उज्जैन !मोक्षदायिनी क्षिप्रा के तट पर 20वीं शताब्दी में 9 सिंहस्थ हुए हैं। एक आकलन के अनुसार 21वीं शताब्दी में भी 9 ही सिंहस्थ आयोजित होंगे। बीसवीं शताब्दी का पहला सिंहस्थ वर्ष 1909 में और अंतिम सिंहस्थ वर्ष 1992 में हुआ। 21वीं शताब्दी का पहला सिंहस्थ वर्ष 2004 में मनाया गया और दूसरा सिंहस्थ इस वर्ष 2016 में हो रहा है। मोक्षदायिनी क्षिप्रा के तट पर स्नान और दान का अपना आध्यात्मिक महत्व है। सिंहस्थ में स्नान की बात की जाये तो 20वीं सदी में सभी 9 सिंहस्थ में केवल एक शाही स्नान हुआ, जबकि वर्ष 2004 में आयोजित हुए सिंहस्थ में 3 शाही स्नान और 2 पर्व स्नान हुए हैं।
बीसवीं सदी में लगातार दो वर्ष 1956 और 1957 में सिंहस्थ के आयोजन हुए। वर्ष 1956 में दण्डी स्वामियों ने और वर्ष 1957 में षडदर्शन अखाड़ों ने सिंहस्थ मनाया। यह सिंहस्थ पाँचवां और छठवां रहा। बीसवीं सदी का पहला सिंहस्थ वर्ष 1909, दूसरा वर्ष 1921 में, तीसरा वर्ष 1933 में, चौथा वर्ष 1945 में, पाँचवां वर्ष 1956 में, छठवां वर्ष 1957 में, सातवां वर्ष 1969 में, आठवां वर्ष 1980 में और सदी का अंतिम और नौवां सिंहस्थ वर्ष 1992 में हुआ।
उज्जैन में 21वीं सदी के दूसरे सिंहस्थ 2016 में दूसरी बार 3 शाही स्नान और पहली बार 3 पर्व तथा 4 प्रमुख स्नान होंगे। उज्जैन में 21वीं सदी में भी 9 सिंहस्थ मनाये जायेंगे। यह सिंहस्थ वर्ष 2004, 2016, 2028, 2040, 2052, 2064, 2076, 2088 और 21वीं सदी का अंतिम सिंहस्थ वर्ष 2100 में होगा।
दो साल में दो बार सिंहस्थ
विक्रम संवत 2014 में सन् 1956 और सन् 1957 में दो बार सिंहस्थ हुआ था। श्री करपात्रीजी और दण्डी स्वामियों ने सन् 1956 में उज्जैन में सिंहस्थ मनाने का निर्णय लिया। षडदर्शन अखाड़ों ने सन् 1957 में सिंहस्थ करने को कहा, लेकिन कोई एक तिथि निर्धारित नहीं होने से दण्डी स्वामियों ने वर्ष 1956 में सिंहस्थ मनाया। षडदर्शन अखाड़ों ने वर्ष 1957 में सिंहस्थ मनाया।