शामली/इटावा 7 मई । ।लाकडाउन के दौरान ध्वनि,जल और वायु प्रदूषण का स्तर गिरने से आम लोगों के साथ साथ पंक्षियों को भी सुकून मिला है,नतीजन आज के दौर में दुलर्भ पक्षियों में गिनी जाने वाली गौरेया घर आंगन में फिर से फुदकती दिखायी देने लगी है।
सालों बाद इस तरह चिड़ियों की चहचहाहट लोगों के दिलों को काफी सुकून पहुंचा रही है। लोगों का मानना है कि प्रदूषण का स्तर गिरने के चलते पक्षियों को नया जीवनदान मिला है हालांकि मोबाइल फोन टावर से पैदा विकिरण यानी रेडिएशन को गौरेया समेत अन्य पक्षियों के लिये सर्वाधिक नुकसानदेह माना गया है।
काराेबारी सुधीर कुमार ने कहा कि निसंदेह कोरोना वायरस लोगों के जीवन के साथ साथ अर्थव्यवस्था के लिये घातक है लेकिन शायद मौजूदा हालात हमें प्रकृति से अधिक छेड़छाड़ नहीं करने की चेतावनी दे रहे हैं। प्रदूषण को कम करने में सहायक कई पंक्षी आज हवा में घुलती विषैली गैस और मोबाइल टावरों के रेडिएशन से विलुप्ति की कगार पर हैं। लाकडाउन से वैसे तो मोबाइल रेडिएशन ताे जस का तस है लेकिन हवा स्वच्छ होने और शोरशराबा घटने का असर पक्षियों पर साफ दिखायी देता हैं। घटे प्रदूषण ने इन नन्हीं सी जानों को फिर से नया जीवन दिया है।
इस दौरान सभी फैक्ट्रियां समेत कई प्रतिष्ठानों को पूरी तरह बंद कर दिया है। पूरे देश में फैक्ट्रियों के बंद होने से प्रदूषण का स्तर भी काफी नीचे तक गिर गया है। वातावरण स्वच्छ हो गया है। सुबह के समय चलने वाली हवाएं भी लोगों को तरोताजा महसूस करा रही है। कई नदियों का पानी भी बिल्कुल साफ हो गया है। रेडिएशन पक्षियों की जान का दुश्मन बना हुआ है। इनके चलते हम चिडियों की कई प्रजातियों को खो चुके हैं, गिद्ध तो सालों पहले लुप्त हो गए, उसके बाद गौरेया भी दिखाई देने बंद हो गयी।
नन्ही गौरैया का संरक्षक बन कर खुश है एक परिवार
इटावा,से खबर है कि लाॅकडाउन के कारण पसरे सन्नाटे के बीच फुदकती गौरैया चिडिया का चहचहाना वातावरण में संगीत के रस घोल रहा है जिससे प्रफुल्लित पंक्षी प्रेमी फुर्सल के पलों में नन्हे जीव को आकर्षित करने के लिये नये नये उपाय कर रहे है।
ऐसे ही लोगों में शामिल इटावा जिले का एक वकील परिवार इन दिनो गौरैया संरक्षक बन गया है। परिवार के लाड़ से खुश गौरैया ने दूसरी बार उनके घर पर अपना घोंसला बनाया हुआ है । फ्रैंडस कालौनी मुहाल मे रहने वाले वकील विक्रम सिंह यादव के घर गौरैया चिडिया मे पिछले साल की तरह से इस बार भी दो अंडे दिये जिनमे से अब बच्चे बाहर आ चुके है ।
ऐसा माना जाता है कि शहरीकरण के इस दौर में गौरैया भी प्रभावित हुईं । गौरैया आबादी के अंदर रहने वाली चिडिया है, जो अक्सर पुराने घरों के अंदर, छप्पर या खपरैल अथवा झाडियों में घोंसला बनाकर रहती हैं ।
घास के बीज, दाना और कीडे-मकोडे गौरैया का मुख्य भोजन है, जो पहले उसे घरों में ही मिल जाता था, लेकिन अब ऐसा नहीं है। गौरैया के झुण्ड दिन भर उनके आंगन में मंडराते रहते थे ।
उन्होने कहा “ पहले हमारे घर में अगर 40-50 चिडियां आती थीं तो अब एक भी नहीं दिखती है।” गौरैया की लगातार संख्या घटने के कारण साल 2010 से गौरैया दिवस मनाया जा रहा है । 20 मार्च को बेसक गौरैया दिवस मनाया जाता हो लेकिन उसका परिणाम उम्मीद की माफिक नही दिख रहा है । 2012 मे उत्तर प्रदेश मे अखिलेश सरकार बनने के बाद गौरैया को बचाने की दिशा मे वन विभाग की ओर से कई कार्यक्रमो का आयोजन किया गया जिससे गौरैयो को बचाने की दिशा मे लोग सक्रिय हुए लेकिन योगी सरकार आने के बाद इस प्रकिया पर पहले की तरह सक्रियता नही रही है ।