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मंहगाई पर रिजर्व बैंक ने लगाई मुहर: रेपो रेट में बदलाव नहीं,GDP 5% रहने का अनुमान,ब्याज सस्ता होने की उम्मीद हुई कम attacknews.in

मुंबई, पांच दिसंबर ।उद्योग एवं पूंजी बाजार की उम्मीदों को झटका देते हुये रिजर्व बैंक ने बृहस्पतिवार को मौद्रिक नीति समीक्षा में अपनी नीतिगत ब्याज दर में कोई बदलाव नहीं किया। आर्थिक वृद्धि की गति सुस्त पड़ने के बावजूद केंद्रीय बैंक ने महंगाई बढ़ने की चिंता में रेपो दर को 5.15 प्रतिशत के पूर्व स्तर पर बरकरार रखा। इससे पहले लगातार पांच बार रिजर्व बैंक ने रेपो दर में कुल मिलाकर 1.35 प्रतिशत की कटौती की।

रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास की अध्यक्षता वाली छह सदस्यीय मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) ने एक मत से रेपो दर को 5.15 प्रतिशत और रिवर्स रेपो दर को 4.90 प्रतिशत पर बनाये रखने के पक्ष में सहमति दी। मौद्रिक समीक्षा के लिये एमपीसी की तीन दिवसीय बैठक मंगलवार को शुरू हुई थी।

रेपो दर वह दर होती है जिस पर वाणिज्यिक बैंक अपनी त्वरित नकदी जरूरतों के लिये केंद्रीय बैंक से नकदी प्राप्त करते हैं जबकि रिवर्स रेपो दर के तहत केंद्रीय बैंक, प्रणाली में अतिरिक्त नकदी को नियंत्रित करने के लिये वाणिज्यिक बैंकों से नकदी उठाता है।

अर्थशास्त्रियों और बैंकों के साथ-साथ उद्योग जगत एवं निवेशकों को उम्मीद थी की सुस्त पड़ती आर्थिक वृद्धि को थामने के लिये रिजर्व बैंक रेपो दर में लगातार छठी बार कटौती कर सकता है। चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में आर्थिक वृद्धि दर छह साल के निम्न स्तर 4.5 प्रतिशत पर पहुंच गई। एक साल पहले इसी तिमाही में यह वृद्धि 7 प्रतिशत रही थी।

आर्थिक वृद्धि में गिरावट के विपरीत अक्टूबर माह में खुदरा मुद्रास्फीति 4.6 प्रतिशत पर पहुंच गई। यह पिछले 16 माह में सबसे ऊंची दर रही है। मुद्रास्फीति की यह दर रिजर्व बैंक के अनुमान से काफी ऊंची रही है।

हालांकि, मौर्दिक समीक्षा में कहा गया है कि आर्थिक वृद्धि को समर्थन देने के लिये जब तक जरूरी समझा जायेगा रिजर्व बैंक अपना रुख उदार बनाये रखेगा। केंद्रीय बैंक ने 2019-20 के लिये आर्थिक वृद्धि के अपने अनुमान को पहले के 6.1 प्रतिशत से घटाकर पांच प्रतिशत कर दिया। इस साल की शुरुआत से ही केंद्रीय बैंक आर्थिक वृद्धि के अनुमान को लगातार कम करता रहा है। चालू वित्त वर्ष की अप्रैल में पेश मौद्रिक समीक्षा में आर्थिक वृद्धि का अनुमान 7.2 प्रतिशत रखा गया था।

मौद्रिक नीति समीक्षा में हालांकि कहा गया है, ‘‘एमपीसी मानती है कि भविष्य की समीक्षाओं में नीतिगत बदलाव के लिये कदम उठाने की गुंजाइश बनी हुई है। बहरहाल, वृद्धि और मुद्रास्फीति की मौजूदा स्थिति को देखते हुये समिति समझती है कि इस समय रुकना ठीक रहेगा।’’

दास ने कहा, ब्याज दरों में कटौती के मामले में यह अस्थायी विराम है। एमपीसी इस मामले में फरवरी में बेहतर ढंग से निर्णय ले सकेगी। उस समय तक और आंकड़े सामने होंगे और सरकार भी 2020-21 का बजट पेश कर चुकी होगी।

दास ने कहा कि ब्याज दरों में लगातार कटौती करते रहने के बजाय समय अधिक महत्वपूर्ण होता है। उन्होंने कहा, ‘‘1.35 प्रतिशत की कटौती का पूरा असर आने दीजिये।’’

उन्होंने कहा कि इस समय जरूरत इस बात की है कि जो अड़चनें आ रही हैं उन्हें दूर करने के उपाय किये जायें, जिसकी वजह से निवेश रुका हुआ है।

रिजर्व बैंक ने कहा कि अक्टूबर में खुदरा मुद्रास्फीति का 4.6 प्रतिशत का आंकड़ा उसकी उम्मीद से काफी ऊंचा रहा है। यही वजह है कि बैंक ने चालू वित्त वर्ष की दूसरी छमाही का मुद्रास्फीति का अपना अनुमान बढ़ाकर 5.1 – 4.7 प्रतिशत के बीच कर दिया। इससे पहले यह 3.5- 3.7 प्रतिशत रखा गया था।

नीति दरें यथावत, ब्याज सस्ता होने की उम्मीद हुयी कम:

चालू वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में खुदरा मंहगाई के बढ़ने और आर्थिक विकास के 5.0 प्रतिशत पर आने का अनुमान को जताते हुये रिजर्व बैंक ने नीतिगत दराें को यथावत बनाये रखने का निर्णय लिया है जिससे घर, वाहन आदि के लिए सस्ते ऋण की उम्मीद लगाये लाेगों को निराश होना पड़ेगा।

रिजर्व बैंक ने लगातार पांच वार में रेपो दर में 1.35 प्रतिशत की कटौती कर चुका था और इस बार इस छठवीं बैठक में ब्याज दरों में कम से कम एक चाथाई फीसदी की कमी किये जाने की उम्मीद की जा रही थी क्योंकि चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में देश की आर्थिक विकास दर छह वर्ष के निचले स्तर 4.5 प्रतिशत पर आ गयी है।

केन्द्रीय बैंक की मौद्रिक नीति समिति की तीन दिवसीय बैठक में सर्वसम्मति से यह निर्णय लिया गया। गुरूवार को बैठक के बाद जारी बयान में कहा गया है कि चालू वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में खुदरा महंगाई बढ़कर 5.1 प्रतिशत से 4.7 प्रतिशत के बीच पहुंच सकती है।

समिति ने वैश्विक और घरेलू कारकों से आर्थिक विकास में आयी सुस्ती का हवाला देते हुये चालू वित्त वर्ष के विकास अनुमान को 6.1 प्रतिशत से घटाकर 5.0 प्रतिशत कर दिया है।

समिति ने रेपो दर को 5.15 प्रतिशत, रिवर्स रेपो दर को 4.90 प्रतिशत, मार्जिनल स्टैंडिंग फैसेलिटी दर (एमएसएफआर) 5.40 प्रतिशत, बैंक दर 5.40 प्रतिशत, नकद आरक्षित अनुपात (सीआरआर) को 4.0 प्रतिशत और वैधानिक तरलता अनुपात (एसएलआर) को 18.50 प्रतिशत पर यथावत बनाये रखने का निर्णय लिया है। रेपो दर वह दर है जिस पर रिजर्व बैंक वाणिज्यिक बैंकों को ऋण देता है।

रिजर्व बैंक ने आर्थिक वृद्धि का अनुमान एक प्रतिशत से ज्यादा घटाकर पांच प्रतिशत किया:

भारतीय रिजर्व बैंक ने चालू वित्त वर्ष के लिए देश की आर्थिक वृद्धि दर का अनुमान 6.1 प्रतिशत से घटाकर 5 प्रतिशत कर दिया है। इसकी प्रमुख वजह घरेलू और बाहरी मांग का कमजोर होना बताया गया है।

सरकारी आंकड़ों के अनुसार चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में देश की आर्थिक वृद्धि दर 4.5 प्रतिशत रही है। यह पिछले छह वर्ष का सबसे निचला स्तर है। इसकी प्रमुख वजह कृषि और विनिर्माण क्षेत्र का प्रदर्शन खराब रहना रहा है।

रिजर्व बैंक ने बृहस्पतिवार को जारी अपनी पांचवी द्विमासिक मौद्रिक नीति समीक्षा में कहा, ‘‘ 2019-20 के लिए वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि दर का अनुमान घटाकर पांच प्रतिशत किया जाता है। अक्टूबर की मौद्रिक नीति में यह 6.1 प्रतिशत था।’’

रिजर्व बैंक ने चालू वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में आर्थिक वृद्धि दर 4.9 से 5.5 प्रतिशत और 2020-21 की पहली छमाही में 5.9 से 6.3 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया है।

समीक्षा रपट के अनुसार नीतिगत दर में कटौती का लाभ लोगों तक पहुंचने में सुधार आने और वैश्विक व्यापार तनाव के समाधान की उम्मीद के चलते वृद्धि की संभावना बेहतर हुई है। वहीं घरेलू मांग के सुधरने में देरी, भू-राजनैतिक तनाव और वैश्विक आर्थिक गतिविधियों में नरमी से नीचे जाने का जोखिम भी है।

रपट के अनुसार हालांकि, सकारात्मक पहलू यह है कि नीतिगत दर में फरवरी 2019 से लगातार कमी की गयी है और सरकार ने भी पिछले कुछ महीनों में राहत के कई कदम उठाए हैं। इससे घरेलू मांग और बाजार धारणा सुधरने की उम्मीद है।

मौद्रिक नीति पर विचार करने वाली छह सदस्यीय मौद्रिक नीति समिति ने कहा कि हालांकि, आर्थिक गतिविधियां कमजोर बनी हुई हैं और उत्पादन एवं खपत का अंतर भी नकारात्मक बना हुआ है।

रपट में कहा गया है कि कारपोरेट वित्तपोषण के आंकड़े और बैंकों एवं वित्तीय संस्थानों द्वारा मंजूर की गयी परियोजनाओं से निवेश गतिविधियों में जल्द सुधार के संकेत दिखते हैं। लेकिन यह संकेत कितने टिकाऊ हैं इस पर करीबी नजर रखने की जरूरत है।

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