नयी दिल्ली, 21 दिसंबर । केंद्र सरकार ने 10 केंद्रीय एजेंसियों को किसी भी कंप्यूटर सिस्टम में रखे गए सभी डेटा की निगरानी करने और उन्हें देखने के अधिकार दिए हैं।
केंद्रीय गृह मंत्रालय के साइबर एवं सूचना सुरक्षा प्रभाग द्वारा गुरुवार देर रात गृह सचिव राजीव गाबा के जरिए यह आदेश जारी किया गया।
आदेश के मुताबिक, 10 केंद्रीय जांच और खुफिया एजेंसियों को अब सूचना प्रौद्योगिकी कानून के तहत किसी कंप्यूटर में रखी गई जानकारी देखने, उन पर नजर रखने और उनका विश्लेषण करने का अधिकार होगा।
इन 10 एजेंसियों में खुफिया ब्यूरो (आईबी), नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी), प्रवर्तन निदेशालय (ईडी), केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी), राजस्व खुफिया निदेशालय (डीआरआई), केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई), राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए), रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ), सिग्नल खुफिया निदेशालय (जम्मू-कश्मीर, पूर्वोत्तर और असम में सक्रिय) और दिल्ली पुलिस शामिल हैं।
आदेश में कहा गया, ‘‘उक्त अधिनियम (सूचना प्रौद्योगिकी कानून, 2000 की धारा 69) के तहत सुरक्षा और खुफिया एजेंसियों को किसी कंप्यूटर सिस्टम में तैयार, पारेषित, प्राप्त या भंडारित किसी भी प्रकार की सूचना के अंतरावरोधन (इंटरसेप्शन), निगरानी (मॉनिटरिंग) और विरूपण (डीक्रिप्शन) के लिए प्राधिकृत करता है।’’
सूचना प्रौद्योगिकी कानून की धारा 69 किसी कंप्यूटर संसाधन के जरिए किसी सूचना पर नजर रखने या उन्हें देखने के लिए निर्देश जारी करने की शक्तियों से जुड़ी है।
पहले के एक आदेश के मुताबिक, केंद्रीय गृह मंत्रालय को भारतीय टेलीग्राफ कानून के प्रावधानों के तहत फोन कॉलों की टैपिंग और उनके विश्लेषण के लिए खुफिया और सुरक्षा एजेंसियों को अधिकृत करने या मंजूरी देने का भी अधिकार है।
विपक्षी दलों ने नागरिकों की निजी आजादी पर सीधा हमला बताया:
कांग्रेस सहित कई विपक्षी दलों ने निजी कंप्यूटरों को जांच एजेंसियों की निगरानी के दायरे में लाने के सरकार के आदेश का विरोध करते हुए शुक्रवार को कहा कि यह नागरिकों की निजी आजादी और निजता पर सीधा हमला है।
मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने इस आदेश के दुरुपयोग की आशंका जताते हुए आरोप लगाया कि भाजपा सरकार देश को ‘निगरानी राज’ (सर्विलेंस स्टेट) में तब्दील कर रही है।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता आनंद शर्मा ने संसद भवन परिसर में कई विपक्षी दलों के नेताओं की मौजूदगी में संवाददाताओं से कहा, ‘‘यह बहुत गंभीर घटनाक्रम है। इस आदेश के जरिए भाजपा सरकार भारत को निगरानी राज में तब्दील कर रही है। यह नागरिकों की निजी स्वतंत्रता पर सीधा हमला है तथा उच्चतम न्यायालय के उस निर्णय का प्रत्यक्ष उल्लंघन है जिसमें कहा गया था कि निजता का अधिकार मौलिक अधिकार है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘हम साथ मिलकर आदेश का विरोध करते हैं। यह हमारे लोकतंत्र में अस्वीकार्य है।’’ इस मौके पर राजद के मनोज झा, तृणमूल कांग्रेस के सुखेंदु शेयर रॉय, सपा के रामगोपाल यादव और आम आदमी पार्टी के संजय सिंह मौजूद थे।
कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने ट्वीट कहा, ‘‘अबकी बार, निजता पर वार। मोदी सरकार ने निजता के मौलिक अधिकार का मजाक बनाया है। चुनाव हारने के बाद मोदी सरकार आपके कंप्यूटर की जासूसी कराना चाहती है।’’ कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अहमद पटेल ने ट्वीट कर कहा, ‘‘इलेक्ट्रॉनिक निगरानी की अनुमति देने का सरकार का आदेश नागरिक स्वतंत्रता एवं लोगों की निजी स्वतंत्रता पर सीधा हमला है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘एजेंसियों को फोन कॉल एवं कंप्यूटरों की बिना किसी जांच के जासूसी करने का एकमुश्त अधिकार देना बहुत ही चिंताजनक है। इसके दुरुपयोग की आशंका है।’’ इसी विषय पर कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने कहा, ‘‘उच्चतम न्यायालय ने निजता को मौलिक अधिकार बताया है। भारत सरकार 20 दिसंबर की मध्यरात्रि में आदेश जारी कर कहती है कि पुलिस आयुक्त, सीबीडीटी, डीआरआई, ईडी आदि के पास यह मौलिक अधिकार होगा कि वे हमारी निजता में दखल दे सकें। देश बदल रहा है।’’ इस आदेश पर माकपा महासचिव सीताराम येचुरी ने ट्वीट कर कहा ‘‘प्रत्येक भारतीय के साथ अपराधी की तरह व्यवहार क्यों किया जा रहा है? यह आदेश असंवैधानिक है। यह सरकार द्वारा पारित किया गया है जो प्रत्येक भारतीय पर निगरानी रखना चाहती है ।’’ येचुरी ने इसके असंवैधानिक होने की दलील देते हुए कहा कि यह टेलीफोन टैपिंग संबंधी दिशानिर्देशों तथा निजता और आधार पर अदालती फैसले का उल्लंघन करता है।
आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने कहा, ‘‘भारत में मई 2014 से अघोषित आपातकाल है। अब अपने आखिरी कुछ महीनों में मोदी सरकार नागरिकों के कंप्यूटरों पर नियंत्रण की कोशिश कर सारी सीमाओं को लांघ रही है।’’ उन्होंने सवाल किया, ‘‘क्या दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में मौलिक अधिकारों पर इस तरह के आघात को बर्दाश्त किया जा सकता है?’’ भाकपा के राष्ट्रीय सचिव अतुल कुमार अनजान ने कहा, ‘‘आपातकाल के विरोध का चैम्पियन बनने वालों ने ही अब नागरिकों के निजता के अधिकार को छीनकर न सिर्फ लोकतंत्र को खतरे में डाला है, बल्कि फासीवादी रास्ते पर चल निकले हैं।’’ उन्होंने इस आदेश को वापस लेने की मांग करते हुए कहा कि सरकार ने यह कदम उठाकर नागरिकों के अधिकार की ‘नाकेबंदी करने’ की कोशिश की है।
खबरों के मुताबिक गृह मंत्रालय के आदेश में कहा गया है कि खुफिया ब्यूरो, मादक पदार्थ नियंत्रण ब्यूरो, प्रवर्तन निदेशालय (ईडी), केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी), राजस्व खुफिया निदेशालय (डीआरआई), सीबीआई, एनआईए, रॉ, ‘डायरेक्टरेट ऑफ सिग्नल इंटेलिजेंस’ और दिल्ली के पुलिस आयुक्त के पास देश में चलने वाले सभी कंप्यूटरों की कथित तौर पर निगरानी करने का अधिकार होगा।
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