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दिमागी बुखार से 64 बच्चों की मौत में उत्तरप्रदेश शासन ने क्लीनचिट नहीं दी और डा कफील ने खुद ही लेकर परेश रावल से मंगवा ली माफी attacknews.in

लखनऊ/मुंबई 03 अक्टूबर । उत्तर प्रदेश सरकार ने गोरखपुर स्थित बाबा राघवदास (बीआरडी) मेडिकल कालेज के निलंबित डाक्टर कफील खान और दो अन्य के बारे में साफ किया है कि वर्ष 2017 में दिमागी बुखार के बच्चों की मौत के मामले में उन्हे क्लीन चिट नहीं दी गयी है और आरोपी डाक्टर इस मामले में भ्रम फैला रहे हैं।

चिकित्सा शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव रजनीश दुबे ने गुरूवार को एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि दो साल पहले बीआरडी मेडिकल कालेज अस्पताल में बाल रोग विभाग के डा कफील खान के अलावा राजीव मिश्रा, सतीश कुमार को निलंबित कर जांच के आदेश दिये गये थे। इन तीनो पर लगे सभी आरोपो पर सरकार ने अभी कोई फैसला नहीं लिया गया है और न ही उन्हे क्लीन चिट दी गयी है।

उत्तर प्रदेश सरकार ने गुरुवार को कहा कि अगस्त 2017 में गोरखपुर मेडिकल कॉलेज में बड़ी संख्या में इंसेफ्लाइटिस से ग्रस्त बच्चों की मौत के मामले में आरोपी डॉक्टर कफील से सम्बन्धित जांच समिति ने कुछ तथ्यों का संज्ञान नहीं लिया था और खान को कोई क्लीन चिट नहीं दी गयी है।

चिकित्सा शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव ने यहां संवाददाता सम्मेलन में कहा कि डॉक्टर कफील के खिलाफ स्टाम्प एवं निबंधन विभाग के प्रमुख सचिव हिमांशु कुमार की जांच रिपोर्ट में कफील के बाल रोग विभाग में 100 बेड के वार्ड का प्रभारी होने के दौरान अपने दायित्वों का निर्वहन नहीं करने और वार्ड में दी जाने वाली सुविधाओं का ठीक से प्रबन्धन नहीं करने के आरोप सिद्ध नहीं हुए हैं।

दुबे के मुताबिक डॉक्टर कफील ने जांच अधिकारी को बताया था कि घटना के समय वह नहीं बल्कि डॉक्टर भूपेन्द्र शर्मा उस वार्ड के प्रभारी थे। मगर इसके अलावा और बहुत से अभिलेख थे, जिनका जांच अधिकारी ने संज्ञान नहीं लिया। उनका संज्ञान लेकर शासन के स्तर से उसकी जांच की जा रही है।

उन्होंने कहा कि इसी आधार पर जांच अधिकारी द्वारा उन्हें इन दो आरोपों में दोषी नहीं माना है। मगर शासन के संज्ञान में कुछ दस्तावेज आये हैं जिनसे प्रथम दृष्टया जाहिर होता है कि वर्ष 2016 और 2017 में कफील उस वार्ड के नोडल अधिकारी थे और उनके द्वारा इसी रूप में पत्राचार भी किये गये थे। उन्हें क्रय समिति का सदस्य भी नामित किया गया था।

दुबे ने कहा कि जांच में अंतिम निर्णय लिए जाने से पहले कफील को रिपोर्ट पर अपना पक्ष रखने के लिए उसकी एक प्रति दी गई है, जिसका उन्होंने गलत प्रस्तुतीकरण करते हुए मीडिया में भ्रामक खबरें फैलाई हैं।

इस सवाल पर कि ऐसा करने के लिये कफील पर अब तक कोई कार्रवाई क्यों नहीं की गयी, प्रमुख सचिव ने कोई स्पष्ट जवाब नहीं दिया।

दुबे ने दावा किया कि डॉक्टर कफील पर लगाए गए चार आरोपों में से निजी प्रैक्टिस करने समेत दो इल्जाम पूरी तरह सही साबित हुए हैं जिन पर निर्णय लेने की कार्यवाही चल रही है। कफील पर कुल सात आरोप लगे हैं। उन पर तीन आरोपों के साथ एक अन्य विभागीय कार्यवाही भी चल रही है। इसकी जांच चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग के प्रमुख सचिव कर रहे हैं।

उनसे सवाल किया गया कि सोशल मीडिया पर वायरल की गयी प्रमुख सचिव हिमांशु कुमार की रिपोर्ट में कफील को निजी प्रैक्टिस के आरोपों में भी दोषी नहीं पाये जाने की बात लिखी है। ऐसे में सवाल यह है कि क्या वह रिपोर्ट फर्जी है, इस पर दुबे ने कोई जवाब नहीं दिया।

गौरतलब है कि गोरखपुर मेडिकल कॉलेज में लगभग दो साल पहले कथित रूप से ऑक्सीजन की कमी के कारण बड़ी संख्या में मरीज बच्चों की मौत के मामले के आरोपी डॉक्टर कफील अहमद खान ने गत शुक्रवार को हिमांशु कुमार की रिपोर्ट का हवाला देते हुए खुद को ‘क्लीन चिट’ मिलने का दावा किया था।

रिपोर्ट के मुताबिक आरोप में डॉक्टर कफील को गोरखपुर मेडिकल कॉलेज में 100 बेड के एईएस वार्ड का नोडल प्रभारी बताया गया था जबकि आरटीआई से प्राप्त अभिलेख के अनुसार उस वक्त बाल रोग विभाग के सह आचार्य डॉक्टर भूपेंद्र शर्मा उस वार्ड के प्रभारी थे।

रिपोर्ट के अनुसार डॉक्टर कफील पर घटना के बारे में उच्चाधिकारियों को ना बताने के आरोप भी गलत हैं। कॉल डिटेल से पता चलता है कि उन्होंने विभिन्न अधिकारियों से इस बारे में बात की थी और अपने द्वारा उपलब्ध कराए गए ऑक्सीजन के सात सिलिंडर का दस्तावेजी सबूत भी पेश किया था।

गोरखपुर स्थित बाबा राघव दास मेडिकल कॉलेज में 10/11 अगस्त 2017 की रात को कथित रूप से करीब 39 बच्चों की मौत हुई थी। इसके पीछे आक्सीजन की कमी को मुख्य कारण माना गया था। हालांकि खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उनकी सरकार ने इस आरोप को गलत बताया था। इस मामले में डॉक्टर कफील, मेडिकल कॉलेज के तत्कालीन प्रधानाचार्य डॉक्टर राजीव मिश्रा तथा उनकी पत्नी डॉक्टर पूर्णिमा शुक्ला समेत नौ आरोपियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर उन्हें गिरफ्तार किया गया था।

डॉक्टर कफील इस मामले में लगभग सात महीने तक जेल में रहे थे। बाद में उन्हें अप्रैल 2018 में जमानत पर रिहा किया गया था।

और परेश रावल ने कफील खान से मांग ली माफी-

अभिनेता और भाजपा के पूर्व सांसद परेश रावल ने 2017 में गोरखपुर बीआरडी अस्पताल के शिशु रोग विशेषज्ञ कफील खान के खिलाफ की गयी टिप्पणी के लिए उनसे माफी मांगी है।

गौरतलब है कि 10 अगस्त, 2017 की रात अस्पताल में ऑक्सीजन आपूर्ति में आयी दिक्कत के कारण करीब 30 बच्चों की मौत हो गयी थी। वहीं अगले कुछ दिनों में 34 और बच्चे मर गए थे। इस मामले में हाल ही में डॉक्टर खान को मेडिकल लापरवाही और भ्रष्टाचार के सभी आरोपों से मुक्त कर उन्हें क्लिनचिट दिये जाने की बात उनके द्वारा कही जा रही है।

सूचनाओं के मुताबिक, अस्पताल ने ऑक्सीजन आपूर्तिकर्ता के बिल का भुगतान नहीं किया था इस कारण आपूर्ति बाधित हुई। हालांकि राज्य सरकार ने इन आरोपों से साफ इंकार किया था।

डॉक्टर खान पर लापरवाही का आरोप लगाते हुए उन्हें निलंबित कर दिया गया था और बाद में गिरफ्तार कर लिया गया था।

खान के मामले की जांच कर रहे प्रधानसचिव (स्टांप एवं पंजीकरण) हिमांशु कुमार ने डॉक्टर को किसी भी लापरवाही के आरोप से मुक्त करार दिया है।

डॉक्टर खान ने मंगलवार को अगस्त 2017 की रावल की टिप्पणी का हवाला देते हुए उनसे माफी मांगने को कहा था।

डॉक्टर खान से ट्वीट किया था, ‘‘मैं आपसे माफी मांगने को कह रहा हूं। परेश रावल जी। हम आपके प्रशसंक हैं, कभी सोचा नहीं था कि आपके विचार इतने संकीर्ण और छोटे होंगे। कृपया उस रिपोर्ट का अध्ययन करें जिसने मुझे लापरवाही और भ्रष्टाचार के आरोपों से मुक्त कर दिया है। आपके बॉस से तो नहीं, लेकिन कम से कम आपसे मुझे ऐसी आशा है।’’

बुधवार को रावल ने डॉक्टर खान से माफी मांगते हुए ट्वीट किया है, ‘‘गलती करने के बाद माफी मांगने में कोई शर्म नहीं है….. मैं डॉक्टर कफील खान से माफी मांगता हूं।’’

रावल की माफी स्वीकार करते हुए डॉक्टर खान ने लिखा है, ‘‘धन्यवाद परेश रावल जी। मैं इसकी प्रशंसा करता हूं। इसने बहुत दुख दिया है। हमें उन 70 लोगों के लिए भी तकलीफ महसूस करना चाहिए जिनके बच्चों की जान उस हादसे में गयी थी।’’

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