नईदिल्ली 20 जुलाई। मुस्लिम समुदाय में अभी शरिया अदालत और ट्रिपल तलाक पर बहस थमी भी नहीं थी कि अब एक दूसरी प्रथा हलाला सुर्खियों में है. मामला फिर सुप्रीम कोर्ट पहुंचा है जहां पर एक संवैधानिक बेंच मामले की सुनवाई करेगी.
जैसे ही ये मामला सुर्खियों में आया उत्तर प्रदेश में ऐसे कई मामले जिनमें हलाला प्रक्रिया अपनाने का दावा किया गया है मीडिया में सामने आ गए. देश में हलाला प्रथा को लेकर संभवतः पहला केस पुलिस ने बरेली में दर्ज किया है. मामला फिर से मुस्लिम समुदाय, अल्पसंख्यक आयोग और हलाला प्रथा की शिकार महिलाओं के इर्द गिर्द आ गया है.
गौर तलब है कि मुसलमानों में खासकर सुन्नी समुदाय के लोग इस्लामिक शरिया को मानते हैं. इस वजह से निकाह, बहुविवाह, ट्रिपल तलाक और हलाला जैसे मामले सब आपस में कनेक्टेड होते हैं. लेकिन आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड इसको मीडिया द्वारा गलत प्रोपोगंडा बता रहा है. बोर्ड के अनुसार, हलाला शब्द कहीं मौजूद नहीं है लेकिन इसको लेकर तमाम बयानबाजी चल रही है.
हलाला क्या है
इस्लाम धर्म के अनुसार अगर कोई पुरुष अपनी पत्नी को तीन तलाक कह देता है तो उसकी पत्नी उसके निकाह से बाहर हो जाती है. पत्नी तीन महीने अपनी इद्दत के गुजारने के बाद स्वतंत्र होती है और वो किसी से भी शादी कर सकती है. लेकिन अगर वो फिर से अपने पहले पति से निकाह करना चाहती है तो उसके लिए पहले उसे किसी दुसरे पुरुष से शादी करनी होगी और उसके साथ शारीरिक संबंध बनाने होंगे, फिर उस पुरुष से तलाक लेनी होगी और फिर इद्दत की अवधि बिताने के बाद वो पहले पति से शादी कर सकती है.
इस पूरी प्रक्रिया को हलाला कहते हैं. लेकिन इसमें भी पहला पति दूसरे पति को तलाक देने के लिए मजबूर नहीं कर सकता. दूसरी बात ऐसी शर्त लगाना कि शारीरिक संबंध के बाद तलाक देना है वो भी नहीं किया जा सकता. इसके अलावा ये भी नहीं कहा जा सकता कि किसी खास पुरुष के साथ हलाला करें. जानकारों की मानें तो ऐसा इसलिए रखा गया है जिससे तलाक जैसी प्रक्रिया से लोग परहेज करें.
बरेली का हलाला प्रकरण
बरेली जिले के किला थाना के अंतर्गत एक पीड़िता ने मुकदमा दर्ज कराया कि वो तीन तलाक पीड़ित है और उसके साथ शरियत की आड़ में गलत बर्ताव हुआ है. पीड़ित महिला का कहना है कि उसके पति ने उसको तलाक दे दी और फिर उसके बाद उसकी शादी उसके ससुर से करवा दी गई फिर हलाला प्रक्रिया (शारीरिक संबंध बनवाना) की गई. पुलिस ने इस पर दुष्कर्म की धारा के तहत केस दर्ज किया है और जांच शुरू कर दी है.
अब इसमें मामला ये फंस रहा है कि अगर आरोप सिद्ध हुए तो हलाला प्रक्रिया को ही दुष्कर्म माना जायेगा. ऐसे में सवाल उठ रहा है कि क्या जो चीज शरिया में सही है वो कानूनी रूप से गलत कैसे होगी ? किला थाना के इंस्पेक्टर केके वर्मा ने मीडिया को बताया कि पीड़िता का मेडिकल होगा, सबके बयान होंगे और नियमानुसार विवेचना होगी.
हलाला प्रथा और सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट में एक अर्जी डाली गई है जिसमें कहा गया है कि मुसलमानों में बहुविवाह और निकाह-हलाला जैसी प्रथा ट्रिपल तलाक के सुप्रीम कोर्ट के फैसले में रह गई थी. इस मामले की सुनवाई अब संवैधानिक बेंच करेगी. पेटिशन में सेक्शन 2, मुस्लिम पर्सनल (शरीअत) एप्लीकेशन एक्ट, 1937 को चुनौती दी गयी है. पेटिशन अश्विनी उपाध्याय, समीरा बेगम, मोहसिन बिन हुसैन और नफीसा खान द्वारा दायर की गई है. इसमें से अश्विनी उपाध्याय को भाजपा नेता बताया जा रहा है. मामला इस वजह से और सुर्खियों में है क्यूंकि सुप्रीम कोर्ट इससे पहले मुसलमानों में ट्रिपल तलाक को अवैध ठहरा चुका है.
जब हलाला प्रथा का मामला सुर्खियों में आया तो सबसे पहले बरेली से आवाज उठी. एक मुकदमा भी दर्ज हुआ. उसके बाद पीड़िता के समर्थन में बरेली निवासी निदा खान आ गई. निदा खान के खिलाफ अभी फतवा आया है और उनको इस्लाम से बाहर कर दिया गया है और उनके मरने पर भी लोगों को शामिल न होने के लिए कहा गया है. अब निदा खान खुद आला हजरत प्रमुख मौलाना सुभान रजा खान उर्फ सुभानी मियां के छोटे भाई अंजुम मियां के बेटे शीरान रजा खान की पूर्व पत्नी है. इसके बाद निदा ने आला हजरत हेल्पिंग सोसाइटी बनाई जिससे वो तलाक पीड़ितों के हक में लड़ रही है. निदा सीधे आला हजरत खानदान की बहू थी जिसपर बरेलवी समुदाय के लोग आस्था रखते हैं. निदा खुल कर हलाला पीड़िता के समर्थन में आ गई है.
गरमाई राजनीति
इस मुद्दे पर राजनीति भी गरमा गई है. उत्तर प्रदेश के सिचाईं मंत्री धर्मपाल सिंह ने कहा है कि निदा के साथ उनकी संवेदनाएं हैं और 21 जुलाई को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी शाहजहांपुर रैली में आएंगे तो वो वहां निदा का दर्द उनको बताएंगे. दूसरी ओर उत्तर प्रदेश के राज्य अल्पसंख्यक आयोग ने भी एक टीम बरेली भेजी है जो हलाला पीड़ित से भी मिलेगी. आयोग के अध्यक्ष तनवीर हैदर उस्मानी ने बताया कि देश फतवों से नहीं चलेगा और पीड़िता के साथ न्याय होगा.
इन सब से इतर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड हलाला प्रकरण को बिना वजह की बहस मान रहा है. बोर्ड के सेक्रेटरी जफरयाब जीलानी के अनुसार हलाला शब्द कहीं नहीं है. ये कुरान और हदीस में कहीं नहीं है लेकिन इसको प्रचारित किया जा रहा है. जीलानी बताते हैं, अगर कोई शौहर अपनी पूर्व पत्नी से दुबारा शादी करना चाहता है तो उस पत्नी को कहीं दूसरी शादी करनी पड़ेगी और दूसरी शादी खत्म होने के बाद ही वो पहले पति से शादी कर पाएगी. लेकिन इसमें जबरदस्ती करना, शादी तुड़वाना या शर्त के साथ करवाना बहुत सख्त मना है.attacknews.in