नयी दिल्ली, 25 नवंबर। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने रविवार को कहा कि भारत का मूल-प्राण राजनीति या राजशक्ति नहीं बल्कि समाजनीति और समाज-शक्ति है तथा ऐसे में सब कुछ ‘राजनीति’ हो जाना, स्वस्थ समाज के लिए एक अच्छी व्यवस्था नहीं है।
आकाशवाणी पर प्रसारित ‘मन की बात’ कार्यक्रम में प्रधानमंत्री ने कहा कि जब ‘मन की बात’ शुरू हुई थी तभी उन्होंने तय किया था कि न तो इसमें राजनीति हो, न ही इसमें सरकार की वाहवाही हो और न ही इसमें कहीं मोदी हो । उन्होंने कहा कि उनके इस संकल्प के लिये सबसे बड़ा संबल, सबसे बड़ी प्रेरणा लोगों से मिली।
प्रधानमंत्री ने मन की बात के 50वें एपिसोड को संबोधित करते हुए अपने कुछ व्यक्तिगत अनुभव भी साझा किए ।
प्रधानमंत्री ने कहा, ‘‘ मोदी आएगा और चला जाएगा, लेकिन यह देश अटल रहेगा, हमारी संस्कृति अमर रहेगी। 130 करोड़ देशवासियों की छोटी-छोटी यह कहानियाँ हमेशा जीवित रहेंगी और देश को नयी प्रेरणा तथा उत्साह से नयी ऊंचाइयों पर ले जाती रहेंगी।’’
उन्होंने कहा कि ‘मन की बात’ के 50वें एपिसोड की सबसे बड़ी सिद्धि यही है कि आप प्रधानमंत्री से नहीं, बल्कि अपने एक निकटतम साथी से सवाल पूछ रहे हैं । ‘‘यही तो लोकतंत्र है।’’
मोदी ने कहा, ‘‘ कभी-कभी ‘मन की बात’ का मजाक भी उड़ता है लेकिन मेरे मन में हमेशा ही 130 करोड़ देशवासी बसे रहते हैं। उनका मन मेरा मन है। ‘मन की बात’ सरकारी बात नहीं है – यह समाज की बात है। ‘मन की बात’ एक महत्वाकांक्षी भारत की बात है।’’
उन्होंने कहा कि भारत का मूल-प्राण राजनीति नहीं है, भारत का मूल-प्राण राजशक्ति भी नहीं है। भारत का मूल-प्राण समाजनीति है और समाज-शक्ति है। समाज जीवन के हजारों पहलू होते हैं और उनमें से ही एक पहलू राजनीति भी है । राजनीति सबकुछ हो जाए, यह स्वस्थ समाज के लिए एक अच्छी व्यवस्था नहीं है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि कभी-कभी राजनीतिक घटनाएँ और राजनीतिक लोग, इतने हावी हो जाते हैं कि समाज की अन्य प्रतिभाएँ और अन्य पुरुषार्थ दब जाते हैं। भारत जैसे देश के उज्ज्वल भविष्य के लिए जन-सामान्य की प्रतिभाओं, पुरुषार्थ को उचित स्थान मिले, यह हम सबका एक सामूहिक दायित्व है और ‘मन की बात’ इस दिशा में एक नम्र एवं छोटा सा प्रयास है।
‘मन की बात’ कार्यक्रम में आए लोगों के पत्रों का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि वे जब भी कोई पत्र पढ़ते हैं तो पत्र लिखने वाले की परिस्थिति, उनके भाव.. विचार का हिस्सा बन जाते हैं। वह पत्र सिर्फ एक कागज़ का टुकड़ा नहीं रहता।
मोदी ने कहा कि कि उन्होंने करीब 40-45 साल अखंड रूप से एक परिव्राजक का जीवन जिया, देश के अधिकतर जिलों में गये और दूर-दराज के इलाकों में बहुत समय भी बिताया है। यही वजह है कि जब वे पत्र पढ़ते हैं तो वे उस स्थान और सन्दर्भ से खुद को आसानी से जोड़ लेते हैं।
मीडिया का शुक्रिया अदा करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि वह आकाशवाणी, एफ़.एम. रेडियो, दूरदर्शन, अन्य टीवी चैनल, सोशल मीडिया को भी धन्यवाद देना चाहते हैं जिन्होंने स्वच्छता, सड़क सुरक्षा, मादक पदार्थ मुक्त भारत, सेल्फी विद डॉटर जैसे कई विषयों को नवोन्मेषी तरीके से एक अभियान का रूप देकर आगे बढ़ाया।
प्रधानमंत्री ने कहा कि ‘मन की बात’ ने लोगों की बातों को एक सूत्र में पिरोकर कर हल्की-फुल्की बातें करते-करते 50 एपिसोड का सफ़र तय कर लिया। हाल ही में आकाशवाणी द्वारा ‘मन की बात’ पर किए गए सर्वे में यह बात सामने आई कि औसतन 70% लोग नियमित ‘मन की बात’ सुनते हैं। अधिकतर लोगों को लगता है कि ‘मन की बात’ का सबसे बड़ा योगदान ये है कि इससे समाज में सकारात्मकता की भावना बढ़ी है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि देश की महान विभूतियों ने असाधारण गति से तीन वर्ष के भीतर विस्तृत संविधान तैयार किया और इससे सभी को आज भी अपने दायित्व रिकॉर्ड समय में पूरे करने की प्रेरणा मिलती है ।
प्रधानमंत्री ने कहा कि छह दिसम्बर को बाबा साहब आंबेडकर का महा-परिनिर्वाण दिवस है और वह सभी देशवासियों की ओर से बाबा साहब को नमन करते हैं जिन्होंने करोड़ों भारतीयों को सम्मान से जीने का अधिकार दिया।
उन्होंने जोर दिया कि ‘इंडिया फ़र्स्ट’ डॉ. बाबा साहेब आंबेडकर का ही मूलमंत्र था।
प्रधानमंत्री ने कहा कि कल ‘संविधान दिवस’ है, उन महान विभूतियों को याद करने का दिन, जिन्होंने हमारा संविधान बनाया।
मोदी ने कहा कि 26 नवम्बर 1949 को संविधान अपनाया गया था। संविधान तैयार करने के इस ऐतिहासिक कार्य को पूरा करने में संविधान सभा को 2 वर्ष, 11 महीने और 17 दिन लगे थे।
उन्होंने कहा ‘‘कल्पना कीजिये, तीन वर्ष के भीतर ही इन महान विभूतियों ने हमें इतना व्यापक और विस्तृत संविधान दिया। इन्होंने जिस असाधारण गति से संविधान का निर्माण किया वो आज भी समय प्रबंधन और उत्पादकता का एक शानदार उदाहरण है।’’
मोदी ने कहा, ‘‘यह हमें भी अपने दायित्वों को रिकार्ड समय में पूरा करने के लिए प्रेरित करता है।’’
उन्होंने कहा कि संविधान सभा देश की महान प्रतिभाओं का संगम थी। इन प्रतिभाओं में से हर कोई अपने देश को एक ऐसा संविधान देने के लिए प्रतिबद्ध था जिससे भारत के लोग सशक्त हों, ग़रीब से ग़रीब व्यक्ति भी समर्थ बने।
प्रधानमंत्री ने कहा कि संविधान में खास बात यह है कि अधिकार और कर्तव्य के बारे में विस्तार से वर्णन किया गया है। नागरिकों के जीवन में इन्हीं दोनों का तालमेल देश को आगे ले जाएगा।
उन्होंने कहा ‘‘अगर हम दूसरों के अधिकार का सम्मान करेंगे तो हमारे अधिकारों की रक्षा अपने आप हो जायेगी। इसी तरह अगर हम संविधान में वर्णित अपने कर्तव्यों का पालन करेंगे तो भी हमारे अधिकारों की रक्षा अपने आप हो जायेगी।’’
मोदी ने कहा कि उन्हें याद है कि 2010 में जब भारत के गणतंत्र को 60 साल पूरे हुए थे तब गुजरात में हाथी पर रख कर संविधान की शोभा-यात्रा निकाली गई थी। युवाओं में संविधान के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए और उन्हें संविधान के पहलुओं से जोड़ने के लिए यह एक यादगार प्रसंग था।
उन्होंने कहा कि वर्ष 2020 में एक गणतंत्र के रूप में हम 70 साल पूरे करेंगे और 2022 में हमारी आज़ादी के 75 वर्ष पूरे हो जायेंगे। ऐसे में हम सभी अपने संविधान के मूल्यों को आगे बढ़ाएँ और अपने देश में शांति, उन्नति एवं समृद्धि सुनिश्चित करें।
मोदी ने कहा कि संविधान सभा के बारे में बात करते हुए डॉ. बाबा साहेब आंबेडकर के योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता जो संविधान सभा के केंद्र में रहे।
प्रधानमंत्री ने कहा कि लोकतंत्र बाबा साहब के स्वभाव में रचा-बसा था । संविधान सभा में उन्होंने एक बहुत भावुक अपील की थी कि इतने संघर्ष के बाद मिली स्वतंत्रता की रक्षा हमें अपने खून की आखिरी बूँद तक करनी है। वह यह भी कहते थे कि हम भारतीय भले ही अलग-अलग पृष्ठभूमि के हों, लेकिन हमें देशहित को सभी चीज़ों से ऊपर रखना होगा।
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