नयी दिल्ली, पांच अक्टूबर । हरियाणा विधानसभा चुनाव में टिकट वितरण से नाराज प्रदेश कांग्रेस समिति के पूर्व अध्यक्ष अशोक तंवर ने शनिवार को पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया और आरोप लगाया कि कांग्रेस के भीतर के कुछ लोगों के कारण पार्टी अस्तित्व के संकट से जूझ रही है।
तंवर ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को भेजे त्यागपत्र में यह आरोप भी लगाया कि पार्टी को खत्म करने की साजिश की जा रही है।
कुछ दिनों पहले ही उन्होंने राज्य विधानसभा चुनाव के बनी विभिन्न समितियों से इस्तीफा दे दिया था।
तंवर ने बातचीत में कहा कि उनके सामने पार्टी छोड़ने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा था और वह फिलहाल भाजपा या किसी अन्य पार्टी में शामिल नहीं होने जा रहे।
उन्होंने यह आरोप भी लगाया कि राहुल गांधी के करीबियों की ‘राजनीतिक हत्या’ की जा रही है।
त्यागपत्र में तंवर ने कहा, ‘मौजूदा समय में कांग्रेस अपने राजनीतिक विरोधियों के कारण नहीं, बल्कि आपसी अंतर्विरोधों के चलते अस्तित्व के संकट से जूझ रही है। जमीन से उठे और किसी बड़े राजनीतिक परिवार से ताल्लुक नहीं रखने वाले मेहनती कार्यकर्ताओं की अनदेखी की जा रही है।’
उन्होंने यह आरोप भी लगाया कि पार्टी में ‘‘पैसे, ब्लैकमेलिंग और दबाव बनाने रणनीति’’ काम कर रही है।
तंवर ने पार्टी के महासचिव प्रभारी गुलाम नबी आजाद और पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा पर तीखा हमला बोला और आरोप लगाया कि इन नेताओं के साथ ‘सांठगांठ’ ही टिकट पाने का सबसे महत्वपूर्ण मापदण्ड रहा और ऐसे में पांच साल मेहनत करने वाले कई कार्यकर्ता टिकट पाने से उपेक्षित रह गए।
उन्होंने कांग्रेस से अपने अपने ढाई दशक के जुड़ाव और राजनीतिक घटनाक्रमों का हवाला देते हुए कहा, ‘मेरी लड़ाई व्यक्तिगत नहीं है, बल्कि उस व्यवस्था के खिलाफ है जो देश की सबसे पुरानी पार्टी को खत्म कर रही है।’
दरअसल, पिछले महीने तंवर को हटाकर पूर्व केंद्रीय मंत्री कुमारी शैलजा को प्रदेश कांग्रेस समिति का अध्यक्ष बनाया गया था। इसके साथ ही हुड्डा को नेता प्रतिपक्ष और चुनाव प्रबन्धन समिति का प्रमुख बनाया गया था।
तंवर और समर्थकों ने टिकट वितरण में भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए पिछले दिनों पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी के आवास के बाहर प्रदर्शन किया था।
शैलजा ने तंवर के आरोपों को खारिज करते हुए शुक्रवार को कहा कि टिकट तय प्रक्रिया के तहत दिए गए हैं और सभी नेताओं को मिलकर कांग्रेस को जिताने के लिए काम करना चाहिए।
ये है अशोक तंवर और भूपेंद्र हुड्डा के बीच तना-तनी की कहानी –
विधानसभा चुनाव के दौरान हरियाणा कांग्रेस में जो बड़ी कलह सामने आई है उसकी स्क्रिप्ट तो 2014 से पहले ही लिखी जा चुकी थी,भूपेंद्र सिंह हुड्डा की सत्ता जाने के बाद यह कलह और बढ़ गई थी,इन दो नेताओं के बीच चल रही रस्साकशी का परिणाम 2019 का चुनाव आते-आते अशोक तंवर के इस्तीफे के रूप में सड़क पर गया है।
दरअसल, हरियाणा कांग्रेस में हुड्डा और तंवर गुट दो बड़े गुट हैं और दोनों जनता को साफ नजर आ रहे थे। आज तो सिर्फ इस्तीफे की रस्म अदायगी भर हुई है।
इनकी गुटबाजी की राजनीति का आलम यह है कि,कांग्रेस के कार्यक्रमों में दोनों नेता और उनके कार्यकर्ता अलग दिखाने के चक्कर में भिन्न रंग की पगड़ियों में नजर आते थे।तंवर के समर्थक लाल और हुड्डा के समर्थक गुलाबी पगड़ी में आते थे।तंवर के इस्तीफे के बाद अब पार्टी की रैलियों में यह ‘पगड़ी पॉलिटिक्स’ नहीं होगी और अब सबकुछ गुलाबी ही गुलाबी दिखेगा।
हरियाणा कांग्रेस में चल रही गुटबाजी खुलकर सामने आ गई है
दरअसल, यह पार्टी में पावर की लड़ाई की कहानी है। अशोक तंवर करीब छह साल से हरियाणा कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष थे, जबकि भूपेंद्र हुड्डा लगातार 10 साल तक सीएम रह चुके हैं,जब सीएम की कुर्सी गई तो हुड्डा प्रदेश की कमान अपने हाथ में चाहते थे. लेकिन राहुल गांधी ने तंवर पर विश्वास किया।तंवर जेएनयू से पढ़े-लिखे हैं. वो दलित समाज से आते हैं जबकि हुड्डा हरियाणा के सबसे प्रभावशाली जाट समाज से।
तंवर की शादी पूर्व राष्ट्रपति पंडित शंकर दयाल शर्मा की नातिन अवंतिका से हुई है. वो कांग्रेस नेता रहे ललित माकन की बेटी हैं।अवंतिका के पिता ललित माकन और केंदीय मंत्री रहे अजय माकन के पिता सीपी माकन भाई थे. जबकि भूपेंद्र हुड्डा के पिता रणबीर सिंह हुड्डा संविधान निर्मात्री सभा के सदस्य रहे हैं।
तंवर और हुड्डा में कभी बनी नहीं।दोनों कांग्रेस की एक म्यान में दो तलवार की तरह थे,अंतत: एक को जाना पड़ा।कांग्रेस के बड़े सिपाही होते हुए भी दोनों नेता एक दूसरे से अलग-अलग रहते थे,एक मंच पर आने से बचते थे,जब कांग्रेस नेतृत्व हरियाणा में कहीं भी बीजेपी के खिलाफ रैली करता था तो दोनों के बीच चल रही जंग खुलकर दिखती थी,एक के समर्थक गुलाबी तो दूसरे के लाल रंग की पगड़ी में होते थे।
दोनों की लड़ाई में पार्टी ने झेला नुकसान-
लोकसभा चुनाव से पहले 2018 में दोनों नेता शक्ति प्रदर्शन करते दिखाई दे रहे थे,भूपेंद्र सिंह हुड्डा जनक्रांति रथयात्रा निकाल रहे थे तो अशोक तंवर साइकिल यात्रा।दोनों की इस लड़ाई में कार्यकर्ता और नेता भी दो धड़ों में बंटे हुए थे, जिन नेताओं को भूपेंद्र हुड्डा पार्टी में शामिल करवाते थे उन्हें प्रदेश अध्यक्ष की हैसियत से कभी अशोक तंवर मान्यता नहीं देते थे. दोनों की इसी लड़ाई में पांच साल से हरियाणा में न तो कांग्रेस का कोई जिलाध्यक्ष है और न ही ब्लॉक अध्यक्ष,तीन बड़े चुनाव पार्टी ने बिना संगठन के लड़ा है और उसका परिणाम यह है कि पार्टी यहां की सियासत में हाशिए पर आ गई है।
कांग्रेस को बड़े वोटबैंक से झेलनी पड़ सकती है नाराजगी-
हरियाणा के वरिष्ठ पत्रकार नवीन धमीजा कहते हैं कि तंवर के पार्टी छोड़ने से अनुसूचित जाति के लोग कांग्रेस से नाराज हो सकते हैं,इस समुदाय की आबादी यहां पर करीब 21 फीसदी है,हालांकि इसी डर से कांग्रेस ने तंवर को अध्यक्ष पद से हटाने के बाद उनके बदले दलित समाज से ही आने वाली कुमारी सैलजा को पार्टी की कमान सौंपी थी,फिर भी चुनावी मौसम में एक बड़े नेता का पार्टी छोड़ना परेशानी तो खड़ा ही करेगा।
राहुल गांधी की पसंद थे अशोक तंवर
धमीजा कहते हैं कि तंवर लगातार अध्यक्ष बने हुए थे तो इसके पीछे उन पर राहुल गांधी का हाथ था, जबकि भूपेंद्र हुड्डा फिर से कांग्रेस की ओर से सीएम पद के दावेदार बनाए गए हैं तो इसके पीछे उन पर सोनिया गांधी का आशीर्वाद बताया जाता है।अशोक तंवर ने टिकट वितरण में अपने साथ हुई नाइंसाफी के खिलाफ सोनिया गांधी के घर के बाहर प्रदर्शन किया,उन्होंने इसके लिए राहुल गांधी का घर नहीं चुना।