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कांग्रेस में पैदा हुआ नेतृत्व का संकट, राहुल गांधी के बाद सोनिया गांधी और पार्टी के लिए चुनौतियों का वर्ष रहा 2019

नयी दिल्ली, 29 दिसम्बर ।भारतीय जनता पार्टी के ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ के सपने को मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान विधानसभा चुनावों में धराशायी करने से उत्साहित कांग्रेस ने आम चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मात देने का हर दांव खेला लेकिन करारी शिकस्त ने उसे ऐसा झटका दिया कि हताश होकर उसके युवा नेता राहुल गांधी ने अध्यक्ष पद छोड़ दिया और फिर पार्टी नेतृत्व के संकट से जूझती रही।

केेंद्र में 2014 में मोदी सरकार आने के बाद कांग्रेस ने पहली बार पिछले साल के आखिर में इन तीन राज्यों के विधानसभा चुनाव में भाजपा के विजय रथ को रोका और सत्ता में वापसी की। इससे उत्साहित पार्टी को लगा कि जनता का श्री मोदी से मोहभंग हो गया है और वह फिर से केंद्र में सत्ता में वापसी कर सकती है।

पार्टी के तत्कालीन अध्यक्ष राहुल गांधी ने भाजपा को परास्त करने की रणनीति के तहत सीधे श्री मोदी पर निशाना साधना साधते हुए उन्हें राफेल लड़ाकू विमान सौदे को लेकर घेरना आरंभ कर दिया। पार्टी ने इसके लिए कई तरह के दस्तावेज और अन्य सबूत निकालने शुरू कर दिए और श्री गांधी के साथ ही उनकी पूरी टीम के सदस्य जन सभाओं तथा मीडिया के माध्यम से यह साबित करने में जुट गये कि राफेल सौदे में दलाली हुई है और श्री मोदी इसमें सीधे तौर पर शामिल रहे हैं।

चुनाव प्रचार के दौरान भी कांग्रेस ने मोदी की काट के लिए राफेल का हवा बनाने में कोर कसर नहीं छोड़ी। श्री गांधी अपनी लगभग हर चुनावी सभा में इस मुद्दे को जमकर उछाला और मीडिया के माध्यम से इसे हवा देने का पूरा प्रयास किया।

श्री मोदी के लिए कांग्रेस अध्यक्ष का ‘चौकीदार चोर है’ नारा इतना चल पड़ा कि श्री गांधी की कोई भी चुनावी सभा इसके बिना पूरी नहीं होती। कांग्रेस के प्रदेश मुख्यालयों तथा जन सभाओं में राफेल का प्रतीक बनाकर लगाकर लोगों को यह भरोसा देने का पूरा जतन किया गया कि राफेल सौदे में चोरी हुई है।

भाजपा को मात देने के लिए कांग्रेस नेतृत्व ने क्षेत्रीय दलों के साथ गठबंधन किए। जहां गठबंधन संभव नहीं हुआ भाजपा को परास्त करने के लिए वहां क्षेत्रीय दलों के साथ तालमेल कर फिजा बदलने का पूरा प्रयास किया गया।

आम चुनाव से ठीक पहले पार्टी ने श्री गांधी की बहन प्रियंका गांधी वाड्रा को तुरुप के पत्ते के रूप में इस्तेमाल कर उन्हें राजनीति में उतारा और उत्तर प्रदेश का प्रभारी महासचिव बना कर सबको चौंका दिया।

श्री गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश में नया प्रयोग किया और राज्य को पूर्वी तथा पश्चिमी दो भागों में बांटकर दो महासचिव नियुक्त कर दिये। पश्चिमी उत्तर प्रदेश का जिम्मा युवा नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया को और पूर्वी उत्तर प्रदेश का दायित्व प्रियंका गांधी वाड्रा को सौंपा। यह रणनीति कार्यकर्ताओं में उत्साह का नया संचार करने लगी। श्री गांधी ने प्रियंका गांधी तथा ज्योतिरादित्य को मैदान में उतार कर देश की जनता को यह संदेश देने का भी प्रयास किया कि कांग्रेस में युवा जोश है।

लोकसभा चुनाव परिणामों ने कांग्रेस और उसके नेताओं की आशाओं पर पानी फेर दिया। लगातार दूसरी बार पार्टी इतनी सीटें भी जीत नहीं पायी कि उसे लोकसभा में मुख्य विपक्षी दल का दर्जा मिल सके।

करारी शिकस्त से पार्टी में हताशा छा गयी। श्री गांधी ने हार की जिम्मेदारी लेते हुए अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया। पार्टी की सर्वोच्च नीति निर्धारक संस्था कार्य समिति ने उनसे पद से इस्तीफा नहीं देने का आग्रह किया लेकन वह अपनी जिद पर अड़े रहे।

आम चुनाव में हार के कारण उपजी निराशा को दूर करने के लिए श्रीमती सोनिया गांधी ने फिर से पार्टी की कमान संभाली ।

श्री गांधी पार्टी अध्यक्ष पद पर नहीं रहते हुए भी प्रमुख नेता के रूप में सक्रिय रहे और पार्टी ने महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड विधानसभाओं के चुनाव में अच्छा प्रदर्शन किया जिससे उम्मीदों की नयी लहर पैदा हो गयी। महाराष्ट्र और झारखंड में पार्टी गठबंधन सरकार में शामिल हो गयी और हरियाणा में उसे उम्मीद से ज्यादा सफलता मिली।

पार्टी की अगली और महत्वपूर्ण परीक्षा दिल्ली में है। झारखंड में क्षेत्रीय दलों से गठबंधन कर भाजपा को सता से बाहर करने में मिली सफलता ने कांग्रेस के सामने दुविधा खड़ी कर दी है। उसे खुद काे आगे बढ़ाने या भाजपा को सत्ता में से किसी एक को चुनना होगा।

दिल्ली के पिछले विधानसभा चुनाव में अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी ने 70 सदस्यीय विधानसभा में रिकार्ड 67 सीटें जीती थींं। भाजपा को तीन सीटें मिली थीं। कांग्रेस खाता भी नहीं खोल पायी थी।

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