Home / राजनीति / राहुल गांधी अमेरिका के प्रोफेसर को स्क्रीन पर बैठाकर लाॅकडाउन को कोस रहे हैं,भला-बुरा कह रहे हैं,नरेन्द्र मोदी को असफल नेता बता रहे हैं और भारत की दुर्गति को अमेरिका में सुना रहे हैं attacknews.in

राहुल गांधी अमेरिका के प्रोफेसर को स्क्रीन पर बैठाकर लाॅकडाउन को कोस रहे हैं,भला-बुरा कह रहे हैं,नरेन्द्र मोदी को असफल नेता बता रहे हैं और भारत की दुर्गति को अमेरिका में सुना रहे हैं attacknews.in

नयी दिल्ली, 12 जून । कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने मोदी सरकार पर एकतरफा फैसले लेने का आरोप लगाते हुए कहा है कि लॉकडाउन भी इसी तरह का कठोर निर्णय था जिसने लोगों की मानसिकता बदली और डर का माहौल पैदा हुआ।

श्री गांधी ने अमेरिकी राजनयिक एवं हावर्ड विश्वविद्यालय में अंतरराष्ट्रीय मामलों के प्रोफेसर निकाेलस बर्न्स से शुक्रवार को बातचीत में कहा कि नरेन्द्र मोदी सरकार ने जिस तरह से लॉकडाउन किया, उसके कारण लोगों की मानसिकता बदली है और काफी डर का माहौल पैदा हुआ है। यह वायरस बहुत घातक है और वायरस के साथ ही इस डर को भी धीरे-धीरे दूर किया जाना चाहिए।

उन्होंने कहा “डर का यही भाव कुछ दिनों पहले मैंने भारत के एक बड़े व्यवसायी में देखा। बातचीत में उन्होंने मुझे बताया कि उनके दोस्तों ने मुझसे बात करने के लिए उन्हें मना किया और कहा कि मुझसे बात करना उनके लिए नुकसानदेह होगा। इसका मतलब डर का माहौल तो है। आप एकतरफा फैसले लेते हैं, दुनिया में सबसे बड़ा और कठोर लॉकडाउन करते हैं। आपके पास लाखों दिहाड़ी मजदूर हैं, जो हजारों किलोमीटर पैदल घर लौटते हैं। तो यह एकतरफा नेतृत्व है,जहां आप आते हैं, कुछ करते हैं और चले जाते हैं। यह बहुत विनाशकारी है। यह हर जगह है और हम इससे लड़ रहे हैं।”

काेरोना से बचाव के लिए सावधानी को लेकर कांग्रेस नेता ने कहा “मैं किसी से हाथ तो नहीं मिला रहा लेकिन मास्क और सुरक्षा के साथ लोगों से मिलता हूं क्योंकि सार्वजनिक सभाएं संभव नहीं हैं और भारत में जन सभाएं राजनीति के लिए संजीवनी है। सोशल मीडिया और ज़ूम के जरिए काफी बातचीत हो रही है। इसके कारण राजनैतिक क्षेत्र में कुछ आदतें निश्चित ही बदलने जा रही है।”

श्री गांधी ने कहा कि उन्हें लगता है कि कोरोना के कारण लोगों में एकजुटता का भाव बढ़ रहा है और यूरोप में भी ऐसा ही है। जर्मनी, इटली, ब्रिटेन के बीच वही हो रहा है जो बाकी विश्व में है। दुनिया में कुछ ऐसा हो रहा है, जहां लोग अपने आप में एक होते जा रहे हैं, समझदारी बनती जा रही है और मुझे लगता है कि कोविड संकट के कारण इस भाव में तेजी आयी है।

उन्होंने कहा “मैं अपने देश के डीएनए को समझता हूं। मैं जानता हूं कि हजारों वर्षों से मेरे देश का डीएनए एक प्रकार का है और इसे बदला नहीं जा सकता। हां, हम एक खराब दौर से गुजर रहे हैं। कोविड एक भयानक समय है, लेकिन मैं कोविड के बाद नए विचारों और नए तरीकों को उभरते हुए देख रहा हूं। मैं लोगों को पहले की तुलना में एक-दूसरे का बहुत अधिक सहयोग करते हुए देख सकता हूं। अब उन्हें एहसास हुआ कि वास्तव में संगठित होने के फायदे हैं। एक-दूसरे की मदद करने के फायदे हैं इसलिए वे ऐसा कर रहे हैं।”

राहुल से बोले बर्न्स-‘भारत के साथ गहरा रिश्ता चाहते हैं अमेरिकी’

भारत तथा अमेरिका दुनिया के दो सबसे बड़े लोकतंत्र हैं और दोनों का सौहार्द का डीएनए भी एक जैसा है और शायद इसीलिए अमेरिका के राजनीतिक दलों डेमोक्रेट्स एवं रिपब्लिकन के बीच परस्पर असहमति के बावजूद भारत से संबंधों को लेकर दोनों में गहरी सहमति है।

यह विचार अमेरिकी राजनयिक तथा हावर्ड विश्वविद्यालय में अंतरराष्ट्रीय मामलों के प्रोफेसर निकाेलस बर्न्स ने शुक्रवार को कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के साथ बातचीत के दौरान व्यक्त किए।

उन्होंने कहा कि अमेरिका के राजनीतिक दल डेमोक्रेट्स और रिपब्लिकन के बीच बहुत कम सहमति है लेकिन उन्हें लगता है कि जब भारत का सवाल आता है तो दोनों राजनीतिक दल चाहते हैं कि भारत के साथ अमेरिका के बहुत करीबी और सहयोगपूर्ण होने चाहिए।

उन्होंने कहा “अमेरिका भारत के साथ गहरा रिश्ता चाहता है और इसकी वजह यह है कि हम विश्व के दो सबसे बड़े लोकतंत्र हैं। इस रिश्ते की सबसे मजबूत कड़ी भारतीय-अमेरिकी समुदाय है और यह अमेरिका में एक असाधारण समुदाय है। अब हमारे सदन में वरिष्ठ राजनेता, राज्यों में गवर्नर्स, सीनेटर हैं, जो भारतीय-अमेरिकी हैं, हमारे जीवन के हर पहलू में भारतीय-अमेरिकी हैं। कैलिफ़ोर्निया में हमारी कुछ प्रमुख टेक कंपनियों के सीईओ भारतीय-अमेरिकी हैं। इस समुदाय में परिपक्वता रही है और यह दोनों देशों के बीच गहरा नाता बनाते हैं।”

श्री बर्न्स ने कहा कि जिस तरह से माहौल बदल रहा है उसे देखते हुए उन्हें बहुत उम्मीद है कि न केवल दोनों देशों की सरकारें बल्कि हमारे समाज भी बहुत बारीकी से परस्पर जुड़े हुए और संगठित हैं और यह एक बड़ी ताकत है। उन्होंने इस संबंध की वजह बताते हुए कहा “दोनों देशों को मालूम है कि हमारे सामने आने वाली चुनौतियों में से एक अधिनायकवादी देशों की शक्ति है। मैंने चीन और रूस का उल्लेख किया है। हम कभी भी लड़ना नहीं चाहते, हम युद्ध नहीं चाहते लेकिन हम अपने जीने के तरीके और विश्व में अपनी स्थिति की रक्षा करना चाहते हैं इसलिए मैं हमारे बारे में बहुत सोचता हूं, मुझे लगता है कि हमारे दोनों देशों के बीच सम्बन्ध इस लिहाज से बहुत महत्वपूर्ण हैं।”

उन्होंने कहा कि भारत और अमेरिका का सैन्य संबंध बहुत मजबूत है। बंगाल की खाड़ी और पूरे हिंद महासागर क्षेत्र में अमेरिकी-भारत नौसेना और वायु सेना के परस्पर सहयोग को देखें तो साफ नजर आता है कि दोनों एक साथ हैं और यह देखकर उन्हें लगता है कि दोनों देशों को एक दूसरे के लिए दरवाजे खुले रखने चाहिए और दोनों देशों के बीच लोगों की आवाजाही पर प्रतिबंध कम करना चाहिए।

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