सिलीगुड़ी। समाज में उन्हें ‘अभद्र’ कहा जाता है। चरित्रहीन कहा जाता है पर लोग भूल जाते हैं कि ये इसी समाज के बनाए और सताए हुए हैं। इन्हें भी समाज के बाकी लोगों की तरह सपने सजाने और उन सपनों को पूरा करने का हक है। जी हां, आप सही समझ रहे हैं। हम बात कर रहे हैं उन महिलाओं की जिन्हें ये दुनिया वेश्या कह कर बुलाती है।
हम आपको रू-ब-रू कराना चाहते हैं इनकी जिंदगी के अंधेरे से। तकलीफों से। इनके बारे में जानेंगे तो रूह सिहर उठेगी। चलिए देखते हैं कैसी है सिलीगुड़ी के खलपारा रेड लाइट एरिया में जिंदगी।
नेपाल की रहने वाली अंकिता (बदला हुआ नाम) ने बताया कि यह दुनिया बिल्कुल अलग है। वह कहती है कि अब मुझे यहां की तकलीफें बुरी नहीं लगती। जब कभी लगती है तो मैं यह याद कर लेती हूं कि मैं एक वेश्या हूं। जब वो 18 साल की थी तब उसे नेपाल के एक छोटे से गांव से लाकर सिलीगुड़ी के रेड लाइट एरिया में बेच दिया गया था। वो एक मध्यमवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखती थी। गरीबी के कारण उसकी पढ़ाई भी बीच में ही छूट गई थी।
उसने बताया कि शुरू में हर दिन नरक की तरह लगता था। उसकी कीमत बहुत ज्यादा लगाई जाती थी। समय के साथ-साथ इस ‘धंधे’ की उसे आदत भी हो गई। उसने बताया कि एक बार उसने अपने परिवार को चिट्ठी भी लिखी, लेकिन उसका कोई जवाब तक नहीं आया। उसके परिवार का कोई शख्स अब उससे रिश्ता नहीं रखना चाहता। अंकिता कहती है कि अब उसने यह जिंदगी स्वीकार कर ली है। उसे इसकी आदत हो गई है और अब उसकी इच्छा भी उन परिवार वालों से मिलने की नहीं है जिन्होंने उससे मुंह मोड़ लिया था।
नेपाली लड़कियों को यहां ‘चिंकी’ कह कर बुलाया जाता है। बात करते-करते अंकिता घड़ी देख कर कहती है कि अब मेरे बिजनेस का टाइम हो गया है।
मुझे जाना होगा। यह पूछे जाने पर कि क्या अब उसका मन वापस घर जाने को नहीं करता। वह एक दर्द भरी मुस्कान के साथ कहती है मुझे अब कौन स्वीकार करेगा। यह पूछने पर कि क्यों? वह कहती है मैं एक वेश्या हूं साहब।