नईदिल्ली 23 जनवरी । मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनावों के बाद जब मुख्यमंत्री का चुनाव हो रहा था तो राजनीति में दिलचस्पी रखने वालों की नजर दिल्ली स्थिति राहुल गांधी के बंगले पर थी क्योंकि वहीं से यह फाइनल किया जाना था कि मध्य प्रदेश के अगले मुख्यमंत्री दशकों से गांधी परिवार के साए की तरह बने रहे दिग्गज कमलनाथ होंगे या राहुल गांधी की यूथ बिग्रेड के सबसे दमदार चेहरों में से एक ज्योतिरादित्य सिंधिया होंगे.
हालांकि उस समय बाजी कमलनाथ के हाथ रही और वे मुख्यमंत्री बनाए गए. इसके बाद राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा खूब रही कि युवाओं की बार बार बात करने वाली कांग्रेस ने ज्योतिरादित्य सिंधिया को मुख्यमंत्री क्यों नहीं बनाया गया. खुद सिंधिया भी हर उस सवाल का जवाब इस बात सेे देते रहे कि प्रदेश में कांग्रेस पार्टी को जीत दिलाना ही उनका अंतिम मकसद था और वो पूरा हुआ.
लेकिन कहते हैं ना कि राजनीति में हर वक्त हासिल करना ही सबकुछ नहीं होता। कभी-कभी आप कुछ दूसरों के लिए अपनी जगह छोड़कर आगे की राह आसान कर लेते हैं. हुआ वही. उस समय ज्योतिरादित्य सिंधिया ने हारकर खुद को बड़ा साबित कर दिया.
यह तो तय था कि सिंधिया को कांग्रेस संगठन में बहुत बड़ी जिम्मेदारी मिलने वाली है, अब उसकी शुरुआत हो चुकी है. राहुल गांधी के सबसे विश्वासपात्र ‘महाराज’ को उस राज्य की जिम्मेदारी दे दी गई है जहां से होकर देश के सत्ता का गलियार जाता है. 80 लोकसभा सीटों वाले उत्तर प्रदेश के पश्चिमी छोर पर बैठकर ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस पार्टी को मजबूत करेंगे. उन्हें पश्चिमी यूपी का प्रभार दिया गया है।
मध्यप्रदेश की राजनीति में सुगबुगाहट , प्रदेश में आज भी है सिंधिया राजनीति की तीसरी ताकत :
इस नियुक्ति के 2 दिन पहले ही श्री ज्योतिरादित्य सिंधिया शिवराज सिंह चौहान के साथ मुलाकात करके सुर्खियों आ गये थे ।
इसे महज राजनीतिक सौजन्यता मानकर खारिज नहीं किया जा सकता. एक महीने पहले तक मध्य प्रदेश के चुनावी कैम्पेन में एक ही नारे का शोर था- ‘माफ करो महाराज हमारा नेता शिवराज’. आज यही शिवराज और महाराज यानी कांग्रेस के स्टार कैम्पेनर ज्योतिरादित्य सिंधिया भोपाल की सर्द रात में गर्मजोशी से मिलते और चाय की चुस्कियां उड़ाते देखे गए ।
दरअसल सिंधिया ने इस मुलाकात से यह फिर साबित किया है कि मध्यप्रदेश की कमान भले ही कमलनाथ के पास हो और दिग्विजय सिंह समानांतर पावर में हो लेकिन तीसरी ताकत वे खुद हैं.
लंबे समय तक गैर मौजूद
कमलनाथ के शपथ ग्रहण में गैर मौजूद थे . बहुमत साबित करने के मौके पर भी वे अलग–थलग दिखे. मुख्यमंत्री कमलनाथ बाकायदा उन्हें स्पेशल प्लेन भेजते हैं, तब सिंधिया भोपाल पहुंचते हैं. विधायकों की खरीद–फरोख्त की अटकलों पर अटैक करते हैं कि -भाजपा के पास न तो हॉर्स है न ट्रेड. अब जब मुख्यमंत्री दावोस में वर्ल्ड ट्रेड कांफ्रेंस में हैं और दिग्विजय सिंह भोपाल से बाहर हैं तब सिंधिया राजधानी का दौरा करते हैं तो अपने निजी कार्यक्रमों के बाद दिल्ली से लौटे पूर्व मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान से मिलने की इच्छा जताते हुए उनके निवास पहुंचते हैं.
कमलनाथ भी गए थे
दरअसल, शिवराज से कमलनाथ ने भी सीएम हाउस जाकर मुलाकात की हुई है. लेकिन यह तब की बात है जब चुनावी हार का मामला ताजा था. शिवराज ने सौजन्यता के नाम पर बड़ा दांव करते हुए कमलनाथ की शपथ विधि में अपनी खास मौजूदगी दर्ज करवाई थी और उसका हिसाब पूरा करने कमलनाथ उनके घर गए थे. तब शिवराज ने सीएम हाउस भी नहीं छोड़ा था.
प्रदेश के विकास में सब साथ
इसके पहले दिग्विजय सिंह शिवराज से मिले थे. अपने बेटे जयवर्धन को साथ लेकर गए थे. जयवर्धन ने बाकायदा शिवराज सिंहको धोक लगाते हुए आशीर्वाद लिया था. प्रदेश के विकास में सब साथ चले सबका सहयोग मिले ऐसी बातें तब कहीं गई थी.
खास सुर्खियां
लेकिन सिंधिया और शिवराज की इस मुलाकात ने खास सुर्खियां बटोरी हैं. वजह है चुनावी माहौल खत्म हो चुका है. सरकार अब कामकाजी मोड में आ गई है. शिवराज प्रदेश की राजनीति में खुद को सक्रिय बनाए हुए हैं लेकिन उन्हें राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बना दिया गया है. शिवराज आडवाणी की तस्वीर वाले वीडियो के साथ खुद को राष्ट्रीय राजनीति में भी स्थापित करते दिखाई दे रहे हैं.
खींचतान का माहौल
मध्यप्रदेश भाजपा में अंदरूनी खींचतान का माहौल है. शिवराज ‘ऐकला चलो रे’ की नीति पर कायम हैं. वहीं राष्ट्रीय राजनीति में जा चुके पार्टी महामंत्री कैलाश विजयवर्गीय खासे सक्रिय हो गए हैं. स्पीकर चुनाव में भाजपा का फेल हुआ दांव उसके नेतृत्व के बिखराव को बयां कर रहा है.
दिग्विजयसिंह की टिप्पणी
ऐसे में सिंधिया समेत अन्य नेताओं की शिवराज के साथ मुलाकात में भविष्य की राजनीति का मसाला तैयार होता दिख रहा है. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजयसिंह पहले ही कह चुके हैं कि चुनाव में शिवराज सिंह अकेले पड़ गए थे. जैसे वे अपने आखिरी चुनाव में अकेले हो गए थे. यह एक किस्म की सहानुभूति थी जो दिग्विजय सिंह ने शिवराज की हार पर कही.
सहानुभूति कार्ड
दिग्विजय का यह बयान ठीक उस वक्त आया है जब भाजपा खेमे से यह खबरें उठने लगी कि शिवराज को प्रदेश की राजनीति से अलग- थलग किया जा रहा है. उनकी आभार यात्रा को पार्टी हाईकमान से हरी झंड़ी नहीं मिली. प्रदेश की राजनीति में सक्रिय रहने की उनकी ख्वाहिश को स्वीकार नहीं किया गया. नेता प्रतिपक्ष का पद उन्हें नहीं मिला. अब 2019 का चुनाव उनके नेतृत्व में लड़ने की बात पर भी विराम लगता दिख रहा है. ऐसे में व्यक्तिगत तौर पर शिवराज के साथ सहानुभूति कार्ड खेलकर कांग्रेस क्या शिवराज की धार को बोथा करने में लग गई है.
पहला मुकाबला शिवराज से
यह बात तो साफ है कि आज भी मध्यप्रदेश भाजपा में शिवराज की लोकप्रियता के मुकाबले दूसरा नेता नहीं है. 2019 के चुनाव में भी कांग्रेस का पहला मुकाबला शिवराज से है दूसरे नंबर पर मोदी से. वजह है 2014 में मिली 27 सीट्स आज भी शिवराज के खाते में दर्ज है. कांग्रेस इसका वजन जानती है इसलिए 2019 के चुनाव के पहले शिवराज सरकार के खिलाफ व्यापम व ईटेंडर घोटाले उसके निशाने पर हैं।
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