरता जाये। इसके हिन्दू एवं मुसलमान के बीच सांप्रदायिक रंग लेने से बचाया जाये। सिर्फ यही माना जाये कि एक ऐतिहासिक ‘ग़लती’ को ठीक किया गया है।
उन्होंने कहा कि अगर ‘विपरीत’ फैसला आता है तो भी हिन्दू समाज पूरा संयम बरतेगा तथा उसे उच्चतम न्यायालय की वृहद पीठ में चुनौती देने अथवा संसद में कानून बनवाने का प्रयास करने जैसे न्यायिक एवं संवैधानिक रास्ताें पर ही चलेगा। इस बारे में जनमत तैयार करेगा, लेकिन किसी भी दशा में उन्माद या अराजकता को हवा देने वाले रुख को नहीं अपनायेगा। उन्होंने यह भी कहा कि अयोध्या का फैसला आने के बाद काशी या मथुरा अथवा आक्रांताओं द्वारा तोड़े गये अन्य मंदिरों के बारे में बयान देने या चर्चा शुरू करने की भी कोई जरूरत नहीं है।
यह पूछे जाने पर कि राममंदिर के पक्ष में फैसला आने पर मुसलमानों के लिए क्या संदेश जाएगा सूत्रों ने कहा कि संघ का मानना है कि भारत के मुसलमानों को समझना होगा कि उनके पूर्वज महमूद गज़नवी, मोहम्मद गोरी या बाबर जैसे आक्रांता नहीं हैं। इन आक्रांताओं से बहुत पहले ही इस्लाम भारत में आ चुका था और भारत की पहली मस्जिद पैगंबर-ए-इस्लाम हज़रत मोहम्मद के जीवन के दौरान ही केरल के कोडुंगलूर क्षेत्र में बनाई गई थी। केरल के त्रिशुर ज़िले में स्थित चेरामन पेरुमल मस्जिद अपनी धर्मनिरपेक्ष विचारधारा के लिए मशहूर है।
सूत्रों का कहना है कि गज़नवी, गोरी और बाबर को पूर्वज मानने वाली विचारधारा ने ही पाकिस्तान बनवाया है। जब भारत में रहने वाले मुसलमानों ने पाकिस्तान को अस्वीकार करके वहां की बजाय भारत में ही रहना पसंद किया तो उन्हें पाकिस्तान के निर्माण की विचारधारा से भी किनारा कर लिया। उन्होंने यह भी कहा कि मुसलमानों के लिए यही संदेश है कि ‘वन नेशन, वन पीपुल’ तथा मजहब उनकी पहचान नहीं है बल्कि हजारों साल पुरानी संस्कृति एवं विरासत ही उनकी पहचान है।
सूत्रों ने यह भी कहा कि उनका संघर्ष मुसलमानों से नहीं है बल्कि आक्रांताओं को पूजने या नायक मानने वाली विचारधारा से है। हम मुसलमानों को आक्रांताओं की बजाय भारत की सांस्कृतिक विरासत से जोड़ने के हक़ में हैं। उन्होंने राममंदिर आंदोलन को सांस्कृतिक दासता से मुक्ति का आंदोलन बताया और कहा कि अयोध्या में राममंदिर के निर्माण का कार्य तो 1947 में सोमनाथ के मंदिर के साथ ही हो जाना चाहिए था। लेकिन अब 72 साल बाद इसके समाधान की उम्मीद जगी है।
इधर हिन्दू और मुस्लिम समाज ने लोगाें से अयोध्या में विवादित भूमि के बारे में उच्चतम न्यायालय के फैसले का सम्मान करने और सांप्रदायिक सौहार्द्र बनाये रखने की अपील की है।
दोनों समुदायों के लोगों ने कहा है कि वे न्यायालय के फैसले को स्वीकार करेंगे और स्थिति को सांप्रदायिक रंग नहीं लेने देंगे।
अखिल भारतीय संत समिति, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एवं विश्व हिन्दू परिषद (विहिप) ने जहां हिन्दू समाज की ओर से लोगों से अपील की वहीं आल इंडिया पर्सनल ला बोर्ड और जमाते इस्लामी हिन्द ने मुस्लिम समाज की ओर से यह आह्वान किया।
केन्द्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी के घर पर हुई एक बैठक में भी संघ के सह सरकार्यवाह कृष्ण गोपाल, अखिल भारतीय सह सम्पर्क प्रमुख रामलाल, भारतीय जनता पार्टी के नेता शाहनवाज हुसैन, जमीयत उलेमा ए हिन्द के महासचिव मौलाना महमूद मदनी, पूर्व सांसद शाहिद सिद्दकी , शिया धर्म गुरु मौलाना कलबे जव्वाद, पत्रकार कमर आगा, फिल्म निर्माता मुज्जफर अली और शिक्षाविद फुरकान अहमद आदि ने भी इस तरह के विचार व्यक्त किये।
मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड और जमाते इस्लामी ने एक प्रस्ताव पारित कर सरकार से मांग की है कि वह उच्चतम न्यायालय का फैसला आने पर देश में शांति, सौहार्द्र और कानून व्यवस्था की स्थिति सुनिश्चित करे। उन्होंने मीडिया से भी अपील की है कि वह दोनों समुदायों के बीच नफरत और घृणा का माहौल न फैलाये और शांति बनाये रखने के लिए जिम्मेदारी से काम करे।
देश में साधु-संतों की सर्वाेच्च संस्था अखिल भारतीय संत समिति के राष्ट्रीय महामंत्री दंडी स्वामी जीतेन्द्रानंद सरस्वती ने देश के सभी संतों को एक पत्र लिख कर निवेदन किया है कि सभी संत इस विषय को जय-पराजय से दूर रख कर राष्ट्रीय एकता एवं अखंडता बनाये रखने में सहयोग करें। उनके प्रवचन तथा भाषण समाज में उन्माद पैदा न करें। किसी को चिढ़ाने का कार्य न हो।
उन्होंने कहा कि न्यायालय का निर्णय आने के पहले या बाद में संतों की प्रतिक्रिया पत्रकारों एवं सोशल मीडिया के माध्यम से समाज तक पहुंचेगी। सभी से यह प्रार्थना है कि यदि किसी को प्रसन्नता व्यक्त करनी भी हो तो वह अपने घर में व्यक्तिगत पूजा-पाठ, भजन-कीर्तन करके आनंदित हों। किसी भी प्रकार की प्रतिक्रिया व्यक्त करने की बजाय अपने भक्तों तथा सहयोगियों को समाज में शांति बनाये रखने के लिए प्रेरित करें।