Home / Law / Court / पटना हाईकोर्ट ने सेनारी नरसंहार में 34 लोगों की वीभत्स तरीके से की गई हत्या के 13 हत्यारों को निचली अदालत द्वारा दी गई फांसी और उम्र कैद की सजा से 15 को बरी किया attacknews.in
रोहिंग्या मुसलमानों द्वारा नरसंहार

पटना हाईकोर्ट ने सेनारी नरसंहार में 34 लोगों की वीभत्स तरीके से की गई हत्या के 13 हत्यारों को निचली अदालत द्वारा दी गई फांसी और उम्र कैद की सजा से 15 को बरी किया attacknews.in

 

पटना 21 मई । पटना उच्च न्यायालय ने सेनारी नरसंहार के 15 दोषियों को आज बरी कर दिया ।

न्यायाधीश अश्विनी कुमार सिंह और न्यायाधीश अरविंद श्रीवास्तव की खंडपीठ ने बहुचर्चित सेनारी नरसंहार मामले में सुनवाई के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था, जिसे शुक्रवार को सुनाया ।

खंडपीठ ने निचली अदालत के फैसले को रद्द करते हुए 15 दोषियों को बरी करने का आदेश दिया । इससे पूर्व जहानाबाद की जिला अदालत ने नरसंहार के इस मामले में 11 दोषियों को फांसी और 4 को उम्रकैद की सजा सुनाई थी ।

बिहार के चर्चित सेनारी नरसंहार कांड में पटना हाईकोर्ट ने शुक्रवार को निचली अदालत से दोषी ठहराए गए 15 आरोपियों को साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया है। साथ ही निचली अदालत द्वारा दी गई सजा को रद्द कर दिया। सभी को जेल से रिहा करने का आदेश दिया है।

18 मार्च 1999 को वर्तमान अरवल जिले (तत्कालीन जहानाबाद) के करपी थाना के सेनारी गांव में 34 लोगों की निर्मम हत्या कर दी गई थी। आरोप प्रतिबंधित एमसीसी उग्रवादियों पर लगा था।

इसी मामले में पटना हाईकोर्ट की दो सदस्यीय खंडपीठ के न्यायामूर्ति अश्वनी कुमार सिंह और न्यायमूर्ति अरविंद श्रीवास्ताव ने सेनारी नरसंहार कांड की सुनवाई के बाद फैसला दिया है।

हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि सरकारी पक्ष यानी अभियोजन पक्ष इस कांड के आरोपियों पर लगे आरोप को साबित करने में असफल है। नरसंहार कांड के इन आरोपियों के खिलाफ पुख्ता और ठोस साक्ष्य पेश करने में सरकार पूरी तरह असफल रही है। निचली अदालत द्वारा 15 नवंबर 2016 को नरसंहार कांड के 11 आरोपियों को फांसी की सजा और अन्य को आजीवन कारावास की सजा दी गई थी। सजा पाए आरोपियों ने निचली अदालत के फैसले को पटना हाईकोर्ट में चुनौती देते हुए अपील दायर की थी।

निचली अदालत ने जिन आरोपियों को मौत की सजा दी थी, उनकी सजा को सही ठहराने के लिए सजा के फैसले और साक्ष्य समेत सभी रिकॉर्ड को पटना हाईकोर्ट भेजा था। पटना हाईकोर्ट ने मौत की सजा वाले और आजीवन कारावास के फैसले पर एक साथ सुनवाई करने के बाद शुक्रवार को फैसला दिया है। पटना हाईकोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष के साक्ष्य एक दूसरे से मेल नहीं खाते हैं। वहीं, आरोपियों की पहचान की प्रक्रिया सही नहीं है। अनुसंधानकर्ता पुलिस ने पहचान की प्रक्रिया नहीं की है। गवाहों ने आरोपियों की पहचान कोर्ट में की है जो पुख्ता साक्ष्य की गिनती में नहीं है। इसलिए संदेह का लाभ आरोपियों को मिलता है। इसके अलावे इस कांड के विचारण के दौरान भी सरकार यानि अभियोजन और पुलिस प्रशासन भी आरोपियों के खिलाफ ठोस साक्ष्य पेश करने में असफल रहा।

34 लोगों की हुई थी निर्मम हत्या

तत्कालीन जहानाबाद और वर्तमान अरवल जिले के करपी थाने के सेनारी गांव में 18 मार्च 1999 की शाम करीब 7.30 बजे से 11 बजे रात तक प्रतिबंधित संगठन के एमसीसी उग्रवादियों पर गांव के 34 लोगों की तेजधार हथियार से गला व पेट फाड़कर और गोली मार कर निर्मम हत्या कर नरसंहार करने का आरोप है। इस नरसंहार कांड में मारे गए अवध किशोर शर्मा की पत्नी चितांमणी देवी के बयान पर पुलिस ने 19 मार्च 1999 को करपी थाने में कांड दर्ज किया था। जबकि नरसंहार की सूचना घटना के दिन ही 11.40 बजे रात में पुलिस को मिल गयी थी। दर्ज बयान के अनुसार पुलिस वर्दी में प्रतिबंधित संगठन के एमसीसी के उग्रवादियों ने सेनारी को घेर लिया व गांव के लोगों को घर से पकड़ कर ठाकुरबाड़ी के पास ले गए। उग्रवादियों ने एक-एक कर 34 लोगों को मार डाला।

निचली अदालत ने सुनाई थी सजा 

जहानाबाद सिविल कोर्ट के अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश तीन रंजीत कुमार सिंह ने इस नरसंहार के 15 आरोपियों को 15 नवंबर 2016 को सजा सुनाई थी। जिसमें 11 को मौत व अन्य को सश्रम आजीवन कारावास की सजा दी थी। सेशन कोर्ट ने साक्ष्य के अभाव में 23 अन्य  को बरी कर दिया था। पुलिस ने कई बार में 74 के खिलाफ कोर्ट में चार्जशीट दायर की थी। कुछ की सुनवाई के दौरान मौत हो गई थी।

इन्होंने दायर की थी याचिका

निचली अदालत ने बचेश कुमार सिंह, बुधन यादव, गोपाल साव, सत्येन्द्र दास, ललन पासी, द्वारिका पासवान, करीमन पासवान, गोरई पासवान, उमा पासवान व दुखन कहार उर्फ दुखन राम को मौत की जा सुनाई थी। मुगेश्वर यादव, विनय पासवान और अरिवंद पासवान को सश्रम आजीवन कारावास की सजा दी थी। इन्हीं लोगों ने इस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी।

वहीं सेनारी गांव के लोगों का कहना है कि यह फैसला निराशाजनक है। ग्रामीण नीतीश कुमार, अजय शर्मा आदि ने कहा कि न्यायालय की भाषा में साक्ष्य के अभाव भले ही हैं। पर हमारे परिजनों की गला रेतकर जघन्य हत्या कर दी गई। इससे बड़ा साक्ष्य क्या होगा। सभी लोग जानते हैं कि 18 मार्च 1999 की रात एमसीसी के हथियारबंद लोगों ने 34 लोगों की हत्या ठाकुरबाड़ी के पास ले जाकर कर दी थी। आखिर कौन सा साक्ष्य चाहिए था। समझ से परे हैं। आरोपियों ने गर्दन काटने के बाद उनके पेट को चीर दिया था।

चाचा को खोया था नीतीश ने

नीतीश ने बताया कि नरसंहार में वह अपने चाचा को खोया था। वहीं अजय शर्मा ने बताया कि नक्सलियों ने उसके भाई की हत्या कर दी थी। महेश शर्मा, अरविंद शर्मा, सुरेश शर्मा ने बताया कि हमलोगों ने अपना परिवार खोया है। अब खोने के लिए बाकी क्या रह गया है। यह भी कहा कि निचली अदालत के फैसले से न्याय मिलने की आस जगी थी। लेकिन, आज वह भी समाप्त हो गई।

सरकार मामले को सुप्रीम कोर्ट में करे दाखिल

मृतक के परिजनों ने कहा कि सरकार जिस प्रकार से अन्य नरसंहार के लिए सुप्रीम कोर्ट गई है। हम लोगों को भी न्याय दिलाने के लिए सरकार सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर करे।

सेनारी गांव के अलावा आसपास गांवों में पसरा है मातम

हाईकोर्ट के फैसले के बाद सेनारी गांव के अलावा खटांगी, मंझियावां, ओढ़बिगहा समेत दर्जनों गांवों में मातम छाया हुआ है। विभिन्न संगठनों से जुड़े ग्रामीण इस फैसले से काफी नाराज दिख रहे हैं। लोगों का कहना है कि सरकार इस मामले को सुप्रीम कोर्ट ले जाए। जब तक अभियुक्तों को सजा नहीं मिलेगी। मृतक के परिजन रात की सांस नहीं ले पाएंगे। इतनी बड़ी घटना में सभी लोगों को बरी किया जाना पूरी तरह हास्यप्रद है। इससे अभियुक्तों का मनोबल बढ़ेगा और अपराध की घटनाएं बढ़ेगी।

आपस में मिलजुलकर रहते हैं लोग

मृतक के परिजनों ने बताया कि गांव में अब कोई तनाव नहीं है। हम लोग मिलजुल कर रह रहे हैं। सेनारी के अलावा आसपास के गांवों में भी अमन चैन कायम है। पहले इलाका काफी अशांत था। लेकिन, पिछले 15 वर्षों से इस इलाके में आपसी समन्वय मजबूत हुआ है। जिसके कारण अब देर रात भी निर्भीक होकर लोग अपने घर आते-जाते हैं। ग्रामीणों ने यह भी कहा कि जो फैसला आया है। उससे निराशा हाथ लगी है। अब तो सूबे की सरकार इस मामले में क्या करती है। इसी पर निगाहें टिकी है।

19 मार्च 1999 को चिंतामणि के बयान पर दर्ज हुई थी प्राथमिकी

अरवल जिले के करपी थाना क्षेत्र के सेनारी गांव में 18 मार्च 1999 की रात प्रतिबंधित नक्सली संगठन माओवादी कम्युनिस्ट सेंटर के हथियारबंद लोगों ने हमला कर एक ही जाति के 34 लोगों की हत्या कर दी थी। शुरू में इसे पीपुल्स वार ग्रुप की हिंसक कार्रवाई मानी जा रही थी। लेकिन, एमसीसी ने पर्चा छोड़कर नरसंहार की जिम्मेवारी ली थी। उग्रवादियों द्वारा छोड़े गए पर्चे में शंकर बिगहा तथा नारायणपुर की घटनाओं के प्रतिशोद्ध की बात कही गई थी। इस घटना में सात लोग घायल हुए थे। तत्कालीन डीआईजी एसके भारद्वाज, डीएम अवनीश चावला, अरवल के एसपी संजय लाटेकर, डीजीपी टीपी सिन्हा, आईजी नीलमणि, गृहसचिव राजकुमार सिंह समेत कई वरीय अधिकारी घटना स्थल पर पहुंचे थे।

ट्रायल शुरू होने के बाद 31 लोगों ने दी थी गवाही
18 मार्च 1999 को सेनारी नरसंहार के दूसरे दिन 19 मार्च को करपी थाने में चिंतामणि देवी के बयान पर कांड संख्या 22-1999 के तहत प्राथमिकी दर्ज कराई गई थी। 16 जून 1999 को पुलिस के द्वारा चार्जशीट दाखिल किया गया था। इसके बाद 38 लोगों के खिलाफ ट्रायल चला।

सेनारी हत्याकांड में इन लोगों की गई थी जान

मधुकर कुमार, ओमप्रकाश उर्फ रोहित शर्मा, भूखन शर्मा, नीरज कुमार, ओमप्रकाश, राजेश कुमार, संजीव कुमार, राजू शर्मा, जितेंद्र शर्मा, विरेंद्र शर्मा, सच्चितानंद शर्मा, ललन शर्मा, अवधेश शर्मा, कुंदन शर्मा, धीरेंद्र शर्मा, अमरेश कुमार, रामदयाल शर्मा, सत्येंद्र कुमार, उपेंद्र कुमार, विमलेश शर्मा, परीक्षित नारायण शर्मा, रामनरेश शर्मा, चंद्रभूषण शर्मा, अवधकिशोर शर्मा, संजीव कुमार, श्यामनारायण सिंह, नंदलाल शर्मा, रामस्लोग शर्मा, ज्वाला शर्मा, पिंटू शर्मा, रामप्रवेश शर्मा, रंजन शर्मा, जितेन्द्र शर्मा, विरेन्द्र शर्मा।

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