नागपुर, आठ जून ।राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने कहा है कि कल संगठन के मुख्यालय में पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने अपने भाषण में देश के गौरवशाली अतीत की याद दिलायी और उन्होंने समावेशी, बहुलतावाद एवं विविधता में एकता को भारत की बुनियाद बताया।
संघ के प्रचार प्रमुख (आधिकारिक प्रवक्ता) अरुण कुमार ने बताया, ‘‘मुखर्जी के भाषण ने राष्ट्र के गौरवशाली अतीत की याद दिलायी… देश की 5,000 साल पुरानी सांस्कृतिक विरासत की याद दिलायी। हमारी व्यवस्था भले ही बदल सकती है लेकिन हमारे मूल्य वही रहेंगे। उन्होंने समावेशी, बहुलवाद और विविधता में एकता को भारत की नींव बताया।’’
उन्होंने कहा, ‘‘कार्यक्रम में शामिल होने और राष्ट्र, राष्ट्रवाद तथा देशभक्ति की विचारधारा पर अपने विचार रखने के लिये हम लोग उनका धन्यवाद करते हैं।’’ मुखर्जी ने कल अपने भाषण में ‘‘धर्म, घृणा, हठधर्मिता और असहिष्णुता के जरिए भारत को परिभाषित करने के किसी भी प्रयास के प्रति चेताते हुए कहा कि इससे केवल हमारा अस्तित्व ही कमजोर होगा।
प्रणव मुखर्जी ने कहा था:
पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने बहुलतावाद एवं सहिष्णुता को भारत की आत्मा ’ करार देते हुए आज आरएसएस को परोक्ष तौर पर आगाह किया कि ‘ धार्मिक मत और असहिष्णुता ’ के माध्यम से भारत को परिभाषित करने का कोई भी प्रयास देश के अस्तित्व को कमजोर करेगा।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रहे मुखर्जी ने कांग्रेस के तमाम नेताओं के विरोध के बावजूद राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के स्वयं सेवकों के प्रशिक्षण वर्ग के समापन कार्यक्रम को संबोधित करते हुए यह बात यहां रेशमबाग स्थित आरएसएस मुख्यालय में कही।
उन्होंने कहा , ‘‘ हमें अपने सार्वजनिक विमर्श को सभी प्रकार के भय एवं हिंसा , भले ही वह शारीरिक हो या मौखिक , से मुक्त करना होगा। ’’
मुखर्जी ने देश के वर्तमान हालात का उल्लेख करते हुए कहा , ‘‘ प्रति दिन हम अपने आसपास बढ़ी हुई हिंसा देखते हैं। इस हिंसा के मूल में भय , अविश्वास और अंधकार है। ’’
मुखर्जी ने कहा कि असहिष्णुता से भारत की राष्ट्रीय पहचान कमजोर होगी। उन्होंने कहा कि हमारा राष्ट्रवाद सार्वभौमवाद , सह अस्तित्व और सम्मिलन से उत्पन्न होता है।
उन्होंने राष्ट्र की परिकल्पना को लेकर देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के विचारों का भी हवाला दिया। उन्होंने स्वतंत्र भारत के एकीकरण के लिए सरदार वल्लभ भाई पटेल के प्रयासों का भी उल्लेख किया।
मुखर्जी ने कहा , ‘‘ भारत में हम सहिष्णुता से अपनी शक्ति अर्जित करते हैं और अपने बहुलतावाद का सम्मान करते हैं। हम अपनी विविधता पर गर्व करते हैं। ’’
पूर्व राष्ट्रपति ने आरएसएस कार्यकर्ताओं के साथ राष्ट्र , राष्ट्रवाद एवं देशप्रेम को लेकर अपने विचारों को साझा किया।
उन्होंने प्राचीन भारत से लेकर देश के स्वतंत्रता आंदोलत तक के इतिहास का उल्लेख करते हुए कहा कि हमारा राष्ट्रवाद ‘ वसुधैव कुटुम्बकम् ’ तथा ‘ सर्वे भवन्तु सुखिन :..’ जैसे विचारों पर आधारित है। उन्होंने कहा कि हमारे राष्ट्रवाद में विभिन्न विचारों का सम्मिलन हुआ है।
उन्होंने कहा कि घृणा और असहिष्णुता से हमारी राष्ट्रीयता कमजोर होती है।
मुखर्जी ने राष्ट्र की अवधारणा को लेकर सुरेन्द्र नाथ बनर्जी तथा बालगंगाधर तिलक के विचारों का उल्लेख करते हुए कहा कि हमारा राष्ट्रवाद किसी क्षेत्र , भाषा या धर्म विशेष के साथ बंधा हुआ नहीं है। उन्होंने कहा कि हमारे लिए लोकतंत्र सबसे महत्वपूर्ण मार्गदशर्क है।
उन्होंने कहा कि हमारे राष्ट्रवाद का प्रवाह संविधान से होता है। ‘‘ भारत की आत्मा बहुलतावाद एवं सहिष्णुता में बसती है। ’’
उन्होंने कौटिल्य के अर्थशास्त्र का उल्लेख करते हुए कहा कि उन्होंने ही लोगों की प्रसन्नता एवं खुशहाली को राजा की खुशहाली माना था।
पूर्व राष्ट्रपति ने कहा कि हमें अपने सार्वजनिक विमर्श को हिंसा से मुक्त करना होगा। साथ ही उन्होंने कहा कि एक राष्ट्र के रूप में हमें शांति , सौहार्द्र और प्रसन्नता की ओर बढ़ना होगा।
मुखर्जी ने कहा कि हमारे राष्ट्र को धर्म , हठधर्मिता या असहिष्णुता के माध्यम से परिभाषित करने का कोई भी प्रयास केवल हमारे अस्तित्व को ही कमजोर करेगा।
पूर्व राष्ट्रपति के संबोधन से पहले संघ के सर संघचालक मोहन भागवत ने कहा कि आरएसएस के कार्यक्रम में मुखर्जी के भाग लेने को लेकर छिड़ी बहस ‘ निरर्थक ’ है तथा उनके संगठन में कोई भी व्यक्ति बाहरी नहीं है।
भागवत ने कहा कि इस कार्यक्रम के बाद भी मुखर्जी वही रहेंगे जो वह हैं तथा संघ वही रहेगा जो वह है। उन्होंने कहा कि उनका संगठन पूरे समाज को एकजुट करना चाहता है और उसके लिए कोई बाहरी नहीं है। उन्होंने कहा कि लोगों के भिन्न मत हो सकते हैं किन्तु सभी भारत माता की संतानें हैं।
आनंद शर्मा ने की प्रणव मुखर्जी की तारीफ
पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के आरएसएस के कार्यक्रम में जाने को लेकर कल सवाल खड़े करने के बाद कांग्रेस के वरिष्ठ नेता आनंद शर्मा ने आज कहा कि मुखर्जी के नैतिक बल, विवेक और धर्मनिरपेक्ष संवैधानिक लोकतंत्र को बुलंद रखने के प्रति उनकी प्रतिबद्धता पर कभी संदेह नहीं रहा और नागपुर में संबोधन के बाद उनका कद पहले से और ऊंचा हो गया है।
शर्मा ने ट्वीट किया, ‘‘प्रणाम प्रणब दा। नागपुर से आप पहले से भी अधिक कद्दावर बनकर निकले हैं। आपके किरदार, नैतिक बल, विवेक और धर्मनिरपेक्ष संवैधानिक लोकतंत्र को बुलंद रखने के प्रति आपकी प्रतिबद्धता पर कभी संदेह नहीं था।’’
मुखर्जी के कल राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यक्रम में पहुंचने के बाद शर्मा ने कहा था कि संघ मुख्यालय में पूर्व राष्ट्रपति की तस्वीरें देखकर पार्टी के लाखों कायकर्ताओं और भारतीय गणराज्य के बहुलवाद, विविधता एवं बुनियादी मूल्यों में विश्वास करने वालों को दुख हुआ है।attacknews.in