Home / राजनीति / मायावती के लिए राजनीति का मतलब,जोड़-तोड़ से सत्ता तक पहुंचना और शीर्ष पर पहुंचने के लिए किसी का भी उपयोग कर लेना attacknews.in

मायावती के लिए राजनीति का मतलब,जोड़-तोड़ से सत्ता तक पहुंचना और शीर्ष पर पहुंचने के लिए किसी का भी उपयोग कर लेना attacknews.in

लखनऊ, 24 जून । सपा के साथ गठबंधन लगभग पूरी तरह खत्म कर देने की बसपा प्रमुख मायावती की सोमवार की घोषणा ने एक बार फिर साबित किया है कि गठबंधन जोड़ना और तोड़ना उनके लिए कोई नयी बात नहीं है। 



इस साल लोकसभा चुनाव से पहले 12 जनवरी को जब मायावती ने कहा कि देशहित में गेस्ट हाउस कांड को किनारे रखते हुए उन्होंने समाजवादी पार्टी (सपा) से दोस्ती की है तो सियासी विश्लेषकों को लगा था कि यह साथ लंबा चलेगा। इस गठबंधन को राज्य की सियासत में ‘गेमचेंजर’ के तौर पर देखा गया। लेकिन महज छह महीनों के अंदर ही मायावती और अखिलेश यादव की राहें जुदा हो गई हैं। 



गौर करने वाली बात यह है कि दोनों की दोस्ती कांशीराम-मुलायम के दौर में हुए गठबंधन से भी कम समय के लिए अस्तित्व में रही।



वर्ष 1993 में मुलायम सिंह और कांशीराम जब सपा-बसपा गठबंधन के पहली बार सूत्रधार बने थे तो भाजपा का रथ रुक गया था । मुलायम और कांशीराम की दोस्ती तकरीबन डेढ़ साल तक ठीकठाक चली थी।



बसपा अध्यक्ष ने सोमवार को इशारा किया कि सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के साथ गठबंधन से हाल के लोकसभा चुनाव में कोई खास फायदा नही पहुंचा।



मायावती ने ट्वीट किया कि ‘पार्टी व मूवमेन्ट के हित में अब बसपा आगे होने वाले सभी छोटे-बड़े चुनाव अकेले अपने बूते पर ही लड़ेगी।’ 

वैसे 2019 के लोकसभा चुनाव में गठबंधन को मनमाफिक सीटें तो नहीं मिलीं, लेकिन 2014 में प्रदेश में शून्य पर अटकी बसपा इस लोकसभा चुनाव में दस सीट जीतने में कामयाब रही।



इसके विपरीत गठबंधन की दूसरी साथी सपा लोकसभा चुनाव में केवल पांच सीटों पर सिमट गयी। सपा यहां तक कि अपनी परंपरागत सीटों बंदायू, कन्नौज और फिरोजाबाद से भी हार गई। 





मायावती की आज की घोषणा के बाद अब यह साफ हो गया है कि समाजवादी पार्टी के साथ उनका गठबंधन लगभग खत्म हो गया है। हालांकि उन्होंने सीधे-सीधे गठबंधन खत्म करने की बात नहीं की ।

लोकसभा चुनाव परिणाम आने के चंद दिनों बाद ही मायावती ने कह दिया था कि बसपा उत्तर प्रदेश में 12 सीटों पर उपचुनाव अकेले लड़ेगी ।





मायावती ने पहली बार यूं किसी गठबंधन को अचानक नही तोड़ा है। 1993 में बसपा ने पहली बार सपा के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ा था । इसका फायदा यह हुआ कि 1989 में 13 सीट पाने वाली पार्टी 1993 में पांच गुना अधिक 65 सीट जीत गई। हालांकि दो साल बाद गठबंधन टूट गया।



इसके बाद भाजपा ने मायावती को समर्थन दिया और 1995 में वह पहली बार राज्य की मुख्यमंत्री बनीं, लेकिन चार महीने बाद ही उनका भाजपा से मोहभंग हो गया और 1996 में उन्होंने कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ा तथा विधानसभा में 68 सीट प्राप्त कीं ।



वर्ष 1997 में मायावती भाजपा के सहयोग से छह-छह महीने के फार्मूले पर मुख्यमंत्री बनीं, लेकिन छह महीने बाद भाजपा के कल्याण सिंह को कुर्सी सौंपने के बाद जल्द ही उन्होंने समर्थन वापस ले लिया ।



वर्ष 2002 में विधानसभा में बसपा को 101 सीट मिलीं और मायावती तीसरी बार भाजपा के सहयोग से मुख्यमंत्री बनीं। तीन महीने के अंदर ही मायावती ने गठबंधन तोड़ दिया और मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। 



साल 2007 में बसपा को प्रदेश में ऐतिहासिक विजय मिली और मायावती चौथी बार मुख्यमंत्री बनीं । attacknews.in

About Administrator Attack News

Dr.Sushil Sharma Admin/Editor

Check Also

लोकसभा चुनाव के पहले ही बिखर गया विपक्ष;राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति चुनाव से विपक्ष में उभरा मतभेद, कांग्रेस-टीएमसी में घमासान तेज attacknews.in

लोकसभा चुनाव के पहले ही बिखर गया विपक्ष;राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति चुनाव से विपक्ष में उभरा मतभेद, कांग्रेस-टीएमसी में घमासान तेज

राहुल गांधी ने अरुणाचल से एक लड़के के लापता होने के मामले में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को बुज़दिल कहा attacknews.in

राहुल गांधी ने अरुणाचल से एक लड़के के लापता होने के मामले में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को बुज़दिल कहा

महात्मा गांधी पर अपमानजनक टिप्पणी मामले में अब ठाणे पुलिस ने कालीचरण महाराज को किया गिरफ्तार attacknews.in

ठाणे (महाराष्ट्र), 20 जनवरी । महाराष्ट्र के ठाणे शहर की पुलिस ने महात्मा गांधी के …

Video:छत्तीसगढ़ में कांग्रेसियो द्वारा ही मुस्लिम वोटरों को पक्का करने के लिए हिंदू धर्म सभा का आयोजन करके कालीचरण महाराज को षड्यंत्र से फंसा दिया;राहुल गांधी भी इसमें शामिल attacknews.in

छत्तीसगढ़ में कांग्रेसियो द्वारा ही मुस्लिम वोटरों को पक्का करने के लिए धर्म सभा का आयोजन करके कालीचरण महाराज को षड्यंत्र से फंसा दिया;राहुल गांधी भी इसमें शामिल

वाह रे लोकतंत्र! बिहार में मरने वाले उम्मीदवार ने जीता पंचायत चुनाव;अधिकारियों को तब पता चला जब वे जीतने का प्रमाणपत्र सौंपने के लिए आवाज लगाते रहे attacknews.in

वाह रे लोकतंत्र! बिहार में मरने वाले उम्मीदवार ने जीता पंचायत चुनाव;अधिकारियों को तब पता चला जब वे जीतने का प्रमाणपत्र सौंपने के लिए आवाज लगाते रहे