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गया कोठा तीर्थ उज्जैन

उज्जैन में हैं पितरों को मोक्ष देने वाला गया तीर्थ,भगवान श्री कृष्ण के प्रकट से कहलाया”गयाकोठा तीर्थ “,वर्ष 2023 की श्राद्ध पक्ष की तिथियाँ और श्राद्ध नियमों की पूरी जानकारी विस्तार से जानिए attacknews.in

उज्जैन में हैं पितरों को मोक्ष देने वाला गया तीर्थ,भगवान श्री कृष्ण के प्रकट से कहलाया “गयाकोठा तीर्थ “, वर्ष 2023 की श्राद्ध पक्ष की तिथियाँ और श्राद्ध नियमों की पूरी जानकारी व

Gaya Tirtha, which gives salvation to the ancestors, is in Ujjain, called “Gayakotha Tirtha” after the appearance of Lord Shri Krishna, know the complete information about Shraddha Paksha dates and Shraddha rules of the year 2023 in detail.

लेखक: पंडित आशीष जोशी, उज्जैन

श्राद्ध पक्ष में उज्जैन स्थित गया कोठा का विशेष महत्व है।

इसके पीछे एक कथा है कि भगवान श्रीकृष्ण और बलराम ने उज्जैन में गुरु सांदीपनि से शिक्षा ग्रहण की थी। स्कंद पुराण के अवंतिका खंड के अनुसार शिक्षा प्राप्त करने के बाद जब श्रीकृष्ण ने गुरु सांदीपनि से कहा कि आपको गुरु दक्षिणा में क्या दे सकता हूं तब उन्होंने कहा था कि मुझे कुछ नहीं चाहिए। मैं आपको शिक्षा देकर ही धन्य हो गया। तब गुरु माता अरुंधति ने श्रीकृष्ण से कहा था कि उनके सात गुरु भाइयों को गजाधर नामक राक्षस अपने साथ ले गया है। वे उन सभी को लेकर आए। तब श्रीकृष्ण ने कहा कि छह भाइयों का गजाधर वध कर चुका है। उन्हें लेकर आऊंगा तो यह प्रकृति के विरुद्ध होगा। एक अन्य गुरु भाई को उसने पाताल लोक में छुपाकर रखा है। वे उसे ला सकते हैं।

इसके बाद भगवान श्रीकृष्ण ने गयाधर का रूप धारण कर गजाधर का वध किया था और उक्त गुरु भाई को उनके पास लाकर सुपुर्द किया था। तब गुरु माता ने छह गुरु भाइयों के मोक्ष का सरल उपाय बताने को कहा था।

उनका कहना था कि गुरु सांदीपनि नदी पार नहीं कर सकते। तब श्रीकृष्ण ने बिहार के गया में स्थित फल्गु नदी को गुप्त रूप से उज्जैन में प्रकट किया था। यह अंकपात मार्ग स्थित सांदीपनि आश्रम के पास स्थित है। यह स्थान ‘गयाकोठा’ कहलाता है।

गयाकोठा तीर्थ पर भगवान श्री विष्णु के सहस्त्र चरण विद्यमान हैं। जिन पर दुग्धाभिषेक कर यहां आने वाले अपने पितरों की मुक्ति और मनोवांछित फल प्राप्त करते हैं। हालांकि श्राद्धपक्ष के प्रारंभ में और सर्वपितृ अमावस्या पर यहां पूजन करने वालों की अधिक तादाद होती है मगर अन्य दिनों में भी यहां लोग बडी संख्या में आकर दर्शन लाभ लेते हैं। 

माना जाता है कि भगवान श्री विष्णु के ये चरण आदि काल से हैं। इनका पूजन कर भक्त अपने को धन्य मानते हैं। दूसरी ओर मंदिर के बाहर एक तालाब है। जिसमें पर्व विशेष पर महिलाओं द्वारा स्नान किया जाता है। मंदिर परिसर में ही महादेव का मंदिर भी है। इस मंदिर के दर्शन करने और यहां अभिषेक करवाने से व्यक्ति समस्त प्रकार के ऋणों और बंधनों से मुक्त हो जाता है।

यूं तो गयाकोठा मंदिर में श्रद्धालु अपनी इच्छा से जो चढा देते हैं स्वीकार हो जाता है मगर पितरों की शांति के निमित्त भगवान श्री विष्णु के सहस्त्र चरण कमलों में दूध और जल चढ़ाने से अधिक पुण्यलाभ मिलता है और इसका श्राद्ध पक्ष में और भी महत्व बढ़ जाता है ।

हिंदू मान्यता में श्राद्ध का बहुत महत्व है। शाब्दिक अर्थ में श्राद्ध अर्थात् श्रद्धा से किया गया कोई कर्म जो हम अपने पूर्वजों की इच्छा पूर्ति और सद्गति के निमित्त करते हैं। अर्थात् जिस तरह से आजीवन हम अपने माता पिता की सेवा करते हैं। उसी प्रकार उनकी मृत्यु हो जाने के बाद आत्मा की परमगति और उनके प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने के लिए उन्हें श्राद्ध के माध्यम से पूजा जाता है।

माना जाता है कि श्राद्ध न करने पर पितरों की अतृप्त इच्छाओं के कारण वासनायुक्त पितर अनिष्ट शक्तियों के दास बन जाते हैं।

हालांकि आपको जानकर आश्चर्य होगा कि जो हिंदू धर्म आत्मा को अजन्मा, नित्य, अलौकिक जानता है वही इसे अतृप्त वासनाओं में फंसा हुआ मानता है। ऐसा क्यों। ऐसा इसलिए क्योंकि मरने के बाद जीवात्मा की जो गति होती है। वह उस जन्म में किए उसके कर्मों के फलस्वरूप होती है। जीवात्मा मरने के कुछ दिन तक उस शरीर और उस शरीर से जुड़े सगे संबंधियों से जुड़ा रहता है। अंतिम क्रिया कर्म की विधी पूरी होने के बाद वह जीवात्मा उस बंधन से मुक्त हो जाता है। मुक्त होने के कुछ समय बाद भी वह जीवात्मा अलग अलग सूक्ष्म योनियों में भटकता रहता है,जिसमें वह अपने उस जन्म के संबंधियों और विषयवासनाओं से यदि मुक्त नहीं हो पाता तो वह अपनी इच्छाओं की पूर्ति होने तक या फिर विधिविधान से उसकी मुक्ति के लिए किए जाने वाले कर्मों तक सूक्ष्म योनि में भटकता ही रहता है। 

गरूड़ पुराण और अन्य पुराणों में उपरोक्त ऐसी मान्यताएं वर्णित है। ऐसे जीवात्मा की मुक्ति हेतु श्राद्ध सर्वाधिक उपयुक्त कहे गए हैं। ये श्राद्धकर्म विभिन्न प्रकार के होते हैं। जो कि श्राद्ध पक्ष के अलावा भी किए जाते हैं। मगर प्रमुखरूप से प्रतिवर्ष पितरों की शांति के निमित्त किए जाने वाले श्राद्ध नियमितरूप से श्राद्ध पक्ष में किए जाते हैं। जो कि भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से प्रारंभ माना जाता है। यह श्राद्ध पक्ष अमावस्या जिसे सर्वपितृ अमावस्या के नाम से जाना जाता है, तक चलता रहता है। जिसमें व्यक्ति की मृत्यु की तिथी पर श्राद्ध किया जाता है।

गया जी (बिहार) में व्यक्ति माता-पिता के ऋण से मुक्त होता है। लेकिन उज्जैन के गया कोठा में स्वयं के ऋण से भी उसे मुक्ति मिलती है। यहां प्रत्येक तिथि के चरण विराजमान हैं। यहां इन चरणों और सप्तऋषि की साक्षी में कर्म किया जाता है। यहां पितृ शांति और महालय श्राद्ध भी किया जाता है। इसीलिए गयाकोठा का पुराणों में भी विशेष महत्व है ।

भारतीय शास्त्रों में ऐसी मान्यता है कि पितृगण पितृपक्ष में पृथ्वी पर आते हैं और 15 दिनों तक पृथ्वी पर रहने के बाद अपने लोक लौट जाते हैं। शास्त्रों में बताया गया है कि पितृपक्ष के दौरान पितृ अपने परिजनों के आस-पास रहते हैं इसलिए इन दिनों कोई भी ऐसा काम नहीं करें जिससे पितृगण नाराज हों।

पितरों को खुश रखने के लिए पितृ पक्ष में कुछ बातों पर विशेष ध्यान देना चाहिए। पितृ पक्ष के दौरान , जामाता, भांजा, मामा, गुरु, नाती को भोजन कराना चाहिए। इससे पितृगण अत्यंत प्रसन्न होते हैं, भोजन करवाते समय भोजन का पात्र दोनों हाथों से पकड़कर लाना चाहिए अन्यथा भोजन का अंश राक्षस ग्रहण कर लेते हैं जिससे ब्राह्मणों द्वारा अन्न ग्रहण करने के बावजूद पितृगण भोजन का अंश ग्रहण नहीं करते हैं।

पितृ पक्ष में द्वार पर आने वाले किसी भी जीव-जंतु को मारना नहीं चाहिए बल्कि उनके योग्य भोजन का प्रबंध करना चाहिए। हर दिन भोजन बनने के बाद एक हिस्सा निकालकर गाय, कुत्ता, कौआ अथवा बिल्ली को देना चाहिए।

मान्यता है कि इन्हें दिया गया भोजन सीधे पितरों को प्राप्त हो जाता है। शाम के समय घर के द्वार पर एक दीपक जलाकर पितृगणों का ध्यान करना चाहिए।

हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार जिस तिथि को जिसके पूर्वज गमन करते हैं, उसी तिथि को उनका श्राद्ध करना चाहिए। इस पक्ष में जो लोग अपने पितरों को जल देते हैं तथा उनकी मृत्युतिथि पर श्राद्ध करते हैं, उनके समस्त मनोरथ पूर्ण होते हैं। जिन लोगों को अपने परिजनों की मृत्यु की तिथि ज्ञात नहीं होती, उनके लिए पितृ पक्ष में कुछ विशेष तिथियां भी निर्धारित की गई हैं, जिस दिन वे पितरों के निमित्त श्राद्ध कर सकते हैं।

आश्विन कृष्ण प्रतिपदा: इस तिथि को नाना-नानी के श्राद्ध के लिए सही बताया गया है। इस तिथि को श्राद्ध करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है। यदि नाना-नानी के परिवार में कोई श्राद्ध करने वाला न हो और उनकी मृत्युतिथि याद न हो, तो आप इस दिन उनका श्राद्ध कर सकते हैं।

पंचमी: जिनकी मृत्यु अविवाहित स्थिति में हुई हो, उनका श्राद्ध इस तिथि को किया जाना चाहिए।

नवमी: सौभाग्यवती यानि पति के रहते ही जिनकी मृत्यु हो गई हो, उन स्त्रियों का श्राद्ध नवमी को किया जाता है। यह तिथि माता के श्राद्ध के लिए भी उत्तम मानी गई है। इसलिए इसे मातृनवमी भी कहते हैं। मान्यता है कि इस तिथि पर श्राद्ध कर्म करने से कुल की सभी दिवंगत महिलाओं का श्राद्ध हो जाता है।

एकादशी और द्वादशी: एकादशी में वैष्णव संन्यासी का श्राद्ध करते हैं। अर्थात् इस तिथि को उन लोगों का श्राद्ध किए जाने का विधान है, जिन्होंने संन्यास लिया हो।

चतुर्दशी: इस तिथि में शस्त्र, आत्म-हत्या, विष और दुर्घटना यानि जिनकी अकाल मृत्यु हुई हो उनका श्राद्ध किया जाता है जबकि बच्चों का श्राद्ध कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को करने के लिए कहा गया है।

सर्वपितृमोक्ष अमावस्या: किसी कारण से पितृपक्ष की अन्य तिथियों पर पितरों का श्राद्ध करने से चूक गए हैं या पितरों की तिथि याद नहीं है, तो इस तिथि पर सभी पितरों का श्राद्ध किया जा सकता है। शास्त्र अनुसार, इस दिन श्राद्ध करने से कुल के सभी पितरों का श्राद्ध हो जाता है। यही नहीं जिनका मरने पर संस्कार नहीं हुआ हो, उनका भी अमावस्या तिथि को ही श्राद्ध करना चाहिए। बाकी तो जिनकी जो तिथि हो, श्राद्धपक्ष में उसी तिथि पर श्राद्ध करना चाहिए। यही उचित भी है।

तो आइए  जानते हैं पितृ पक्ष की प्रमुख तिथियों और महत्व के बारे में-

पितृ पक्ष 2023 कब से शुरू हो रहे हैं?

इस वर्ष पितृ पक्ष 29 सितंबर 2023, शुक्रवार से प्रारंभ हो रहा है इस दिन पूर्णिमा श्राद्ध और प्रतिपदा श्राद्ध है। पितृ पक्ष का समापन 14 अक्टूबर, शनिवार को होगा।

पंचांग के अनुसार, भाद्रपद पूर्णिमा 29 सितंबर को दोपहर 03:26 बजे तक है और उसके बाद आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि शुरू हो जाएगी, जो 30 सितंबर को दोपहर 12:21 बजे तक है।

पितृ पक्ष में तिथि का महत्व

जब पितृ पक्ष प्रारंभ होता है तो प्रत्येक दिन की एक तिथि होती है तिथि के अनुसार ही श्राद्ध करने का नियम है ।उदाहरण के लिए, इस वर्ष द्वितीया श्राद्ध 30 सितंबर को है यानि पितृ पक्ष में श्राद्ध की द्वितीया तिथि है, जिन लोगों के पूर्वजों की मृत्यु किसी भी महीने की द्वितीया तिथि को होती है, वे पितृ पक्ष के दूसरे दिन अपने पूर्वजों का श्राद्ध करते हैं ।इसी प्रकार पूर्वज की मृत्यु भी माह और पक्ष की नवमी तिथि को होगी वे पितृ पक्ष की नवमी श्राद्ध के लिए तर्पण, पिंडदान आदि की कामना करते हैं।

पितृ पक्ष 2023 श्राद्ध की मुख्य तिथियां

पूर्णिमा श्राद्ध- 29 सितंबर 2023
प्रतिपदा का श्राद्ध – 29 सितंबर 2023
द्वितीया श्राद्ध तिथि- 30 सितंबर 2023
तृतीया तिथि का श्राद्ध- 1 अक्टूबर 2023
चतुर्थी तिथि श्राद्ध- 2 अक्टूबर 2023
पंचमी तिथि श्राद्ध- 3 अक्टूबर 2023
षष्ठी तिथि का श्राद्ध- 4 अक्टूबर 2023
सप्तमी तिथि का श्राद्ध- 5 अक्टूबर 2023
अष्टमी तिथि का श्राद्ध- 6 अक्टूबर 2023
नवमी तिथि का श्राद्ध- 7 अक्टूबर 2023
दशमी तिथि का श्राद्ध- 8 अक्टूबर 2023
एकादशी तिथि का श्राद्ध- 9 अक्टूबर 2023
माघ तिथि का श्राद्ध- 10 अक्टूबर 2023
द्वादशी तिथि का श्राद्ध- 11 अक्टूबर 2023
त्रयोदशी तिथि का श्राद्ध- 12 अक्टूबर 2023
चतुर्दशी तिथि का श्राद्ध- 13 अक्टूबर 2023
सर्वपितृ मोक्ष श्राद्ध तिथि- 14 अक्टूबर 2023
          पितृ पक्ष के दौरान करें ये उपाय

शास्त्रों में ज्ञात है कि पितृ पक्ष में स्नान, दान और तर्पण आदि का विशेष महत्व होता है इस दौरान श्राद्ध कर्म या पिंडदान आदि किसी जानकार व्यक्ति से ही कराना चाहिए साथ ही किसी ब्राह्मण या जरूरतमंद को भोजन, धन या वस्त्र का दान करें ऐसा करने से पितरों का आशीर्वाद मिलता है ।

पितृ पक्ष में पूर्वजों की मृत्यु की तिथि के अनुसार श्राद्ध कर्म या पिंडदान किया जाता है यदि किसी व्यक्ति को अपने पूर्वजों की मृत्यु की तिथि याद नहीं है तो वह आश्विन कृष्ण पक्ष की अमावस्या के दिन यह अनुष्ठान कर सकता है ऐसा करने से भी पूर्ण फल प्राप्त होता है।

श्राद्ध पक्ष 29 सितंबर 2023 पितृ पक्ष शुरू हो रहे हैं, जो 16 दिन चलकर 14 अक्टूबर को समाप्त होंगे !

जानें पितृ पक्ष की 16 तिथियों में किस दिन करें !

किनका श्राद्ध.पितृ पक्ष में श्राद्ध की 16 तिथियों का क्या है महत्व, किस तिथि में किनका करें श्राद्ध !

हिंदू धर्म में श्राद्ध पक्ष का बहुत महत्व है !

हिंदू धर्म में पितृ पक्ष या श्राद्ध पक्ष को बहुत ही महत्वपूर्ण माना गया है, जोकि पूरे 16 दिनों तक चलता है. इस दौरान पितरों का श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान करने का विधान है. मान्यता है कि, पितृ पक्ष में किए श्राद्ध कर्म से पितर तृप्त होते हैं और पितरो का ऋण उतरता है. 

पंचांग के अनुसार, हर साल भाद्रपद माह की पूर्णिमा तिथि से लेकर आश्विन अमावस्या तक पितृ पक्ष होता है !

इन 16 दिनों में पूर्वजों के निमित्त श्राद्ध किए जाते हैं. इस साल पितृ पक्ष 29 सितंबर 2023 से शुरू हो जाएगा और 14 अक्टूबर को इसकी समाप्ति होगी.

पितृ पक्ष को लेकर हिंदू धर्म में ऐसी मान्यता है कि, इस समय पितृ धरती लोक पर आते हैं और किसी न किसी रूप में अपने परिजनों के आसपास रहते हैं. इसलिए इस समय श्राद्ध करने का विधान है. श्राद्ध के लिए 16 तिथियां बताई गई हैं. लेकिन किन तिथियों में किस पितर पर श्राद्ध करना चाहिए !

पितृ पक्ष की तिथियां :—

29 सितंबर 2023, पूर्णिमा और प्रतिपदा का श्राद्ध.!

शनिवार 30 सितंबर 2023, द्वितीया तिथि का श्राद्ध.!

रविवार 01 अक्टूबर 2023, तृतीया तिथि का श्राद्ध.!

सोमवार 02 अक्टूबर 2023, चतुर्थी तिथि का श्राद्ध.!

मंगलवार 03 अक्टूबर 2023, पंचमी तिथि का श्राद्ध.!

बुधवार 04 अक्टूबर 2023, षष्ठी तिथि का श्राद्ध.!

गुरुवार 05 अक्टूबर 2023, सप्तमी तिथि का श्राद्ध.!

शुक्रवार 06 अक्टूबर 2023, अष्टमी तिथि का श्राद्ध.!

शनिवार 07 अक्टूबर 2023, नवमी तिथि का श्राद्ध.!

रविवार 08 अक्टूबर 2023, दशमी तिथि का श्राद्ध.!

सोमवार 09 अक्टूबर 2023, एकादशी तिथि का श्राद्ध.!

मंगलवार 10 अक्टूबर 2023, मघा श्राद्ध.!

बुधवार 11 अक्टूबर 2023, द्वादशी तिथि का श्राद्ध.!

गुरुवार 12 अक्टूबर 2023, त्रयोदशी तिथि का श्राद्ध.!

शुक्रवार 13 अक्टूबर 2023, चतुर्दशी तिथि का श्राद्ध.!

शनिवार 14 अक्टूबर 2023, सर्व पितृ अमावस्या का श्राद्ध.!

किस तिथि में किन पितरों का करें श्राद्ध !

पूर्णिमा तिथि (29 सितंबर 2023)

ऐसे पूर्वज जो पूर्णिमा तिथि को मृत्यु को प्राप्त हुए, उनका श्राद्ध पितृ पक्ष के भाद्रपद शुक्ल की पूर्णिमा तिथि को करना चाहिए. इसे प्रोष्ठपदी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है.

पहला श्राद्ध (30 सितंबर 2023)

जिनकी मृत्यु किसी भी माह के शुक्ल पक्ष या कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि के दिन हुई हो उनका श्राद्ध पितृ पक्ष की इसी तिथि को किया जाता है. इसके साथ ही प्रतिपदा श्राद्ध पर ननिहाल के परिवार में कोई श्राद्ध करने वाला नहीं हो या उनके मृत्यु की तिथि ज्ञात न हो तो भी आप श्राद्ध प्रतिपदा तिथि में उनका श्राद्ध कर सकते हैं.

द्वितीय श्राद्ध (01 अक्टूबर 2023)

जिन पूर्वज की मृत्यु किसी भी महीने के शुक्ल पक्ष या कृष्ण पक्ष की द्वितीया तिथि को हुई हो, उनका श्राद्ध इस दिन किया जाता है.

तीसरा श्राद्ध (02 अक्टूबर 2023)

जिनकी मृत्यु कृष्ण पक्ष या शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि के दिन होती है, उनका श्राद्ध तृतीया तिथि को करने का विधान है. इसे महाभरणी भी कहा जाता है.

चौथा श्राद्ध (03 अक्टूबर 2023)

शुक्ल पक्ष या कृष्ण पक्ष में से चतुर्थी तिथि में जिनकी मृत्यु होती है, उनका श्राद्ध पितृ पक्ष की चतुर्थ तिथि को किया जाता है.

पांचवा श्राद्ध (04 अक्टूबर 2023)

ऐसे पूर्वज जिनकी मृत्यु अविवाहिता के रूप में होती है उनका श्राद्ध पंचमी तिथि में किया जाता है. यह दिन कुंवारे पितरों के श्राद्ध के लिए समर्पित होता है.

छठा श्राद्ध (05 अक्टूबर 2023)

किसी भी माह के षष्ठी तिथि को जिनकी मृत्यु हुई हो, उनका श्राद्ध इस दिन किया जाता है. इसे छठ श्राद्ध भी कहा जाता है.

सातवां श्राद्ध (06 अक्टूबर 2023)

किसी भी माह के शुक्ल पक्ष या कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि को जिन व्यक्ति की मृत्यु होती है, उनका श्राद्ध पितृ पक्ष की इस तिथि को करना चाहिए.

आठवां श्राद्ध (07 अक्टूबर 2023)

ऐसे पितर जिनकी मृत्यु पूर्णिमा तिथि पर हुई हो तो उनका श्राद्ध अष्टमी, द्वादशी या पितृमोक्ष अमावस्या पर किया जाता है.

नवमी श्राद्ध (08 अक्टूबर 2023)

माता की मृत्यु तिथि के अनुसार श्राद्ध न करके नवमी तिथि पर उनका श्राद्ध करना चाहिए. ऐसा माना जाता है कि, नवमी तिथि को माता का श्राद्ध करने से सभी कष्टों से मुक्ति मिलती हैं. वहीं जिन महिलाओं की मृत्यु तिथि याद न हो उनका श्राद्ध भी नवमी तिथि को किया जा सकता है.

दशमी श्राद्ध (09 अक्टूबर 2023)

दशमी तिथि को जिस व्यक्ति की मृत्यु हुई हो, उनका श्राद्ध महालय की दसवीं तिथि के दिन किया जाता है.

एकादशी श्राद्ध (10 अक्टूबर 2023)

ऐसे लोग जो संन्यास लिए हुए होते हैं, उन पितरों का श्राद्ध एकादशी तिथि को करने की परंपरा है.

द्वादशी श्राद्ध (11 अक्टूबर 2023)

जिनके पिता संन्यास लिए हुए होते हैं उनका श्राद्ध पितृ पक्ष की द्वादशी तिथि को करना चाहिए. चाहे उनकी मृत्यु किसी भी तिथि को हुई हो. इसलिए तिथि को संन्यासी श्राद्ध भी कहा जाता है.

त्रयोदशी श्राद्ध (12 अक्टूबर 2023)

श्राद्ध महालय के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को बच्चों का श्राद्ध किया जाता है.

चतुर्दशी तिथि (13 अक्टूबर 2023)

ऐसे लोग जिनकी अकाल मृत्यु हुई हो जैसे आग से जलने, शस्त्रों के आघात से, विषपान से, दुर्घना से या जल में डूबने से हुई हो, उनका श्राद्ध चतुर्दशी तिथि को करना चाहिए.

अमावस्या तिथि (14 अक्टूबर 2023)

पितृ पक्ष के अंतिम दिन सर्वपितृ अमावस्या पर ज्ञात-अज्ञात पूर्वजों के श्राद्ध किए जाते हैं. इसे पितृविसर्जनी अमावस्या, महालय समापन भी कहा जाता है।


पिंडदान करने के लिए सफेद या पीले वस्त्र ही धारण करें। जो इस प्रकार श्राद्धादि कर्म संपन्न करते हैं, वे समस्त मनोरथों को प्राप्त करते हैं और अनंत काल तक स्वर्ग का उपभोग करते हैं।

विशेष: श्राद्ध कर्म करने वालों को निम्न मंत्र तीन बार अवश्य पढ़ना चाहिए। यह मंत्र ब्रह्मा जी द्वारा रचित आयु, आरोग्य, धन, लक्ष्मी प्रदान करने वाला अमृतमंत्र है-

देवताभ्यः पितृभ्यश्च महायोगिश्च एव च। नमः स्वधायै स्वाहायै नित्यमेव भवन्त्युत !!
(वायु पुराण) ।।

श्राद्ध सदैव दोपहर के समय ही करें। प्रातः एवं सायंकाल के समय श्राद्ध निषेध कहा गया है। हमारे धर्म-ग्रंथों में पितरों को देवताओं के समान संज्ञा दी गई है।

‘सिद्धांत शिरोमणि’ ग्रंथ के अनुसार चंद्रमा की ऊध्र्व कक्षा में पितृलोक है जहां पितृ रहते हैं। पितृ लोक को मनुष्य लोक से आंखों द्वारा नहीं देखा जा सकता। जीवात्मा जब इस स्थूल देह से पृथक होती है उस स्थिति को मृत्यु कहते हैं। यह भौतिक शरीर 27 तत्वों के संघात से बना है। स्थूल पंच महाभूतों एवं स्थूल कर्मेन्द्रियों को छोड़ने पर अर्थात मृत्यु को प्राप्त हो जाने पर भी 17 तत्वों से बना हुआ सूक्ष्म शरीर विद्यमान रहता है।

हिंन्दु मान्यताओं के अनुसार एक वर्ष तक प्रायः सूक्ष्म जीव को नया शरीर नहीं मिलता। मोहवश वह सूक्ष्म जीव स्वजनों व घर के आसपास घूमता रहता है। श्राद्ध कार्य के अनुष्ठान से सूक्ष्म जीव को तृप्ति मिलती है इसीलिए श्राद्ध कर्म किया जाता है।

ऐसा कुछ भी नहीं है कि इस अनुष्ठान में जो भोजन खिलाया जाता है वही पदार्थ ज्यों का त्यों उसी आकार, वजन और परिमाण में मृतक पितरों को मिलता है। वास्तव में श्रद्धापूर्वक श्राद्ध में दिए गए भोजन का सूक्ष्म अंश परिणत होकर उसी अनुपात व मात्रा में प्राणी को मिलता है जिस योनि में वह प्राणी है।


पितृ-पक्ष – श्राद्ध-कर्म- क्यों,कैसे और किसलिए  :-

•• इस सृष्टि में हर चीज का अथवा प्राणी का जोड़ा है । जैसे – रात और दिन, अँधेरा और उजाला, सफ़ेद और काला, अमीर और गरीब अथवा नर और नारी इत्यादि बहुत गिनवाये जा सकते हैं । सभी चीजें अपने जोड़े से सार्थक है अथवा एक-दूसरे के पूरक है । दोनों एक-दूसरे पर निर्भर होते हैं । इसी तरह दृश्य और अदृश्य जगत का भी जोड़ा है । दृश्य जगत वो है जो हमें दिखता है और अदृश्य जगत वो है जो हमें नहीं दिखता । ये भी एक-दूसरे पर निर्भर है और एक-दूसरे के पूरक हैं । पितृ-लोक भी अदृश्य-जगत का हिस्सा है और अपनी सक्रियता के लिये दृश्य जगत के श्राद्ध पर निर्भर है । 


•• धर्म ग्रंथों के अनुसार श्राद्ध के सोलह दिनों में लोग अपने पितरों को जल देते हैं तथा उनकी मृत्युतिथि पर श्राद्ध करते हैं। ऐसी मान्यता है कि पितरों का ऋण श्राद्ध द्वारा चुकाया जाता है। वर्ष के किसी भी मास तथा तिथि में स्वर्गवासी हुए पितरों के लिए पितृपक्ष की उसी तिथि को श्राद्ध किया जाता है ।

•• पूर्णिमा पर देहांत होने से भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा को श्राद्ध करने का विधान है। इसी दिन से महालय (श्राद्ध) का प्रारंभ भी माना जाता है। श्राद्ध का अर्थ है श्रद्धा से जो कुछ दिया जाए। पितृपक्ष में श्राद्ध करने से पितृगण वर्षभर तक प्रसन्न रहते हैं। धर्म शास्त्रों में कहा गया है कि पितरों का पिण्ड दान करने वाला गृहस्थ दीर्घायु, पुत्र-पौत्रादि, यश, स्वर्ग, पुष्टि, बल, लक्ष्मी, पशु, सुख-साधन तथा धन-धान्य आदि की प्राप्ति करता है।

•• श्राद्ध में पितरों को आशा रहती है कि हमारे पुत्र-पौत्रादि हमें पिण्ड दान तथा तिलांजलि प्रदान कर संतुष्ट करेंगे। इसी आशा के साथ वे पितृलोक से पृथ्वीलोक पर आते हैं। यही कारण है कि हिंदू धर्म शास्त्रों में प्रत्येक हिंदू गृहस्थ को पितृपक्ष में श्राद्ध अवश्य रूप से करने के लिए कहा गया है।

•• श्राद्ध से जुड़ी कई ऐसी बातें हैं जो बहुत कम लोग जानते हैं। मगर ये बातें श्राद्ध करने से पूर्व जान लेना बहुत जरूरी है क्योंकि कई बार विधिपूर्वक श्राद्ध न करने से पितृ श्राप भी दे देते हैं। आज हम आपको श्राद्ध से जुड़ी कुछ विशेष बातें बता रहे हैं, जो इस प्रकार हैं–

1- श्राद्धकर्म में गाय का घी, दूध या दही काम में लेना चाहिए। यह ध्यान रखें कि गाय को बच्चा हुए दस दिन से अधिक हो चुके हैं। दस दिन के अंदर बछड़े को जन्म देने वाली गाय के दूध का उपयोग श्राद्ध कर्म में नहीं करना चाहिए।

2- श्राद्ध में चांदी के बर्तनों का उपयोग व दान पुण्यदायक तो है ही राक्षसों का नाश करने वाला भी माना गया है। पितरों के लिए चांदी के बर्तन में सिर्फ पानी ही दिए जाए तो वह अक्षय तृप्तिकारक होता है। पितरों के लिए अर्घ्य, पिण्ड और भोजन के बर्तन भी चांदी के हों तो और भी श्रेष्ठ माना जाता है।

3- श्राद्ध में ब्राह्मण को भोजन करवाते समय परोसने के बर्तन दोनों हाथों से पकड़ कर लाने चाहिए, एक हाथ से लाए अन्न पात्र से परोसा हुआ भोजन राक्षस छीन लेते हैं।

4- ब्राह्मण को भोजन मौन रहकर एवं व्यंजनों की प्रशंसा किए बगैर करना चाहिए क्योंकि पितर तब तक ही भोजन ग्रहण करते हैं जब तक ब्राह्मण मौन रह कर भोजन करें।

5- जो पितृ शस्त्र आदि से मारे गए हों उनका श्राद्ध मुख्य तिथि के अतिरिक्त चतुर्दशी को भी करना चाहिए। इससे वे प्रसन्न होते हैं। श्राद्ध गुप्त रूप से करना चाहिए। पिंडदान पर साधारण या नीच मनुष्यों की दृष्टि पडने से वह पितरों को नहीं पहुंचता।

6- श्राद्ध में ब्राह्मण को भोजन करवाना आवश्यक है, जो व्यक्ति बिना ब्राह्मण के श्राद्ध कर्म करता है, उसके घर में पितर भोजन नहीं करते, श्राप देकर लौट जाते हैं। ब्राह्मण हीन श्राद्ध से मनुष्य महापापी होता है।

7- श्राद्ध में जौ, कांगनी, मटरसरसों का उपयोग श्रेष्ठ रहता है। तिल की मात्रा अधिक होने पर श्राद्ध अक्षय हो जाता है। वास्तव में तिल पिशाचों से श्राद्ध की रक्षा करते हैं। कुशा (एक प्रकार की घास) राक्षसों से बचाते हैं।

8- दूसरे की भूमि पर श्राद्ध नहीं करना चाहिए। वन, पर्वत, पुण्यतीर्थ एवं मंदिर दूसरे की भूमि नहीं माने जाते क्योंकि इन पर किसी का स्वामित्व नहीं माना गया है। अत: इन स्थानों पर श्राद्ध किया जा सकता है।

9- चाहे मनुष्य देवकार्य में ब्राह्मण का चयन करते समय न सोचे, लेकिन पितृ कार्य में योग्य ब्राह्मण का ही चयन करना चाहिए क्योंकि श्राद्ध में पितरों की तृप्ति ब्राह्मणों द्वारा ही होती है।

10- जो व्यक्ति किसी कारणवश एक ही नगर में रहनी वाली अपनी बहिन, जमाई और भानजे को श्राद्ध में भोजन नहीं कराता, उसके यहां पितर के साथ ही देवता भी अन्न ग्रहण नहीं करते।

11- श्राद्ध करते समय यदि कोई भिखारी आ जाए तो उसे आदरपूर्वक भोजन करवाना चाहिए। जो व्यक्ति ऐसे समय में घर आए याचक को भगा देता है उसका श्राद्ध कर्म पूर्ण नहीं माना जाता और उसका फल भी नष्ट हो जाता है।

12- शुक्लपक्ष में, रात्रि में, युग्म दिनों (एक ही दिन दो तिथियों का योग) में तथा अपने जन्मदिन पर कभी श्राद्ध नहीं करना चाहिए। धर्म ग्रंथों के अनुसार सायंकाल का समय राक्षसों के लिए होता है, यह समय सभी कार्यों के लिए निंदित है। अत: शाम के समय भी श्राद्धकर्म नहीं करना चाहिए।

13- श्राद्ध में प्रसन्न पितृगण मनुष्यों को पुत्र, धन, विद्या, आयु, आरोग्य, लौकिक सुख, मोक्ष और स्वर्ग प्रदान करते हैं। श्राद्ध के लिए शुक्लपक्ष की अपेक्षा कृष्णपक्ष श्रेष्ठ माना गया है।

14- रात्रि को राक्षसी समय माना गया है। अत: रात में श्राद्ध कर्म नहीं करना चाहिए। दोनों संध्याओं के समय भी श्राद्धकर्म नहीं करना चाहिए। दिन के आठवें मुहूर्त (कुतपकाल) में पितरों के लिए दिया गया दान अक्षय होता है।

15- श्राद्ध में ये चीजें होना महत्वपूर्ण हैं- गंगाजल, दूध, शहद, दौहित्र, कुश और तिल। केले के पत्ते पर श्राद्ध भोजन निषेध है। सोने, चांदी, कांसे, तांबे के पात्र उत्तम हैं। इनके अभाव में पत्तल उपयोग की जा सकती है।

16- तुलसी से पितृगण प्रसन्न होते हैं। ऐसी धार्मिक मान्यता है कि पितृगण गरुड़ पर सवार होकर विष्णु लोक को चले जाते हैं। तुलसी से पिंड की पूजा करने से पितर लोग प्रलयकाल तक संतुष्ट रहते हैं।

17- रेशमी, कंबल, ऊन, लकड़ी, तृण, पर्ण, कुश आदि के आसन श्रेष्ठ हैं। आसन में लोहा किसी भी रूप में प्रयुक्त नहीं होना चाहिए।

18- चना, मसूर, उड़द, कुलथी, सत्तू, मूली, काला जीरा, कचनार, खीरा, काला उड़द, काला नमक, लौकी, बड़ी सरसों, काले सरसों की पत्ती और बासी, अपवित्र फल या अन्न श्राद्ध में निषेध हैं।

19- भविष्य पुराण के अनुसार श्राद्ध 12 प्रकार के होते हैं, जो इस प्रकार हैं-

1- नित्य, 2- नैमित्तिक, 3- काम्य, 4- वृद्धि, 5- सपिण्डन, 6- पार्वण, 7- गोष्ठी, 8- शुद्धर्थ, 9- कर्मांग, 10- दैविक, 11- यात्रार्थ, 12- पुष्टयर्थ

20- श्राद्ध के प्रमुख अंग इस प्रकार :
तर्पण- इसमें दूध, तिल, कुशा, पुष्प, गंध मिश्रित जल पितरों को तृप्त करने हेतु दिया जाता है। श्राद्ध पक्ष में इसे नित्य करने का विधान है।

भोजन व पिण्ड दान– पितरों के निमित्त ब्राह्मणों को भोजन दिया जाता है। श्राद्ध करते समय चावल या जौ के पिण्ड दान भी किए जाते हैं।

वस्त्रदान– वस्त्र दान देना श्राद्ध का मुख्य लक्ष्य भी है।
दक्षिणा दान– यज्ञ की पत्नी दक्षिणा है जब तक भोजन कराकर वस्त्र और दक्षिणा नहीं दी जाती उसका फल नहीं मिलता।

21 – श्राद्ध तिथि के पूर्व ही यथाशक्ति विद्वान ब्राह्मणों को भोजन के लिए बुलावा दें। श्राद्ध के दिन भोजन के लिए आए ब्राह्मणों को दक्षिण दिशा में बैठाएं।

22- पितरों की पसंद का भोजन दूध, दही, घी और शहद के साथ अन्न से बनाए गए पकवान जैसे खीर आदि है। इसलिए ब्राह्मणों को ऐसे भोजन कराने का विशेष ध्यान रखें।

23- तैयार भोजन में से गाय, कुत्ते, कौए, देवता और चींटी के लिए थोड़ा सा भाग निकालें। इसके बाद हाथ जल, अक्षत यानी चावल, चन्दन, फूल और तिल लेकर ब्राह्मणों से संकल्प लें।

24- कुत्ते और कौए के निमित्त निकाला भोजन कुत्ते और कौए को ही कराएं किंतु देवता और चींटी का भोजन गाय को खिला सकते हैं। इसके बाद ही ब्राह्मणों को भोजन कराएं । पूरी तृप्ति से भोजन कराने के बाद ब्राह्मणों के मस्तक पर तिलक लगाकर यथाशक्ति कपड़े, अन्न और दक्षिणा दान कर आशीर्वाद पाएं।

25– ब्राह्मणों को भोजन के बाद घर के द्वार तक पूरे सम्मान के साथ विदा करके आएं। क्योंकि ऐसा माना जाता है कि ब्राह्मणों के साथ-साथ पितर लोग भी चलते हैं। ब्राह्मणों के भोजन के बाद ही अपने परिजनों, दोस्तों और रिश्तेदारों को भोजन कराएं।

26– पिता का श्राद्ध पुत्र को ही करना चाहिए। पुत्र के न होने पर पत्नी श्राद्ध कर सकती है। पत्नी न होने पर सगा भाई और उसके भी अभाव में सपिंडो (परिवार के) को श्राद्ध करना चाहिए । एक से अधिक पुत्र होने पर सबसे बड़ा पुत्र श्राध्दकर्म करें या सबसे छोटा ।


श्राद्ध पक्ष में अपनाए जाने वाले सभी मुख्य नियम:

1) श्राद्ध के दिन भगवदगीता के सातवें अध्याय का माहात्म पढ़कर फिर पूरे अध्याय का पाठ करना चाहिए एवं उसका फल मृतक आत्मा को अर्पण करना चाहिए।

2) श्राद्ध के आरम्भ और अंत में तीन बार निम्न मंत्र का जप करें –

मंत्र ध्यान से पढ़े :

ll देवताभ्यः पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च l
नमः स्वाहायै स्वधायै नित्यमेव भवन्त्युत ll

(समस्त देवताओं, पितरों, महायोगियों, स्वधा एवं स्वाहा सबको हम नमस्कार करते हैं l ये सब शाश्वत फल प्रदान करने वाले हैं l)

3) श्राद्ध में एक विशेष मंत्र उच्चारण करने से, पितरों को संतुष्टि होती है और संतुष्ट पितर आपके कुल खानदान को आशीर्वाद देते हैं:

मंत्र ध्यान से पढ़े :

ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं स्वधादेव्यै स्वाहा|

4) जिसका कोई पुत्र न हो, उसका श्राद्ध उसके दौहिक (पुत्री के पुत्र) कर सकते हैं l कोई भी न हो तो पत्नी ही अपने पति का बिना मंत्रोच्चारण के श्राद्ध कर सकती है l

5) पूजा के समय गंध रहित धूप प्रयोग करें  और बिल्व फल प्रयोग न करें और केवल घी का धुआं भी न करें|
        
            पितृ पक्ष, 2023 विशेष

कब शुरू हो रहे हैं पितृ पक्ष, श्राद्ध की प्रमुख तिथियां, जानें इस दौरान क्या उपाय-

पितृ पक्ष के 15 दिन पितरों को समर्पित होते हैं इस दौरान श्राद्ध कर्म, दान, गरीबों को खाना खिलाने से पितरों की आत्माएं प्रसन्न होती हैं पितृ पक्ष के दौरान पितरों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध किया जाता है।

हिंदू पंचांग के अनुसार पितृ पक्ष भाद्रपद मास की पूर्णिमा तिथि से प्रारंभ होकर आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की स्थापना तिथि को समाप्त होता है ।

हिंदू धर्म में पितृपक्ष यानी श्राद्ध का विशेष महत्व है पितृ पक्ष के दौरान पूर्वजों को श्रद्धापूर्वक याद करके उसका श्राद्ध कर्म हो किया जाता है।

पितृ पक्ष में पितरों के लिए तर्पण और श्राद्ध कर्म करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है ।इस दौरान न केवल पितरों की मुक्ति के लिए उनका श्राद्ध किया जाता है, बल्कि उनके प्रति सम्मान भी व्यक्त किया जाता है ।.

श्राद्ध से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें

हर व्यक्ति को अपने पूर्व की तीन पीढ़ियों (पिता, दादा, परदादा) और नाना-नानी का श्राद्ध करना चाहिए।

जो लोग पूर्वजों की संपत्ति का उपभोग करते हैं और उनका श्राद्ध नहीं करते, ऐसे लोगों को पितरों द्वारा शप्त होकर कई दुखों का सामना करना पड़ता है।

यदि किसी माता-पिता के अनेक पुत्र हों और संयुक्त रूप से रहते हों तो, सबसे बड़े पुत्र को  पितृकर्म करना चाहिए।

पितृ पक्ष में दोपहर (12:30 से 01:00) तक श्राद्ध कर लेना चाहिए।

नोट :– यदि आपकी जन्मकुंडली में ज्योतिष से संबंधित कोई समस्या है तो आप अपनी जन्म कुंडली किसी विद्वान ज्योतिषी को अवश्य दिखाएं और उनकी सलाह के अनुभव उपाय करें, उससे आपको बहुत लाभ होगा और जीवन में चल रही समस्याओं का समाधान होगा !

श्राद्ध क्यों करना चाहिए ?

श्राद्ध करने से 6 बड़े फायदे होते हैं !

तुलसी से पिण्डार्चन किए जाने पर पितरगण प्रलयपर्यन्त तृप्त रहते हैं। तुलसी की गंध से प्रसन्न होकर गरुड़ पर आरुढ़ होकर विष्णुलोक चले जाते हैं।

पितर प्रसन्न तो सभी देवता प्रसन्न !

श्राद्ध से बढ़कर और कोई कल्याणकारी कार्य नहीं है और वंशवृद्धि के लिए पितरों की आराधना ही एकमात्र उपाय है…

आयु: पुत्रान् यश: स्वर्ग कीर्तिं पुष्टिं बलं श्रियम्।
पशुन् सौख्यं धनं धान्यं प्राप्नुयात् पितृपूजनात्।। (यमस्मृति, श्राद्धप्रकाश)

यमराजजी का कहना है कि–

श्राद्ध-कर्म से मनुष्य की आयु बढ़ती है।

पितरगण मनुष्य को पुत्र प्रदान कर वंश का विस्तार करते हैं।

परिवार में धन-धान्य का अंबार लगा देते हैं।

श्राद्ध-कर्म मनुष्य के शरीर में बल-पौरुष की वृद्धि करता है और यश व पुष्टि प्रदान करता है।

पितरगण स्वास्थ्य, बल, श्रेय, धन-धान्य आदि सभी सुख, स्वर्ग व मोक्ष प्रदान करते हैं।

श्रद्धापूर्वक श्राद्ध करने वाले के परिवार में कोई क्लेश नहीं रहता वरन् वह समस्त जगत को तृप्त कर देता है।

श्राद्ध करने से क्या फल मिलता है ?

‘ ऐसा करने से व्यक्ति को पितृ ऋण से मुक्ति मिलती है।

जो पूर्णमासी के दिन श्राद्धादि करता है उसकी बुद्धि, पुष्टि, स्मरणशक्ति, धारणाशक्ति, पुत्र-पौत्रादि एवं ऐश्वर्य की वृद्धि होती। वह पर्व का पूर्ण फल भोगता है।

प्रतिपदा धन-सम्पत्ति के लिए होती है एवं श्राद्ध करनेवाले की प्राप्त वस्तु नष्ट नहीं होती।

श्राद्ध करने से क्या लाभ होता है ?

पितरों की संतुष्टि के उद्देश्य से श्रद्धापूर्वक किये जाने वाले तर्पण, ब्राह्मण भोजन, दान आदि कर्मों को श्राद्ध कहा जाता है। इसे पितृयज्ञ भी कहते हैं। श्राद्ध के द्वारा व्यक्ति पितृऋण से मुक्त होता है और पितरों को संतुष्ट करके स्वयं की मुक्ति के मार्ग पर बढ़ता है।

श्राद्ध नहीं करने से क्या होता है ?

माना जाता है कि पितृपक्ष में श्राद्ध न करने से पितृदोष लगता है, पितृ दोष के कारण जीवन में परेशानी ही परेशानियां उठानी पड़ती हैं, कभी जीवन में परेशानियों का अंत नहीं होता, ग्रस्त जीवन व्यापार और संतान की ओर से हमेशा कोई ना कोई संकट बना रहता है, जीवन में उन्नति तरक्की नहीं होती, व्यक्ति को मान सम्मान नहीं मिलता, धन की समस्या बनी रहती है आदि !

श्राद्ध के दिनों में क्या नहीं करना चाहिए ?

पितृपक्ष के दौरान बाल, दाढ़ी, मूंछ या नाखून काटने के अलावा कई और भी चीज हैं, जो वर्जित बताई गई हैं। इन दिनों ब्रह्मचार का व्रत करना चाहिए। साथ ही लहसुन, प्याज, मांस, मदिरा जैसे आदि तामसिक चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए। साथ ही इस दौरान बासी खाना भी नहीं खाना चाहिए और मांगलिक कार्य इस पक्ष में निषेध बताए गए हैं !

श्राद्ध में कौन सी सब्जी नहीं बनानी चाहिए ?

हिंदू धर्म शास्त्र के मुताबिक, पितृ पक्ष  के दौरान जमीन के अंदर होने वाली सब्जियों जैसे मूली, अरबी, आलू आदि का सेवन नहीं करना चाहिए और नहीं इनका पितरों का भोग लगाना चाहिए. श्राद्ध के दौरान ब्राह्मणों को भी इसे ना खिलायें. सनातन धर्म में लहसुन और प्याज को तामसिक भोजन माना जाता है !

पितरों के लिए कौन सा दीपक लगाना चाहिए ?

ईशान कोण में जलाएं घी का दीपक: रोजाना घर के ईशान कोण (उत्तर और पूर्व के बीच की दिशा) में गाय के घी का दीपक जलाने से मां लक्ष्‍मी आप पर कृपा बरसाएंगी. इससे घर में कभी आर्थिक समस्‍याएं नहीं होती हैं. रोज ऐसा करने से पितृ बेहद प्रसन्‍न होते हैं और पितरों के आशीर्वाद से सारी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं !

श्राद्ध कब नहीं करना चाहिए ?

जिन व्यक्तियों की अपमृत्यु हुई हो, अर्थात किसी प्रकार की दुर्घटना, सर्पदंश, विष, शस्‍त्रप्रहार, हत्या, आत्महत्या या अन्य किसी प्रकार से अस्वा‍भाविक मृत्यु हुई हो, तो उनका श्राद्ध मृत्यु तिथि वाले दिन कदापि नहीं करना चाहिए।

क्या श्राद्ध में पूजा कर सकते हैं ?

आप अन्य दिनों की तरह ही श्राद्ध में भी नियमित रूप से सुबह-शाम देवी-देवताओं की पूजा कर सकते हैं. मान्यता है कि, इस दौरान पूजा-पाठ बंद करने से पितरों के निमित्त किए गए श्राद्ध का पूर्ण फल नहीं मिलता, इसलिए पितृ पक्ष में पूजा-पाठ करते रहें !

क्या श्राद्ध में नए कपड़े खरीद सकते हैं ?

इसके अतिरिक्त यह वंशजों को सकारात्मक भाग्य प्रदान करता है। पितरों का आशीर्वाद व्यक्ति को जीवन में प्रगति करने में काफी मदद कर सकता है और उसकी समस्याएं काफी हद तक कम हो जाती हैं। श्राद्ध के दौरान आमतौर पर लोग नए कपड़े खरीदने या पहनने से बचते हैं , बाल कटवाने से भी बचना चाहिए।

श्राद्ध कितनी पीढ़ी तक किया जाता है ?

श्राद्ध कर्म तीन पीढ़ियों का ही होता है। इसमें मातृकुल और पितृकुल (नाना और दादा) दोनों शामिल होते हैं। तीन पीढ़ियों से अधिक का श्राद्ध कर्म नहीं होता है।

पितरों को पानी कौन दे सकता है ?

अगर मुखिया नहीं है, तो घर का कोई अन्य पुरुष अपने पितरों को जल चढ़ा सकता है। इसके अलावा पुत्र और नाती भी तर्पण कर सकता है। शास्त्रों के अनुसार, पिता का श्राद्ध पुत्र को ही करना चाहिए। अगर पुत्र के न हो, तो पत्नी श्राद्ध कर सकती है।

पितृ के देवता कौन है ?

एक प्रकार के देवता जो सब जिवों के आदिपूर्वज माने गए है । विशेष—मनुस्मृति में लिखा है कि, ऋषियों से पितर, पितरों से देवता और देवताओं से संपूर्ण स्थावर जंगम जगत की उत्पत्ति हुई है। ब्रह्मा के पूत्र मनु हुए । मनु के मरोचि, अग्नि आदि पुत्रों को पुत्रपरंपरा ही देवता, दानव, दैत्य, मनुष्य आदि के मूल पूरूष या पितर है ।

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