देहरादून, 04 जुलाई । उत्तराखंड में भारतीय जनता पार्टी के मौजूदा शासनकाल में तीन बार मुख्यमंत्री बनाये जाने से देश-विदेश में पार्टी के बड़े नेताओं की कार्यशैली पर भी उंगली उठने लगी हैं। राज्य में वर्ष 2022 में विधानसभा चुनाव होंगे।
वर्ष 2000 में गठित इस राज्य में अब तक कुल चार आम विधानसभा चुनाव हुए हैं। आम तौर पर प्रत्येक राज्य में एक विधानसभा निर्वाचन के बाद एक मुख्यमंत्री पूरे पांच वर्ष अपना कार्य करता है, लेकिन उत्तराखंड में अभी तक एक ही मुख्यमंत्री ऐसा रहा, जिसने अपने कार्यकाल पूरा किया हो। वह मुख्यमंत्री विकास पुरुष के रूप में विख्यात कांग्रेस के वरिष्ठ नेता नारायण दत्त तिवारी रहे।
इसके विपरीत कांग्रेस की वर्ष 2012 में बनी सरकार में क्रमशः विजय बहुगुणा और हरीश रावत ने यह पद संभाला। भाजपा इनसे दो कदम आगे रही। उसके शासनकाल में हर बार तीन-तीन मुख्यमंत्री बनाये गये।
इस कालखण्ड में रविवार को एक बार फिर भाजपा के प्रचंड बहुमत वाली राज्य सरकार में पुष्कर सिंह धामी ने ग्यारहवें मुख्यमंत्री के तौर पर पद संभाला है। वह मात्र 45 वर्ष के हैं, साथ ही राज्य में अब तक बने सभी मुख्यमंत्रियों में सबसे कम आयु के हैं। बस यही बात भाजपा के राज्य स्तरीय बड़े और कद्दावर नेताओं को रास नहीं आ रही है।
श्री धामी का नाम विधान मंडल दल के नेता के रूप में जब शनिवार को तय हुआ तब किसी भी स्थानीय बड़े नेता ने खुलकर उनके नाम पर आपत्ति नहीं की। इसके बावजूद दिन निकलते-निकलते निवर्तमान मन्त्रिमण्डल के सदस्य बिशन सिंह चुफाल ने श्री धामी के नाम पर अपनी खिन्नता पार्टी अध्यक्ष से व्यक्त कर दी।
विश्वस्त सूत्रों के अनुसार, श्री चुफाल ने प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक को फोन कर श्री धामी के नाम पर अपनी नाराजगी व्यक्त की। उनके अलावा, कभी कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल होने वाले निवर्तमान कैबिनेट मंत्री हरक सिंह और सतपाल महाराज के भी नाखुश होने की अटकलें चलती रहीं। इसके बाद, श्री धामी द्वारा निवर्तमान मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत, पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत और भुवन चंद खण्डूरी के साथ सतपाल महाराज के घर जाकर उनसे आशीर्वाद लेने के साथ सभी अटकलों पर विराम लग गया। शाम को शपथ ग्रहण कार्यक्रम में मंत्रिमण्डल में सभी कथित असंतुष्टों के शपथ लेने के साथ सुबह से चल रही सभी आशंकाएं निर्मूल साबित हो गईं।
धामी को कमान सौंपकर भाजपा ने साधे एक तीर से कई निशाने
उत्तराखंड की राजनीति के शिखर पर पहुंचे नवनियुक्त मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को यहां तक पहुंचने में अपनी मेहनत के साथ ही राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) का विशेष वरदहस्त प्राप्त हुआ है।
महाराष्ट्र के राज्यपाल एवं खांटी संघी भगत सिंह कोश्यारी का भी उन्हें बेहद करीबी माना जाता है और माना जा रहा है कि उन्हीं की कृपा से वे सत्ता के शीर्ष पर पहुंचे हैं। भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) उनकी राजनीति की प्रथम पाठशाला रही है।
श्री धामी मूल रूप से पिथौरागढ़ जिले में कनालीछीना के ग्राम सभा टुण्डी, तहसील डीडीहाट में जन्म 16 सितंबर 1975 को हुआ। उनकी प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा उधमसिंह नगर जिले के साथ ही लखनऊ में हुई है। यहीं से उनके जीवन में राजनीतिक सफर की शुरूआत हुई। इसी दौरान वह भाजपा के प्रखर नेता भगत सिंह कोश्यारी के सम्पर्क में आये और लगातार राजनीति की सीढ़ी चढ़ते गये। संघ से बेहद अच्छे रिश्ते रखने वाले श्री धामी (45) को केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह का करीबी माना जाता है।
पुष्कर सिंह धामी को सत्ता की कमान सौंपने के फैसले से थोड़ी असहजता जरूर दिख रही है, लेकिन पार्टी ने काफी सोच-समझकर चुनाव से ठीक पहले यह सिसासी दांव खेला है।
चार महीने पहले तीरथ सिंह रावत को सत्ता की बागडोर सौंपने के बाद नए फैसले पर सवाल भले ही उठ रहे हों, लेकिन धामी पर बाजी लगाकर पार्टी ने प्रदेश के वरिष्ठ नेताओं की खेमेबाजी से निपटने की एक कोशिश जरूर की ही है, लगे हाथ विपक्षी कांग्रेस की राजनीति को भी हिलाने की चाल चल दी है। मोटे तौर पर देखें तो भाजपा नेतृत्व के इस फैसले के पीछे पांच तरह के गणित लग रहे हैं।
गढ़वाल और कुमाऊं की सियासत में संतुलन:
जानकारों की मानें तो पार्टी ने 21 साल के उत्तराखंड के 11वें मुख्यमंत्री के तौर पर पुष्कर सिंह धानी का नाम आगे बढ़ाकर प्रदेश की राजनीति के सबसे अहम फैक्टर गढ़वाल-कुमाऊं के बीच बैलेंस स्थापित करने की कोशिश की है। क्योंकि, निवर्तमान सीएम तीरथ सिंह रावत और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष मदन सिंह कौशिक दोनों गढ़वाल से आते हैं। ऐसे में बीजेपी ने मुख्यमंत्री का पद कुमाऊं को देकर दोनों जगह अपनी राजनीतिक गोटी को सेट करने का प्रयास किया है। यह कुमाऊं के लोगों के लिए चुनाव से पहले एक बड़ा संदेश है, जिस क्षेत्र की 29 सीटों में से 2017 के विधानसभा चुनाव में पार्टी ने 23 सीटें जीती थी।
ठाकुर-ब्राह्मण की राजनीति में संतुलन:
उत्तरखंड की राजनीति में एक और फैक्टर महत्वपूर्ण है। ठाकुर और ब्राह्मण की राजनीति। प्रदेश अध्यक्ष की कमान पहले से ही कौशिक के पास है, जो कि ब्राह्मण हैं। इसलिए धामी को सीएम बनाकर भाजपा ने एक राजपूत की जगह सिर्फ दूसरे राजपूत का चेहरा भर बदला है। राजनीतिक सूत्रों का कहना है कि ‘धामी को चुनने के पीछे निश्चित रूप से इस बात को ध्यान में रखा गया है कि वो ठाकुर हैं, जिससे ठाकुर मतदाताओं का बड़ा हिस्सा चुनाव से पहले नाखुश ना हो जाएं…’ क्योंकि, तीरथ सिंह रावत भी ठाकुर हैं।
भविष्य के लिए युवा नेतृत्व पर दांव
धामी को चेहरा बनाकर बीजेपी ने न केवल आज की राजनीति को साधने की कोशिश की है, बल्कि उसने आने वाले तीन दशकों की राजनीति का एक खाका तैयार करने की कोशिश की है। 16 सितंबर, 1975 को पिथौरागढ़ जिले के कनालीछीना गांव में जन्मे पुष्कर सिंह धामी को उनकी पार्टी ने राज्य के सबसे युवा मुख्यमंत्री के तौर पर चुना है।
भाजपा ने राजनीति के लिए मोटे तौर पर 75 वर्ष की उम्र की जो एक सीमा तय कर रखी है, उसके मुताबिक धामी के पास अभी कम से कम 30 वर्षों का सियासी करियर बचा हुआ है। ऐसे में वो प्रदेश में पार्टी को लंबे समय तक नेतृत्व दे सकते हैं और इस एक स्टैंड से पार्टी ने वरिष्ठ नेताओं की गुटबाजी से निपटने की भी चाल चली है। धामी शुरू में विधार्थी परिषद से भी जुड़े रह चुके हैं और भाजपा युवा मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष भी रहे हैं, इसलिए बीजेपो को उम्मीद है कि युवा वोटरों में उनकी अपील काफी मायने रखेगी।
कांग्रेस की राजनीति की धार कुंद करने की भी कोशिश
2017 के उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने तत्कालीन कांग्रेस सरकार के खिलाफ लड़कर राज्य की 70 में से 57 सीटें जीत ली थीं। उस चुनाव में पूर्व सीएम हरीश सिंह रावत कांग्रेस के चेहरा थे और इस समय भी वही प्रदेश में पार्टी के सबसे बड़े नेता हैं। कांग्रेस की एक और कद्दावर नेता इंदिरा हृदयेश का पिछले महीने ही निधन हो चुका है। ये दोनों नेता कुमाऊं क्षेत्र से ही आते हैं, जहां से धामी आते हैं। वो ऊधम सिंह नगर की खटीमा विधानसभा सीट से लगातार दो बार चुनाव जीतकर आए हैं। इसलिए, जिस कुमाऊं मंडल में अबकी बार कांग्रेस भाजपा को घेरने की तैयारी में थी, वहां पार्टी ने उसके खिलाफ ऐसा तीर मारा है कि कांग्रेस को अपनी रणनीति फिर से दुरुस्त करनी पड़ेगी।
सेना से जुड़ा पारिवारिक बैकग्राउंड
उत्तराखंड देश का एक सीमावर्ती राज्य है, जहां के अधिकतर युवाओं के लिए सेना में जाना पहली पसंद होती है। इस राज्य में सेना के बैकग्राउंड से जुड़े परिवारों का अपना ही सम्मान है। गौर फरमाइए कि सीएम के तौर पर नाम घोषित होने के बाद धामी ने मीडिया से अपनी पहली ही टिप्पणी में क्या कहा है, ‘पार्टी का सामान्य कार्यकर्ता हूं, एक सैनिक का बेटा हूं और पिथौरागढ़ के दूर-दराज बॉर्डर इलाके में पैदा हुआ हूं।’ यही नहीं, धामी को राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का भी आशीर्वाद प्राप्त है और पूर्व सीएम और महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी की नजदीकियों का भी फायदा मिलने की उम्मीद है। दिलचस्प तथ्य ये है कि कोश्यारी भी कुमाऊं के ही बागेश्वर से आते हैं।
वरिष्ठ भाजपा विधायकों की नाराजगी दूर करने के बाद पुष्कर सिंह धामी ने उत्तराखंड के सबसे युवा नए मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली
वरिष्ठ भाजपा विधायकों की नाराजगी दूर करने के बाद पुष्कर सिंह धामी ने रविवार को उत्तराखंड के नए मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली ।
यहां राजभवन में आयोजित एक समारोह में राज्यपाल बेबी रानी मौर्य ने उन्हें पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई । धामी के शपथ लेने के बाद 11 अन्य कैबिनेट मंत्रियों ने भी शपथ ली जिनमें से कुछ शनिवार से नाराज चल रहे थे ।
उत्तराखंड के 11 वें मुख्यमंत्री बने, उधमसिंह नगर जिले के खटीमा से विधायक 45 वर्षीय धामी उत्तराखंड के अब तक के सबसे युवा मुख्यमंत्री हैं ।
शपथ ग्रहण समारोह से पहले दिन भर रूठे विधायकों को मनाने की कवायद चलती रही जिसमें धामी खुद सतपाल महाराज के यहां डालनवाला स्थित आवास पर जाकर मिले और उन्हें गुलदस्ता भेंट कर समय रहते मना लिया । माना जा रहा था कि महाराज शनिवार को हुए फैसले के बाद से नाराज चल रहे थे । हांलांकि, महाराज ने अपनी नाराजगी को लेकर कोई टिप्पणी करने से इंकार कर दिया ।
पार्टी मामलों के प्रभारी दुष्यंत कुमार गौतम प्रदेश पार्टी अध्यक्ष मदन कौशिक के साथ उनके यहां यमुना कॉलोनी स्थित आवास में कुछ अन्य विधायकों की नाराजगी दूर करने के प्रयास में लगे रहे जिससे शपथ ग्रहण समारोह में कोई विघ्न न आए ।
शपथ लेने के बाद संवाददाताओं द्वारा इस संबंध में पूछे जाने पर धामी ने कहा कि कहीं कोई नाराजगी नहीं है । उन्होंने उल्टा सवाल दागते हुए कहा, ‘आपको यहां कोई नाराज दिखा क्या ?’ तय समय से 10 मिनट देर से आरंभ हुए समारोह में धामी के साथ शपथ लेने वाले उनके मंत्रिमंडल में सभी पुराने चेहरों को बरकरार रखा गया है और इसमें एकमात्र परिवर्तन यही किया गया है कि सभी मंत्रियों को कैबिनेट दर्जा दिया गया है । धामी मंत्रिमंडल में कोई भी राज्य मंत्री नहीं है ।
त्रिवेंद्र सिंह रावत और तीरथ सिंह रावत मंत्रिमंडल की तरह सतपाल महाराज को पुष्कर मंत्रिमंडल में भी नंबर दो पर रख गया है । अन्य मंत्रियों में डा. हरक सिंह रावत, सुबोध उनियाल, यशपाल आर्य, बिशन सिंह चुफाल, बंशीधर भगत, रेखा आर्य, स्वामी यतीश्वरानंद, अरविंद पाण्डेय, गणेश जोशी और धनसिंह रावत शामिल हैं ।
धामी मंत्रिमंडल में रेखा आर्य, धनसिंह रावत और यतीश्वरानंद का कद बढाया गया है । पिछले मंत्रिमंडल में ये राज्य मंत्री थे । शपथ ग्रहण समारोह के दौरान पूर्व मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत और त्रिवेंद्र सिंह रावत, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष मदन कौशिक, कई विधायकों और अधिकारियों के अलावा धामी की मां बिश्ना देवी और पत्नी गीता धामी सहित अन्य परिजन भी मौजूद थे ।
उल्लेखनीय है कि पौड़ी संसदीय क्षेत्र से सांसद और निवर्तमान मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने शुक्रवार देर रात्रि मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र दे दिया था। इसका कारण उनको विधायक न होना था।
संवैधानिक कारणों से राज्य सरकार का कार्यकाल एक वर्ष से कम होने के कारण विधानसभा का उपचुनाव नहीं कराया जा सकता था। इससे पूर्व, 09 मार्च को तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को हटाकर श्री तीरथ मुख्यमंत्री बनाये गये थे।
उत्तराखंड में प्रचंड बहुमत से बनी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सरकार का कार्यकाल पूरा होने से लगभग आठ महीने पहले तीसरी बार नये मुख्यमंत्री के रूप में विधायक पुष्कर सिंह धामी को शनिवार को विधायक का चुन लिया गया।
केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और भाजपा के प्रदेश प्रभारी दुष्यंत गौतम की उपस्थिति में अपराह्न तीन बजे विधानमंडल दल की बैठक पार्टी के प्रदेश कार्यालय में शुरू हुई। इसमें पूर्व मुख्यमंत्रियों त्रिवेंद्र सिंह रावत, तीरथ सिंह रावत सहित भाजपा सांसद और विधायक भी उपस्थित रहे।
लगभग तीस मिनट तक चली इस बैठक में खटीमा से विधायक धामी को विधायक दल का नेता सदन चुन लिया गया।
श्री तोमर ने बैठक कक्ष के बाहर एकत्रित संवाददाताओं को इसकी जानकारी दी। श्री धामी को नेता सदन चुने जाते ही फूल-मालाओं से लाद दिया गया।