नयी दिल्ली, 25 सितम्बर । पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने देश में धर्मनिरपेक्ष मूल्यों की रक्षा के लिए सभी राजनैतिक दलों से अपना दायित्व निभाने का आह्वान करते हुए कहा है कि संविधान के रक्षक के रूप में न्यायपालिका को उन स्वार्थी और गैर जिम्मेदार राजनीतिज्ञों के बारे में विवेकवान दृष्टिकोण अपनाने की जरुरत है जो भारतीय राजनीति में साम्प्रदायिकता का ज़हर फैला रहे हैं।
श्री सिंह ने भारतीय सेना की तारीफ करते हुए यह भी कहा कि उसमें धर्मनिरपेक्षता निहित रही है और वह किसी तरह की संकीर्णता से दूषित नहीं हुई है।
उन्होंने आज यहाँ भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के पूर्व महासचिव ए बी वर्धन की जयन्ती पर उनकी स्मृति में संविधान और धर्मनिरपेक्ष की रक्षा विषय पर आयोजित व्याख्यान देते हुए यह आह्वान किया।
इस अवसर पर भाकपा के महासचिव सुधाकर रेड्डी, प्रसिद्ध पत्रकार पी सांईनाथ ने भी समारोह को संबोधित किया।
पूर्व प्रधानमंत्री ने संविधान और लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा तथा संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार के कार्यकाल में मजदूरों किसानों के हितों की रक्षा एवं न्यूनतम साझा कार्यक्रम तैयार करने में उनकी भूमिका का स्मरण करते हुए कहा कि उस दौरान सभी समाजों, अल्पसंख्यकों विशेषकर धार्मिक अल्पसंख्यकों का खयाल रखा गया और इसलिए धर्मनिरपेक्षता को महत्व दिया गया।
उन्होंने कहा कि पंडित जवाहर लाल नेहरू ने आजादी की लड़ाई में कहा था कि वह किसी भी रूप में साम्प्रदायिकता को नापसंद करते हैं।
उन्होंने यह भी कहा था कि कोई भी बहुसंख्यक समाज अल्पसंख्यकों का दमन नहीं कर सकता और हमें उनकी संस्कृति तथा परम्परा की रक्षा करने के लिए पूरा सहयोग करना चाहिए, इसलिए नेहरू नये भारत का धर्मनिरपेक्ष स्वरुप चाहते थे। उन्होंने 29 सितम्बर 1947 को यहाँ तक कहा कि जब तक वह देश की बागडोर सँभालते रहेंगे भारत हिन्दू राष्ट्र नहीं बनेगा।
श्री सिंह ने कहा कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या भले ही कट्टर हिन्दुओं ने की लेकिन धर्मनिरपेक्षता का सिद्धांत मरा नहीं और वह हमारे राज्य के पारपरिक ढांचे में अंतरनिहित था। यहाँ तक कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 2001 में नए वर्ष के अवसर पर कहा था कि धर्मनिरपेक्षता कोई बाहरी सिद्धांत नहीं है बल्कि वह हमारी राष्ट्रीय संस्कृति और मूल्यों का अविभाज्य हिस्सा है।
उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 14 15(1) (2) 16(2) तथा अनुच्छेद 25 अनुछेद 29 (2) तथा 325 का उल्लेख करते हुए कहा कि उसने सभी धर्मों और आस्थाओं का सम्मान किया और समान अवसर प्रदान किया है लेकिन नेहरु के निधन के बाद धर्मनिरपेक्ष स्वरुप को चारों तरफ से चुनौतियाँ मिलने लगीं तथा चुनावों में धार्मिक भावनाओं को उभरा गया और नफरत फ़ैलाने का काम शुरू हो गया।attacknews.in