भोपाल 8 अप्रैल।मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह की नर्मदा यात्रा पूरी हो चुकी है. इस दौरान करीब 190 दिन के राजनीतिक ब्रेक के दौरान कांग्रेस के इस दिग्गज नेता ने ना तो कोई पॉलिटिकल कमेंट किया और न ही कोई ट्वीट.
33 सौ किमी के लंबी यात्रा के दौरान मुश्किल भरी राहों पर पैदल चलते हुए वे हर सवाल के जवाब में हर- हर नर्मदे कहते रहे.
इस दौरान दिग्विजय सिंह राजनीतिक सवालों से बचते रहे. अपने काफिले में सिर्फ धर्म ध्वजा के साथ चलते रहे. साधुओं, भक्तों की टोली में भजन, कीर्तन, सत्संग करते रहे, लेकिन इसके बावजूद राजनीति उनके साथ रही, उनके इर्दगिर्द रही.
दिग्विजय सिंह जनसेवक की तरह लोगों से मिलते रहे. उनकी तकलीफों, समस्याओं के पुलिंदे समेटते रहे. नर्मदा का अवैध उत्खनन हो या किसानों के समर्थन मूल्य, भावांतर का मामला वे सिस्टम पर प्रहार करते रहे. सैकड़ों गांवों से गुजरी उनकी यात्रा में वे किसी राजनीतिक मंच पर नहीं चढ़े, लेकिन उनकी पूरी यात्रा की व्यवस्था कांग्रेस के सैकडों कार्यकर्ता जगह-जगह संभालते दिखाई दिए.
दलगत राजनीति से हटकर कई भाजपा सांसद, विधायक, उनके साथ हो लिए, लेकिन वे नो पॉलिटिक्स कहकर आगे बढ़ते रहे.
छह महीने 10 दिन का यह पूरा घटनाक्रम बता रहा है कि कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने न सिर्फ अपनी धामिर्क यात्रा को जनसेवा जनसमर्थन यात्रा में तब्दिल किया, बल्कि विरोधियों को पस्त कर एक राजनीतिक मकसद भी हासिल किया है.
उन्होंने खुलकर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से भी आह्वान किया कि वे ऐसी यात्राएं करें. उन्होंने तर्क दिया कि महात्मा गांधी का सत्याग्रह आंदोलन का स्वरूप उनके दांडी मार्च से ही हुआ था. भाजपा भी लालकृष्ण आडवाणी की रथ यात्रा के बाद ही आगे बढ़ पाई. एक तरह से कांग्रेस नेताओं की ड्राइंग रूम पॉलिटिक्स को नकारते हुए जमीनी संघर्ष की ताकत बताते हुए वे एक तरह से पार्टी को रिचार्ज करने का आव्हान करते रहे.
दिग्विजय सिंह की यात्रा के धार्मिक और राजनीतिक मुख्य बिंदु-
1- 30 सिंतंबर को बरमान घाट नरसिंहपुर से जगतगुरु शंकराचार्य स्वरूपानंद के आशिर्वाद के साथ नर्मदा परिक्रमा की शुरुआत की.
2- रोजाना 25 किमी तक पैदल यात्रा कर 120 से ज्यादा मध्य प्रदेश की विधानसभा क्षेत्रों, चार राज्यों मध्य प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ क्षेत्र को कवर किया .
3- यात्रा के दौरान कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेता कमलनाथ, ज्योतिरादित्य सिंधिया सुरेश पचौरी, अशोक गेहलोत, अहमद पेटल जैसे नेता इसमें शामिल हुए. वहीं आंध्रा, तेलंगाना, गोवा, पंजाब, उडीसा, छत्तीसगढ़, गुजरात, महाराषट्र आदि राज्यों से कार्यकर्ता, नेता आते गए.
4 मुख्यमंत्री के भाई नरेंद्र चौहान पूर्व भाजपा नेता विक्रम वर्मा, प्रह्लाद पटेल, जेडीयू नेता शरद यादव और कई विधायक परिक्रमा मार्ग पर साथ रहे.
5- इस दौरान गुजरात, हिमाचल, त्रिपुरा, नागालैंड, मेघालय के चुनाव हुए जिसमें बिहाइंड द सीन अपनी भूमिका निभाते रहे. अपने अनुभव को साझा करते रहे.
6-राहुल गांधी के पार्टी अध्यक्ष बनने के मौके पर गैरमौजूद रहे, लेकिन खुलकर इसकी तारीफ भी करते रहे. क्योंकि उन्होंने कई बार मीडिया में बयान दिए थे कि अब राहुल को पार्टी के अध्यक्ष पद की जवाबदारी लेनी चाहिए.
7-मध्य प्रदेश के स्थानीय निकायों के चुनाव में भाजपा को हराने के लिए जगह-जगह अपने नेताओं को मतभेद खत्म करने कर सुलह समझौते करवाते रहे. जिसका परिणाम यह रहा कि इस बार भाजपा झटका खा गई. उनके गृह क्षेत्र राघौगढ़ में चुनावी विवाद और तनाव को निपटाने के लिए अपने बेटे जयवर्धन को पूरी तरह मदद करते रहे. शिवराज सरकार के खिलाफ मोर्चा संभालते हुए वीडियो जारी कर अपने क्षेत्र में शांति बनाए रखने की बात कहते रहे.
8- पार्टी के वरिष्ठ नेता कमलनाथ- सिंधिया को मुख्यमंत्री प्रोजेक्ट करने पर समर्थन देने की बात कहते रहे लेकिन दिग्विजय इसे हाइकमान का फैसला बताते रहे.
9- शिवराज सरकार को घेरते हुए पूरी यात्रा के दौरान देखी गई. जमीनी हकीकत पर बड़ा खुलासा करने की घोषणा वे जगह-जगह करते रहे.
10- यात्रा में पहुंचे अपने नेताओं को कांग्रेस की मजबूती के लिए संघर्ष करने का जज्बा देते रहे. बताते रहे कि अब उनकी अगली यात्रा परिक्रमा क्षेत्र से बाहर की होगी. और वे हर विधानसभा और ब्लॉक स्तर पर जाकर जनता से मिलेंगे.
11- इस यात्रा ने सिर्फ प्रदेश से उनकी लंबी गैरमौजूदगी को खत्म किया बल्कि उन्हें प्रदेश के मुख्यमंत्री पद के दावेदार के बतौर भी स्थापित कर दिया.
12- 2018 का चुनाव कांग्रेस उनकी ताकत की उपेक्षा कर नहीं लड़ सकती.attacknews.in