राष्ट्र चिंतन
आत्मघाती है दिग्विजय सिंह की मुस्लिम परस्त चुनावी राजनीति
● विष्णुगुप्त
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह के कैसे और क्यों चुनावी रास्ते कठिन होते जा रहे है, दिग्विजय सिंह खुद अपना ही आत्मघात कर रहे हैं, दिग्विजय सिंह जाने-अनजाने में ऐसी चुनावी भूलें कर रहे हैं जिसके दुष्परिणाम हार के रूप में सामने आ सकते हैं, अपने पक्ष में भस्मासुरों को चुनावी अभियान में क्यों शामिल कर लिया, यह प्रश्न भोपाल के मतदाताओं के बीच गूंज रहा है। चुनावी सफलता दिलाने के अभियान से जुडे कुछ भस्मासुरों के विचार और बयान यहां प्रस्तुत है।
रामायण और महाभारत हिंसक ग्रंथ हैं… सीताराम यचुरी
हिन्दुत्व बहुत ही खतरनाक और घृणास्पद शब्द है… स्वामी अग्निवेश
घूंघट पर भी प्रतिबंध लगना चाहिए, .. जावेद अख्तर
देश में हिंदू आतंकवाद है, प्रज्ञा ठाकुर के जीतने से हिन्दू आतंकवाद मजबूत होगा… स्वरा भास्कर
ये चार उन भस्मासुर नेताओं और भस्मासुर शख्सियतों के बयान हैं जो दिग्विजय सिंह को चुनावी जीत दिलाने के लिए भोपाल में सभा और रोड शो कर चुके हैं।
दिग्विजस सिंह ने अपनी जीत पक्की करने के लिए और अपने पक्ष में जनता के बीच हवा बनाने के लिए इन चारों भस्मासुर नेताओं और भस्मासुर शख्सियतों को भोपाल आमंत्रित किये थे। कई अन्य चर्चित नेता और शख्सियतें भी दिग्विजय सिंह को चुनावी जीत दिलाने के लिए भोपाल में सभा और रोड शो कर चुके हैं।
अब यहां यह प्रश्न खडा होता है कि इन चारों भस्मासुर नेताओं और भस्मासुर शख्सियतों की सभा से दिग्विजय सिंह को चुनावी लाभ हुआ है या फिर चुनावी हानि हुई है, कमजोर आंकी जाने वाली प्रज्ञा ठाकुर मजबूत हुई है? अगर इन प्रश्नों का उत्तर आप खोजेंगे तो यह समझेंगे कि दिग्विजय सिंह ने भारी चुनावी चूक की है, उनकी चुनावी चूक भारी पडने वाली है, दिग्विजय सिंह के चुनावी रास्ते बहुत ही कठिन हो गये हैं। सर्व प्रथम यह स्वीकार तथ्य है कि ये चारों भस्मासुर नेता और भस्मासुर शख्सियतों का परिचय हिन्दू विरोधी का है, हिन्दुओं को अपमानित करने के इन नेताओं और शख्सियतों ने कोई कसर नहीं छोडी है।
स्वामी अग्निवेश को हिन्दू विरोधी अभियान के कारण एक नहीं बल्कि दो बार पिटाई भी हो चुकी है, स्वामी अग्निवेश जहां भी जाते हैं, उन्हें वहां पर भारी सुरक्षा में रहने के लिए मजबूर होना पडता है, क्योंकि हिन्दू समर्थक उनके पीछे पडे रहते हैं। सीताराम येचुरी ही नहीं बल्कि पूरी कम्युनिस्ट जमात ही हिन्दू विरोधी अभियानों के लिए जानी जाती है, संस्कृति नष्ट करने के आरोप भी कम्युनिस्ट जमात पर लगते रहा है।
जावेद अख्तार की हिन्दुओं के बीच छवि कोई समर्थक की नहीं रही है, हिन्दू विरोधी और मुस्लिम समर्थक की रही है, इनकी भूमिका फिल्मी हस्ती की कम और हिन्दुओं को कोसने तथा मुस्लिम रूढियों पर चुप्पी साधने की रही है। जब भोपाल में जावेद अख्तर से पूछा गया कि श्रीलंका सरकार ने सुरक्षा की दृष्टि से बुर्का पर प्रतिबंध लगाया है, आतंकवादी बुर्का का भी प्रयोग करते हैं, भारत में बुर्का पर प्रतिबंध की मांग हो रही है, इस पर जावेद अख्तर ने सीधे जवाब देने की जगह कह दिया कि घूंघट पर भी प्रतिबध लगना चाहिए। जावेद अख्तर की इस मांग पर हिन्दू मतदाताओं की बहुत ही जबरदस्त प्रतिक्रिया हुई है, यह प्रतिक्रिया सोशल मीडिया पर खूबी देखी गयी थी, सोशल मीडिया का अभियान यह था कि घूंघट करने वाली महिलाएं आतंकवादी नहीं होती है, दुनिया भर में बुर्का में महिलाएं और मुस्लिम पुरूष आतंकवादी घटनाओं को अंजाम दिया है। घूंघट जहां समाप्ति की ओर है, पर बुर्का तो आज मुस्लिम दुनिया के लिए अनिवार्य है। जवेद अख्तर के बयान और चुनावी सभा का संदेश यह गया कि जान बुझ कर हिन्दुओं को अपमानित करने के लिए दिग्विजय सिंह ने जावेद अख्तर की सभा करायी थी। जावेद अख्तर ने मुस्लिम आबादी को पीडित के तौर पर प्रस्तुत की थी।
टुकडे-टुकडे गैंग की भी भोपाल के चुनावी मैदान में सकियता जारी रही। टुकडे-टुकडे गैंग जेएनयू के उन लोगों को कहा जाता है जिन्होंने भारत के टूकडे-टुकडे करने के नारे लगाये थे। दिग्विजय सिंह ने टुकडे-टुकडे गिरोह की हिरोइन स्वरा भास्कर को खास तौर पर भोपाल में उतारा था। स्वरा भास्कर तब चर्चा में आयी थी जब उसने भारतीय सेना को बेवकूफ कहा था और पाकिस्तान की तारीफ की थी। जब प्रतिक्रिया हुई तब फिर उसने झूठ बोल दिया कि उसके टिवटर एकाउंट को हैक कर लिया गया था। स्वरा भास्कर कन्हैया को जीताने के लिए बेगुसराय भी गयी थी। भोपाल में स्वरा भास्कर ने अपनी सभा में हिन्दू आतंकवाद के अस्तित्व को न केवल जाहिर किया बल्कि कहा कि अगर मुस्लिम आतंकवाद कहा जाता है तो फिर हिन्दू आतंकवाद क्यों नही कहा जा सकता है, प्रज्ञा ठाकुर कोई संत और साध्वी नहीं है, उसकी छवि एक आतंकवादी की है, ऐसे प्रत्याशी को खारिज किया जाना चाहिए, ऐसे प्रत्याशी से भोपाल की प्रतिष्ठा गिरती है। पर शारदा मिश्रा प्रकरण और एक वृद्ध महिला को हाशिये भेज कर, उसे मानसिक तौर पर प्रताडित कर एक युवा महिला से शादी करने के प्रकरण पर स्वरा भास्कर ने चुप्पी नहीं तोडी।
भोपाल में आम आदमी और निष्पक्ष लोगों का मानना है कि दिग्विजय सिह भारी भूल की है, इनकी यह भूल हार के रूप में सामने आ सकती है, दिग्विजय सिंह को हिन्दुओं के गुस्से का शिकार होना पडेगा। मैं दो सप्ताह से भोपाल में हूं। जब मैं भोपाल से आया था तब दिग्विजय सिंह का ग्राफ बहुत उपर था, यह संकेत साफ था दिग्विजय सिंह को हराना मुश्किल है, एक पूर्व मुख्यमंत्री रहने का लाभ दिग्विजय सिह को मिल रहा है, भोपाल के लोग भी दिग्विजय सिंह का समर्थन कर रहे थे। यह भी सही है कि दिग्विजय सिंह की शख्सियत की तुलना प्रज्ञा ठाकुर से नहीं हो सकती है, प्रज्ञा ठाकुर मूल रूप से राजनीतिज्ञ भी नहीं है, वह तो राजनीतिक दांव-पेंच भी नही जानती है, प्रज्ञा ठाकुर के विरोधी नहीं है, यह भी अस्वीकार नहीं हो सकता है। जैसे-जैसे हिन्दू विरोधी शख्सियतें भोपाल में आने लगी और दिग्विजय सिंह के समर्थन में चुनावी मैदान में उतरती रहीं और हिन्दुओं के खिलाफ बोलना शुरू की और हिन्दुओं को अपमानित करना शुरू की, वैसे-वैसे दिग्विजय सिंह लगातार कमजोर पडते गये और प्रज्ञा ठाकुर मजबूत होती गयी।
1990 के पहले का एक दौर था जब हिन्दुओं को गाली देकर और हिन्दुओ को अपमानित कर चुनाव जीता जाता था। उस दौर मे तथाकथित धर्म निरपेक्षता चरम पर थी। पर राम मंदिर आंदोलन हिन्दुओं के बीच पुर्नजागरण का काम किया था, राम मंदिर आंदोलन के बाद हिन्दुओं ने तथाकथित धर्म निरपेक्षता जो एंकाकी थी, मुस्लिम परस्त थी को समझा था और इसके खतरे को भी समझा था। अनिवार्य तौर पर हिन्दुओं की एकता और हिन्दुओं की गोलबंदी सुनिश्चित हुई थी। हिन्दुओं की एकता और हिन्दुओं की गोलबंद का ही परिणाम था कि दो सीटों पर सिमट जाने वाली भाजपा 89 सीटों पर पहुंची थी, सिर्फ इतना ही नही बल्कि पहले अटल बिहारी वाजपेयी और अब पूर्ण बहूमत की सरकार नरेन्द मोदी की बनी है। नरेन्द्र मोदी और भाजपा की शक्ति भी हिन्दुत्व है। हिन्दुत्व विरोध की कसौटी पर ही कांग्रेस की केन्द्रीय सरकार गयी थी। अब इस तथ्य को कांग्रेस स्वीकार करती है।
दिग्विजय सिंह लाख कोशिश कर लें, झूठ पर झूठ बोल लें पर उन्हें हिन्दू आतंकवाद का प्रोपगंडा पीछे छोडेगा नहीं। अब दिग्विजय सिंह कह रहे हैं कि उन्होने हिन्दू आतंकवाद शब्द को जन्म नही दिया था। राजनीति में अपने बयानो और हरकतों से हटने का लंबा-चौडा इतिहास है। भोपाल की ही की बात नहीं है बल्कि देश की जनता जानती है, कि हिन्दू आतंकवाद के प्रोपगंडा से दिग्विजय सिंह का कितना बडा रिश्ता रहा है। दिग्विजय सिंह ही नही बल्कि अब कांग्रेस भी अब हिन्दू आतंकवाद के प्रोपगंडा से पीछा छुडा रही है। पर तथ्य यह है कि पी चिदम्बरम ने सरकारी तौर पर पहली बार भगवा आतंकवाद शब्द का प्रयोग किया था जो संसद के रिकार्ड में है। कांग्रेस सरकार के तत्कालीन गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे ने जयपुर मेंं कांग्रेस के राष्ट्रीय अधिवेशन में हिन्दू आतंकवाद पर जम कर बोला था और राहुल गांधी खुद अमेरिकी अधिकारी से देश को हिन्दुओं से खतरा बताया था। यह सब मुस्लिम मतदाताओं को खुश करने के लिए हुआ था।
मुस्लिम मतदाताओं के पास विकल्प क्या है? दिग्विजय सिंह के पक्ष में मतदान करने के अलावा मुस्लिम मतदाताओं के पास कोई अन्य विकल्प था नहीं। कहने का अर्थ यह है कि मुस्लिम मतदाता दिग्विजय िंसंह को वोट देने के लिए बाध्य थे । यह बाध्यता उनकी अनिवार्य थी। मुस्लिम मतदाता भाजपा को हराने वाले प्रत्याशी और पार्टी को अनिवार्य तौर पर मतदान करते रहे हैं। भोपाल में भाजपा के खिलाफ दिग्विजय सिंह ही मुकाबले में हैं। अगर दिग्विजय सिंह मुस्लिम मतदाताओं के बीच कम प्रचार करते तो भी मुस्लिम आबादी का समर्थन उन्हें मिलता। दिग्विजय सिंह को मुस्लिम परस्त और भस्मासुरों को अपने समर्थन में उतारने की जरूरत ही नहीं थी।
जहां तक प्रज्ञा ठाकुर की बात है, तो उसने दिग्विजय सिंह को नींद हराम करने में कोई कसर नहीं छोडी है। प्रज्ञा ठाकुर लगातार अपने आप को पीडित बताती रही है, पीडित बताना ही प्रज्ञा ठाकुर की शक्ति रही है। अपनी प्रताड़ना के लिए प्रज्ञा ठाकुर दिग्विजय सिंह को जिम्मेदार और खलनायक तौर पर प्रस्तुत करती रही है। अगर दिग्विजय सिंह की हार हुई तो फिर भस्मासुर शख्सियते सीताराम यचुरी, स्वरा भास्कर, जावेद अख्तर और स्वामी अग्निवेश के हिन्दू विरोधी सक्रियता ही जिम्मेदार होगी।
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