अहमदाबाद 25 अक्टूबर ।चुनाव आयोग ने गुजरात चुनाव की तारीखों की घोषणा कर दी है. 182 सीटों पर दो चरणों में चुनाव होगा. पहले चरण की वोटिंग 9 दिसंबर को होगी. दूसरे चरण के लिए 14 दिसंबर को वोटिंग होगी. 18 दिसंबर को काउंटिंग होगी यानी पता चल जाएगा किसकी सरकार बनी.
गुजरात में आचार संहिता 25 अक्टूबर से ही लागू हो गई है. ये केंद्र सरकार पर भी लागू होगी यानी केंद्र गुजरात के लिए कोई नई घोषणा नहीं कर सकेगा.
ये बातें भी बताईं इलेक्शन कमीशन ने
– गुजरात में 4 करोड़ 30 लाख वोटर
– 50,128 पोलिंग बूथ बनाए जाएंगे, सभी में सीसीटीवी कैमरा रहेंगे
– सभी बूथों पर वीवीपैट(VVPAT) मशीनों का इस्तेमाल किया जाएगा
– गुजराती भाषा में भी वोटिंग गाइड मिलेगी
– 102 बूथ पर महिला पोलिंग स्टाफ
– हर उम्मीदवार के लिए खर्च की सीमा 28 लाख रुपये होगी, इसके लिए अलग खाता खुलवाना होगा
– राज्य में शराब ना आ पाए, इसके लिए बॉर्डर एरिया के चेक पोस्ट्स पर सीसीटीवी कैमरे लगाए जाएंगे
– टीवी, सिनेमा हॉल, एफएम आदि पर विज्ञापनों पर चुनाव आयोग नजर रखेगा
– लोगों की शिकायत सुनने के लिए चुनाव आयोग एक खास मोबाइल ऐप लॉन्च करेगा
गुजरात विधानसभा की मौजूदा स्थिति
-बीजेपी – 115
-कांग्रेस – 61
-अन्य – 6
आंदोलनों ने गुजरात का खेला कॉम्पलिकेटेड बनाया
पिछले तीन सालों में गुजरात ने दो बड़े जातिगत आंदोलन देखे हैं. पटेल आरक्षण के लिए हुए पटेल अनामत आंदोलन और ऊना में दलितों के पीटे जाने के बाद हुआ दलित आंदोलन.
इस दोनों आंदोलनों ने दो युवा चेहरे दिए हैं, हार्दिक पटेल और जिग्नेश मेवानी. हार्दिक की राहुल गांधी और राजस्थान के पूर्व सीएम अशोक गहलोत से बातचीत होने की चर्चा है. वो राहुल के गुजरात दौरे का स्वागत भी कर चुके हैं. जिग्नेश का सुर भी बीजेपी सरकार के खिलाफ ही है. एक और ओबीसी नेता अल्पेश ठाकोर हैं जो कांग्रेस का दामन थाम चुके हैं.
गुजरात के बारे में कहा जाता है कि 2002 के बाद यहां धर्म के आधार पर ध्रुवीकरण होता आया है.पाटीदारों के आरक्षण के लिए हार्दिक पटेल पिछले दो साल से आंदोलन चला रहे हैं.
कांग्रेस काडर का मनोबल भी ऊंचा दिख रहा है
गुजरात में बीजेपी के पास मोदी जैसा कोई करिश्माई चेहरा अब नहीं है. 2014 के बाद पार्टी दो दफा मुख्यमंत्री बदल चुकी है. जिस तरीके से सोशल मीडिया पर आनंदीबेन पटेल का ‘इस्तीफ़ा’ हुआ, वो बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व में चल रही तनातनी की भनक देता है. अहमद पटेल जिस तरह एक “टेक्निकल रीज़न” के चलते अपनी राजसभा सदस्यता बचा ले गए, उसने कांग्रेस काडर का मनोबल कुछ ऊंचा किया था. साथ ही शंकर सिंह वाघेला के पार्टी छोड़ने के बाद कांग्रेस के भीतर उस खेमेबंदी का खत्मा हुआ है, जिससे वो लंबे समय से जूझ रही थी. राजनीतिक लिहाज़ से राहुल गांधी के हालिया दौरे भी सफल कहे जा सकते हैं.
राहुल गांधी इन दिनों गुजरात में लगातार सभाएं कर रहे हैं ।
बीजेपी के लिए राहुल गांधी गुजरात में परेशानी का सबब बने हुए हैं. इसे इस बात से समझा जा सकता है कि राहुल के गुजरात दौरे के दौरान अमित शाह स्मृति ईरानी के साथ अमेठी में जनसभा कर रहे थे. इसके अलावा 1995 से सूबे में बीजेपी की सरकार है. ऐसे में बीजेपी के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर माने एंटी इनकंबेंसी वाला मामला भी बन सकता है.
दिलचस्प होने जा रहे हैं गुजरात चुनाव
हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि मोदी भले ही गुजरात की राजनीति में ना हों, लेकिन गुजरात उनकी राजनीति में है. वो मुख्यमंत्री रहते हुए विभिन्न मंचों से ‘मेरे छह करोड़ गुजराती भाई-बहन’ कहते हुए सुने जा सकते थे. गुजराती अस्मिता के नाम पर बीजेपी कांग्रेस की सभी रणनीतियों पर पानी फेरने में सक्षम रही है.
मोदी भले ही केंद्र की राजनीति में आ गए हों, लेकिन सूबे में उनके प्रति दीवानगी को कम करके आंकना गलती होगी. पीएम मोदी ने अपने हालिया दौरे में भी अपना गुजरात प्रेम जाहिर किया. कांग्रेस को गुजरात का दुश्मन बताया था.
पीएम नरेंद्र मोदी गुजरात में एक बार फिर ऐक्टिव हो गए हैं.
गुजरात प्रधानमंत्री का गृह राज्य है और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह का भी. गुजरात में बीजेपी की हार या जीत के परिणाम दूरगामी होंगे. बीजेपी किसी भी हालत में गुजरात नहीं हारना चाहेगी. वहीं, पंद्रह साल बाद कांग्रेस एक बार फिर से बीजेपी के सामने कड़ी चुनौती पेश कर रही है. इस लिहाज़ से ये चुनाव काफी दिलचस्प होने जा रहे हैं.